जब कलेक्टर मैडम ने मरे हुए पति को टपरी पर बर्तन धोते देखा? फिर…
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जब कलेक्टर मैडम ने मरे हुए पति को टपरी पर बर्तन धोते देखा
नागपुर शहर की शाम थी। चारों ओर हल्की ठंडक और हलचल। पूजा शर्मा, जो अब नागपुर की कलेक्टर बन चुकी थी, अपने ऑफिस में बैठी एक बड़े चोरी के केस को सुलझाने में जुटी थी। सुबह से लगातार काम करते-करते उसके चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी। दिमाग भारी था, लेकिन जिम्मेदारी का बोझ उससे भी भारी। तभी पूजा ने अपने ड्राइवर से कहा, “चलो, कहीं अच्छी कड़क चाय मिलती हो वहां ले चलो। आज एक चाय पीने के बाद ही सारा थकान उतर जाएगा।”
ड्राइवर ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैडम, पास में एक बहुत फेमस चाय की टपरी है। वहां की चाय पूरे शहर में मशहूर है।” पूजा ने हामी भरी, और दोनों कार में बैठकर टपरी की ओर निकल पड़े। शाम का वक्त था, टपरी पर भीड़ थी। पूजा ने कार से उतरते ही खुली हवा में खड़े होकर चाय पीने का फैसला किया। उसने टपरी वाले से दो कड़क चाय भेजने को कहा।
कुछ ही देर में एक आदमी दो चाय लेकर पूजा के पास आया। पूजा ने चाय की चुस्की ली, उसकी थकान कुछ कम हुई। चाय पीने के बाद पूजा ने अपना गिलास खुद धोने का फैसला किया। उसकी आदत थी कि अपनी छोटी-छोटी चीजें खुद ही साफ करती थी। वह टपरी के पास गई, जहां एक आदमी बैठा-बैठा बर्तन धो रहा था। पूजा ने उससे पानी मांगा। उस आदमी ने पानी का जग भरकर पूजा को दे दिया। पूजा ने गिलास धोया, वही रख दिया। तभी वह आदमी पूजा की ओर देखने लगा और बोला, “मैडम, आपने गिलास धोने का कष्ट क्यों किया? यह मेरा काम है।”
पूजा ने उसकी ओर देखा, और अचानक उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। उसका चेहरा पूजा के दिल में हलचल पैदा कर गया। वह चेहरा किसी और का नहीं, बल्कि उसके पति विशाल का था—जो आज से पंद्रह साल पहले मर चुका था। पूजा कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गई। उसकी आंखों में आंसू थे, दिल में सवालों का तूफान।
पूजा ने कांपती आवाज में पूछा, “विशाल, तुम जिंदा हो? तुम तो मर चुके थे… क्या सच में तुम विशाल हो?” उस आदमी ने हैरानी से पूजा की ओर देखा, “मैडम, मैं विशाल नहीं हूं। आप मुझे ऐसे क्यों बोल रही हैं?” पूजा ने अपने फोन से शादी की तस्वीरें दिखाईं। वह आदमी तस्वीरें देखता रह गया। पूजा ने कहा, “मेरे पति की पीठ पर लोहे की रॉड से चोट का निशान था। अगर तुम्हारी पीठ पर वैसा निशान है, तो तुम ही मेरे पति हो।” उस आदमी ने अपनी शर्ट के बटन खोले, पीठ दिखाई। वही निशान था।
पूजा की आंखों से आंसू बह निकले। उसने विशाल को गले से लगा लिया। आसपास खड़े लोग हैरान थे। एक कलेक्टर एक बर्तन धोने वाले को गले क्यों लगा रही है? पूजा ने पूछा, “तुम इतने साल कहां थे? मुझे पहचान क्यों नहीं पा रहे हो?” विशाल की आंखों में भी आंसू थे। उसने धीरे-धीरे अपनी कहानी बताई।
पूजा का संघर्ष
यह कहानी शुरू होती है 18 साल पहले। पूजा सिर्फ 22 साल की थी, आंखों में एक सपना था—कलेक्टर बनने का। उसके पिता एक फैक्ट्री में मजदूर थे, लेकिन फैक्ट्री मालिक ने छह महीने से तनख्वाह नहीं दी थी। घर का खर्च चलना मुश्किल था। मजदूरों ने आंदोलन किया, पुलिस में शिकायत की, लेकिन फैक्ट्री मालिक और पुलिस प्रशासन की मिलीभगत के कारण कोई सुनवाई नहीं हुई। मजबूरी, गरीबी और कर्ज के दबाव में पूजा के पिता समेत चार लोग आत्महत्या कर बैठे।
पूजा की मां पहले ही गुजर चुकी थी। अब पूजा अकेली थी, काका-काकी के साथ रहने लगी। लेकिन जब पूजा 20 साल की हुई, काका-काकी को वह बोझ लगने लगी। पैसों के लालच में उन्होंने पूजा की शादी बड़े घर में तय कर दी, और लाखों रुपये ले लिए। पूजा मजबूर थी, उसने शादी के लिए हां कर दी। उसका पति विशाल बहुत अच्छा इंसान था। वह पूजा से बहुत प्यार करता था, लेकिन सास-ससुर दिन-रात पूजा से काम करवाते थे। खेत में मजदूरी, घर का काम—पूजा का सपना धीरे-धीरे धुंधला पड़ने लगा। पढ़ाई छूट गई, सपना दूर चला गया।
विशाल ने हमेशा पूजा का साथ दिया। उसने पूछा, “तुम खुश नहीं लगती हो। तुम्हारा सपना क्या है?” पूजा ने कहा, “मेरा सपना कलेक्टर बनने का था, लेकिन अब सब खत्म हो गया।” विशाल ने कहा, “तुम पढ़ाई करो, मैं अपने माता-पिता से बात करूंगा।” लेकिन सास-ससुर ने मना कर दिया। उन्होंने कहा, “घर का काम करना पड़ेगा, पढ़ाई नहीं।”
विशाल ने पूजा से कहा, “तुम इस घर को छोड़ दो, अपनी पढ़ाई पूरी करो।” पूजा ने जवाब दिया, “मैं आपको छोड़कर नहीं जा सकती।” कुछ ही दिनों बाद विशाल की जिंदगी में तूफान आ गया। एक दिन विशाल ने कहा कि वह बाहर जा रहा है। कुछ दिनों बाद खबर आई कि विशाल का एक्सीडेंट हो गया, उसकी कार खाई में गिर गई। कार मिली, लेकिन बॉडी नहीं। प्रशासन ने मदद नहीं की, पूजा को अपने पति की बॉडी नहीं मिली। सबने कहा, “तुम्हारा पति खाई में बह गया होगा।” पूजा ने मान लिया कि विशाल मर गया।
पूजा की जिद और सफलता
पूजा ससुराल छोड़कर दिल्ली आ गई। कुछ पैसे और गहने लेकर अपनी दोस्त के यहां रुकी। पति की याद सताती रही, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने यूपीएससी की तैयारी शुरू की। चार साल तक जी-जान से मेहनत की, आखिरकार कलेक्टर बन गई। पहली पोस्टिंग मध्य प्रदेश के झांसी में हुई। पूजा ने भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कई कड़े फैसले लिए। फिर ट्रांसफर उत्तर प्रदेश के लखनऊ, और फिर महाराष्ट्र के नासिक।
नासिक में एक बड़ा चोरी का केस पूजा को मिला। पूरे दिन थकान रही, लेकिन पूजा ने हिम्मत नहीं हारी। शाम को चाय की टपरी पर वह अपने पति विशाल से मिली, जो अब बर्तन धो रहा था। पूजा की आंखों से आंसू बह निकले।
विशाल की कुर्बानी
विशाल ने पूजा को बताया, “जब तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें आगे बढ़ने नहीं दिया, मैंने सोचा, कैसे तुम्हें कलेक्टर बनाऊं। तुम मुझे छोड़ने को तैयार नहीं थी। इसलिए मैंने अपनी कार को खाई में गिरा दिया, ताकि सबको लगे कि मैं मर गया हूं। फिर मैं महाराष्ट्र आ गया, छोटे-मोटे काम करने लगा। जब पता चला कि तुम दिल्ली में यूपीएससी की तैयारी कर रही हो, तो मैं बहुत खुश हुआ। मैं चाहता था कि तुमसे मिलूं, लेकिन शर्मिंदा था कि तुम्हें छोड़कर गया। मैंने यह सब तुम्हारे लिए किया, ताकि तुम कलेक्टर बन सको।”
पूजा फूट-फूट कर रोने लगी। एक पति ने अपनी मौत का नाटक किया, ताकि उसकी पत्नी का सपना पूरा हो सके। पूजा ने विशाल को गले लगाया, कहा, “जो हुआ सो हुआ। इन 15 सालों में भले मैं कलेक्टर बन गई हूं, लेकिन मेरी जिंदगी का खालीपन कभी नहीं भर पाया। मैंने तुम्हारे अलावा किसी को अपनी जिंदगी में नहीं आने दिया। अब तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे।”
पुनर्मिलन और नई शुरुआत
पूजा और विशाल फिर से एक हो गए। पूजा ने अपने संघर्ष, त्याग और विशाल की कुर्बानी को दिल से महसूस किया। अब वह कलेक्टर थी, लेकिन उसकी सबसे बड़ी जीत थी अपने पति को वापस पाना। दोनों ने मिलकर नई जिंदगी शुरू की। पूजा ने अपने ऑफिस में काम के साथ-साथ समाज की सेवा को और बढ़ाया। उसके फैसलों में अब और भी संवेदनशीलता थी। वह जानती थी कि हर इंसान के पीछे एक कहानी होती है।
पूजा की कहानी समाज के लिए एक मिसाल बन गई। उसने दिखाया कि सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, और कभी-कभी अपनों की कुर्बानी ही सबसे बड़ा सहारा बनती है। पूजा ने अपने पति विशाल के साथ फिर से नई जिंदगी शुरू की, और दोनों ने मिलकर समाज में बदलाव लाने का सपना साझा किया।
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