जब दरोगा ने मारा ips अधिकारी को थपड़ फिर क्या हुआ
सुबह का समय था और बाजार में चहल-पहल थी। दुकानदार अपनी-अपनी दुकानों को खोलने में व्यस्त थे। इसी भीड़ में, दरोगा पांडे अपने दो सिपाहियों के साथ दुकानों से वसूली कर रहा था। उसके चेहरे पर अकड़ थी, चाल में रब और आवाज में डर। वह हर दुकान पर रुकता, पैसे जेब में डालता और आगे बढ़ जाता। कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता था। सब उसे “पांडे साहब” कहकर झुक जाते थे।
लेकिन आज दरोगा पांडे की किस्मत उसके लिए कुछ और ही लिख चुकी थी। सड़क के किनारे एक ठेले पर खड़ी एक महिला, जो सादे सलवार सूट में थी, बाल पीछे बांधे हुए और सामने रखी प्लेट में मोमोज खा रही थी। कोई नहीं जानता था कि वह लड़की दरअसल जिले की सबसे तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी नेहा चौहान थी। वह अक्सर वर्दी के बिना इलाके का हाल खुद देखने आई थी कि दरोगा पांडे सिंह अपनी ड्यूटी ठीक से कर भी रहा है या नहीं।
भाग 2: दरोगा की धौंस
उसी समय, दरोगा पांडे अपने बाइक पर भीड़ को चीरता हुआ एक सब्जी की दुकान पर गया और कहा, “चल, वे हफ्ता निकाल, जल्दी कर।” तभी नेहा ने दरोगा पांडे को देखा। कैसे वह दुकानदारों से धौंस जमाते हुए पैसे ले रहा था। उसकी आंखें सिकुड़ गईं। उसने अपने मोबाइल से हल्का सा वीडियो रिकॉर्ड किया। उसने सोच लिया कि अब तो इस दरोगा पांडे को सबक सिखाना ही है।
अगले दिन सुबह-सुबह वहीं बाजार, वहीं जगह लेकिन अब कुछ बदला हुआ था। उसी जगह पर जहां कल नेहा मोमोज खा रही थी, आज उसने एक पानी पूरी का ठेला लगा रखा था। ठेले पर वही लड़की खड़ी थी। सिर पर दुपट्टा, चेहरा साधारण पर आंखों में आत्मविश्वास की चमक। कोई नहीं पहचान पा रहा था कि यह वही आईपीएस अधिकारी है। वह ग्राहकों को पानी पूरी खिला रही थी, मुस्कुरा रही थी। लेकिन अंदर ही अंदर वह सिर्फ एक मौके का इंतजार कर रही थी।
भाग 3: पांडे का सामना
करीब 2 घंटे बाद, दरोगा पांडे अपनी रोज की रूटीन पर बाजार पहुंचा। सिपाही दोनों तरफ। उसने आते ही एक समोसे वाले को घूरा। फिर बोला, “क्या रे, आज फिर लेट हो गया। चल, 500 निकाल।” समोसे वाले ने कांपते हुए पैसे निकाल दिए। पांडे आगे बढ़ा और तभी उसकी नजर नेहा के ठेले पर पड़ी। वह रुक गया।
उसने नेहा से मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, नई दुकान लगी है। चलो अच्छा है। अब तुमसे भी हफ्ता लेना पड़ेगा।” नेहा ने सिर उठाया और हल्के स्वर में बोली, “कौन सा हफ्ता, साहब?” पांडे ने अकड़ते हुए कहा, “जो सब देते हैं, वही। वरना ठेला कल से यहां नहीं दिखेगा। समझी?”
नेहा ने सीधा उसकी आंखों में देखा। “साहब, मैं कोई पैसा नहीं दूंगी।” पांडे हंस पड़ा। “ओहो, बड़ी तेज जुबान है तेरी। लगता है अभी नहीं है बाजार में। ज्यादा चालाकी मत दिखा, वरना ठेला उलट दूंगा।” नेहा चुप रही, लेकिन उसकी नजरों में चुनौती थी।
भाग 4: थप्पड़ का अपमान
पांडे का गुस्सा बढ़ गया। उसने ठेले पर हाथ मारा और बोला, “निकाल पैसे।” नेहा ने फिर मना किया। तभी पांडे ने गुस्से में आकर नेहा के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। आवाज इतनी तेज थी कि पास खड़े लोग सन्न रह गए। किसी ने भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं की। बाजार में एक पल के लिए खामोशी छा गई।
नेहा ने गुस्से में कहा, “दरोगा साहब, इस थप्पड़ का हिसाब तो होकर ही रहेगा।” दरोगा हंसते हुए बोला, “जा जा, तेरे से जो होता है कर ले।” दरोगा इतना कहते ही वहां से निकल गया।
भाग 5: रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश
उसी समय नेहा थाने पहुंची। सामने एसएओ कुर्सी पर बैठा पकोड़े खा रहा था। उसने कहा, “क्या काम है, क्या लेने आई हो यहां?” तभी नेहा ने बिना इधर-उधर देखे कहा, “साहब, मुझे रिपोर्ट लिखवानी है।” एसएओ ने एक ठहाका लगाया और बोला, “यहां कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। चलो यहां से।”
नेहा ने बिना हिले कहा, “रिपोर्ट तो थाने में ही लिखी जाती है, साहब।” उसने मेज पर रखी चाय का घूंट लिया और धीरे से बोला, “मैंने कहा ना, यहां कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। अगर रिपोर्ट लिखवानी ही है तो ₹5000 लगेंगे। है तो देकर रिपोर्ट लिखवाओ।”
नेहा कुछ पल चुप रही। फिर उसने अपने बैग से ₹5,000 निकाले और एसएओ के सामने रख दिए। एसएओ के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसने रुपए उठाकर दराज में रखे और बोला, “अब बताओ, किसकी रिपोर्ट लिखवानी है?” नेहा ने बिना झिझके कहा, “दरोगा पांडे की।”
भाग 6: पांडे की सच्चाई
एसएओ के चेहरे की मुस्कान पल भर में गायब हो गई। “क्या कहा तुमने? दरोगा पांडे?” नेहा ने कहा, “हां, एसएओ साहब, दरोगा पांडे की। कल उसने बाजार में दुकानदारों से जबरन पैसे वसूले, मुझे धमकाया और फिर थप्पड़ मारा। मुझे उसकी रिपोर्ट दर्ज करानी है।”
एसएओ का गुस्सा बढ़ गया। उसने कुर्सी सीधी की और धीमे स्वर में बोला, “तुम जानती भी हो किसकी बात कर रही हो? दरोगा पांडे मेरे ही थाने का आदमी है। उसकी रिपोर्ट मैं नहीं लिख सकता।” नेहा ने सख्ती से कहा, “कानून सबके लिए बराबर होता है। चाहे वह दरोगा हो या एसएओ।”
भाग 7: नेहा की दृढ़ता
एसएओ ने मेज पर हाथ पटका। “ज्यादा दिमाग मत चला। यह कोई टीवी शो नहीं है कि जो चाहे रिपोर्ट लिखवा ले। यहां वही होता है जो हम चाहते हैं।” नेहा ने एसएओ को गुस्से में देखा। फिर सख्त आवाज में कहा, “साहब, आपने रुपए ले लिए हैं। अब रिपोर्ट लिखनी पड़ेगी।”
एसएचओ उठ खड़ा हुआ और गुस्से में बोला, “रुपए लिए हैं तो क्या हुआ? मैं उसकी रिपोर्ट नहीं लिखूंगा, समझी? और अगर ज्यादा जुबान चलाई तो 1 मिनट भी नहीं लगेगी अंदर करने में।” नेहा ने एक गहरी सांस ली। उसकी आंखों में अब वही ठंडापन था जो एक अफसर की नजरों में होता है।
भाग 8: नेहा का प्लान
बाहर बाजार फिर वहीं चहल-पहल। नेहा ने सोच लिया कि अब तो दरोगा पांडे और एसएओ को सबक सिखाना ही है। सड़कों पर हल्की भीड़ थी। दुकानदार अपनी दुकानें समेट रहे थे और हवा में तले हुए पकोड़ों की खुशबू फैल रही थी। लेकिन नेहा चौहान के मन में अब कोई शांति नहीं थी।
उसका चेहरा गुस्से और अपमान से तमतमा उठा था। दरोगा पांडे के थप्पड़ की गूंज अब भी उसके कानों में थी। पर उसने तय कर लिया कि अब यह मामला यहीं नहीं रुकेगा। उसी समय नेहा ने अपने भाई मंत्री विक्रम चौहान को फोन लगाया।
भाग 9: मंत्री का समर्थन
नेहा के हाथ थोड़े कांपे लेकिन उसने कॉल कर दिया। फोन कुछ सेकंड तक बजा और फिर दूसरी ओर से भारी आवाज आई। “हां, नेहा, सब ठीक है ना?” नेहा की आवाज धीमी पर ठोस थी। “नहीं भैया, इस बार कुछ बहुत गलत हो गया है।”
“क्या हुआ?” “थाने का दरोगा पांडे। उसने बाजार में वसूली करते हुए मुझे थप्पड़ मारा और जब मैं रिपोर्ट लिखवाने गई तो एसएओ ने पैसे मांगे। रिपोर्ट नहीं लिखी।” कुछ पल के लिए फोन के उस पार खामोशी छा गई।
फिर मंत्री विक्रम चौहान की आवाज आई, “कहां हो तुम अभी?” “मैं इस समय बाजार में हूं। मुझे आपकी मदद चाहिए। आज शाम तक बाजार में आ जाइए। वही जगह जहां कल मोमोज वाला ठेला था।” विक्रम चौहान ने कहा, “ठीक है नेहा, मैं आता हूं।”
भाग 10: सबूत इकट्ठा करना
शाम के करीब 5:00 बजे का वक्त था। नेहा बाजार में खड़ी थी। सादा सूट में लेकिन चेहरे पर वही कठोरता। थोड़ी देर में काले रंग की गाड़ी आकर रुकी। गाड़ी से उतरे मंत्री विक्रम चौहान, लंबे, सधे कदम, गले में दुपट्टा और आंखों में गुस्से की लकीरें।
भीड़ ने तुरंत उन्हें पहचान लिया। सब धीरे-धीरे फुसफुसाने लगे। “अरे मंत्री जी आ गए।” “मंत्री जी,” नेहा उनके पास आई। “मंत्री जी, यही वह जगह है जहां दरोगा पांडे ने मुझे थप्पड़ मारा था।” विक्रम ने चारों ओर नजर दौड़ाई। बाजार के लोगों ने नजरें झुका लीं। कोई कुछ नहीं बोला।
भाग 11: थाने का माहौल
नेहा और विक्रम दोनों थाने की ओर बढ़े। थाने का माहौल हमेशा की तरह ढीला था। बाहर सिपाही बातें कर रहे थे। अंदर टेबल पर फाइलें बिखरी थीं। लेकिन जैसे ही मंत्री चौहान अंदर दाखिल हुए, पूरा थाना सन्न रह गया।
एसएओ तुरंत खड़ा हो गया। “नमस्ते मंत्री जी। कैसे आना हुआ?” विक्रम ने सीधा उसकी ओर देखा। “आना तो मुझे बहुत पहले चाहिए था लेकिन अब आया हूं ताकि देख सकूं कि इस थाने में क्या हो रहा है।”
भाग 12: सच्चाई का सामना
एसएओ के चेहरे पर पसीना साफ झलक रहा था। उसने हकलाते हुए कहा, “नहीं साहब सब ठीक है।” नेहा आगे बढ़ी। “साहब, यही एसएओ है जिसने मुझसे ₹5000 लेकर भी रिपोर्ट नहीं लिखी।”
एसएओ ने झट से कहा, “साहब, यह झूठ बोल रही है।” विक्रम की आवाज और सख्त हो गई और थाने का माहौल बदल चुका था। सबकी नजरें झुक चुकी थीं। तभी दरवाजा खुला और दरोगा पांडे अंदर आया।

भाग 13: पांडे का डर
उसने जैसे ही मंत्री जी और नेहा को देखा, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। वह एक पल के लिए ठिठका। फिर बोला, “साहब, आप?” विक्रम ने ठंडे स्वर में कहा, “हां, मैं पहचान लिया ना?” पांडे ने हकलाते हुए कहा, “जी जी साहब, मैं तो बस ड्यूटी पर था।”
मंत्री जी ने कहा, “ड्यूटी पर था और उसी ड्यूटी में बाजार में दुकानदारों से वसूली कर रहे थे।” पांडे कुछ नहीं बोला। मंत्री जी ने कहा, “देखो, एसएओ, तुम्हें नेहा की बातें सुननी चाहिए थी और रिपोर्ट लिखनी चाहिए थी। आगे से ध्यान में रखना।”
भाग 14: पांडे और एसएओ की सजा
उसी समय नेहा और मंत्री जी थाने से बाहर निकल गए। बाजार में पहुंचते ही नेहा से कहा, “नेहा, अब सब ठीक है। तुम जा सकती हो।” दोस्तों, आगे की कहानी में और भी मजा आने वाला है।
भाग 15: पांडे की बौखलाहट
तभी नेहा वहां से चली गई और मंत्री जी बाजार के रास्ते से अपने घर जा रहे थे। उन्होंने सोचा, “अब तो कोई दिक्कत नहीं। सब कुछ ठीक है।” लेकिन किस्मत कुछ और ही लिख चुकी थी।
रास्ता वहीं पुराना बाजार वाला था। मंत्री जी बाजार से निकले ही थे कि तभी एक बाइक अचानक मंत्री जी के पास आकर तेजी से ब्रेक लगाकर रुकी। दरोगा पांडे ने मंत्री जी के बाइक के हैंडल पर जोर से हाथ मारा।
भाग 16: पांडे की बगावत
उसने तेजी से कहा, “बाइक रोको।” मंत्री विक्रम ने सख्त आवाज में कहा, “क्या बात है दरोगा पांडे?” पांडे ने अपनी टोपी उतारी। पर इस बार उसके चेहरे पर कोई सम्मान नहीं था। आंखों में लाल गुस्सा, मुंह पर अकड़।
“मंत्री जी, बहुत बड़ा तमाशा करा दिया आपने आज थाने में।” मंत्री जी ने ठंडे स्वर में कहा, “जो गलत करेगा, उसके साथ ऐसा ही होगा।” पांडे ने हंसते हुए कहा, “गल तो अब मैं करूंगा क्योंकि आपने मुझे सबके सामने नीचा दिखाया।”
भाग 17: बवाल
इतना कहकर उसने इशारा किया और पीछे बैठे सिपाही आगे बढ़े। एक ने बाइक पर लात मारी। दूसरे ने मंत्री जी की कॉलर पकड़ ली। मंत्री विक्रम चौहान चिल्लाए, “यह क्या कर रहे हो तुम लोग?” लेकिन अब किसी को फर्क नहीं पड़ रहा था।
दरोगा पांडे पूरी तरह बेकाबू था। कुछ दुकानदारों ने देखा लेकिन कोई आगे नहीं बढ़ा। सब जानते थे, दरोगा पांडे खतरनाक आदमी है। विक्रम का गुस्सा फूट पड़ा। “पांडे, तू भूल रहा है कि तू एक पुलिस वाला है।”
भाग 18: मंत्री का अपमान
“आपने मुझे सबके सामने अपमानित किया है। अब मैं भी आपको दिखाऊंगा कि पुलिस का डर क्या होता है।” इतना कहते ही उसने विक्रम के चेहरे पर जोर से थप्पड़ मारा। चारों ओर अफरातफरी मच गई। कोई मोबाइल से रिकॉर्ड करने की कोशिश कर रहा था। कोई चुपचाप अपनी दुकान बंद कर रहा था।
दरोगा पांडे ने कहा, “फोन निकालो।” एक सिपाही ने मोबाइल निकाला और वीडियो रिकॉर्ड करने लगा। पांडे ने कहा, “जो हमें नीचा दिखाएगा, उसका यही हाल होगा।” विक्रम की सांसे तेज चल रही थीं, पर उनकी आवाज अब भी ठोस थी।
भाग 19: पांडे का भागना
“पांडे, तेरा यह खेल ज्यादा देर नहीं चलेगा।” पांडे हंसा। “चल रहा है ना? और अब तो मजा आएगा।” तभी पांडे ने तुरंत सिपाहियों से कहा, “चलो भागो।” तीनों बाइक पर बैठे और भीड़ को धक्का देते हुए निकल गए।
दरोगा पांडे के थप्पड़ की गूंज अब भी मंत्री विक्रम चौहान के कानों में थी। उनका चेहरा लाल हो चुका था। लेकिन दिल में आग उससे भी ज्यादा भड़क रही थी। भीड़ धीरे-धीरे छट चुकी थी।
भाग 20: नेहा का साहस
मंत्री जी के कपड़े धूल से भर गए थे। विक्रम ने धीरे-धीरे अपने बाइक की ओर कदम बढ़ाए और वहां से चले गए। उसी वक्त दूसरी तरफ आईपीएस नेहा चौहान बाजार में सब्जियां खरीद रही थी। तभी उसने एक फोन लगाया।
“हैलो, अरविंद जी, कौन बोल रहे हैं?” “मैं आईपीएस नेहा चौहान।” “मैडम नमस्ते। बहुत दिनों बाद कॉल आया। सब ठीक तो है?” “ठीक तो नहीं है, अरविंद। मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।”
भाग 21: पांडे की दादागिरी
“कहिए मैडम, क्या बात है?” नेहा की आवाज भारी हो गई। “दरोगा पांडे, वही जो पहले तुम्हारे जिले में पोस्टेड था, अब मेरे इलाके में है। उसने कल मुझे बाजार में थप्पड़ मारा है।” कुछ सेकंड के लिए अरविंद खामोश हो गया।
“क्या कहा आपने, मैडम?” “हां और एसएओ ने भी रिश्वत मांगी। रिपोर्ट तक नहीं लिखी। अब मैं चाहती हूं कि इन्हें सस्पेंड करवाया जाए। लेकिन सबूत के साथ।” अरविंद ने गंभीर स्वर में कहा, “मैडम, अगर आप कहें तो मैं दोनों को सस्पेंड करवाने का आदेश लिखवा दूं।”
भाग 22: नेहा की योजना
नेहा ने ठंडे स्वर में जवाब दिया, “नहीं अरविंद, बिना सबूत के मैं किसी पर उंगली नहीं उठाती। कानून का मतलब ही है। सबूत। इसलिए कल तुम्हें बाजार में रहना होगा। मैं फिर से वहीं पानी पूरी का ठेला लगाऊंगी। जब दरोगा पांडे आए तो तुम दूर से वीडियो बनाना ताकि उनके हर काम का सबूत हमारे पास हो।”
अरविंद थोड़ा हैरान था। “लेकिन मैडम, अगर उसने फिर कुछ गलत किया तो खतरा बढ़ सकता है।” नेहा बोली, “मुझे डर नहीं है। इस बार मैं तैयार रहूंगी।” उसकी आवाज में वह दृढ़ता थी जो किसी अफसर की नहीं बल्कि एक ज्वाला की होती है।
भाग 23: सबूत इकट्ठा करना
अगले दिन सुबह बाजार का वही कोना फिर से चहल-पहल से भरा था। नेहा ने साधारण कपड़ों में पानी पूरी बेच रही थी। गले में दुपट्टा था ताकि दरोगा को पता भी न लगे कि यह वहीं आईपीएस अधिकारी नेहा चौहान है।
नेहा ने इस बार हल्का पीला सूट पहना था और चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। लेकिन नेहा की नजर बार-बार सड़क की तरफ थी। थोड़ी दूर पर एक व्यक्ति कैमरा लिए साधारण कपड़ों में कुछ अखबार खरीदने का नाटक कर रहा था। वहीं था इंस्पेक्टर अरविंद शर्मा।
भाग 24: पांडे का आगमन
उसने कैमरा ऑन किया और रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। करीब 20 मिनट बाद दूर से एक बाइक की आवाज सुनाई दी। लोगों ने देखा वही पुराना दरोगा पांडे अपनी अकड़ में आ रहा था। उसकी आंखों में वही रब। उसने बाजार के बीच बाइक रोकी और सिपाहियों से बोला, “चलो देखते हैं आज किसने नया ठेला लगाया है।”
वह सीधे नेहा के ठेले की तरफ बढ़ा। “चल, हफ्ता निकाल।” भीड़ फिर से सन्न थी। कुछ लोग पास आए। कुछ डर के मारे दूर हट गए। नेहा बोली, “साहब, मैं कोई हफ्ता नहीं दूंगी।”
भाग 25: पांडे का गुस्सा
पांडे हंसा। “लगता है समझ में नहीं आता। चलो समझाते हैं।” उसने ठेले पर हाथ मारा। प्लेटें नीचे गिर गईं। आलू पानी सब सड़क पर फैल गया। नेहा ने गहरी सांस ली। पर कुछ नहीं बोली।
पांडे बोला, “क्यों चुप है अब? बोल ना।” नेहा की आंखें सीधी उसकी आंखों में थीं। पांडे हंसा और ठेले को लात मारकर वहां से निकल गया। अरविंद अब भी भीड़ में खड़ा था। हर पल कैद कर रहा था।
भाग 26: सबूत तैयार
शाम को नेहा और अरविंद बाजार में मिले। अरविंद ने कहा, “मैडम, यह देखिए, पूरा सीन रिकॉर्ड हुआ है। पांडे ने जबरदस्ती पैसे मांगे, ठेला गिराया और धमकाया। अब बच नहीं सकता।” नेहा ने वीडियो देखा और बोली, “अब इसे सबूत के तौर पर जिले के डीजीपी के पास भेजा जाएगा। एसएओ भी इसमें फंसेगा।”
अरविंद ने कहा, “मैडम, आप चाहे तो मैं खुद फाइल तैयार कर दूं।” नेहा ने सिर हिलाया, “नहीं, मैं खुद करूंगी। यह लड़ाई मेरी है।”
भाग 27: थाने में कार्रवाई
अगले दिन सुबह का समय था। तभी आईपीएस नेहा चौहान और इंस्पेक्टर अरविंद सिंह दोनों थाने पहुंचे। अंदर एसएओ कुर्सी पर बैठा फाइल पलट रहा था और बगल में चाय रखी थी।
एसएओ ने एक नजर नेहा पर डाली। फिर सख्त लहजे में बोला, “अरे वाह, आज फिर आ गई। क्या बात है? आज क्या तमाशा लेकर आई हो?” फिर अरविंद की ओर देखा और पूछा, “यह साथ में कौन है? कोई वकील है क्या आपका?”
भाग 28: नेहा का साहस
अरविंद कुछ बोलने ही वाले थे कि नेहा ने शांत स्वर में कहा, “यह अरविंद शर्मा है और हमें आपकी बातों में दिलचस्पी नहीं। हमें बस काम से मतलब है।” एसएओ मुस्कुराया। “काम से मतलब है? तुम जैसे बहुत आते हैं यहां। सबको लगता है कि थाने में आकर तमाशा कर लेंगे तो कुछ हो जाएगा।”
थाने में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। सिपाही एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। तभी एसएचओ ने अरविंद की ओर इशारा करते हुए कहा, “और तुम कौन हो? क्या कोई पत्रकार हो जो यहां खड़े-खड़े रिकॉर्डिंग कर रहा है?”
भाग 29: नेहा की योजना
एसएओ ने झल्लाकर कहा, “चलो बाहर निकलो यहां से। बहुत हो गया तमाशा। मैं अभी तुम्हें बाहर निकलवाता हूं।” नेहा ने मोबाइल निकाला और डीजीपी ऑफिस का नंबर डायल किया। फोन स्पीकर पर था। कुछ सेकंड में उधर से आवाज आई, “हां।”
नेहा ने कहा, “साहब, मैं अभी थाने में हूं। एसओ और दरोगा पांडे दोनों ने ड्यूटी का गलत इस्तेमाल किया है। एसएओ ने रिश्वत मांगी और दरोगा ने मुझे भरे बाजार में मारा। मेरे पास दोनों के खिलाफ वीडियो सबूत हैं।”
भाग 30: डीजीपी का आगमन
डीजीपी की आवाज गहरी थी। “ठीक है, वहीं रहो। मैं आ रहा हूं थाने।” कमरे में अब हर कोई खामोश था। एसएओ ने बेमन से कुर्सी पर बैठते हुए कहा, “अब फोन लगाकर डराने की कोशिश मत करो। हम जानते हैं ऐसे कॉल कैसे होते हैं।”
नेहा ने कहा, “थोड़ी देर रुको, सब पता चल जाएगा।” करीब 20 मिनट बाद थाने में आए डीजीपी राघव सिंह। भारी कदम, सख्त चेहरा और आंखों में ठंडा गुस्सा।
भाग 31: गवाही का समय
डीजीपी अंदर आए और बोले, “कहां है एसएचओ और दरोगा पांडे? उसे बुलाओ अभी। अब बताओ, कल क्या हुआ था बाजार में?” इतनी ही देर में नेहा ने कहा, “साहब, कल दरोगा पांडे ने बाजार में मुझे जोरदार थप्पड़ मारा।”
पांडे बोला, “साहब, यह झूठ बोल रही है।” डीजीपी ने नेहा की ओर देखा। “आपके पास कोई सबूत है?” नेहा ने मोबाइल निकाला और कहा, “जी साहब, यह वीडियो है।”
भाग 32: सस्पेंड करना
डीजीपी साहब ने कहा, “दरोगा पांडे और एसएचओ, तुम्हें अभी की अभी सस्पेंड किया जाता है।” नेहा की आंखों में संतोष की चमक थी। उसने अपने भाई को फोन कर बताया कि अब दरोगा पांडे और एसएओ को सस्पेंड कर दिया गया है।
दोनों की दादागिरी का अंत हो चुका था। नेहा ने साबित कर दिया कि कानून सभी के लिए बराबर है और किसी को भी अपनी ताकत का दुरुपयोग नहीं करने दिया जाएगा।
भाग 33: एक नई शुरुआत
इस घटना के बाद नेहा ने अपने काम को और भी जिम्मेदारी से करना शुरू किया। उसने अपने इलाके में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई नए कदम उठाए। दरोगा पांडे और एसएओ के सस्पेंशन ने पूरे पुलिस महकमे में एक संदेश दिया कि गलत काम करने वालों को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा।
भाग 34: जनता का समर्थन
बाजार में लोगों ने नेहा की बहादुरी की तारीफ की। उन्होंने कहा, “देखो, एक महिला ने हमारी सुरक्षा के लिए खड़ी होकर एक दरोगा को सबक सिखाया है।” नेहा ने अपने काम से साबित कर दिया कि नारी शक्ति किसी भी चुनौती का सामना कर सकती है।
भाग 35: अंत में
इस घटना ने नेहा को और भी मजबूत बना दिया। उसने अपने करियर में कई नई ऊंचाइयों को छुआ और हमेशा याद रखा कि कानून सबके लिए बराबर होता है।
दोस्तों, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हम सही हैं, तो हमें कभी भी डरना नहीं चाहिए। चाहे कोई भी ताकतवर क्यों न हो, हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए।
इस कहानी का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। हमें उम्मीद है कि यह कहानी आपको पसंद आई होगी। ऐसी ही और कहानियों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें।
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