जब धर्मेंद्र के बाद हेमा के घर जा पहुंचे सनी देओल,फिर जो हुआ..
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जब धर्मेंद्र के बाद हेमा के घर जा पहुंचे सनी देओल, फिर जो हुआ…
बॉलीवुड की सबसे जटिल पारिवारिक कहानी
बॉलीवुड में जितनी मोहब्बत की कहानियां पर्दे पर लिखी गईं, उससे कहीं ज्यादा दर्द पर्दे के पीछे छिपा रहा है। लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन्हें न तो लोग पूरी तरह समझ पाते हैं, न ही खुलकर स्वीकार कर पाते हैं। ऐसी ही एक कहानी है देओल परिवार की—धर्मेंद्र, उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर, बेटे सनी देओल और दूसरी पत्नी हेमा मालिनी के बीच। यह कहानी सिर्फ एक अभिनेता या एक सुपरस्टार की नहीं, बल्कि एक पिता, एक बेटे और दो परिवारों के बीच बसी संवेदनाओं, संघर्षों और अंत में इंसानियत की है।
धर्मेंद्र का दूसरा विवाह—परिवार में तूफान
साल था 1980। धर्मेंद्र बॉलीवुड के ही-मैन, लाखों लड़कियों के दिलों की धड़कन, लेकिन उनके लिए सबसे कीमती थीं उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर और उनके चार बच्चे। इनमें सबसे बड़ा बेटा था सनी—पंजाबी खून, सच्चा दिल, और मां के लिए पिघल जाने वाला बेटा। लेकिन एक दिन खबर आई कि धर्मेंद्र ने धर्म बदलकर हेमा मालिनी से शादी कर ली। यह खबर पूरे परिवार पर जैसे बिजली गिरने जैसी थी। जिस घर में हंसी गूंजती थी, वहां सन्नाटा छा गया। एक बेटे का हीरो उसी रात उसका गुनहगार बन गया।
22-23 साल के सनी के लिए यह सदमा छोटा नहीं था। उन्होंने अपने पापा को हमेशा आदर्श माना, उनकी पूजा की। लेकिन अब उन्हें लगा जैसे उनके पिता ने उनकी मां को दर्द की गठरी सौंप दी हो। रोज मां की आंखों से गिरते आंसू देखना किसी भी बेटे के अंदर तूफान खड़ा कर सकता है। मीडिया ने आग में घी डालने का काम किया—“धर्मेंद्र ने अपनी पहली फैमिली को छोड़ दिया।” घर में तनाव बढ़ गया, सनी गुस्से में फट पड़े।

सनी देओल और हेमा मालिनी—12 साल की दीवार
इसी दौर में एक अफवाह फैली कि सनी देओल गुस्से में हेमा मालिनी के जूहू वाले बंगले पहुंच गए, हाथ में चाकू लेकर। पूरी इंडस्ट्री में सनसनी मच गई। स्टूडियो से लेकर मैगजीन ऑफिस तक एक ही सवाल—क्या धर्मेंद्र का बेटा अपराधी बन जाएगा? लेकिन असली कहानी कोई जानना ही नहीं चाहता था। सनी की मां प्रकाश कौर ने उस दिन पहली बार मीडिया के सामने आकर कहा, “मेरा बेटा इमोशनल है, पर गुंडा नहीं। वह वहां टूटा हुआ था, हमला करने नहीं गया था। मेरे बच्चों ने कभी किसी औरत को चोट नहीं पहुंचाई।” सच्चाई सामने आई—सनी के पास कोई चाकू नहीं था, यह सब मीडिया द्वारा सनसनी फैलाने के लिए गढ़ा गया झूठ था।
लेकिन उस रात ने सनी और हेमा के बीच 12 साल लंबी दीवार खड़ी कर दी। अगर हेमा मालिनी किसी पार्टी में आतीं, सनी दूसरी दिशा में चले जाते। अवार्ड शो में आमने-सामने आते तो एक बर्फ जैसी चुप्पी हवा में तैर जाती। कोई बहस नहीं, कोई नफरत नहीं—बस खामोशी।
पहली दरार—दिल आशना है के सेट पर
1992 में हेमा मालिनी अपनी फिल्म “दिल आशना है” डायरेक्ट कर रही थीं। डिंपल कपाड़िया उनकी हीरोइन थीं और सनी उनके अच्छे दोस्त। एक दिन डिंपल को किसी बात पर घबराहट हुई और उन्होंने सनी को सेट पर बुला लिया। तना हुआ माहौल, सारे कैमरे सांस रोककर देख रहे थे। हेमा मालिनी ने सनी से कहा, “डिंपल मेरी जिम्मेदारी है।” बस, इस एक वाक्य ने 12 साल से जमी बर्फ में पहली दरार पैदा कर दी। सनी ने पहली बार महसूस किया कि हेमा वो राक्षस नहीं हैं जैसा उनके बचपन के गुस्से ने उन्हें बना दिया था।
सच्ची परीक्षा—2015 का एक्सीडेंट
रिश्तों की असली परीक्षा मुसीबत में होती है। 2015 में राजस्थान के दौसा में हेमा मालिनी की कार का भयानक एक्सीडेंट हो गया। चेहरा लहूलुहान, आंख के पास गहरा कट। तस्वीरें देखकर देश तक हिल गया। धर्मेंद्र मुंबई में नहीं थे। देओल परिवार में अफरातफरी मच गई। सबकी नजरें सनी पर थीं—क्या वे अनदेखा करेंगे? लेकिन सनी देओल तुरंत अस्पताल पहुंचे, डॉक्टरों से बात की, स्पेशलिस्ट बुलवाए, प्लास्टिक सर्जन का इंतजाम किया ताकि हेमा मालिनी के चेहरे पर निशान न रह जाए। हेमा ने अपनी किताब “बियॉन्ड द ड्रीम गर्ल” में लिखा, “जब मैंने सनी को वहां खड़ा देखा, तो पहली बार लगा कि मेरे पास भी कोई अपना है। वह तब तक अस्पताल से नहीं गया जब तक मैं ठीक नहीं हो गई।”
उस दिन सनी देओल ने साबित किया कि इंसानियत नफरत से बड़ी होती है। बेटा वही कहलाता है जो अपनी मां से संस्कार ले और हर औरत की इज्जत करे, चाहे रिश्ता कैसा भी हो। शायद इसी वजह से “गदर 2” के रिलीज़ के वक्त हेमा मालिनी ने मीडिया के सामने कहा, “सनी मेरा बेटा है और उसने कमाल कर दिया।” ईशा देओल ने अपने भाइयों के लिए प्राइवेट स्क्रीनिंग रखी। 40 साल बाद एक टूटा हुआ परिवार धीरे-धीरे मरहम लगाना सीख रहा था।
धर्मेंद्र की प्रेयर मीट—फिर वही दीवार
हाल ही में जब धर्मेंद्र का निधन हुआ, उनकी प्रेयर मीट में पूरा बॉलीवुड मौजूद था। लेकिन हेमा मालिनी, ईशा देओल, आहना देओल—तीनों गायब थीं। उन्हें बुलाया ही नहीं गया। न बुलावा, न सूचना, न सम्मान। यह सिर्फ नहीं बुलाना नहीं था, यह एक स्पष्ट संदेश था—“तुम हमारे परिवार का हिस्सा नहीं हो।” सोचिए, एक पत्नी जिसने अपनी जिंदगी का सबसे सुंदर और कठिन हिस्सा धर्मेंद्र के साथ बिताया, उसी आदमी की विदाई में उसके लिए कोई जगह नहीं थी। दो बेटियां जिन्होंने अपने पिता को फिल्मों और टीवी पर देखा, लेकिन उन्हें अंतिम अलविदा कहने का हक भी नहीं मिला।
दुनिया कहती रही धर्मेंद्र एक महान इंसान थे, लेकिन उसी इंसान की अपनी तीन स्त्रियां उनके आखिरी सफर में शामिल नहीं हो पाईं। इससे बड़ा अन्याय क्या होगा? क्या किसी की अंतिम यात्रा भी पारिवारिक खटास का हिस्सा बन जाती है? क्या एक पत्नी को इतना हक भी नहीं कि वह अपने पति को अंतिम प्रणाम दे सके?
क्या सनी देओल ने सही किया?
इस पूरी कहानी में सबसे बड़ी सीख यही है—समय हर जख्म को भरता है। सनी देओल चाहें तो जिंदगी भर नफरत को ईंधन बनाकर जलाते रह सकते थे, लेकिन उन्होंने इंसानियत को चुना। उन्होंने अपनी मां के दर्द को समझा, लेकिन अपने पिता के दूसरे परिवार को भी इज्जत दी। यही सच्ची मर्दानगी है, यही असली मजबूती। जब भी परिवार पर तूफान आया, वही ढाई किलो वाला हाथ दीवार बनकर खड़ा हुआ।
निष्कर्ष
देओल परिवार की कहानी सिर्फ बॉलीवुड की नहीं, बल्कि हर भारतीय परिवार की कहानी है, जहां रिश्ते जटिल होते हैं, भावनाएं गहरी होती हैं और समय के साथ घाव भरना सीखना पड़ता है। सनी देओल ने साबित किया कि इंसानियत नफरत से बड़ी होती है, और परिवार में चाहे जितनी भी दूरियां आ जाएं, दिलों में जगह हमेशा बनी रहती है। यही सच्ची विरासत है।
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