जब महिला बेहोश होकर ऑटो में गिरी तो ड्राइवर ने जो किया ..

दोपहर का वक्त था। सूरज आसमान से आग बरसा रहा था। सड़कें पिघले लावे की तरह चमक रही थीं। हवा जैसे रुक सी गई थी और चारों तरफ तपिश का ऐसा माहौल था कि लोग अपने घरों में दुबके हुए थे। लेकिन शहर के बीचोंबीच एक पुराना ऑटो धीरे-धीरे चल रहा था। उसके अंदर बैठा था रमेश नाम का एक साधारण ऑटो वाला। उसकी आंखों में थकान तो थी, मगर हौसला अब भी था। सुबह से सवारी की तलाश में वह गलियों में घूम रहा था। पेट की आग उसे धूप की परवाह नहीं करने देती थी। उसके चेहरे पर पसीने की लकीरें ऐसे बह रही थीं जैसे मेहनत की कोई नदी बह रही हो और उसके कपड़े धूल और धूप में रंग बदल चुके थे।

भाग 2: रमेश की मेहनत

उसके ऑटो का इंजन कमजोर था। आवाज भी अजीब सी निकाल रहा था। पर वह अपने ऑटो से उसी तरह प्यार करता था जैसे कोई अपनी जिंदगी से करता है। हर सिग्नल पर वह रुकता, किसी सवारी को देखता और फिर आगे बढ़ जाता। कभी कोई मना कर देता, कभी कोई कह देता, “भाई, बाद में चलते हैं।” पर वह फिर भी मुस्कुराता और कहता, “कोई बात नहीं, शायद अगली सवारी मेरी किस्मत लिखे।”

वह सोच ही रहा था कि थोड़ा आगे किसी पेड़ की छांव में जाकर कुछ देर ऑटो रोक कर पानी पी ले। तभी दूर से उसे किसी की भागती हुई परछाई दिखाई दी। वह कोई महिला थी, जिसके कपड़ों से यह लग रहा था कि शायद वह किसी ऑफिस या काम से आ रही हो। उसके हाथ में पर्स था और चेहरा घबराहट से भरा हुआ था। जैसे वह किसी से बचने की कोशिश कर रही हो। रमेश ने अनायास ही ऑटो थोड़ा आगे बढ़ाया और उसी पल वह महिला सीधे उसके ऑटो के पास आकर रुक गई।

भाग 3: महिला की हालत

उसके कदम डगमगा रहे थे और सांसें तेज चल रही थीं। उसने बिना कुछ कहे सीधे ऑटो के अंदर कदम रखा। रमेश समझ नहीं पाया कि वह कहां जाना चाहती है। उसने धीरे से पूछा, “बहन, कहां जाना है?” मगर उसके होंठ कांप रहे थे। आवाज जैसे गले में अटक गई। वह कुछ बोलने ही वाली थी कि उसके हाथ से पर्स नीचे गिरा और वह सीट पर ढह गई।

रमेश घबरा गया। उसने तुरंत रेयर व्यू मिरर में पीछे देखा तो उसका सिर एक तरफ झुक चुका था। उसके बाल चेहरे पर बिखरे थे और माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं। आसपास कोई नहीं था। सड़क लगभग खाली थी। बस दूर से आती गाड़ियों की आवाजें और हवा में तैरती गर्मी थी। रमेश के मन में कई ख्याल आने लगे कि यह क्या हुआ? यह महिला बेहोश क्यों हो गई? कहीं कोई पीछा तो नहीं कर रहा था उसे? या फिर यह कोई जाल तो नहीं?

भाग 4: इंसानियत का जज्बा

वह खुद से सवाल पूछ रहा था पर जवाब नहीं मिल रहा था। धड़कनें तेज होने लगीं और माथे पर पसीना और बढ़ गया। उसके अंदर डर भी था और दया भी। वो अपने जीवन में कई मुश्किलें देख चुका था लेकिन किसी को इस हाल में उसने कभी नहीं देखा था। वह चाहता तो वहां से चला जाता क्योंकि आजकल के समय में कोई भी छोटी बात बड़ा आरोप बन सकती थी। पर उसके अंदर का इंसान बोला, “अगर मेरी जगह उसकी बेटी होती तो क्या कोई उसकी मदद करता?” यही सोचते हुए उसने अपने थके हुए शरीर को सीधा किया और उस महिला के चेहरे से बाल हटाए ताकि वह ठीक से सांस ले सके।

भाग 5: मदद की कोशिश

उसने देखा कि उसकी नब्ज़ धीमी थी मगर धड़क रही थी। रमेश ने अपने पुरानी बोतल से थोड़ा पानी लिया और उसके चेहरे पर छींटे मारे। उम्मीद थी कि शायद वह होश में आ जाए, लेकिन वह नहीं हिली। वो अब और परेशान हो गया। उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई। शायद कोई मदद करने वाला दिखे। मगर सड़क वीरान थी। एक पेड़ के नीचे कोई बुजुर्ग बैठा था, लेकिन वह दूर था।

रमेश ने मन ही मन कहा, “हे भगवान, अब तू ही मदद कर, मैं क्या करूं?” उसने फिर से महिला के चेहरे की ओर देखा और उसकी आंखों में अजीब सी मासूमियत थी। जैसे कोई दर्द बयां कर रही हो। उसका मन कांप गया। उसने तुरंत ऑटो का गियर लगाया और तय किया कि चाहे जो हो जाए, वह इसे किसी सुरक्षित जगह ले जाएगा।

भाग 6: ऑटो की यात्रा

उसने अपने अंदर के डर को पीछे छोड़ा और अपने ऑटो को धीरे-धीरे चलाना शुरू किया। पर तभी उसे याद आया कि यह महिला बेहोश है। तो क्या वह रास्ते में और खराब हालत में ना चली जाए? उसने अपने पुराने गमछे से हवा झलनी शुरू की और बार-बार पीछे मुड़कर देखता रहा कि उसकी सांसें चल रही हैं या नहीं। उसके दिल में अजीब सी बेचैनी थी और दिमाग में डर और दया दोनों साथ चल रहे थे।

वो सोच रहा था कि दुनिया में आजकल लोग एक दूसरे की मदद करने से पहले हजार बार सोचते हैं। मगर अगर मैं भी ऐसा करूं तो मैं इंसान किस बात का? ऑटो शहर की गर्म सड़कों पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। रमेश का मन अब बेचैनी से भरा था। लेकिन उसके चेहरे पर एक दृढ़ता थी।

भाग 7: अस्पताल की ओर

वह नहीं जानता था कि यह महिला कौन है, कहां से आई है या क्यों बेहोश हुई है। पर वह इतना जानता था कि किसी की जान बचाने से बड़ा कोई काम नहीं। और यही सोचते-सचते उसने मन ही मन भगवान से कहा कि बस तू साथ देना, मैं अपना फर्ज निभाऊंगा क्योंकि अगर इंसानियत मर गई तो जिंदगी में कुछ भी जीने लायक नहीं बचेगा।

ऑटो शहर की सड़कों पर तेजी से दौड़ रहा था। धूप इतनी तेज थी कि सड़क की टाइलें चमक रही थीं। हवा में गर्मी घुली हुई थी। ट्रैफिक के बीच से गुजरते हुए हॉर्न की आवाजें गूंज रही थीं। लेकिन रमेश के कानों में सिर्फ उस महिला की धीमी और टूटी हुई सांसों की आवाज थी। उसका मन हर पल घबराहट से भरता जा रहा था।

भाग 8: रास्ता पूछना

वह बार-बार शीशे में पीछे देखता कि कहीं वह पूरी तरह शांत तो नहीं हो गई। उसकी आंखें हर सेकंड उसकी छाती पर उठती गिरती सांसों को गिन रही थीं। शहर की भीड़ में लोग अपने-अपने रास्ते में व्यस्त थे। कोई फोन पर बात कर रहा था, कोई बच्चे को गोद में लेकर भाग रहा था। लेकिन किसी की नजर उस ऑटो पर नहीं पड़ी जो किसी की जिंदगी और मौत के बीच दौड़ रहा था।

रमेश ने कई लोगों से रास्ता पूछा लेकिन कोई ठीक से जवाब नहीं दे पाया। कोई बोला, “आगे ट्रैफिक है,” कोई बोला, “बाएं मुड़ जाओ।” पर उसका मन कह रहा था कि अब देर नहीं करनी चाहिए। उसने सिग्नल तोड़ दिया और सीधे उस दिशा में बढ़ गया जहां उसे अस्पताल का बोर्ड दूर से दिखाई दिया।

भाग 9: अस्पताल में घुसना

धूप में पसीना उसकी आंखों में चला गया। पर उसने आंखें पूछने का समय भी नहीं लिया। उसके भीतर एक ही आवाज गूंज रही थी, “जल्दी पहुंचना है, वरना यह औरत मर जाएगी।” उसकी हालत देखकर उसका दिल भर आया। वह खुद से बोलता जा रहा था, “तू हिम्मत रख, सब ठीक होगा।” जब उसने आखिरकार एक छोटे से अस्पताल का नीवा बोर्ड देखा तो उसके चेहरे पर एक हल्की राहत झलकने लगी।

उसने ऑटो सीधा गेट के पास रोका और बिना इंजन बंद किए बाहर कूद गया। उसने पूरे दम से आवाज लगाई, “कोई डॉक्टर है? कोई नर्स है? जल्दी आओ। कोई मरीज बेहोश है?” अंदर से दो लोग भागते हुए आए। उन्होंने जब देखा कि एक महिला सीट पर पड़ी है तो तुरंत स्ट्रेचर लेकर आए।

भाग 10: फर्ज निभाना

रमेश के दिल में अजीब सा सुकून और घबराहट दोनों एक साथ दौड़ रहे थे। क्योंकि अब उसने अपना काम पूरा कर दिया था। पर अब भगवान के हाथ में था कि वह औरत फिर से आंखें खोले या नहीं। वह भागकर अस्पताल के अंदर घुसा। उसके कदम तेज थे। दिल तेजी से धड़क रहा था।

उसने जोर से आवाज लगाई। डॉक्टर और नर्स तुरंत भाग कर आए। डॉक्टरों की नजर ऑटो वाले और महिला पर पड़ी तो उन्होंने बिना समय गवाए स्ट्रेचर निकाला और सीधे बाहर आए। रमेश ने तुरंत महिला को स्ट्रेचर पर रखा और देखा कि उसकी सांसें अब भी धीरे-धीरे चल रही थीं।

भाग 11: राहत की सांस

डॉक्टरों ने तुरंत नजर दौड़ाई और बोले, “जल्दी अंदर ले जाओ स्ट्रेचर को।” घुमाते हुए वे महिला को अस्पताल के इमरजेंसी रूम में ले गए। रमेश बाहर खड़ा रहा और उसकी आंखों में चिंता और राहत दोनों झलक रहे थे। उसने महसूस किया कि अब उसका फर्ज निभाया जा चुका है। लेकिन उसके मन में अब भी घबराहट थी।

उसने धीरे से भगवान का धन्यवाद किया कि उसने महिला को सुरक्षित अस्पताल तक पहुंचाने का मौका दिया। कुछ देर बाद डॉक्टर बाहर आए और उनके चेहरे पर मुस्कान थी। उन्होंने रमेश की तरफ इशारा करते हुए बोले, “चिंता की कोई बात नहीं है। महिला अब ठीक है। उसका नाम अमृता है। उसे सिर्फ कमजोरी और लो ब्लड प्रेशर की वजह से चक्कर आया था। अगर समय पर मदद नहीं मिलती तो शायद नतीजा अलग होता।”

भाग 12: अमृता का आभार

रमेश के सीने में अजीब सा सुकून भर गया। उसने राहत की सांस ली और महसूस किया कि किसी की जान बचाने की जिम्मेदारी निभाने का एहसास दुनिया के किसी इनाम से बड़ा था। उसका मन अपशान था और चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। क्योंकि अब उसने जान लिया था कि इंसानियत अभी भी जिंदा है और वह कभी नहीं मरती।

ऑटो वाला राहत की सांस लेने लगा। उसके पूरे शरीर से थकान झलक रही थी। उसके चेहरे पर पसीने के धब्बे थे और हाथ अभी भी कांप रहे थे। लेकिन उसके दिल में एक अजीब सा सुकून था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा काम कर दिया हो। थोड़ी देर बाद जब अमृता धीरे-धीरे होश में आई, उसने अपनी आंखें खोली और सबसे पहले अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई।

भाग 13: पहचान और कृतज्ञता

उसकी सांस अब पहले से स्थिर थी लेकिन शरीर अभी भी कमजोर लग रहा था। उसने महसूस किया। फुसफुसाकर पूछा, “मुझे यहां कौन लाया है?” उसकी आवाज में हल्की कमकंपी थी और आंखों में घबराहट साफ दिखाई दे रही थी। डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए उस ऑटो वाले की ओर इशारा किया।

रमेश का चेहरा उस समय बदल गया। उसकी थकान जैसे गायब हो गई और दिल में गर्व और खुशी की एक लहर दौड़ गई। उसने अपनी आंखों से अमृता को देखा जो अब उसे पहचान चुकी थी। उसकी मुस्कान में हल्की राहत थी और आंखों में आभार झलक रहा था। उसने धीरे से कहा, “शुक्रिया कि आपने मेरी मदद की। अगर आप समय पर नहीं होते तो मुझे पता नहीं क्या हो जाता।”

भाग 14: इंसानियत की ताकत

रमेश ने सिर हिलाकर जवाब दिया, “कुछ नहीं, अमृता जी, मैं तो बस अपना फर्ज निभा रहा था।” वह खड़ा वहां और अपनी थकान महसूस कर रहा था। पर अब उसका मन बहुत हल्का था। उसने देखा कि अमृता अब सुरक्षित है और उसकी जिंदगी में एक नया विश्वास और सुकून लौट आया।

उसने अपने भीतर महसूस किया कि इंसानियत की ताकत कितनी बड़ी होती है और वह किस तरह किसी की जिंदगी बदल सकती है। वह पल उसके लिए हमेशा यादगार बन गया और वह जान गया कि बिना किसी इनाम और पहचान के भी इंसानियत सबसे बड़ा पुरस्कार होती है।

भाग 15: अमृता की कहानी

अमृता की आंखों से आंसू बह निकले। उसके कांपते हुए हाथों ने ऑटो वाले का हाथ मजबूती से पकड़ लिया। उसकी आवाज में घबराहट और राहत का मिश्रण था। वह फुसफुसाई और बोली, “अगर तुम समय पर मदद ना करते, तो पता नहीं मेरा क्या होता।” उसकी आंखों में डर अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा था और उसकी मुस्कान में हल्की सी राहत झलक रही थी।

उसने धीरे से कहा, “भगवान तुम्हें खुश रखे।” उसका दिल भावुक था और वह खुद को अभी भी इस भरोसेमंद और दयालु इंसान की मदद के लिए भाग्यशाली मान रही थी। ऑटो वाला उसकी आंखों में देख रहा था और मन ही मन महसूस कर रहा था कि किसी की जान बचाना और उसके लिए सही समय पर मदद करना दुनिया के किसी भी इनाम से बड़ा पुरस्कार है।

भाग 16: एक नई शुरुआत

उसका चेहरा अब हल्की मुस्कान से भर गया था और उसने महसूस किया कि इंसानियत की ताकत कितनी बड़ी होती है और यही पल उसकी जिंदगी में हमेशा यादगार बन गया। अगले दिन जब अमृता ने सोशल मीडिया पर अपनी पूरी कहानी साझा की तो उसकी पोस्ट जैसे आग की तरह फैल गई। हर जगह वही ऑटो वाला चर्चा में आ गया।

लोग उसकी बहादुरी और इंसानियत की मिसाल देखकर हैरान थे और कहने लगे कि असली हीरो तो वही है जो बिना नाम के, बिना इनाम के दूसरों की मदद करता है। उसकी कहानी ने लोगों के दिलों को छू लिया और शहर के हर कोने में उसकी तारीफ होने लगी। लोग सोशल मीडिया पर उसके वीडियो और तस्वीरें शेयर कर रहे थे।

भाग 17: बदलाव की लहर

बच्चे और बड़े सभी उसकी वीरता और करुणा की बात कर रहे थे। कुछ लोगों ने उसे देखकर अपनी आंखों में आंसू रोक नहीं पाए क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि आज भी दुनिया में ऐसे लोग हैं जो सिर्फ इंसानियत के लिए जीते हैं और यही सच्चा हीरो होता है।

इस घटना ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर हर कोई अपने भीतर इंसानियत को जगा ले तो समाज कितना बेहतर और सुरक्षित बन सकता है। उसकी मदद ने ना केवल अमृता की जिंदगी बचाई बल्कि लाखों लोगों के दिलों में उम्मीद की किरण जगा दी।

भाग 18: इंसानियत का संदेश

लोग अब अपने आसपास की मदद करने वालों की ओर ज्यादा ध्यान देने लगे और अपने अंदर की करुणा को पहचानने लगे। इस ऑटो वाले की कहानी ने यह साबित कर दिया कि छोटे काम भी किसी की जिंदगी बदल सकते हैं और इंसानियत की ऐसी मिसाल हमेशा याद रह जाती है।

हर कोई चाहता है कि वह अपने जीवन में भी कभी न कभी ऐसा कुछ करके दूसरों की मदद करें जिससे समाज में सच्ची उम्मीद और प्यार कायम रहे।

अंत

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