जब High Court जज ने अपने खोए हुए बेटे को रिक्शा चलाते देखा फिर जो हुआ…Aarzoo Voice

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जब हाई कोर्ट जज ने अपने खोए हुए बेटे को रिक्शा चलाते देखा फिर जो हुआ…

भाग 1: खोया बचपन, संघर्ष की शुरुआत

दिल्ली के चांदनी चौक की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर एक छोटा सा रिक्शा धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसे चला रहा था केवल 10 साल का दुबला पतला लड़का—आदित्य। उसके छोटे हाथ रिक्शे के भारी पैडल को मुश्किल से संभाल पा रहे थे। आज शाम को तीन पुलिस वालों ने उससे जबरदस्ती ₹500 छीने थे और उसे बुरी तरह पीटा था।

लेकिन किसी को क्या पता था कि यह वही बच्चा है जिसे सुप्रीम कोर्ट के सबसे सम्मानित जज राहुल कुमार पिछले 8 सालों से रो-रो कर ढूंढ रहे हैं। जब यह सच्चाई सामने आई तो उन पुलिस वालों की सांस अटक गई।

भाग 2: गरीब दादी और आदित्य की जद्दोजहद

आदित्य अपनी बीमार दादी सुमित्रा देवी के लिए रिक्शा चला रहा था। दादी मां उसकी असली दादी नहीं थी, बल्कि उसे पालने वाली दादी थी। 8 साल पहले जब आदित्य केवल 2 साल का था, दिल्ली के एक मॉल में अपने पिता से बिछड़ गया था।

सुमित्रा देवी ने एक खोए हुए मासूम बच्चे को रोता देख सहारा दिया और अब 8 साल से पाल रही थी। उनकी छोटी सी चाय की दुकान थी, जिससे गुजारा चलता था। लेकिन अब बीमारी के कारण आमदनी कम हो गई थी। आदित्य ने तय किया कि वह दादी मां की मदद करेगा, दवाइयों के पैसे लाएगा।

भाग 3: पुलिस की क्रूरता और मीडिया की ताकत

एक शाम तीन पुलिस वालों—हेड कांस्टेबल विकास शर्मा, कांस्टेबल संजय और कांस्टेबल अनिल ने आदित्य से मुफ्त की सवारी की और फिर मारपीट कर उसके पैसे छीन लिए। पास की चाय की दुकान वाले अंकल ने विरोध किया तो उन्हें भी मार पड़ी। आदित्य डर के मारे रोता हुआ घर लौट गया।

उसी वक्त एक पत्रकार अमित वर्मा ने पूरी घटना रिकॉर्ड कर ली। उसने वीडियो को सोशल मीडिया पर अपलोड किया। देखते ही देखते वीडियो वायरल हो गया। पूरे देश में पुलिस की क्रूरता और आदित्य की बहादुरी की चर्चा होने लगी।

भाग 4: मीडिया का असर और न्याय की मांग

वीडियो वायरल होते ही हजारों लोगों ने देखा, लाइक्स, शेयर्स, कमेंट्स की बाढ़ आ गई। लोगों ने कहा—यह कैसी पुलिस है? शर्म की बात है। इन पुलिस वालों को तुरंत नौकरी से निकाला जाना चाहिए। यह बच्चा कितना बहादुर है। सरकार को तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए।

मीडिया चैनलों ने खबर को उठाया। छात्र संगठनों, महिला संगठनों ने प्रदर्शन किया। पुलिस वालों को कड़ी सजा देने की मांग हुई।

भाग 5: सुप्रीम कोर्ट जज का बेटा

इधर सुप्रीम कोर्ट के जज राहुल कुमार अपने चेंबर में केस की फाइल पढ़ रहे थे। उनके स्टाफ ने उन्हें वीडियो दिखाया। वीडियो देखकर राहुल कुमार का खून खौल गया। लेकिन जब उन्होंने आगे का वीडियो देखा, जहां सुमित्रा देवी बता रही थी कि यह बच्चा उनका अपना नहीं है, बल्कि मॉल में मिला था, तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।

राहुल कुमार को एहसास हुआ कि यह उनका खोया हुआ बेटा हो सकता है। उन्होंने अपनी टीम को आदेश दिया कि तुरंत उस बच्चे और उसकी दादी तक पहुंचा जाए।

भाग 6: दादी मां का त्याग और आदित्य की परवरिश

अभिषेक सिंह, जज साहब की टीम का लीडर, सुमित्रा देवी के घर पहुंचा। उसने देखा कि कितनी गरीबी में बुजुर्ग महिला और छोटा बच्चा रह रहे हैं। सुमित्रा देवी की हालत खराब थी। उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया।

अभिषेक ने आदित्य से उसकी कहानी पूछी। सुमित्रा देवी ने बताया कि 8 साल पहले मॉल में यह बच्चा खोया हुआ मिला था। उसने उसे अपना पोता मानकर पाला।

भाग 7: पहचान और मिलन

राहुल कुमार ने आदित्य की तस्वीर देखी। जन्म के निशान की पुष्टि की। वही चेहरा, वही निशान। 8 साल की तड़प, 8 साल का इंतजार, 8 साल की खोज आज खत्म हो गई थी। उनका बेटा मिल गया था।

राहुल कुमार और उनकी पत्नी प्रिया अस्पताल पहुंचे। आदित्य को देखकर दोनों रो पड़े। सुमित्रा देवी को धन्यवाद दिया। आदित्य अभी भी समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है।

राहुल कुमार ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हारा पापा हूं, लेकिन यह दादी मां तुम्हारी दूसरी दादी हैं जिन्होंने तुम्हें पाला है। अब हम सब एक साथ रहेंगे।”

भाग 8: न्याय और सज़ा

कोर्ट में पुलिस वालों के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई। वीडियो और गवाहों के बयान के आधार पर हेड कांस्टेबल विकास शर्मा को 2 साल की जेल, बाकी दोनों को 1-1 साल की जेल की सजा मिली। जुर्माने की रकम आदित्य और सुमित्रा देवी को देने का आदेश हुआ।

भाग 9: नई जिंदगी की शुरुआत

राहुल कुमार ने आदित्य और सुमित्रा देवी को अपने घर ले जाने का फैसला किया। आदित्य ने साफ कह दिया—मैं दादी मां को छोड़कर नहीं जाऊंगा। राहुल कुमार ने कहा—दादी मां भी हमारे साथ ही आएंगी। अस्पताल से छुट्टी के बाद दादी मां उनके घर में ही रहने लगीं।

राहुल कुमार ने सुमित्रा देवी के लिए घर में सबसे अच्छा कमरा तैयार किया। आदित्य के लिए भी सुंदर कमरा सजाया। लेकिन आदित्य ने कहा—मैं दादी मां के साथ ही सोऊंगा।

राहुल कुमार ने आदित्य का दाखिला दिल्ली के सबसे अच्छे स्कूल में करवाया। नए कपड़े, नए जूते, किताबें—सब दिलवाया। आदित्य अभी भी दादी मां की सेवा करना नहीं भूला था।

भाग 10: सच्चे रिश्ते और समाज को संदेश

प्रिया कुमार आदित्य के व्यवहार को देखकर खुश थी। दादी मां ने उसे बहुत अच्छी परवरिश दी थी। राहुल कुमार ने सुमित्रा देवी के नाम बैंक अकाउंट खुलवाया और उसमें अच्छी रकम जमा की।

यह कहानी पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई। लोगों ने सीखा कि सच्चे रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं। एक बुजुर्ग महिला ने बिना स्वार्थ के एक बच्चे को पाला, उसे संस्कार दिए।

भाग 11: कहानी का अंत, सबक की शुरुआत

आदित्य अब अपने असली माता-पिता और दादी मां के साथ खुश था। पुलिस वालों को सजा मिली, समाज को एक बड़ा सबक मिला।

यह कहानी बताती है कि संघर्ष, त्याग, और सच्चाई हमेशा जीतती है। समाज में बदलाव लाने के लिए एक छोटी सी घटना भी बहुत बड़ा असर कर सकती है।

समाप्त

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