जालिम बेटे ने माँ को थप्पड़ मारा बहू के वजह से… फिर माँ ने जो किया, हर बेटे के लिए सबक बन गया

जानकी देवी की जिंदगी अब अकेलेपन और उपेक्षा से भरी थी। उनके पति राघव जी का देहांत कई साल पहले हो चुका था। घर की दीवारों पर राघव जी की मुस्कान तो थी, लेकिन उसे देखने वाली आंखें सूनी पड़ गई थीं। जानकी देवी अब अपने बेटे अजय और बहू सोनिया के साथ रहती थीं, लेकिन यह रहना केवल नाम का था। घर में अपनापन की कमी थी और जानकी देवी अक्सर अकेलेपन का अनुभव करती थीं।

एक दिन, खाने की मेज पर जानकी देवी ने कहा, “बहू, मुझे खांसी आ रही है, मैं चावल नहीं खा सकती।” लेकिन अजय ने उनकी बात को नजरअंदाज करते हुए कहा, “आप रोटी खा लीजिए, आपको दिक्कत होती है।” इस अपमान से जानकी देवी का दिल टूट गया। उन्होंने सोचा कि उनका बेटा अब उनकी परवाह नहीं करता।

सुशीला का सहारा

जानकी देवी की एक सहेली, सुशीला, उनकी सबसे बड़ी सहारा थी। सुशीला ने उन्हें कुंभ स्नान के लिए चलने का आमंत्रण दिया, लेकिन जानकी देवी ने संकोच किया। सुशीला ने कहा, “कभी-कभी बोलना जरूरी होता है।” यह बात जानकी देवी के दिल में उतर गई।

जब जानकी देवी ने अपनी बहू से कहा कि वह घर का सारा काम करती हैं, तो सोनिया ने उन्हें अपमानित किया। शाम को अजय ने जानकी देवी को थप्पड़ मारा, जिससे उनका दिल टूट गया। जानकी देवी ने ठान लिया कि अब वह चुप नहीं रहेंगी।

नई पहचान

सुशीला के समर्थन से जानकी देवी ने अपने आत्मसम्मान के लिए आवाज उठाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पुराने कपड़े और गहने समेटे और एक नया घर किराए पर लिया। वहां उन्होंने स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। बच्चों के साथ बिताए समय ने उन्हें नया आत्मविश्वास दिया।

धीरे-धीरे जानकी देवी को मोहल्ले में इज्जत मिलने लगी। अजय और सोनिया की जिंदगी में कलह बढ़ने लगी, और अजय ने मां से माफी मांगी। जानकी देवी ने कहा, “मैं तुम्हें माफ कर सकती हूं, लेकिन अब मैं उस घर में नहीं लौटूंगी।”

सशक्त महिला

एक दिन, जानकी देवी को स्कूल में सम्मानित किया गया। जब लोग तालियां बजा रहे थे, तो उनकी आंखों में आंसू थे, लेकिन यह आंसू संतोष के थे। उन्होंने सीखा कि आत्मसम्मान से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अपमान सहना सबसे बड़ी गलती है। रिश्तों में प्यार और सम्मान आवश्यक हैं। अगर आप जानकी देवी की जगह होते, तो क्या करते?

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