जिसे लड़की ने गरीब समझ कर मजाक उड़ाया, 3 दिन में उसके लिए रोने लगी। फिर जो हुआ
कानपुर की रश्मि जब अपनी ऑफिस कलीग प्रिया की शादी में शामिल होने राजस्थान के एक गांव पहुंची, तो उसके चेहरे पर असंतोष साफ झलक रहा था। गाड़ी से उतरते ही उसने नाक पर रुमाल रख लिया। “यह कैसी जगह है यार? धूल ही धूल, सड़क भी ढंग की नहीं,” उसने कहा। प्रिया मुस्कुराते हुए बोली, “अरे रश्मि, यही मेरा घर है। थोड़ा एडजस्ट कर ले।”
“एडजस्ट? मैं तो बस तेरी खातिर आई हूं। वरना इतनी दूर पिछड़े इलाके में कौन आता?” रश्मि ने अपना डिजाइनर बैग संभालते हुए कहा। शादी के घर में चहल-पहल थी। रिश्तेदार इकट्ठे थे, महिलाएं गीत गा रही थीं। रश्मि जैसे ही अंदर दाखिल हुई, सबकी नजरें उस पर टिक गईं। उसका फैशनेबल अंदाज, महंगे कपड़े और शहरी ठाट-बाट देखकर लोग फुसफुसाने लगे। गांव के कुछ युवक उसके इर्दगिर्द मंडराने लगे। कोई अंग्रेजी में बात करने की कोशिश कर रहा था, कोई अपनी नई बाइक की तारीफ कर रहा था।
भाग 2: विवेक का परिचय
रश्मि ने एक लड़के को देखा और मजाक में बोली, “तुम्हारी अंग्रेजी सुनकर लगता है जैसे हिंदी भी भूल गए हो।” सब हंस पड़े। वह लड़का शर्मिंदा होकर चला गया। तभी आंगन में विवेक आया। उसके कपड़े सादे थे, हाथों में काम के निशान थे, चेहरा धूप से तपा हुआ। वह चुपचाप एक कोने में बैठकर मेहमानों के लिए पानी के गिलास सजाने लगा।
“यह कौन है? नौकर है क्या?” रश्मि ने प्रिया से पूछा। प्रिया ने तुरंत कहा, “अरे नहीं, यह विवेक है। मेरे भाई जैसा बहुत अच्छा लड़का है।” “अच्छा,” रश्मि ने नागभ सिकोड़ते हुए कहा, “देखने से तो बस मजदूर लग रहा है।” विवेक ने यह सुना पर कुछ नहीं बोला, बस मुस्कुराकर अपने काम में लग गया।
भाग 3: संगीत की रस्म
शाम को संगीत की रस्म थी। सब नाच-गाना कर रहे थे। रश्मि अपने फोन में व्यस्त थी, Instagram पर फोटो अपलोड कर रही थी। तभी बिजली चली गई। पूरा घर अंधेरे में डूब गया। रश्मि चिल्लाई, “हे भगवान, यह क्या बैकवर्ड जगह है? यहां जनरेटर भी नहीं है क्या?”
“जनरेटर है पर खराब हो गया है,” किसी ने कहा। “तो फिर ठीक करवाओ ना। क्या यहां कोई मैकेनिक भी नहीं मिलता?” रश्मि ने गुस्से से कहा। तभी विवेक ने आगे बढ़कर कहा, “मैं देखता हूं।” उसने टॉर्च ली और बाहर गया। 10 मिनट में जनरेटर की आवाज गूंजी और बत्ती जल उठी। सब खुश हो गए। रश्मि ने बेमन से कहा, “हां, थोड़ा काम तो आया।”
भाग 4: खाने की व्यवस्था
रात को खाने की व्यवस्था थी। रश्मि ने थाली देखी और मुंह बनाया। “यह क्या है? इतना घी तेल। मैं तो सिर्फ ग्रिल्ड चिकन खाती हूं।” प्रिया की मां ने प्यार से कहा, “बेटा, यहां शुद्ध घी में बनता है। स्वाद आएगा।” “आंटी, मुझे हेल्थ का ध्यान रखना पड़ता है। यह सब गांव के लोग खा सकते हैं, मैं नहीं,” रश्मि ने साफ मना कर दिया। विवेक चुपचाप सब सुन रहा था।
उसने प्रिया की मां से कहा, “काकी, मैं कुछ इंतजाम करता हूं।” वह बाहर गया और आधे घंटे में वापस आया। उसके हाथ में एक डिब्बा था। “यह पनीर टिक्का है। बिना ज्यादा मसाले के। पास के होटल से मंगवाया है।” रश्मि ने हैरानी से देखा, “तुमने? मेरे लिए?” “हां, मेहमान को भूखा नहीं रहना चाहिए,” विवेक ने सहजता से कहा।
भाग 5: बुखार का आना
अगली सुबह रश्मि को तेज बुखार आ गया। गांव में बड़ा अस्पताल नहीं था। प्रिया परेशान हो गई। तभी विवेक ने कहा, “मैं एक दोस्त डॉक्टर को बुलाता हूं।” उसने तुरंत शहर से एक अच्छे डॉक्टर को बुलवाया। डॉक्टर ने जांच की और दवाई दी। रश्मि ने कमजोर आवाज में पूछा, “इतनी जल्दी डॉक्टर कैसे आ गया?” विवेक ने मुस्कुरा कर कहा, “वो मेरा दोस्त है। साथ पढ़ते थे।”
“तुम पढ़े-लिखे हो?” रश्मि हैरान रह गई। “हां, इंजीनियरिंग की थी। पर गांव में वापस आ गया। यहां काम ज्यादा जरूरी था,” विवेक ने सादगी से जवाब दिया। रश्मि ने और कुछ नहीं पूछा पर उसके मन में हलचल मची हुई थी। विवेक ने उसकी दवाई का पूरा ध्यान रखा। समय पर दवा दी, गर्म पानी दिया।
भाग 6: विवेक की मेहनत
शाम तक उसका बुखार उतर गया। वह बाहर आई तो देखा विवेक खेत से लौट रहा था। उसके कपड़े मिट्टी से सने थे, चेहरे पर पसीना था। रश्मि ने मन में सोचा, “इंजीनियर होकर भी खेत में काम कर रहा है। कितना पिछड़ा हुआ सोच है इसका।” रात को प्रिया ने रश्मि से कहा, “देख रश्मि, विवेक भाई बहुत अच्छे हैं।”
“तू उनके बारे में गलत मत सोच,” प्रिया ने कहा। “अच्छे हैं तो क्या? गांव में रहकर मिट्टी में लौटते रहेंगे। कोई एंबिशन नहीं, कोई सपना नहीं। ऐसे लोगों से मुझे सख्त नफरत है,” रश्मि ने साफ शब्दों में कहा। प्रिया कुछ नहीं बोली, बस उदास हो गई। रश्मि को फर्क नहीं पड़ा।
भाग 7: विवेक की मदद
उस रात रश्मि को नींद नहीं आई। उसके मन में विवेक की छवि घूम रही थी। पर वह अपने आप को समझा रही थी, “नहीं, ऐसे लोग मेरे लायक नहीं। मुझे तो शहरी, अमीर और स्मार्ट लड़का चाहिए।” बुखार उतरने के बाद रश्मि फिर से अपनी पुरानी आदतों में लौट आई। सुबह देर से उठी। नाश्ते में नखरे किए।
“यह परांठा इतना तेल युक्त है। मैं तो सिर्फ ब्राउन ब्रेड खाती हूं,” रश्मि ने कहा। प्रिया की मां ने प्यार से कहा, “बेटा, गांव में ब्राउन ब्रेड नहीं मिलती।” रश्मि ने मुंह बिगाड़ा और चाय पीकर रह गई।
भाग 8: विवेक का धैर्य
दोपहर को जब विवेक खेत से लौटा तो रश्मि ने मजाक बनाते हुए कहा, “अरे वाह, किसान साहब आ गए। इंजीनियर बनकर भी खेत में मिट्टी खोद रहे हो? क्या बात है?” विवेक ने शांति से मुस्कुराकर कहा, “जो काम करना पड़े, वह कर लेता हूं।”
“बहुत महान हो तुम,” रश्मि ने ताना मारा। “शहर में लाखों की नौकरी छोड़कर यहां गांव में मजदूरी कर रहे हो। वाह वाह!” प्रिया ने उसे चुप कराने की कोशिश की पर वह नहीं मानी। “प्रिया, सच बोलूं तो तुम्हारे इस भाई को समझ नहीं आती। इतना पढ़-लिखकर भी कोई गांव में रहता है।” विवेक कुछ नहीं बोला। बस अपने काम में लग गया।

भाग 9: प्रिया के पिता की चोट
पर उसकी आंखों में एक हल्की सी पीड़ा झलक गई जो रश्मि ने नहीं दिखाई दी। उस शाम प्रिया का फोन बजा। अस्पताल से था। उसके पिता बाइक से गिर गए थे। पैर में गंभीर चोट लग गई थी। सब घबरा गए। प्रिया की मां रोने लगी। रश्मि भी परेशान हो गई। सब जल्दी से अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर ने जांच के बाद कहा, “पैर में फ्रैक्चर है। प्लास्टर लगाना पड़ेगा। इलाज का खर्चा करीब 25,300 आएगा।”
प्रिया के पिता ने करहाते हुए कहा, “बेटा, मेरे सारे पैसे लगभग खर्च हो चुके हैं। अब जो कुछ बाकी बचा है, उसी से सारा खर्च चलाना है। शादी परसों है। अभी भी बहुत सामान आना बाकी है। बैंक में एक एफडी थी। वह भी तुड़वा चुका हूं। लेकिन बैंक वाले कहते हैं तीन-चार दिन का समय और लगेगा।” प्रिया रोने लगी।
भाग 10: विवेक का साहस
उसकी मां ने घबराकर रिश्तेदारों को फोन किया पर किसी ने मदद नहीं की। “हमारे पास भी नहीं है। हम खुद तंगी में हैं,” यही जवाब मिले। रश्मि यह सब देख रही थी। उसे बुरा तो लग रहा था पर वो कुछ कर नहीं सकती थी। उसके पास भी सिर्फ 10-15,000 थे। तभी विवेक वहां पहुंचा। उसने स्थिति समझी और चुपचाप बाहर चला गया।
एक घंटे बाद लौटा और बिल जमा करवा दिया। प्रिया की मां ने आश्चर्य से पूछा, “बेटा, तूने कहां से पैसे लाए?” “काकी, मेरे पास थे। आप चिंता मत करो,” विवेक ने सहजता से कहा। रश्मि ने सोचा, “शायद थोड़े पैसे होंगे इसके पास। खेतीबाड़ी से कमा लिए होंगे। बड़ी बात नहीं।”
भाग 11: विवेक की मेहनत का फल
घर लौटने के बाद हालात और बिगड़ गए। दूल्हे के पिता ने फोन करके कहा, “देखो, बारात तय समय पर ही आएगी। अगर सब इंतजाम ठीक से नहीं हुआ तो हम वापस चले जाएंगे। हमारी बेइज्जती नहीं होनी चाहिए।” प्रिया के पिता बिस्तर पर लेटे परेशान हो रहे थे। “अभी भी 50-60 का सामान लेना है। सब्जी, फल, मिठाई, डेकोरेशन का सामान। पर पैसे कहां से लाऊं?”
प्रिया की मां ने फिर सभी रिश्तेदारों को फोन किया पर कोई आगे नहीं आया। कोई बहाना बना रहा था, कोई फोन ही नहीं उठा रहा था। रात हो गई। घर में सन्नाटा था। सब निराश बैठे थे। प्रिया रो रही थी। तभी विवेक फिर आया। “काका, कल सुबह तक सब इंतजाम हो जाएगा। आप बिल्कुल चिंता मत करो।”
भाग 12: विवेक का वादा
“पर बेटा, इतने पैसे कहां से आएंगे?” प्रिया के पिता ने पूछा। “मैं देख लूंगा, आप बस आराम करो, दवा समय पर लेना,” विवेक ने कहा और चला गया। रश्मि को हैरानी हुई, “यह लड़का इतना भरोसा कैसे दिला रहा है? पैसे कहां से लाएगा?” रात के 2:00 बजे रश्मि को नींद नहीं आ रही थी। वो बाहर आई तो देखा विवेक बरामदे में बैठा फोन पर किसी से बात कर रहा था।
“हां भाई, मुझे कल सुबह 5:00 बजे तक पैसे चाहिए। मेरी खेत की फसल का एडवांस दे दो। जो भी मिल जाए। हां, मैं डॉक्यूमेंट्स लेकर आ जाऊंगा।” रश्मि चुपचाप सुनती रही। विवेक ने फोन रखा और गहरी सांस ली। उसकी आंखों में थकान थी।
भाग 13: विवेक की मेहनत
सुबह 4:00 बजे विवेक फिर निकल गया। रश्मि की नींद खुली तो पता चला वह सब्जी मंडी गया है। सुबह 8:00 बजे तक ट्रक भरकर सामान आ गया। ताजा सब्जियां, फल, मिठाई के डिब्बे, 10:00 बजे तक सारी तैयारियां शुरू हो गईं। प्रिया की मां ने रोते हुए विवेक से पूछा, “बेटा, तूने यह सब कैसे किया?” विवेक ने मुस्कुराकर कहा, “काकी, प्रिया दीदी मेरी बहन जैसी है। उनकी शादी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।”
भाग 14: रश्मि का एहसास
दोपहर को एक रिश्तेदार रश्मि के पास आई और धीरे से बोली, “देखा, तूने विवेक ने अपनी पूरी कमाई लगा दी। 6 महीने की मेहनत के पैसे वो भी बिना किसी को बताए।” रश्मि को जैसे बिजली का झटका लगा। उसने घबराकर पूछा, “क्या मतलब?” “अरे, उसने अपनी खेत की फसल का एडवांस ले लिया। वो पैसे उसने अपने लिए बचाए थे। सोचा था कोई काम शुरू करेगा पर सब यहां लगा दिया। प्रिया की शादी के लिए।”
रश्मि की आंखों में आंसू आ गए। उसे अपने सारे शब्द याद आने लगे। “गांव का लड़का, मजदूर, पिछड़ा हुआ,” वो सब कुछ जो उसने कहा था। शाम को उसने विवेक को थका हुआ बरामदे में बैठे देखा। विवेक की मां उसके सिर पर हाथ फेर रही थी। “बेटा, तूने फिर से अपने लिए कुछ नहीं रखा। कब तक यूं ही दूसरों के लिए सब कुछ करेगा?” विवेक ने धीरे से कहा, “मां, मेरे पास आज भी तुम हो। यह घर है, खेत है। मुझे और क्या चाहिए? प्रिया दीदी की शादी मेरी जिम्मेदारी थी। पैसे तो फिर कमा लूंगा।”
भाग 15: विवेक की सच्चाई
रश्मि यह सब सुनकर अंदर चली गई। उसके गालों पर आंसू बह रहे थे। पहली बार उसे एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती की थी। जिसे उसने तुच्छ समझा, वही सबसे महान था। उसकी नींद उड़ गई। दिल में एक अजीब सी कसक थी। शर्म भी थी और पछतावा भी। अगली सुबह बारात आने वाली थी। पूरे घर में चहल-पहल थी।
भाग 16: रश्मि का आत्मावलोकन
रश्मि सजधज रही थी पर उसका मन कहीं और था। आईने में अपना चेहरा देखकर उसे खुद से नफरत हो रही थी। “मैंने कितना गलत किया उसके साथ।” वह मन ही मन सोच रही थी। नीचे आकर उसने देखा विवेक फिर से काम में लगा हुआ था। मंडप सजा रहा था। फूलों की सजावट कर रहा था। रश्मि ने हिम्मत करके उसके पास जाना चाहा पर रुक गई। “मैं क्या कहूंगी? माफी मांगू। वो मानेगा भी?”
भाग 17: बारात का स्वागत
दोपहर तक सारी तैयारियां पूरी हो गईं। बारात आने का समय हो गया। रश्मि प्रिया के कमरे में बैठी थी। प्रिया दुल्हन की तैयारी कर रही थी। “रश्मि, तू ठीक है ना? कल से चुपचुप सी हो गई है।” “हां, बस कुछ नहीं,” रश्मि ने झूठ बोला। पर उसका दिल भारी था। शाम को बारात आई। बैंड बाजे की आवाज गूंजी। शहनाई बजी। सब खुश थे। दूल्हे का स्वागत हुआ।
भाग 18: विवेक की उपस्थिति
रश्मि भी मुस्कुरा रही थी पर भीतर से टूटी हुई थी। उसकी नजरें विवेक को ढूंढ रही थीं। वो एक कोने में खड़ा था। उसके कपड़े साधारण थे। चेहरे पर थकान थी पर आंखों में संतोष था। फेरों का समय आया। पंडित जी मंत्र पढ़ने लगे। प्रिया और दूल्हा अग्नि के साथ फेरे ले रहे थे। रश्मि यह सब देख रही थी।
भाग 19: विवेक की भावनाएं
उसके मन में एक अजीब सी उथल-पुथल मच रही थी। उसने विवेक की ओर देखा। वह भी भावुक हो रहा था। रात को खाने का समय हुआ। सब मेहमान खाना खा रहे थे। रश्मि अलग बैठी थी। तभी विवेक की मां उसके पास आई। “बेटा, खाना नहीं खाएगी?” “नहीं आंटी, भूख नहीं है,” रश्मि ने धीरे से कहा।
भाग 20: रश्मि का पछतावा
विवेक की मां बैठ गई। “बेटा, तू परेशान लग रही है। कुछ बात है?” रश्मि की आंखें भर आईं। “आंटी, मैंने विवेक के साथ बहुत गलत किया। उसे नीचा दिखाया। बेइज्जत किया। अब मुझे अपने आप से नफरत हो रही है।” विवेक की मां ने उसके सिर पर हाथ रखा। “बेटा, विवेक बुरा नहीं मानता। वह जानता है लोग पहली नजर में गलत समझ लेते हैं।”
भाग 21: विदाई का समय
“पर आंटी, उसने इतना सब किया। अपनी कमाई लगा दी और मैंने…” रश्मि रो पड़ी। “बेटा, अगर दिल से माफी मांगना चाहती है तो जाकर बात कर। विवेक समझदार है,” विवेक की मां ने प्यार से कहा। विदाई का समय आया। प्रिया रो रही थी। सब भावुक हो गए। प्रिया ने अपने माता-पिता को गले लगाया।
भाग 22: विवेक का समर्थन
फिर विवेक के पास आई और रोते हुए बोली, “भाई, तूने मेरे लिए सब कुछ किया। मैं तुझे कभी नहीं भूलूंगी।” विवेक ने उसे गले लगाकर कहा, “खुश रहना दीदी। यही मेरी खुशी है।” गाड़ी चली गई। सब वापस लौटे। रश्मि का भी कल शाम को कानपुर जाने का टिकट था।
भाग 23: रश्मि का निर्णय
अगली सुबह रश्मि अपना सामान रख रही थी। उसका दिल भारी था। तभी प्रिया की मां ने आकर उसे नाश्ता दिया। “बेटा, चल कुछ खा ले।” रश्मि चुपचाप खाने लगी। तभी बाहर से आवाज आई। विवेक आया था। वो प्रिया के पिता से मिलने आया था। “काका, तबीयत कैसी है? दवा ले रहे हो ना समय पर?”
भाग 24: रश्मि की हिम्मत
“हां बेटा, तेरी वजह से सब ठीक है। तूने जो किया वो हम जिंदगी भर नहीं भूलेंगे।” विवेक ने हाथ जोड़े। “काका, यह मेरा फर्ज था। आप बस जल्दी ठीक हो जाइए।” रश्मि दरवाजे के पीछे खड़ी यह सब सुन रही थी। उसके हाथ कांप रहे थे। उसने गहरी सांस ली और बाहर निकल आई।
भाग 25: माफी का क्षण
“विवेक,” उसने धीरे से आवाज दी। विवेक मुड़ा। “हां, कहो?” “मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।” रश्मि की आवाज कांप रही थी। दोनों बाहर आंगन में आ गए। चारों ओर सन्नाटा था। रश्मि ने नजरें झुकाई और बोली, “मैं माफी मांगना चाहती हूं। मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया। तुम्हें नीचा दिखाया, बेइज्जत किया। तुम्हारी हर बात का मजाक उड़ाया। तुम इतने अच्छे हो और मैंने…” उसकी आवाज भर आई।
भाग 26: विवेक का समझाना
आंसू गालों पर बहने लगे। विवेक ने उसे रोकते हुए कहा, “रश्मि, बीती बातों को जाने दो। लोग अक्सर पहली नजर में ही फैसला कर लेते हैं। लेकिन कोई बात नहीं। मुझे इन सब चीजों की आदत पड़ चुकी है।” “नहीं,” रश्मि ने सिर हिलाया। “मैं घमंडी थी। मुझे लगता था शहर में रहने से मैं सबसे बेहतर हूं। पर तुमने मुझे सच्ची इंसानियत दिखाई। तुम्हारे जैसा इंसान मैंने कभी नहीं देखा।”
भाग 27: विवेक का दृष्टिकोण
विवेक मुस्कुराया। “शुक्रिया। पर मैंने कुछ खास नहीं किया। बस वही किया जो सही लगा।” रश्मि ने हिम्मत करके आगे कहा, “तुम्हारी मंगेतर के बारे में मुझे पता चला। उसने तुम्हें छोड़ दिया क्योंकि तुम शहर छोड़कर गांव आ गए।” “क्या? क्या तुम्हें बुरा नहीं लगा?” विवेक ने आसमान की ओर देखा। “पहले लगा था। पर फिर समझ आया कि अगर किसी को मेरे फैसले पसंद नहीं, तो वह मेरे लिए सही नहीं थी। मेरे बूढ़े माता-पिता को मेरी जरूरत थी। इस गांव को मेरी जरूरत थी। मैं यहां खुश हूं।”
भाग 28: रश्मि का प्यार
रश्मि की आंखों से और आंसू बहने लगे। उसने कांपते स्वर में कहा, “विवेक, मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाऊंगी। तुमने मुझे जिंदगी का असली मतलब सिखाया।” विवेक ने उसकी ओर देखा। “तुम्हें भूलने की जरूरत नहीं। बस याद रखना कि हर इंसान की अपनी कहानी होती है। किसी को भी पहली नजर में आंकना गलत है।”
भाग 29: रश्मि का संकल्प
रश्मि ने आंसू पोंछे। उसके दिल में एक सवाल था जो वह पूछना चाहती थी पर हिम्मत नहीं हो रही थी। आखिरकार उसने पूछ ही लिया, “अगर मैं दोबारा यहां हूं?” विवेक ने सहजता से मुस्कुराकर कहा, “यह घर हमेशा खुला है। जब मन करे आ जाना।”
भाग 30: विदाई का समय
दोपहर को रश्मि की कानपुर जाने की गाड़ी आ गई। सब उसे विदा करने आए। विवेक भी था। रश्मि ने सबको अलविदा कहा। जब विवेक के सामने आई तो उसकी आंखें फिर भर आईं। “धन्यवाद,” उसने धीरे से कहा, “तुमने मुझे जिंदगी का असली पाठ पढ़ाया।” विवेक ने हाथ जोड़े। “सफर शुभ हो। खुश रहना।”
गाड़ी चल पड़ी। रश्मि ने पीछे मुड़कर देखा। विवेक अभी भी खड़ा था, हाथ हिला रहा था। रश्मि के दिल में एक गहरी पीड़ा थी। वह जान गई थी कि उसे विवेक से प्यार हो गया है। पर अब बहुत देर हो चुकी थी। रश्मि को समझ आ गया था कि असली अमीरी पैसों में नहीं, सच्चाई और समर्पण में होती है। और विवेक जैसा इंसान उसे दोबारा कहीं नहीं मिलेगा।
अंत
दोस्तों, इसीलिए हमें किसी को भी जज नहीं करना चाहिए। उसके हालात, उसकी मजबूरियां, उसकी अपनी कहानी है। हमें नहीं पता होता है जिसके बारे में हम फैसला कर रहे हैं, वह किस हालात से गुजर रहा है। विवेक भाई के लिए एक कमेंट जरूर करें। वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल “आओ सुनाओ” को सब्सक्राइब करना ना भूलें!
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