“जिस बिल्डिंग में वो मजदूरी कर रहा था… उसकी मालकिन निकली तलाक़शुदा पत्नी! फिर जो हुआ…”
.
.
जिस बिल्डिंग में वो मजदूरी कर रहा था… उसकी मालकिन निकली तलाक़शुदा पत्नी! फिर जो हुआ…
दिल्ली की चिलचिलाती गर्मी थी। सृष्टि अपने विशाल घर के लिविंग रूम में बैठी थी, आँखों में गहरी सोच लिए। उसके बच्चे आरव और अनिका बार-बार उत्साह से कह रहे थे, “मम्मी, आज रविवार है। आपने कहा था ना, हमें मजदूर दिखाओगी जो हमारे लिए मॉल बना रहे हैं।” सृष्टि ने एक गहरी सांस ली, हल्की मुस्कान के साथ बच्चों के सिर पर हाथ फेरा, “हाँ बेटा, चलो। आज मैं तुम्हें जिंदगी की सबसे बड़ी किताब पढ़ाने ले चलती हूँ।”
सृष्टि ने कार की चाबी उठाई, बच्चों को तैयार किया और जैसे ही गाड़ी सड़क पर निकली, सूरज की तीखी किरणें उसकी आँखों में चुभने लगीं। वह जानबूझकर देर से निकली थी। उसका मकसद था कि उसके बच्चे, जिनके हाथों में हमेशा टेबलेट और खिलौने रहे थे, आज उन हाथों को देखें जो धूप में पसीने से तर-बतर होकर उनके लिए सपनों का मॉल खड़ा कर रहे थे। वह चाहती थी कि बच्चे उन चेहरों को देखें जिनके पसीने ने उसकी सफलता की नींव रखी थी।
गाड़ी दिल्ली के कनॉट प्लेस इलाके में रुकी, जहाँ सृष्टि का नया शॉपिंग मॉल बन रहा था। यह उसका ड्रीम प्रोजेक्ट था—सपनों का आलम मॉल। गाड़ी एक किनारे रुकी। सृष्टि ने बच्चों से कहा, “उतरो बेटा, आज तुम्हें असली हीरो से मिलवाती हूँ।” आरव और अनिका ने उत्सुकता से पूछा, “मम्मी, हीरो कौन?” सृष्टि ने साइड की ओर इशारा किया, “वो देखो जो सिर पर ईंटें ढो रहे हैं, धूप में नंगे पाँव काम कर रहे हैं, जिनके कपड़े धूल और पसीने से सने हैं। वही हैं जिंदगी के असली हीरो—मजदूर।”
बच्चों की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। अनिका ने मासूमियत से कहा, “मम्मी, स्कूल में तो इन्हें वर्कर कहते हैं।” सृष्टि के चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन दिल में हल्की सी टीस। उसने अपने बच्चों को इतनी आरामदायक जिंदगी दी थी कि वे मेहनत की असलियत से अनजान थे। “हाँ बेटा, यह वही हैं जिनके बिना यह मॉल, यह शहर, यह जिंदगी अधूरी है।”
सृष्टि बच्चों को लेकर साइट के अंदर गई। चारों तरफ हथौड़ों की खटखट, कुदालों की आवाज, सीमेंट और रेत की गंध, पसीने की बूंदें। हर चेहरा महल की एक कहानी कह रहा था। बच्चे उत्साह से इधर-उधर देख रहे थे। तभी सृष्टि की नजर एक पुरुष मजदूर पर टिकी—सिर पर ईंटों की टोकरी, पैरों में फटी चप्पलें, चेहरा धूप में झुलसा हुआ, चाल में अजीब सा ठहराव। उसकी आँखें, उसका अंदाज… सृष्टि का दिल धक से रह गया। वह कुछ पल के लिए ठिठक गई, जैसे समय रुक गया हो। फिर वह धीमे से बुदबुदाई, “यह… यह तो आदित्य है।”
आदित्य—वही आदित्य जिसे सृष्टि ने सालों पहले अपने जीवन का सबसे खूबसूरत सपना समझा था। कॉलेज के दिन जब सृष्टि और आदित्य एक-दूसरे के लिए सब कुछ थे। लेकिन आदित्य ने उसे ठुकरा दिया था। वजह थी—सपनों का फर्क, स्टेटस का फर्क। आदित्य ने कहा था, “सृष्टि, तुम्हारे और मेरे स्टेटस में जमीन-आसमान का फर्क है। मैं तुम्हारी उस साधारण सी दुनिया में नहीं रुक सकता। मुझे तो वो जिंदगी चाहिए जो मेरे बड़े सपनों और रुतबे से मेल खाए।” और आज वही आदित्य उसकी बिल्डिंग में मजदूरी कर रहा था।
सृष्टि की साँसें थम सी गईं। उसने बच्चों से कहा, “बेटा, तुम कार में जाओ। मम्मी अभी आती हैं।” बच्चे हैरान हुए लेकिन चुपचाप कार की ओर चले गए। सृष्टि की आँखें अब सिर्फ आदित्य पर टिकी थीं। वह धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ी। आदित्य ने उसे देख लिया। पहले तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं, फिर जैसे अतीत उसकी आँखों से झाँकने लगा। उसने तुरंत मुँह फेर लिया और टोकरी को कसकर पकड़ कर तेजी से चलने लगा। लेकिन अब देर हो चुकी थी। सृष्टि उसके पास पहुँची। धीरे से बोली, “आदित्य, तुम…”
आदित्य काँप उठा। उसने टोकरी नीचे रखी, कुछ पल चुप रहा, फिर टूटती आवाज में बोला, “सृष्टि, मुझे माफ कर दो।” उसकी आवाज में पछतावा था, डर था और एक ऐसा दर्द जो शायद सृष्टि भी पूरी तरह समझ नहीं पा रही थी। यह वही आदित्य था जिसने उसे साधारण समझकर ठुकरा दिया था और आज उसकी बिल्डिंग में ईंटें ढो रहा था।
सृष्टि चुप रही। उसने कुछ नहीं कहा। बस आदित्य को देखती रही। फिर धीमे से पूछा, “बस माफी और कुछ नहीं कहोगे?” आदित्य की आँखों से आँसू छलक पड़े। उसने काँपते हाथों से अपने चेहरे की धूल पोंछी और बोला, “तुम जानना चाहती हो मैं यहाँ मजदूरी क्यों कर रहा हूँ? तो सुनो। सृष्टि, क्योंकि मैंने उस दिन जो बोया था, वही आज काट रहा हूँ।”
आदित्य ने अपनी कहानी शुरू की। उसने बताया कि सृष्टि को ठुकराने के बाद उसने एक ऐसी लड़की से शादी की, जो उसे अपने बराबर की लगती थी। सोचा था, बड़ा घर, अच्छी नौकरी, शानदार जिंदगी मिलेगी। लेकिन शादी के कुछ सालों बाद सब बिखर गया। उसकी पत्नी ने छोड़ दिया, कहकर कि वह उसके सपनों को पूरा नहीं कर सकता। नौकरी छूटी, परिवार ने मुँह मोड़ लिया, और फिर एक छोटे बेटे की खातिर मजदूरी शुरू करनी पड़ी।
“मैं वही आदित्य हूँ जिसने तुम्हें ठुकराया था और आज तुम्हारी बिल्डिंग में मजदूरी कर रहा हूँ। मुझे माफ कर दो। सृष्टि, मैंने तुम्हें नहीं बल्कि अपनी जिंदगी को ठुकराया था।”
सृष्टि अब भी चुप थी। उसकी आँखों में कोई गुस्सा नहीं था, बस एक गहरा अफसोस। वह रिश्ता जो कभी फूलों सा खिला था, वक्त की धूप में सूख चुका था। उसने धीरे से आदित्य के कंधे पर हाथ रखा और बोली, “जो हो गया, उसे बदला नहीं जा सकता। लेकिन कम से कम तुम अब अपने बेटे के लिए मजबूत बनो। मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकती क्योंकि वह समय चला गया। लेकिन तुम्हारा साहस, तुम्हारी आँखों में बहते आँसू यह बताते हैं कि तुमने अपनी गलती मान ली है।”
सृष्टि पलट कर चली गई। उसकी चाल धीमी थी, लेकिन चेहरे पर सुकून था। उसे कोई जवाब नहीं चाहिए था, बस अपने मन की उस उलझन का हल चाहिए था जो सालों से उसे चुभ रही थी। और आज वो हल उसे मिल चुका था।
कार में बैठे बच्चे चहक रहे थे। उन्होंने मजदूरों को देखा, उनके बारे में जाना और मन में नया एहसास जागा। लेकिन सृष्टि चुप थी। स्टीयरिंग पर उसकी उँगलियाँ थरथरा रही थीं। चेहरे पर कोई भाव नहीं था, बस एक गहरी शांति, जैसे किसी भूले अध्याय को फिर से पढ़ लिया गया हो।
घर पहुँचते ही सृष्टि ने बच्चों को उनके पिता अजय के पास भेज दिया। वह खुद सीधे अपने पिता के कमरे में गई, जहाँ वे अखबार पढ़ रहे थे। पिता ने उसकी आँखें देखते ही पूछा, “क्या हुआ बेटी? सब ठीक तो है?” सृष्टि ने कुछ पल उनकी आँखों में देखा, फिर धीरे से जमीन पर बैठ गई। “पिताजी, आदित्य हमारी बिल्डिंग में मजदूरी कर रहा था।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। पिता ने चश्मा उतारा, बोले, “तो मिल लिया उससे?” सृष्टि ने सिर हिलाया, “हाँ। और उसने सब बता दिया। कैसे उसकी शादी टूटी, कैसे उसका सब कुछ छिन गया, और कैसे वह अपने बेटे के लिए अब मजदूरी कर रहा है।”
पिता की आँखें नम हो गईं। “तो अब क्या करोगी बेटी?” सृष्टि ने गहरी साँस ली, “कुछ नहीं पिताजी। मैं अब सिर्फ आगे बढ़ना चाहती हूँ। न कोई बदला, न कोई दिखावा, बस अपना सच जीना है।”
तभी सृष्टि का पति अजय कमरे में आया। उसने सृष्टि का चेहरा देखा और जैसे सब समझ गया। “क्या बात है सृष्टि?” उसने धीरे से पूछा। सृष्टि ने उसे देखा और कई दिनों बाद उसकी आँखों में भरोसे की गर्मी महसूस हुई। “तुम्हें याद है अजय? मैंने कहा था कि एक रिश्ता मेरे अंदर हमेशा चुभता रहेगा। आज वह चुभन खत्म हो गई।” उसने अजय और पिता को पूरी कहानी बताई। बात खत्म होते ही अजय की आँखों में भी आँसू थे। लेकिन वे आँसू जलन के नहीं, डर के नहीं, बल्कि उस इंसान के लिए थे जिसने गलतियाँ की लेकिन उन्हें माना भी।
अजय ने सृष्टि का हाथ पकड़ा और बोला, “जो इंसान अपनी गलती मानकर अपने बच्चे के लिए लड़ रहा है, उसके लिए अगर हम कुछ नहीं कर सकते, तो कम से कम उसे इज्जत से याद तो कर सकते हैं।” सृष्टि मुस्कुराई। उसने देखा कि उसका आज उसके कल से कहीं बेहतर था। मेहनत, लगन और सच्चाई से उसने सब कुछ हासिल किया था—एक प्यारा परिवार, सुखी जीवन और सबसे बड़ी बात, आत्मसम्मान।
रात को जब पूरा परिवार साथ में खाना खा रहा था, सृष्टि ने बच्चों से कहा, “बेटा, आज तुमने जो देखा वह सिर्फ मजदूरी नहीं थी, वह जिंदगी की असली तस्वीर थी। पैसे से बहुत कुछ खरीदा जा सकता है, लेकिन इज्जत, रिश्ते और आत्मसम्मान सिर्फ कर्मों से मिलते हैं।” बच्चे उसकी बातें ध्यान से सुन रहे थे। अजय ने मुस्कुराकर खाना परोसा और पिताजी ने आँखें बंद कर बस इतना कहा, “अब लगता है मेरी बेटी वाकई में बहुत बड़ी इंसान बन गई है।”
उधर आदित्य की जिंदगी में वह मुलाकात एक तूफान की तरह आई थी। जब वह रात को अपने किराए के छोटे से कमरे में लौटा, उसका मन टूट चुका था। सामने उसका बेटा आकाश बैठा था, दो रोटियों के टुकड़े और आलू की सब्जी के साथ। आदित्य ने बेटे को देखकर मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन आँसू छलक पड़े। “पापा, क्या हुआ?” आकाश ने मासूमियत से पूछा। आदित्य ने उसे सीने से लगा लिया, “कुछ नहीं बेटा, बस आँखों में धूल चली गई थी।” लेकिन सच तो यह था कि उसकी आँखों में सृष्टि का चेहरा घूम रहा था।
उस रात आदित्य ने पहली बार खुद से सवाल किया, “क्या मैं यूँ ही घुट-घुट कर जाऊँगा? क्या मेरी जिंदगी मजदूरी और आँसुओं के बीच ही बीतेगी?” अगले दिन वह फिर साइट पर गया, लेकिन इस बार उसकी चाल में एक अलग ठहराव था—एक फैसला।
काम खत्म होने के बाद उसने टोकरी उठाई और सीधे सृष्टि के ऑफिस पहुँचा। सृष्टि अपने अकाउंट सेक्शन में बैठी थी। आदित्य ने दरवाजे पर खड़े होकर धीमे से कहा, “सृष्टि, एक बार फिर मिल सकता हूँ?” सृष्टि चौकी, उसने सिर उठाकर देखा, वही चेहरा, लेकिन इस बार सिर झुका हुआ नहीं था, बल्कि खुद को संभालने की कोशिश करता हुआ।
“आओ,” सृष्टि ने कुर्सी से उठते हुए कहा। आदित्य धीरे से अंदर आया और सामने बैठ गया। कुछ पल खामोशी में बीते, फिर उसने कहा, “सृष्टि, मुझे कोई एहसान नहीं चाहिए, न कोई सहानुभूति। बस अगर तुम मुझे एक छोटा सा काम दे सको, जहाँ मैं ईंट ढोने के बजाय अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल कर सकूँ।”
सृष्टि ने उसकी बात गौर से सुनी। आदित्य की आँखों में कोई बनावट नहीं थी, बस एक पिता की सच्ची आँखें थीं जो अपने बेटे के लिए कुछ करना चाहता था। कुछ देर सोचकर सृष्टि बोली, “कल से मेरी साइट के ऑफिस में अकाउंट रजिस्टर संभालो। पगार ज्यादा नहीं होगी, लेकिन वहाँ धूप में काम नहीं करना पड़ेगा।”
आदित्य की आँखों से आँसू छलक पड़े, “शुक्रिया नहीं कहूँगा, सृष्टि। बस इतना कहूँगा कि इस दुनिया में अगर कोई इंसान अपनी गलती मानकर फिर से खड़ा होना चाहे, तो उसे सिर्फ एक मौका चाहिए और तुमने वह दे दिया।” सृष्टि ने हल्का सा सिर हिलाया, “यह मौका मैंने नहीं, तुम्हारी मेहनत ने माँगा है।”
उस दिन से आदित्य ने मजदूरी छोड़ दी। वह सृष्टि के ऑफिस में रजिस्टर संभालने लगा। उसकी लिखावट साफ थी, हिसाब में तेज। धीरे-धीरे ऑफिस स्टाफ भी उसे सम्मान देने लगा। सृष्टि ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आदित्य ने भी आगे बढ़ना सीख लिया। उनके बीच अब कोई बात नहीं थी, बस एक खामोश इज्जत थी। जब भी सृष्टि साइट पर आती, उनकी नजरें मिलतीं और एक हल्की सी मुस्कान गुजर जाती थी।
वक्त बीतता गया। सृष्टि का परिवार सुखी था। अजय अब उसके बिजनेस में बराबर का साथी बन चुका था। बच्चे बड़े हो रहे थे और घर में आत्मसंतोष की शांति थी। दूसरी ओर आदित्य अब पहले जैसा नहीं था। उसके चेहरे की चमक भले फीकी थी, लेकिन उसकी आत्मा पहले से कहीं ज्यादा मजबूत थी। वह अपने बेटे को रोज स्कूल छोड़ता और हर रात उसे यही कहकर सुलाता, “बेटा, किसी के पास कितना पैसा है यह मत देखना, देखना कि उसके पास कितनी इज्जत है।”
एक शाम जब सृष्टि अपने बच्चों के साथ छत पर बैठी थी, आरव ने पूछा, “मम्मी, वो अंकल जो अब ऑफिस में काम करते हैं, क्या उनकी मेहनत मजदूरी से कम है?” सृष्टि ने बेटे के सिर पर हाथ रखा और मुस्कुरा कर बोली, “बिल्कुल नहीं बेटा। असली मेहनत वो होती है जो इंसान को झुकने न दे, बल्कि हालात से लड़ने का हौसला दे। कुछ लोग गलतियाँ करते हैं, लेकिन फिर पूरी जिंदगी उसे सुधारने में लगा देते हैं। यही सबसे बड़ी मेहनत है और सबसे बड़ी इज्जत भी।”
उस रात सृष्टि ने आकाश की ओर देखा और मन ही मन बुदबुदाई, “शुक्रिया कि मैंने उसे माफ कर दिया, वरना मैं खुद कहीं छोटी रह जाती।”
.
play video:
News
कपिल शर्मा और सुमोना का काला सच! कपिल शर्मा और सुमोना की हकीकत
कपिल शर्मा और सुमोना का काला सच! कपिल शर्मा और सुमोना की हकीकत हिंदी टेलीविजन जगत में यदि किसी अभिनेत्री…
मैनेजर ने बुर्जुग वेटर को गलत टेबल पर खाना रखने पर जब निकाल दिया लेकिन अगले दिन होटल के
मैनेजर ने बुर्जुग वेटर को गलत टेबल पर खाना रखने पर जब निकाल दिया लेकिन अगले दिन होटल के मुंबई…
ट्रेन में बैग बदले गए, एक बैग में कीमती सामान था, लड़की ने उसे उसके मालिक को लौटा दिया…
ट्रेन में बैग बदले गए, एक बैग में कीमती सामान था, लड़की ने उसे उसके मालिक को लौटा दिया… राजस्थान…
Sunita Ahuja CRYING for Govinda after Govinda’s secret Wedding with Marathi Actress for 2nd Time!
Sunita Ahuja CRYING for Govinda after Govinda’s secret Wedding with Marathi Actress for 2nd Time! बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता गोविंदा…
मैनेजर ने बुर्जुग वेटर को गलत टेबल पर खाना रखने पर जब निकाल दिया लेकिन अगले दिन होटल के
मैनेजर ने बुर्जुग वेटर को गलत टेबल पर खाना रखने पर जब निकाल दिया लेकिन अगले दिन होटल के. ….
गर्भवती महिला काम मांगने पहुँची… सामने था उसका तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ…
गर्भवती महिला काम मांगने पहुँची… सामने था उसका तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ… | Heart Touching Story . . गर्भवती…
End of content
No more pages to load