जौनपुर स्टेशन पर गर्भवती औरत को रोता देख… अजनबी ने किया ऐसा कि इंसानियत रुला दी..
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जौनपुर स्टेशन पर गर्भवती औरत और अजनबी का मर्मस्पर्शी किस्सा
जौनपुर रेलवे स्टेशन, हमेशा की तरह चहल-पहल से भरा हुआ था। ट्रेनें आती-जातीं, लोग अपने गंतव्य की ओर भागते-भागते नजर आते। इसी भीड़भाड़ के बीच एक कोने में, एक गर्भवती औरत बैठी हुई थी। उसका चेहरा थका हुआ और उदास था। आंखों में आंसू थे, और वह बार-बार अपने पेट को सहलाते हुए कुछ बुदबुदा रही थी।
लोग उसके पास से गुजरते जा रहे थे, लेकिन किसी ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। शायद यह आम बात थी, क्योंकि बड़े शहरों की भीड़ में किसी का रुकना और मदद करना अब दुर्लभ हो गया है। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ।
अजनबी की नजर पड़ी
इसी भीड़ में एक अजनबी, जो कि लखनऊ जाने वाली ट्रेन का इंतजार कर रहा था, उस औरत की ओर देख रहा था। वह 35-40 साल का साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति था। उसने देखा कि औरत की हालत ठीक नहीं लग रही थी। उसके पास एक पुरानी सी पोटली रखी हुई थी, और वह बार-बार उसे कसकर पकड़ रही थी।
अजनबी ने कुछ देर तक उसे देखा और फिर उसके पास जाकर पूछा, “बहन जी, क्या हुआ? आप ठीक तो हैं?”
औरत ने सिर उठाकर उसकी ओर देखा। उसकी आंखों में दर्द और बेबसी साफ झलक रही थी। उसने कांपती हुई आवाज में कहा, “भाई साहब, मैं बहुत परेशान हूं। मेरे पास पैसे नहीं हैं। मुझे अपने घर जाना है, लेकिन टिकट के लिए पैसे नहीं हैं।”
अजनबी ने औरत की बात सुनी और उसकी हालत को समझने की कोशिश की। उसने पूछा, “आप कहां जाना चाहती हैं?”
औरत ने रोते हुए कहा, “मुझे बनारस जाना है। मेरे घर वाले मेरी मदद नहीं कर सकते। मेरे पास खाने के लिए पैसे भी नहीं हैं।”
मदद का हाथ बढ़ाया
अजनबी को औरत की हालत देखकर बहुत दुख हुआ। उसने तुरंत अपनी जेब से पैसे निकाले और कहा, “आप चिंता मत कीजिए। मैं आपका टिकट ले आता हूं।”
औरत ने मना करते हुए कहा, “नहीं भाई साहब, मैं आपका एहसान नहीं ले सकती।”
लेकिन अजनबी ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह कोई एहसान नहीं है, बहन जी। यह तो मेरी जिम्मेदारी है। आप इस हालत में हैं और आपकी मदद करना मेरा फर्ज है।”
उसने तुरंत टिकट काउंटर पर जाकर बनारस का टिकट खरीदा और औरत को दे दिया। इसके बाद उसने स्टेशन पर मौजूद चाय वाले से कुछ खाने-पीने का सामान भी लिया और औरत को दिया।
औरत की कहानी
जब औरत ने थोड़ा खाना खाया और उसकी हालत थोड़ी सुधरी, तो उसने अजनबी को अपनी पूरी कहानी सुनाई। उसने बताया कि उसका नाम रमा है और वह बनारस के पास के एक छोटे से गांव की रहने वाली है। उसका पति मजदूरी करता था, लेकिन कुछ महीने पहले एक हादसे में उसकी मौत हो गई।
रमा गर्भवती थी, और उसके ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया था। वह अपने मायके जा रही थी, लेकिन उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह टिकट खरीद सके।
यह सुनकर अजनबी की आंखें नम हो गईं। उसने कहा, “बहन जी, आपकी मदद करना मेरा सौभाग्य है। आप चिंता मत कीजिए। सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
इंसानियत की मिसाल
अजनबी ने रमा को ट्रेन में बैठने में मदद की। उसने यह सुनिश्चित किया कि रमा को रास्ते में कोई परेशानी न हो। उसने ट्रेन में मौजूद टीटीई से बात की और रमा के लिए एक सुरक्षित सीट का इंतजाम किया।
जब ट्रेन चलने लगी, तो रमा ने खिड़की से बाहर झांकते हुए अजनबी का शुक्रिया अदा किया। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन इस बार वह आंसू दर्द के नहीं, बल्कि कृतज्ञता के थे।
अजनबी ने मुस्कुराते हुए कहा, “बहन जी, जब भी जरूरत हो, इंसानियत पर भरोसा रखना। कोई न कोई मदद के लिए जरूर आएगा।”
एक नई शुरुआत
रमा बनारस पहुंची और अपने मायके वालों के पास गई। उन्होंने उसे सहारा दिया और उसकी मदद की। कुछ महीनों बाद उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया।
रमा ने उस अजनबी का नाम अपने बेटे को दिया। वह हर दिन उसके लिए प्रार्थना करती और कहती, “अगर उस दिन वह अजनबी मेरी मदद के लिए आगे नहीं आता, तो शायद मैं और मेरा बच्चा जिंदा नहीं होते।”
इंसानियत का संदेश
यह कहानी सिर्फ रमा और उस अजनबी की नहीं है। यह कहानी है इंसानियत की, जो हमें सिखाती है कि अगर हम किसी की मदद कर सकते हैं, तो हमें जरूर करनी चाहिए।
जौनपुर स्टेशन पर उस दिन जो हुआ, वह एक छोटी सी घटना थी, लेकिन उसने यह साबित कर दिया कि आज भी दुनिया में इंसानियत जिंदा है।
अजनबी का नाम किसी को नहीं पता, लेकिन उसकी यह नेकदिली हमेशा याद रखी जाएगी।
“इंसानियत वही है, जो दूसरों के दर्द को समझे और उनकी मदद करे।”
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