टीचर जिसे गरीब बच्चा समझ रही थी…जब सच्चाई खुली, तो टीचर की होश उड़ गए…

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गरीब बच्चा जिसे टीचर समझ रही थी… जब सच्चाई खुली, तो टीचर की होश उड़ गए

लखनऊ के एक नामी इंटरनेशनल स्कूल में सुबह का समय था। स्कूल के बगीचे में बच्चों की खिलखिलाहट, ब्रांडेड टिफिन बॉक्स की आवाजें और रंग-बिरंगी यूनिफार्म का शोर था। लेकिन इसी शोरगुल के बीच, चौथी क्लास के एक कोने में बैठा था नील—एक शांत, गंभीर और गुमसुम बच्चा। ना उसके पास टिफिन था, ना कोई दोस्त। बस एक पुरानी किताब और सुनी आंखों में छुपा हुआ दर्द।

रीमा मैडम, जो उस क्लास की टीचर थीं, रोज़ नील को देखती थीं। उसकी उदासी, अकेलापन और भूखे पेट की मजबूरी उनकी ममता को छू जाती थी। एक दिन उन्होंने अपना टिफिन नील के सामने रख दिया। बिना जानें कि जिस मासूम को वह खाना खिला रही हैं, वह कोई मामूली बच्चा नहीं। किसी करोड़पति की खोई हुई पहचान है।

नील ने धीरे से सिर झुकाया, “मैम, भूख नहीं है। घर जाकर खा लूंगा।” रीमा मैडम ने महसूस किया कि यह सिर्फ भूख नहीं है, कुछ गहरा दर्द है। वह स्टाफ रूम गईं, अपना टिफिन उठाया और फिर से नील के पास आईं। “आज मेरा टिफिन बहुत ज्यादा है, आओ मेरे साथ बैठकर खाओ।” नील घबरा गया, “नहीं मैम, आप खा लीजिए।” लेकिन रीमा मैडम मुस्कुराई, “बेटा, जब मैं भूखी होती हूँ तो कोई मेरा ख्याल रखता है। आज तुम मेरे साथ खाना खाओगे।”

उस दिन पहली बार नील ने ठीक से खाना खाया। रीमा मैडम ने तय कर लिया कि कल से रोज़ उसके लिए टिफिन लाएँगी। उन्होंने नील को हर दिन कुछ नया खिलाया—कभी पराठे सब्जी, कभी पुलाव, कभी आलू टमाटर। नील के चेहरे पर मुस्कान लौट आई। रीमा मैडम की आंखों में एक अलग चमक थी, जैसे उन्हें किसी खोए हुए अपने को पा लिया हो।

रीमा मैडम खुद मां नहीं बन सकी थीं। शादी को दस साल हो गए थे, लेकिन मां बनने का सुख उन्हें नसीब नहीं हुआ। डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया था, पति धीरे-धीरे गुमसुम रहने लगे थे। रीमा को बच्चों से बहुत लगाव था और शायद नील में उन्हें वह अधूरा सपना पूरा होता दिखता था।

कुछ हफ्तों बाद, एक दिन लंच के बाद रीमा मैडम और नील क्लासरूम में अकेले थे। रीमा ने हौले से पूछा, “नील, क्या मैं कुछ पूछ सकती हूँ? तुम्हारे मम्मी-पापा हैं?” नील की नजरें जमीन में गढ़ गईं, “नहीं मैम, मेरे मम्मी-पापा नहीं हैं। जब मैं छोटा था तब एक एक्सीडेंट में चले गए।” रीमा की आंखें भर आईं। उन्होंने नील को गले से लगा लिया। उसी पल उन्होंने सोच लिया था कि यह बच्चा अब अकेला नहीं रहेगा।

वक्त बीतता गया। नील पढ़ाई में कमाल करने लगा। क्लास में टॉप करने लगा। रीमा मैडम उसे गाइड करतीं, प्रैक्टिस करवातीं, होमवर्क में मदद करतीं। धीरे-धीरे स्कूल में सब लोग नील को पहचानने लगे। लेकिन स्कूल का प्रिंसिपल विनोद सर गरीब बच्चों से सख्त चिढ़ रखते थे। वह अक्सर रीमा मैडम से कहते, “मैडम, किसी एक बच्चे को ज्यादा तरजीह देना ठीक नहीं।” रीमा हर बार बस एक ही बात कहतीं, “अगर आपके बच्चे को भूख लगी हो और कोई उसे खाना दे दे तो आप क्या कहेंगे सर?” विनोद सर खामोश हो जाते।

पूरा साल बीत गया था। अब स्कूल में वार्षिक पुरस्कार समारोह की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थीं। हर क्लास से टॉप करने वाले बच्चों को मंच पर बुलाया जाना था। स्कूल के असली मालिक समीर और कविता श्रीवास्तव पहली बार स्कूल विजिट पर आ रहे थे। कविता जी सौम्य, शालीन और बेहद भावुक महिला थीं। आठ साल पहले उनका इकलौता बेटा एक पार्क से अचानक गुम हो गया था। उन्होंने हर गली, हर शहर खोजा, लेकिन वह बच्चा कभी नहीं मिला। उस हादसे ने कविता और समीर के बीच एक दीवार खड़ी कर दी थी।

समारोह शुरू हुआ। बच्चे मंच पर बुलाए जा रहे थे। तालियां बज रही थीं। गिफ्ट दिए जा रहे थे। जब चौथी क्लास का नंबर आया, नाम पुकारा गया—नील यादव। सारे बच्चे तालियां बजाने लगे। नील थोड़ा घबराया, अपनी पुरानी यूनिफार्म को हाथ से सीधा किया, सिर झुकाए हुए मंच की ओर बढ़ा। रीमा मैडम दूर से उसे देखकर मुस्कुरा रही थीं। लेकिन तभी मंच पर खड़ी कविता श्रीवास्तव की आंखें एकदम ठहर गईं। उन्होंने नील को देखा और कुछ पल के लिए सब कुछ भूल गईं।

वह बुदबुदाई, “यह चेहरा, यह आंखें, यह तो बिल्कुल मेरे बेटे जैसे हैं।” उन्होंने धीरे से पूछा, “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?” नील बोला, “मैडम, मेरा नाम नील यादव है।” “तुम्हारे मम्मी-पापा?” नील धीरे से बोला, “नहीं हैं, एक हादसे में चले गए।” कविता जी की आंखों से आंसू निकल पड़े। उन्होंने तुरंत नील की दाहिनी बाजू देखने को कहा। नील चौंका, “पर मैम क्यों?” “बेटा, प्लीज एक बार दिखाओ।” नील ने बाजू ऊपर की और वहां थी एक छोटी सी कटी हुई तिल की निशानी, जो सिर्फ कविता और समीर को पता थी।

कविता जी वहीं स्टेज पर गिरते-गिरते बचीं। उन्होंने रोते हुए समीर की तरफ देखा, “समीर, यह हमारा बेटा है। यह वही है जो पार्क से गायब हो गया था।” सारा स्कूल हक्का-बक्का रह गया था। विनोद सर भी वहीं खड़े थे, चुप, शर्मिंदा और स्तब्ध। समीर जी बोले, “सबूत चाहिए। हम एक डीएनए टेस्ट करवाएंगे।” कविता जी ने सिर हिलाया, “ठीक है। लेकिन जब तक रिपोर्ट आए, यह बच्चा हमारे साथ रहेगा।”

उस दिन के बाद नील उर्फ आरव श्रीवास्तव अपने असली माता-पिता के घर में रहने चला गया। लेकिन कहानी यही खत्म नहीं हुई। डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट आई और रिपोर्ट ने वही कहा—नील ही आरव श्रीवास्तव है। कविता जी और समीर जी का वह खोया हुआ बेटा जो आठ साल पहले एक पार्क से गायब हो गया था, अब दोबारा उन्हें मिल चुका था। पूरा घर रोशनी से भर गया था। बंगले में मिठाइयां बंटी, स्टाफ को बोनस मिला, मंदिर में पूजा रखी गई।

इन सबके बीच कविता जी का दिल एक बात के लिए बेचैन था—रीमा मैडम। उन्होंने अपने बेटे को भूखे पेट स्कूल में देखा था और बिना कोई शर्त, बिना कोई स्वार्थ उसके लिए खाना लाती रहीं। उसे पढ़ाया, उसे अपनाया। उस दिन कविता जी और समीर जी सीधे रीमा मैडम के छोटे से किराए के मकान पर पहुंचे। रीमा मैडम पति के लिए दवाई बना रही थीं। जब दरवाजा खटका, दरवाजा खोला तो सामने खड़ी थी आरव की मां कविता श्रीवास्तव, हाथ जोड़े, आंखों में आंसू लिए।

रीमा कुछ समझ नहीं पाई, “मैम, आप यहां?” कविता जी कुछ कहने ही वाली थीं कि रीमा का पति कमजोर शरीर, थके चेहरे वाला आदमी बाहर आया और बैठ गया। समीर जी ने पूरा हाल सुना और फिर बोले, “मैडम, आपने हमारे बेटे को जिंदगी दी है। भूख में खाना दिया, अंधेरे में रोशनी दी। आज अगर वह मुस्कुरा रहा है तो आपकी वजह से।” कविता जी आगे बढ़ीं, “आप हमारे लिए भगवान से कम नहीं। इसलिए हम चाहते हैं कि अब आप हमारे घर में रहें। हम आपके पति का इलाज करवाएंगे और आपको हमारे घर के उस हिस्से में रखेंगे जहां आप आरव से जब चाहे मिल सकें।”

रीमा ने सिर झुका लिया, कुछ देर सोचा और फिर कहा, “मैम, मैं कहीं नहीं जाना चाहती। आरव को जब जरूरत थी, मैंने उसे मां की तरह चाहा। अब जब उसकी अपनी मां मिल गई है, मुझे बस यही खुशी काफी है।” कविता जी ने रीमा का हाथ पकड़ लिया और फूट-फूट कर रोने लगीं। उसी वक्त आरव यानी नील दौड़ता हुआ अंदर आया, “मैम, आप यहां!” उसने सीधा रीमा को गले से लगा लिया, “मैम, आप मुझे कभी मत छोड़िएगा।” रीमा ने उसकी पीठ थपथपाई, “बेटा, मैं हमेशा यहीं हूं, तुम्हारे दिल में।”

समीर जी ने तुरंत फैसला लिया, “मैम, आपके घर के ठीक सामने एक नया फ्लैट लेंगे। आपका खर्च, आपके पति का इलाज, आपकी हर जरूरत अब हमारी जिम्मेदारी है। क्योंकि आपने हमारे बेटे को बचाया है जिसे हमने खो दिया था।” उस दिन के बाद रीमा का पति इलाज के बाद ठीक हो गया। रीमा मैडम को स्कूल में प्रमोशन मिल गया और आरव अब पूरे स्कूल का हीरो बन गया। उसके चाचा, जिन्होंने उसे पालकर बड़ा किया, उन्हें समीर जी ने अपने बिजनेस में स्थाई नौकरी दी और कहा, “आज जो बेटा मिला है उसमें तुम्हारा भी उतना ही योगदान है।”

एक टूटा परिवार अब दो परिवार बन चुका था। खून के रिश्ते ने अपनाया और भावनाओं के रिश्ते ने संभाला।

तो दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी की मदद बिना स्वार्थ के करें। कभी-कभी एक छोटी सी दया, किसी की पूरी जिंदगी बदल देती है। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो जरूर शेयर करें, कमेंट करें और ऐसी ही प्रेरणादायक कहानियों के लिए जुड़े रहें।

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