टीचर ने बच्चे का बैग खोला अंदर जो चीज थी.. उसे देखकर आँखें फटी की फटी रह गई!

दिल्ली के सेंट स्टीफन स्कूल में सुबह का वक्त था। सातवीं कक्षा का गणित का पीरियड चल रहा था। मीरा मैडम, जो पिछले पंद्रह साल से पढ़ा रही थीं, आज असामान्य रूप से बेचैन लग रही थीं। उनकी आँखों में अजीब-सी घबराहट थी, मानो कुछ होने वाला हो।

क्लास में 45 बच्चे बैठे थे। सबने अपनी किताबें और कॉपियाँ निकाल ली थीं, मगर 12 साल का राहुल अपने बैग को बार-बार देख रहा था। उसका चेहरा सफेद पड़ता जा रहा था, जैसे कोई गहरा राज़ छुपा हो।

मीरा मैडम ने ध्यान दिया—“राहुल, किताब क्यों नहीं निकाल रहे?”
राहुल हकलाने लगा। उसके हाथ काँप रहे थे। बैग खोला तो सामान्य चीजें दिखीं—किताबें, कॉपियाँ, पेंसिल बॉक्स। मगर उसका चेहरा और सफेद हो गया। उसने बैग उल्टा किया, सब सामान बाहर आ गया, लेकिन जिस चीज़ की तलाश थी, वह नहीं मिली।

तभी क्लास का दरवाज़ा खुला और एक चपरासी आया—“मैडम, प्रिंसिपल सर ने राहुल को तुरंत ऑफिस में बुलाया है।”
राहुल के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह रोता हुआ प्रिंसिपल के ऑफिस पहुँचा।

प्रिंसिपल ने राहुल का बैग जाँचने को कहा। मीरा मैडम भी वहीं थीं। जब बैग का छुपा हुआ पॉकेट खोला गया तो सब दंग रह गए—एक छोटा प्लास्टिक का पैकेट, सफेद पाउडर से भरा हुआ।

मीरा मैडम का चेहरा सुन्न हो गया—“यह क्या है?”
प्रिंसिपल सख्त आवाज़ में बोले—“मीरा जी, यह वही है जो आप सोच रही हैं।”

राहुल रो पड़ा—“सर, यह मेरा नहीं है! किसी ने मेरे बैग में रखा है।”


मगर प्रिंसिपल ने पुलिस को बुला लिया।

कुछ ही देर में इंस्पेक्टर विनोद सिंह पहुँचे। उन्होंने राहुल से पूछा—“बेटा, सच बताओ। यह सामान कहाँ से आया?”
राहुल काँपते हुए बोला—“सर, यह रवि का है। उसी ने मुझसे कहा था बैग में उसका सामान रख दूँ। कल से वह स्कूल नहीं आया।”

जाँच में पता चला कि रवि शर्मा के पिता की हाल ही में मौत हुई थी और घर की हालत बहुत खराब थी। उसकी माँ परेशान रहती थी। रवि पैसों की तलाश में गलत संगत में पड़ गया था।

इंस्पेक्टर ने जब गहराई से पूछा तो राहुल ने राज़ खोला—“अंकल, मैंने रवि को पार्क में एक अजनबी से बात करते देखा था। लंबा आदमी, दाढ़ी वाला, काले कपड़ों में। उसके मिलने के बाद रवि बहुत खुश था। कहता था कि जल्दी ही उसकी सारी परेशानियाँ दूर हो जाएँगी।”

इसी बीच सूचना आई कि रवि घर से लापता है। पूरा स्कूल सकते में आ गया। इंस्पेक्टर ने खोज शुरू करवाई। तभी राहुल ने एक और खुलासा किया—“मैंने उस अजनबी के साथ मोहन अंकल (स्कूल का चपरासी) को भी देखा था।”

मोहन पहले तो मुकर गया, मगर सख्ती बढ़ी तो टूट गया। उसने कबूल किया—“सर, मेरी बेटी की शादी है। पैसों की ज़रूरत थी। मैंने रवि को फँसा दिया। बाकी काम ‘राजू भाई’ का था।”

पुलिस ने मोहन को पकड़ लिया और रवि की तलाश तेज़ कर दी। आखिरकार, रवि रेलवे स्टेशन से मिल गया। वह डरा हुआ था, मगर सुरक्षित था। उसने रोते हुए सच बताया—
“अंकल, पिताजी के जाने के बाद घर की हालत खराब थी। मोहन अंकल ने कहा कि सिर्फ कुछ पैकेट पहुँचाने हैं। पैसे मिलेंगे। मैंने सोचा मम्मी खुश हो जाएँगी। लेकिन जब समझा कि यह गलत है तो भाग गया।”

इंस्पेक्टर ने रवि को समझाया—“बेटा, गलती मानना और उसे छोड़ देना सबसे बड़ी बहादुरी है।”
प्रिंसिपल ने तुरंत ऐलान किया कि रवि की पढ़ाई का पूरा खर्च स्कूल उठाएगा और उसकी माँ को स्कूल में नौकरी दी जाएगी।

इसी दौरान पुलिस ने राजू भाई उर्फ़ राजेश कुमार को भी पकड़ लिया और पूरा गैंग बेनकाब हो गया।

मीरा मैडम ने राहत की सांस ली और बच्चों से कहा—
“बेटा, जिंदगी में कभी गलत रास्ता मत चुनना। मुश्किलें आएँगी, लेकिन सच्चाई और मेहनत ही तुम्हें बचाएँगी।”

राहुल और रवि एक-दूसरे से गले मिले। आँसू बह रहे थे, मगर इस बार डर के नहीं, बल्कि दोस्ती और राहत के थे।

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