टैक्सी ड्राइवर ने विदेशी पर्यटक महिला का खोया पासपोर्ट लौटाया, फिर जो किया वो जानकर आप हैरान रह जाएंगे

दिल्ली – यह शहर जितना विशाल है, उतनी ही विविध कहानियाँ इसमें बसती हैं। कोई यहाँ सपनों की तलाश में आता है तो कोई इतिहास की झलक पाने। लेकिन एक साधारण-सी शाम इस शहर की गलियों में जो घटना घटी, उसने इंसानियत और ईमानदारी की ऐसी मिसाल पेश की, जिसे सुनकर हर कोई सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि सच्ची दौलत पैसे में नहीं, बल्कि इंसान के चरित्र में होती है।

यह कहानी है लंदन की मशहूर वाइल्डलाइफ़ फ़ोटोग्राफ़र जैस्मिन वाइट और दिल्ली के एक साधारण टैक्सी ड्राइवर रघु की। जैस्मिन अपने कैमरे और यात्राओं के लिए दुनियाभर में जानी जाती थीं। भारत के प्राकृतिक सौंदर्य और यहाँ की रंगीन संस्कृति को अपने कैमरे में कैद करने के लिए वह करीब एक महीने की यात्रा पर आई थीं। राजस्थान के रेगिस्तान, केरल के बैकवॉटर, वाराणसी की गलियाँ और हिमालय की वादियाँ – हर जगह उन्होंने अपनी तस्वीरों से कहानियाँ बनाई थीं। अब सफ़र का आख़िरी पड़ाव दिल्ली था, जहाँ से उन्हें लंदन लौटना था।

खोया पासपोर्ट – टूटा भरोसा

दिल्ली में उनके पास बस दो दिन बचे थे। उन्होंने सोचा कि वापसी से पहले पुरानी दिल्ली की गलियों से कुछ स्मृतियाँ खरीद ली जाएँ। उसी शाम वह चांदनी चौक गईं और घंटों तक वहाँ की दुकानों में घूमती रहीं। मसालों की खुशबू, मिठाइयों का स्वाद और रंग-बिरंगी दुकानों ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया। देर रात उन्होंने होटल लौटने के लिए सड़क पर खड़ी एक पीली-काली टैक्सी पकड़ी। ड्राइवर था रघु – करीब 40 साल का, थका-हारा, पर आंखों में मेहनत की चमक लिए हुए।

जैस्मिन ने टैक्सी में बैठते ही कैमरे और बैग को अपनी गोद में रखा और मोबाइल पर कुछ तस्वीरें स्क्रॉल करने लगीं। होटल पहुँचने पर उन्होंने किराया चुकाया, मुस्कुराकर धन्यवाद कहा और अपने कमरे में लौट गईं। उस वक्त उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी सबसे बड़ी परेशानी अगले ही दिन उनके सामने खड़ी होगी।

सुबह जब उन्होंने पैकिंग शुरू की, तो अचानक उन्हें अहसास हुआ कि पासपोर्ट कहीं नहीं मिल रहा है। सूटकेस, बैग, अलमारी – हर जगह खोजा, लेकिन पासपोर्ट गायब था। उनके चेहरे का रंग उड़ गया। विदेशी धरती पर बिना पासपोर्ट के वह फँस चुकी थीं।

रघु की सुबह

उधर, टैक्सी ड्राइवर रघु का दिन हमेशा की तरह ही शुरू हुआ था। छोटे-से किराये के कमरे में पत्नी और दो बच्चों के साथ उसकी दुनिया सिमटी हुई थी। घर का ख़र्चा निकालना, बच्चों की पढ़ाई का इंतज़ाम करना और रोज़-रोज़ बढ़ते दामों से जूझना उसकी ज़िंदगी का हिस्सा था। उस सुबह भी वह जल्दी उठा, चाय पी और टैक्सी लेकर सड़कों पर निकल पड़ा। तभी जब उसने पिछली रात टैक्सी साफ़ करने के लिए पिछली सीट पर कपड़ा मारा, तो उसे एक नीला चमड़े का कवर दिखा।

उसने उठाकर देखा – यह पासपोर्ट था। खोलकर देखा तो तस्वीर जैस्मिन की थी। रघु को सब याद आ गया – वही विदेशी महिला, जो पिछली रात उसकी टैक्सी में बैठी थी।

इंसानियत की कसौटी

रघु ने पासपोर्ट हाथ में पकड़ा और कुछ देर तक सोचता रहा। उसके मन में कई ख्याल आए। पासपोर्ट एक विदेशी महिला का है, शायद इसमें पैसे या डॉलर भी रखे होंगे। अगर वह चाहे तो इसे बेच सकता है या किसी दलाल के हवाले कर सकता है, जिससे तुरंत पैसे मिलेंगे। और घर की हालत ऐसी थी कि पैसों की सख़्त ज़रूरत थी। पत्नी अक्सर कहती थी कि बच्चों की फीस समय पर नहीं भर पाते, राशन उधार पर लेना पड़ता है।

लेकिन अगले ही पल उसका दिल बोला – “यह सही रास्ता नहीं है। जिसने टैक्सी में भरोसा करके सफर किया, उसका नुकसान कैसे किया जा सकता है?”

रघु ने बिना समय गँवाए होटल की तरफ़ टैक्सी मोड़ दी।

होटल में मुलाक़ात

उधर जैस्मिन होटल के रिसेप्शन पर घबराई हुई बैठी थीं। होटल मैनेजर ने पुलिस और ब्रिटिश दूतावास से संपर्क करने की सलाह दी थी। वह सोच ही रही थीं कि अब लंबा झंझट होगा, तभी होटल के बाहर वही टैक्सी आकर रुकी।

रघु अंदर आया और हाथ में पासपोर्ट लिए सीधे रिसेप्शन पर पहुँचा। उसने रिसेप्शनिस्ट से कहा – “यह किसी विदेशी मैडम का पासपोर्ट है, शायद इसी होटल में रहती होंगी।”

जैस्मिन ने जैसे ही पासपोर्ट देखा, उनकी आंखों में आँसू आ गए। उन्होंने दौड़कर रघु का हाथ पकड़ लिया और बार-बार धन्यवाद कहने लगीं। उस पल उनके चेहरे पर डर और तनाव की जगह राहत और विश्वास लौट आया।

पुरस्कार से बड़ा सम्मान

जैस्मिन ने रघु को इनाम देने की कोशिश की। उन्होंने अपने पर्स से डॉलर निकालकर उसे देने चाहे। लेकिन रघु ने हाथ जोड़कर मना कर दिया। उसने कहा – “मैडम, मैंने वही किया जो इंसानियत कहती है। मेरा इनाम यह है कि आपका पासपोर्ट आपको वापस मिल गया और आप सुरक्षित अपने देश जा सकें।”

जैस्मिन उसकी ईमानदारी से अभिभूत थीं। उन्होंने उसके बच्चों के लिए कुछ उपहार दिए और होटल के स्टाफ़ से कहा कि रघु जैसे लोग ही भारत की असली पहचान हैं।

ख़बर बन गई मिसाल

यह घटना जल्द ही सोशल मीडिया और स्थानीय अख़बारों की सुर्ख़ी बन गई। लोग हैरान थे कि जब पैसों की इतनी तंगी है, तब भी एक साधारण टैक्सी ड्राइवर ने अपने लालच पर काबू पाकर ईमानदारी की मिसाल पेश की। कई लोगों ने रघु की तारीफ़ करते हुए लिखा कि यही भारत की असली ताक़त है – भरोसा और मानवीयता।

जैस्मिन ने वापसी से पहले ब्रिटिश दूतावास को पत्र लिखकर रघु की ईमानदारी का ज़िक्र किया और दिल्ली पुलिस को भी उसकी सराहना करने की अपील की।

रघु का जवाब

जब एक पत्रकार ने रघु से पूछा कि आपने पैसे क्यों ठुकराए, जबकि आपके घर की हालत अच्छी नहीं है? तो उसने मुस्कुराकर कहा –
“अगर मैंने पैसे के लालच में पासपोर्ट रख लिया होता, तो शायद मेरे बच्चे अच्छे कपड़े पहन लेते, लेकिन मैं उन्हें क्या सिखाता? यही कि ईमानदारी बेकार है? मैं चाहता हूँ कि मेरे बच्चे जानें कि सबसे बड़ी दौलत इंसान का अच्छा चरित्र है।”

निष्कर्ष

आज जब दुनिया में लालच, धोखा और स्वार्थ की खबरें ज़्यादा सुनने को मिलती हैं, ऐसे में रघु जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि इंसानियत अभी ज़िंदा है। जैस्मिन का खोया हुआ पासपोर्ट वापस मिला, लेकिन उससे भी बड़ा खज़ाना उन्हें मिला – यह यक़ीन कि इस दुनिया में भरोसे और सच्चाई पर खरे उतरने वाले लोग अभी भी मौजूद हैं।

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