“ट्रेन रोक दो। आगे ट्रैक पर गाय फँसी है… अगर नहीं रोकी तो म*र जाएगी, गरीब बच्चा चीखते हुए | Story
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“ट्रेन रोक दो, ट्रैक पर फंसी गाय को बचाना है”
दिसंबर की ठंडी दोपहर थी। सूरज की हल्की धूप ने रेलवे स्टेशन के पास के गांव के बच्चों को खेलने के लिए प्रेरित किया। मिट्टी में खेलते, पत्थर फेंकते और दौड़ते बच्चों के चेहरों पर मासूमियत और खुशी थी। यह एक ऐसा दिन था, जो किसी आम दिन की तरह ही लग रहा था। लेकिन किसे पता था कि यह दिन एक साधारण दिन से कुछ अलग होने वाला था।
गांव के पास रेलवे ट्रैक के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे। उनके खेल में कोई जटिलता नहीं थी, न ही कोई चिंता। बस बचपन की मासूमियत और खुशियां थीं। लेकिन तभी, अचानक एक घटना घटी, जिसने उन बच्चों की दुनिया को पलट कर रख दिया।
गाय का फंसना
एक गाय, जो शायद किसी के खेत से निकलकर रेलवे ट्रैक के पास आ गई थी, धीरे-धीरे ट्रैक को पार करने लगी। यह उसके लिए एक सामान्य काम था, लेकिन जैसे ही वह ट्रैक के बीचोंबीच पहुंची, उसका एक पैर लोहे की पटरियों के बीच बुरी तरह फंस गया।
गाय दर्द से चिल्लाने लगी। उसकी आवाज में दर्द, डर और असहायता साफ झलक रही थी। वह जितना खुद को छुड़ाने की कोशिश करती, उतना ही और गहरे फंस जाती। उसकी छटपटाहट और बढ़ती जाती, और दर्द और भय उसके चिल्लाने में साफ झलकता।
पास ही खेल रहे बच्चों में से एक 11 साल का लड़का, अमन, यह सब देख रहा था। दुबला-पतला, फटे पुराने कपड़े पहने हुए, लेकिन उसकी आंखों में एक अलग ही चमक थी। वह तुरंत दौड़कर गाय के पास पहुंचा।
“अरे, आजा बाहर! मैं तुम्हें बचा लूंगा!” अमन ने गाय के पैर को पकड़कर उसे खींचने की कोशिश की।
उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी। उसका चेहरा लाल हो गया, माथे से पसीना बहने लगा, लेकिन गाय का पैर और गहरे फंसता चला गया।
“नहीं! यह ऐसे नहीं निकलेगा!” अमन ने चिल्लाकर कहा।

समय की रेस
अमन ने अपनी घड़ी देखी। यह घड़ी उसके पिता ने उसे दी थी। घड़ी में 3:45 हो चुके थे। उसे पता था कि ठीक 4:00 बजे डाउन एक्सप्रेस ट्रेन इस ट्रैक से गुजरेगी। वह रोज इसी रास्ते से स्कूल जाता था और ट्रेन के समय उसे रटे हुए थे।
अमन को समझ आ गया कि अगर ट्रेन को रोका नहीं गया, तो गाय का बचना नामुमकिन है। लेकिन केवल गाय ही नहीं, ट्रेन में बैठे सैकड़ों लोगों की जान भी खतरे में पड़ सकती थी।
“गाय को मैं नहीं निकाल सकता, लेकिन ट्रेन को रोक सकता हूं!” अमन ने मन ही मन कहा।
स्टेशन मास्टर के पास दौड़
अमन ने तुरंत ट्रेन रोकने का फैसला किया। वह अपनी पूरी ताकत के साथ स्टेशन की ओर दौड़ पड़ा। उसके पैरों की गति और दिल की धड़कन दोनों तेज थीं।
स्टेशन मास्टर अजीत सिंह, जो 50 साल के अनुभवी और अनुशासित व्यक्ति थे, अपने कमरे में बैठे चाय पी रहे थे। तभी दरवाजे पर जोर की आवाज हुई।
“साहब! साहब! ट्रेन रोक दो! ट्रेन रोक दो!” अमन चिल्ला रहा था।
अजीत सिंह ने दरवाजा खोला और देखा कि एक दुबला-पतला लड़का, फटी पुरानी कमीज पहने, पसीने से लथपथ खड़ा था।
“क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो?” अजीत सिंह ने सख्ती से पूछा।
“साहब, ट्रैक पर गाय फंसी है। ट्रेन आ रही है। उसे रोको, नहीं तो वह मर जाएगी!” अमन ने हांफते हुए कहा।
अजीत सिंह ने पहले तो उसे डांट दिया। “अरे, हट जा यहां से! रोज कोई ना कोई मजाक करने आ जाता है। ट्रेन रोकना इतना आसान नहीं है।”
लेकिन जब उन्होंने अमन के चेहरे पर डर और गंभीरता देखी, तो उन्हें लगा कि यह मजाक नहीं हो सकता।
“ठीक है, दिखा मुझे। अगर सच बोल रहा है, तो मैं ट्रेन रोक दूंगा। लेकिन अगर झूठ निकला, तो पुलिस के हवाले कर दूंगा!” अजीत सिंह ने कहा।
इमरजेंसी सिग्नल
अजीत सिंह और अमन तुरंत ट्रैक की ओर दौड़े। जैसे ही उन्होंने ट्रैक पर फंसी गाय को देखा, अजीत सिंह समझ गए कि स्थिति कितनी गंभीर है।
उन्होंने तुरंत अपना वॉकी-टॉकी निकाला और कंट्रोल रूम से संपर्क किया। “कंट्रोल रूम, डाउन एक्सप्रेस को तुरंत रोकने का सिग्नल भेजो! इमरजेंसी है!”
कंट्रोल रूम ने तुरंत आदेश का पालन किया।
ट्रेन की रुकावट
डाउन एक्सप्रेस ट्रेन 70 किमी/घंटे की रफ्तार से ट्रैक पर दौड़ रही थी। ट्रेन के ड्राइवर महेश शर्मा को इमरजेंसी सिग्नल मिला। उसने तुरंत इमरजेंसी ब्रेक लगाया।
ट्रेन की ब्रेक लगने से पटरियों पर चिंगारियां निकलने लगीं। ट्रेन धीरे-धीरे रुकने लगी। हर कोई सांसें थामे यह नजारा देख रहा था।
आखिरकार, ट्रेन गाय से सिर्फ 1 मीटर की दूरी पर रुक गई। गाय की जान बच गई।
अमन बना हीरो
गाय को बचा लिया गया। उसका पैर चोटिल था, लेकिन वह सुरक्षित थी।
स्टेशन मास्टर अजीत सिंह ने अमन के कंधे पर हाथ रखा। “बेटा, तुमने जो किया, वह बहुत बड़ा काम है। तुमने न केवल गाय की जान बचाई, बल्कि ट्रेन में बैठे सैकड़ों लोगों की जान भी बचाई। तुमने दिखा दिया कि बहादुरी उम्र नहीं देखती।”
अगले दिन, अमन की बहादुरी की कहानी पूरे शहर में फैल गई। अखबारों और टीवी चैनलों पर उसकी खबर छा गई। रेलवे ने उसे बहादुरी के लिए सम्मानित किया। सरकार ने घोषणा की कि उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया जाएगा।
अमन की सीख
जब पत्रकारों ने अमन से पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया, तो उसने कहा, “मैंने कुछ खास नहीं किया। मैंने बस सही समय पर सही काम किया। जिंदगी बचाने से बड़ा कोई काम नहीं होता।”
अमन की कहानी यह सिखाती है कि बहादुरी उम्र, गरीबी या शिक्षा नहीं देखती। सही समय पर सही कदम उठाना ही असली बहादुरी है।
वाक्य: “हिम्मत सबसे बड़ी ताकत है।”
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