ढाबे वाली रोज़ इस भूखे लड़के को खाना देती थी — लेकिन जब एक करोड़पति ने उसे देखा, तो सब कुछ बदल गया

एक सड़क किनारे ढाबा चलाने वाली महिला, नीलम, जो रोज निस्वार्थ भाव से एक बेघर बच्चे का पेट भरती थी, उसे अंदाजा भी नहीं था कि वह बच्चा असल में कौन है। वह बस इंसानियत के नाते उसकी मदद करती रही। लेकिन एक शांत सुबह, उसकी छोटी सी दुकान के सामने अचानक चार लग्जरी एसयूवी का काफिला आकर रुका और पल भर में उसकी पूरी दुनिया बदल गई। आखिर कौन थे वह लोग जो उस बच्चे को ढूंढते हुए वहां पहुंचे थे, और उस बेसहारा दिखने वाले बच्चे का उन अमीर लोगों से क्या गहरा रिश्ता था?

आर्यन की कहानी

शहर के एक शोरशराबे वाले इलाके से दूर, जहां ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच एक वीरान और अधूरी बनी हुई बिल्डिंग खड़ी थी, वहां आठ साल का नन्हा आर्यन नहाता था। सुबह की पहली किरण अभी ठीक से खिली भी नहीं थी, लेकिन आर्यन की नींद खुल चुकी थी। वह उस ठंडे धूल भरे फर्श पर लेटा था जिसे वह और उसकी मां वैदेही अपना घर कहते थे। उसके बगल में एक पुरानी चटाई पर उसकी मां लेटी हुई थी। कभी जिस वैदेही की आंखों में जीवन की चमक हुआ करती थी, आज वह किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रही थी और इतनी कमजोर हो चुकी थी कि अपना सिर भी मुश्किल से उठा पाती थी।

आर्यन ने अपनी मां की ओर देखा। वैदेही की सांसें भारी चल रही थीं। उसने धीरे से मां के माथे पर अपना नन्हा हाथ रखा। वैदेही ने अपनी आंखें खोली और एक फीकी मुस्कान के साथ उसे देखा। “आर्यन,” उसने बहुत धीमी आवाज में कहा, “बेटा, बाहर संभल कर जाना और जल्दी घर आ जाना।” आर्यन ने मां का हाथ अपने गाल से लगाया और फुसफुसाया, “हां मां, मैं ध्यान रखूंगा। आज मैं हम दोनों के लिए खाना जरूर लाऊंगा।”

संघर्ष का दिन

आर्यन अपनी उम्र से कहीं ज्यादा समझदार हो गया था। उसे याद भी नहीं था कि आखिरी बार उसने कब पेट भर खाना खाया था। लेकिन उसे अपनी नहीं, अपनी मां की चिंता थी। वह जानता था कि अगर मां को दवाई और खाना नहीं मिला तो वह और बीमार हो जाएगी। नंगे पैर वह उस अधूरी इमारत से बाहर निकला और शहर की तपती हुई सड़कों पर चल पड़ा। सड़क पर गाड़ियां तेजी से दौड़ रही थीं। लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे। आर्यन की छोटी सी परछाई बड़ी इमारतों के नीचे कहीं खो सी गई थी।

वह एक महिला के पास गया जिसके हाथ में सब्जियों का थैला था। “आंटी, प्लीज थोड़ी मदद कर दीजिए,” आर्यन ने अपनी मासूम आंखों से देखते हुए कहा। महिला ने उसे एक पल के लिए देखा। फिर मुंह फेर कर ऐसे आगे बढ़ गई जैसे उसने कुछ सुना ही ना हो। आर्यन का दिल बैठ गया लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह एक चाय की दुकान के पास खड़े आदमी के पास गया। “अंकल, बहुत भूख लगी है। कुछ खाने को दिला दीजिए,” उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा। आदमी ने हाथ के इशारे से उसे दूर हटने को कह दिया। बिना उसकी ओर देखे।

हर इनकार, हर झिड़क आर्यन के नन्हे दिल पर एक पत्थर की तरह लगती थी। कुछ लोग उसे दया की नजर से देखते तो कुछ घृणा से, लेकिन किसी के हाथ मदद के लिए आगे नहीं बढ़े। दोपहर की धूप अब तेज हो चुकी थी। उसके नन्हे पैर जल रहे थे। गला सूख रहा था। लेकिन वह खुद से बस यही कह रहा था, “मां को भूख लगी होगी। मुझे रुकना नहीं है।”

नीलम से मुलाकात

चलते-चलते उसकी नजर सड़क के किनारे एक छोटी सी खाने की दुकान पर पड़ी। यह एक साधारण सा ढाबा था, जहां से दाल और चावल की सुगंध आ रही थी। वह खुशबू आर्यन के खाली पेट में मरोड़ पैदा कर रही थी। वह डरते-डरते उस दुकान के पास गया और वहां रखी एक पुरानी लकड़ी की बेंच पर जाकर बैठ गया। उसने कुछ मांगा नहीं। बस अपने घुटनों पर हाथ रखकर चुपचाप आने-जाने वाले लोगों को देखने लगा।

उस दुकान की मालकिन का नाम नीलम था। वह एक 25 साल की मेहनती लड़की थी जो अकेले दम पर यह दुकान चलाती थी। अपनी खुद की चिंताओं और आर्थिक तंगी के बावजूद नीलम के चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान रहती थी। दोपहर की भीड़ कम होने के बाद नीलम दुकान के बाहर बर्तन धोने आई। तभी उसकी नजर बेंच पर बैठे उस छोटे से बच्चे पर पड़ी। आर्यन के कपड़े मैले थे। शरीर दुबला-पतला था। लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी खामोशी और गहराई थी जिसने नीलम को रोक दिया।

वो अपना काम छोड़कर धीरे-धीरे उस बच्चे के पास गई। “नमस्ते,” नीलम ने बहुत प्यार से झुकते हुए पूछा। “मेरा नाम नीलम है। तुम्हारा क्या नाम है बेटा?” आर्यन ने धीरे से अपना सिर उठाया और नीलम की ओर देखा। उसकी आवाज कांप रही थी। “आर्यन,” उसने मुस्कुराते हुए कहा। “आर्यन, तुम यहां अकेले क्यों बैठे हो? क्या तुम किसी का इंतजार कर रहे हो?” नीलम ने पूछा।

आर्यन ने अपनी नजरें झुका ली और अपनी उंगलियों से खेलने लगा। फिर उसने बहुत धीमी आवाज में जो लगभग एक फुसफुसाहट थी, कहा, “मुझे बहुत भूख लगी है।” यह शब्द सुनकर नीलम का दिल पसीज गया। उसने महसूस किया कि यह बच्चा सिर्फ भूखा नहीं है बल्कि किसी गहरे दर्द को अपने सीने में छिपाए हुए है। नीलम का दिल उस बच्चे की मासूमियत और भूख को देख पिघल सा गया। उसने बिना कोई और सवाल किए दुकान के अंदर कदम रखा और एक स्टील की प्लेट में गरमागरम दाल चावल और थोड़ी सी सब्जी परोसी।

आर्यन का संकोच

खाने की भाप से उठती खुशबू ने आर्यन की भूख को और बढ़ा दिया था। नीलम बाहर आई और प्यार से प्लेट बेंच पर रखते हुए बोली, “लो बेटा, पहले पेट भर के खा लो।” आर्यन की आंखों में एक पल के लिए चमक आ गई। उसने “शुक्रिया दीदी,” कहा लेकिन उसने खाने का एक निवाला भी मुंह में नहीं डाला। वह बस खाने को देखता रहा जैसे वह कोई बहुत कीमती खजाना हो। फिर उसने हिचकिचाते हुए अपनी बड़ी-बड़ी आंखें उठाई और बहुत धीमी आवाज में पूछा, “दीदी, क्या आप इसे पैक कर देंगी? मेरे पास ले जाने के लिए कुछ नहीं है।”

नीलम हैरान रह गई। एक भूखा बच्चा जिसके सामने खाना रखा हो, वह उसे खाने के बजाय घर ले जाने की बात कर रहा था। “क्यों बेटा? तुम अभी क्यों नहीं खा रहे हो?” नीलम ने अचरत से पूछा। आर्यन ने प्लेट को अपने नन्हे हाथों से कसकर पकड़ लिया जैसे उसे डर हो कि कोई छीन ना ले। उसने सिर झुकाकर कहा, “मैं इसे घर ले जाना चाहता हूं मां के लिए।” यह सुनकर नीलम का गला भर आया। उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे। लेकिन उसे इतना समझ आ गया कि यह बच्चा सच बोल रहा है।

मां के लिए प्यार

वह तुरंत अंदर गई और खाने को एक प्लास्टिक की थैली में अच्छे से पैक कर दिया। साथ में दो रोटियां भी रख दी। जैसे ही आर्यन को वह पैकेट मिला, उसने उसे अपनी छाती से ऐसे लगा लिया जैसे दुनिया की सबसे अनमोल चीज मिल गई हो। “भगवान आपका भला करे दीदी,” कहकर वो वहां से दौड़ पड़ा। नीलम उसे जाते हुए देखती रही। उसके मन में हजारों सवाल थे। लेकिन उस बच्चे की हड़बड़ाहट बता रही थी कि कोई उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा है।

आर्यन अपने नन्हे पैरों से जितनी तेज दौड़ सकता था दौड़ा। वो उस अधूरी इमारत के अंधेरे कोने में पहुंचा जहां वैदेही लेटी हुई थी। वह बहुत कमजोर लग रही थी। उसकी आंखें आधी खुली थीं। “मां, देखो मैं आ गया,” आर्यन ने हाफते हुए कहा। उसने जल्दी से वह खाने का पैकेट वैदेही के पास रखा और कोने में पड़े पानी के मटके से एक पुरानी प्लेट धोकर ले आया। अपने कांपते हाथों से उसने खाना प्लेट में निकाला। “मां, उठो, थोड़ा खा लो,” उसने वैदेही के कंधे को हिलाते हुए कहा।

मां का आशीर्वाद

वैदेही में इतनी भी ताकत नहीं थी कि वह खुद उठकर बैठ सके। आर्यन ने उसे सहारा देकर थोड़ा ऊपर उठाया और दीवार से टिका दिया। फिर एक मां की तरह उसने चावल और दाल को अपने छोटे हाथों से मिलाया और पहला निवाला वैदेही के मुंह के पास ले गया। वैदेही की आंखों से आंसू बह निकले। जिस बेटे को उसे पालना चाहिए था, आज वह उसे खिला रहा था। वह धीरे-धीरे चबाने लगी। आर्यन बड़े धैर्य से उसे खिलाता रहा। हर निवाले के बाद इंतजार करता कि मां उसे निगल ले।

जब वैदेही ने थोड़ा खा लिया और पानी पी लिया तब जाकर आर्यन ने उसी थाली में बचा हुआ खाना खाया। वह जमीन पर बैठा था। लेकिन उसे लग रहा था कि आज का खाना सबसे स्वादिष्ट है। शाम को जब वैदेही में थोड़ी जान आई, उसने आर्यन से पूछा, “बेटा, यह खाना कहां से आया?” आर्यन ने मुस्कुराते हुए बताया, “सड़क किनारे एक दुकान है। वहां एक नीलम दीदी हैं। मैंने बस उनसे मदद मांगी थी। उन्होंने मुझे यह खाना दिया और डांटा भी नहीं।”

आभार और उम्मीद

वैदेही ने हाथ जोड़कर आसमान की तरफ देखा और बुदबुदाई, “हे ईश्वर, उस बेटी को हमेशा खुश रखना। जिसने मेरे बेटे की भूख मिटाई, उसका दामन कभी खाली ना हो।” उधर, शहर के दूसरे हिस्से में नीलम अपने छोटे से एक कमरे के घर में अपनी दिनभर की कमाई गिन रही थी। वह थकी हुई थी। पैर दुख रहे थे। लेकिन उसका मन बार-बार उस बच्चे आर्यन की ओर भाग रहा था। उसने अपनी गुल्लक में कुछ सिक्के डाले और अपने पढ़ाई के अधूरे सपने के बारे में सोचा। उसकी भी जिंदगी आसान नहीं थी। अगले महीने का किराया और कॉलेज की फीस का बोझ उसके सिर पर था।

फिर भी उसे आज एक अजीब सा सुकून मिल रहा था। कम से कम आज वह बच्चा भूखा नहीं सोया होगा। उसने मन ही मन सोचा और सोने की कोशिश करने लगी। अगले दिन और उसके बाद के दिनों में भी आर्यन का नीलम की दुकान पर आना एक नियम सा बन गया। वह अब सिर्फ वहां मदद मांगने नहीं आता था बल्कि नीलम के काम में हाथ बटाने की कोशिश करता।

नीलम का संकल्प

एक दिन नीलम ने उसे रोक कर कहा, “आर्यन, सुनो, तुम्हें रोज यहां वहां भटकने की जरूरत नहीं है। तुम रोज यहां आना। मैं तुम्हारे और तुम्हारी मां के लिए खाना हमेशा रखूंगी।” आर्यन की आंखों में अविश्वास और खुशी के आंसू तैरने लगे। “सच्ची दीदी, रोज।” “हां, रोज,” नीलम ने दृढ़ता से कहा। “जब तक मैं हूं, तुम और तुम्हारी मां भूखे नहीं रहोगे।”

उस दिन आर्यन को लगा कि शायद भगवान ने उसकी सुन ली है। उसे नहीं पता था कि नीलम का यह छोटा सा वादा ना केवल उसकी और वैदेही की जिंदगी बदलने वाला था बल्कि यह उस खोए हुए अतीत का दरवाजा भी खोलने वाला था जिसका इंतजार वैदेही बरसों से कर रही थी। हफ्तों गुजर गए और आर्यन अब नीलम की दुकान का एक अटूट हिस्सा बन गया था। वह स्कूल तो नहीं जा पाता था, लेकिन दुकान पर छोटे-मोटे काम करके उसे एक अलग खुशी मिलती थी।

नीलम और वैदेही की मुलाकात

एक दोपहर, नीलम ने खाने का पैकेट पैक करते हुए आर्यन से कहा, “आर्यन, क्या आज मैं तुम्हारी मां से मिल सकती हूं? मुझे देखना है कि उनकी तबीयत कैसी है।” आर्यन का चेहरा खिल उठा। “हां दीदी, मां आपसे मिलकर बहुत खुश होंगी।” शाम को दुकान जल्दी बंद कर नीलम आर्यन के साथ उस वीरान इमारत की ओर चल पड़ी। जब उसने उस छोटे अंधेरे कमरे में कदम रखा तो वहां की गरीबी और वैदेही की हालत देखकर उसका दिल भर आया।

वैदेही पुरानी चटाई पर लेटी थी। बेहद कमजोर लेकिन उसके चेहरे पर एक सौम्य आभा थी। नीलम ने झुककर उसके पैर छुए। वैदेही ने कांपते हाथों से उसे आशीर्वाद दिया। “जीती रहो बेटी। तुमने मेरे बच्चे को भूखा नहीं सोने दिया। भगवान तुम्हारी झोली हमेशा खुशियों से भरे।” नीलम ने वैदेही का हाथ थामते हुए कहा, “आप चिंता ना करें दीदी। अब मैं हूं ना।” उस दिन उस सूनी इमारत में उम्मीद का एक दिया जल उठा था।

राजेश की वापसी

वहीं दूसरी ओर, हजारों मील दूर से उड़ान भरकर एक आलीशान प्राइवेट जेट शहर के हवाई अड्डे पर उतरा। उसमें से एक बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति बाहर निकला। यह राजेश था। सालों पहले वह पढ़ने के लिए विदेश गया था। लेकिन अब वह एक बड़ी टेक कंपनी का मालिक बनकर लौटा था। उसके पास दौलत थी, शहरत थी। लेकिन दिल में एक पुराना घाव था जो कभी भरा नहीं था।

गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे राजेश की आंखों में पुराने दिन तैर रहे थे। उसे याद आया कि कैसे वैदेही ने अपनी जमा पूंजी और गहने बेचकर उसे विदेश भेजा था। वहां पहुंचने के कुछ ही हफ्तों बाद उसका फोन चोरी हो गया था। सारे नंबर खो गए थे। जब तक उसने संघर्ष कर खुद को स्थापित किया और वापस संपर्क करने की कोशिश की, तब तक वैदेही कहीं गायब हो चुकी थी। “मैं आ गया हूं वैदेही। मुझे माफ कर दो। मुझे आने में बहुत देर हो गई।”

खोज का सफर

अगले ही दिन राजेश अपनी पुरानी बस्ती में पहुंचा जहां वह और वैदेही कभी साथ रहते थे। वह हर गली हर मोड़ पर उसे ढूंढता रहा। लेकिन सब कुछ बदल चुका था। आखिरकार उसे एक पुरानी पड़ोसिन काकी मिली। जब काकी ने राजेश को पहचाना तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। “तुम अब आए हो बेटा,” काकी ने दुख से कहा। “वैदेही ने बहुत इंतजार किया तुम्हारा। तुम्हारे जाने के बाद उसे पता चला कि वह गर्भवती है। उसने अकेले ही बच्चे को जन्म दिया। उसका नाम आर्यन रखा। लेकिन फिर वह बीमार हो गई। बहुत बीमार। पैसे खत्म हो गए। मकान मालिक ने निकाल दिया। वह बच्चे को लेकर कहां गई, किसी को नहीं पता।”

राजेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। “बच्चा मेरा बेटा वो सुन रहा गया।” उसे पता ही नहीं था कि वह एक पिता भी है। उसकी वैदेही और उसका बेटा इस बड़े शहर में कहीं अकेले और बेसहारा थे। “मैं उन्हें ढूंढ निकालूंगा काकी। चाहे मुझे पूरी दुनिया छाननी पड़े।” राजेश ने कसम खाई और भारी मन से अपनी गाड़ी की ओर लौट गया।

नए संकल्प के साथ

गम और पछतावे में डूबे राजेश ने तय किया कि जब तक वह उन्हें नहीं ढूंढ लेता, वह उन जैसे मजबूर लोगों की मदद करेगा। उसने अपने ड्राइवर से कहा, “शहर के पिछड़े इलाकों में चलो। मैं वहां के छोटे अस्पतालों और जरूरतमंदों की मदद करना चाहता हूं।” उसका काफिला शहर के एक धूल भरे गरीब इलाके से गुजर रहा था।

दोपहर हो चुकी थी और भूख लगने पर राजेश ने ड्राइवर को गाड़ी रोकने का इशारा किया। संयोग से उसकी महंगी गाड़ियां ठीक उसी सड़क के किनारे रुकी जहां नीलम की छोटी सी दुकान थी। राजेश गाड़ी से उतरा ही था कि उसकी नजर दुकान के बाहर नल के पास बैठे एक छोटे से लड़के पर पड़ी। नीलम की दुकान के बाहर राजेश की नजरें नन्हे आर्यन पर टिकी थीं।

पिता-पुत्र का मिलन

उस बच्चे की सादगी और बर्तनों को मांझने की गंभीरता ने राजेश के मन को झकझोड़ दिया था। उसने अपनी नजरें घुमाकर नीलम की ओर देखा जो अब भी प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देख रही थी। राजेश ने भारी आवाज में पूछा, “मैडम, आज सोमवार है। यह बच्चा स्कूल में होने के बजाय यहां बर्तन क्यों धो रहा है?” नीलम के चेहरे की मुस्कान फीकी पड़ गई। उसने आर्यन के सर पर हाथ फेरा और दुख भरी आवाज में कहा, “साहब, स्कूल जाने की तो इसकी भी बहुत इच्छा है लेकिन हालात ने इसे मजबूर कर दिया है। इसकी मां बहुत बीमार है। उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। स्कूल की फीस तो बहुत दूर की बात है।”

राजेश का दिल पसीज गया। वह शहर के गरीबों की मदद करने ही निकला था। लेकिन इस बच्चे की कहानी ने उसे व्यक्तिगत रूप से छू लिया था। उसने तुरंत फैसला किया। “क्या मैं इसकी मां से मिल सकता हूं? मैं उनकी मदद करना चाहता हूं।”

नीलम का विश्वास

लड़का अपनी नन्ही उंगलियों से बहुत ध्यान से प्लेटें धो रहा था। उसके चेहरे की गंभीरता और काम करने का सलीका देखकर राजेश के कदम ठिठक गए। उसे उस बच्चे में अपना ही बचपन दिखाई दिया। वो अनजाने खिंचाव के साथ उस बच्चे की ओर बढ़ा। “क्या नाम है तुम्हारा बेटा?” राजेश ने नरम आवाज में पूछा। लड़के ने सर उठाया। पानी की बूंदें उसके गालों पर चमक रही थीं। “आर्यन,” उसने मासूमियत से जवाब दिया।

राजेश नाम सुनकर मुस्कुराया ही था कि दुकान के अंदर से नीलम बाहर आई। “नमस्ते साहब। क्या चाहिए आपको?” लेकिन राजेश की नजरें अब भी उस बच्चे पर टिकी थीं जिसे देखकर उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। मानो कोई बहुत पुरानी डोर उसे अपनी ओर खींच रही हो। नीलम पहले झिचकी। उसे डर था कि कहीं यह कोई गलत आदमी ना हो। लेकिन राजेश की आंखों में एक सच्चाई और करुणा थी जिसे वह अनदेखा ना कर सकी। उसने हामी भर दी और दुकान बंद करके आर्यन का हाथ थाम लिया।

नए सफर की शुरुआत

राजेश ने उन्हें अपनी आलीशान गाड़ी में बैठने का इशारा किया। धूल भरी गलियों से गुजरते हुए आर्यन बड़ी-बड़ी आंखों से उस महंगी गाड़ी के अंदरूनी हिस्से को देख रहा था। कुछ ही देर में वे उस अधूरी और वीरान इमारत के पास पहुंच गए जहां आर्यन और वैदेही रहते थे। “हम यहीं रहते हैं अंकल,” आर्यन ने इशारा करते हुए कहा।

राजेश गाड़ी से उतरा और उस खंडरमा इमारत के अंदर कदम रखा। अंदर अंधेरा और सीलन थी। जैसे ही उसकी नजर कोने में बिछी फटी हुई चटाई पर पड़ी, उसके कदम वहीं जम गए। वहां जीवन और मृत्यु के बीच झूलती हुई वह महिला लेटी थी जिसे वह बरसों से पागलों की तरह ढूंढ रहा था। वह वैदेही थी। राजेश के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला। बस उसकी सांसे अटक गई। “वैदेही,” उसने बहुत धीमी और कांपती हुई आवाज में पुकारा।

भावुक पुनर्मिलन

वैदेही जो बेहोशी की हालत में थी, ने अपनी भारी पलकें धीरे-धीरे उठाई। धुंधली नजर से सामने खड़े सूटबूट वाले आदमी को देखकर उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। “राजेश,” वह बहुत मुश्किल से बुदबुदाई। यह नाम सुनते ही राजेश का सब्र का बांध टूट गया। वह दौड़कर उसके पास घुटनों के बल बैठ गया। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। “हां वैदेही, मैं हूं। मैं वापस आ गया हूं,” उसने उसका ठंडा हाथ अपने हाथों में लेकर कहा।

लेकिन भावुक होने का समय नहीं था। वैदेही की सांसें उखड़ रही थीं। राजेश ने तुरंत चिल्लाकर अपने गार्ड्स को बुलाया, “जल्दी करो। इन्हें उठाओ। हमें अभी अस्पताल जाना होगा।” गार्ड्स ने बहुत सावधानी से वैदेही को उठाया और गाड़ी की पिछली सीट पर लिटा दिया। आर्यन यह सब देखकर सहम गया था। वह रोते हुए नीलम के पीछे छिप गया। “दीदी, मां को क्या हुआ? यह लोगों ने कहां ले जा रहे हैं?” उसने डरते हुए पूछा।

अस्पताल की दौड़

नीलम ने उसे गले लगाया और दिलासा दिया, “डरो मत। आर्यन, साहब तुम्हारी मां को ठीक करने ले जा रहे हैं। हम भी साथ चलेंगे।” गाड़ियों का काफिला सायरन बजाते हुए शहर के सबसे बड़े अस्पताल की ओर दौड़ पड़ा। राजेश ने फोन पर डॉक्टरों की पूरी टीम को तैयार रहने का आदेश दे दिया था। अस्पताल पहुंचते ही वैदेही को इमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया। कुछ घंटों की जांच के बाद डॉक्टर बाहर आए। उन्होंने गंभीर चेहरे के साथ कहा, “मिस्टर राजेश, इनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं। हालत बहुत नाजुक है। हमें जल्द से जल्द ट्रांसप्लांट करना होगा।”

राजेश ने एक पल भी नहीं सोचा। “डॉक्टर, जो करना है कीजिए। पैसे की कोई चिंता नहीं है। दुनिया के किसी भी कोने से इंतजाम कीजिए। लेकिन मुझे वैदेही सही सलामत चाहिए,” उसने दृढ़ता से कहा। तभी उसे आर्यन का ख्याल आया जो रिसेप्शन पर नीलम का हाथ पकड़े सहमे हुए बैठा था। राजेश उनके पास गया। आर्यन को देखकर उसका कलेजा मुंह को आ गया। यह उसका अपना खून था। उसका बेटा जो इतने सालों तक अनाथों जैसा जीवन जीता रहा था। लेकिन अभी सच बताने का वक्त नहीं था।

परिवार का पुनर्मिलन

उसने नीलम से कहा, “नीलम, तुम आर्यन को लेकर मेरे घर जाओ। वहां तुम दोनों सुरक्षित रहोगी। मैं यहां वैदेही के पास रुकूंगा।” नीलम हैरान थी कि एक अजनबी उनके लिए इतना क्यों कर रहा है? लेकिन उसने सवाल नहीं किया। राजेश के ड्राइवर ने उन्हें उसके आलीशान बंगले पर पहुंचा दिया। महल जैसा घर देखकर आर्यन की आंखें फटी की फटी रह गईं। “दीदी, क्या हम यहां रहेंगे?” उसने मासूमियत से पूछा।

नीलम ने नम आंखों से मुस्कुराते हुए कहा, “हां आर्यन, अब शायद तुम्हारे दुख के दिन खत्म हो गए हैं।” अगले तीन दिन अस्पताल में तनावपूर्ण रहे। राजेश ने अपनी किडनी डोनेट करने की पेशकश भी की और सौभाग्य से सब कुछ मिल गया। ऑपरेशन थिएटर के बाहर टहलता हुआ राजेश बस एक ही प्रार्थना कर रहा था कि उसे अपनी गलती सुधारने का, अपने परिवार को वापस पाने का बस एक मौका मिल जाए।

नई जिंदगी की शुरुआत

सफल ऑपरेशन के कुछ हफ्तों बाद अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में शांति छाई थी। वैदेही अब खतरे से बाहर थी लेकिन अभी भी कमजोर थी। जब उसकी आंख खुली तो उसने देखा कि राजेश उसके बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठा है। राजेश भी ऑपरेशन से उभर रहा था क्योंकि उसने अपनी एक किडनी वैदेही को दी थी। उसके चेहरे पर थकान थी लेकिन आंखों में एक सुकून था। “वैदेही,” राजेश ने उसका हाथ थामते हुए भर रही आवाज में कहा, “तुम अब सुरक्षित हो।”

वैदेही की आंखों में सवाल थे। “राजेश, तुम इतने साल कहां थे? मैंने तुम्हारा कितना इंतजार किया। मुझे लगा तुम हमें भूल गए।” राजेश ने सिर झुका लिया और अपनी आपबीती सुनाई। कैसे विदेश पहुंचते ही उसका सब कुछ चोरी हो गया। कैसे वह संपर्क करने के लिए तड़पता रहा और कैसे उसने दिन-रात मेहनत करके अपनी नई दुनिया बनाई सिर्फ वापस आने के लिए। “मैं तुम्हें कभी नहीं भूला वैदेही। और अब मुझे पता है कि आर्यन मेरा बेटा है। काकी ने मुझे सब बता दिया था।”

एक नई शुरुआत

राजेश ने रोते हुए कहा, “मुझे माफ कर दो कि तुम्हारे बुरे वक्त में मैं साथ नहीं था। लेकिन अब मैं तुम्हें और आर्यन को कभी खुद से दूर नहीं होने दूंगा।” वैदेही और राजेश दोनों की आंखों से आंसू निकलने लगे और उन आंसुओं में बरसों का दर्द धुल गया। कुछ दिनों बाद अस्पताल से छुट्टी मिलने पर वे राजेश के आलीशान बंगले पर पहुंचे। घर के अंदर आर्यन और नीलम सोफे पर बैठे बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

जैसे ही दरवाजा खुला, आर्यन की धड़कनें थम गईं। उसने देखा कि उसकी मां जो कभी खड़ी नहीं हो पाती थी, आज धीरे-धीरे चलकर अंदर आ रही है। “मां!” आर्यन चिल्लाया और दौड़कर वैदेही के गले लग गया। “मां, तुम चल सकती हो?” “हां मेरे बच्चे, मैं अब बिल्कुल ठीक हूं,” वैदेही ने फिर आर्यन को अपने सामने बैठाया और राजेश की ओर इशारा किया। “आर्यन, मेरी बात ध्यान से सुनो। यह अंकल, यह तुम्हारे पापा हैं।”

आर्यन की आंखें आश्चर्य से फैल गईं। “पापा,” उसने धीरे से फुसफुसाया। “हां बेटा, मैं तुम्हारा पापा हूं। अब मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊंगा।” आर्यन जो हमेशा पिता के प्यार के लिए तरसा था, दौड़कर राजेश की बाहों में समा गया। नीलम एक कोने में खड़ी यह मिलन देख रही थी। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे।

नीलम का नया जीवन

अब बारी नीलम की थी। राजेश उसके पास गया और हाथ जोड़कर कहा, “नीलम, तुमने मेरे परिवार को तब सहारा दिया जब मैं नहीं था। तुम्हारा यह एहसान मैं कभी नहीं चुका सकता।” नीलम ने सिर हिलाते हुए कहा, “नहीं भैया, मैंने तो बस वह किया जो सही था।” राजेश ने मुस्कुराते हुए एक चाबी और एक लिफाफा नीलम के हाथ में थमाया। “नीलम, यह शहर के एक अच्छे इलाके में तुम्हारे नए फ्लैट की चाबी है और इस लिफाफे में तुम्हारे कॉलेज का एडमिशन लेटर है। साथ ही मैंने तुम्हारे लिए एक नया रेस्टोरेंट तैयार करवाया है। ‘नीलम की रसोई।’ अब तुम्हें किसी के यहां नौकरी करने की जरूरत नहीं है। तुम अपनी मालकिन खुद बनोगी।”

नीलम को यकीन नहीं हो रहा था कि जिस दया ने उसे एक भूखे बच्चे को खाना खिलाने के लिए प्रेरित किया था, आज उसने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी थी। कुछ महीनों बाद राजेश और वैदेही ने धूमधाम से शादी कर ली। आर्यन को उसका पूरा परिवार मिल गया था। वे तीनों अब एक नई जिंदगी शुरू करने के लिए विदेश जा रहे थे।

विदाई का समय

हवाई अड्डे पर विदाई के समय नीलम भी मौजूद थी। उसकी आंखों में आंसू थे। लेकिन यह बिछड़ने के नहीं बल्कि गर्व और खुशी के आंसू थे। नीलम वहीं रुक गई। लेकिन अब वह सड़क किनारे खाना बेचने वाली लड़की नहीं थी। वह एक सफल रेस्टोरेंट की मालकिन और एक छात्रा थी। उसने सीखा कि नेकी कभी व्यर्थ नहीं जाती। एक छोटी सी मदद, एक प्याले चावल ने ना केवल एक मरती हुई मां को बचाया, एक बिखरे हुए परिवार को मिलाया, बल्कि उसकी खुद की किस्मत भी बदल दी।

निष्कर्ष

यह कहानी हमें सिखाती है कि दुनिया गोल है। जो अच्छाई आप आज बांटते हैं, वह कल दुगनी होकर आपके पास लौटती है। दोस्तों, आपको यह कहानी कैसी लगी? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताइए। अगर कहानी अच्छी लगी हो तो वीडियो को लाइक कीजिए और अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूलिए। और हां, आप यह वीडियो कहां से देख रहे हैं, अपने प्यारे गांव या शहर का नाम भी कमेंट में जरूर लिखिए। ऐसी ही और दिल छू लेने वाली कहानियां सुनने के लिए हमारे चैनल ‘पहली दफा स्टोरीज’ को सब्सक्राइब करना ना भूलें। मिलते हैं अगले कहानी के साथ। तब तक के लिए जय हिंद!

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