तलाकशुदा पत्नी चार साल बाद पति को देखती है पागलपन हालत में कचरे का खाना खा रहा था गले लिपट रोने लगी
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चार साल बाद : एक अधूरी मोहब्बत की वापसी
बिहार के एक छोटे कस्बे में राजीव और राधिका की कहानी शुरू हुई थी। दोनों साथ पढ़ते थे, साथ हँसते थे, और धीरे-धीरे एक-दूसरे की आँखों में अपना भविष्य ढूँढने लगे थे। राधिका मिडिल क्लास घर से थी, राजीव लोअर मिडिल क्लास से। आर्थिक स्थिति में फर्क था, लेकिन दिलों का रिश्ता मज़बूत था।
राधिका के घरवाले इस रिश्ते के खिलाफ़ थे। उन्हें लगता था कि उनकी बेटी को बेहतर वर मिल सकता है। लेकिन प्रेम को कौन रोक पाया है? एक दिन दोनों ने घर छोड़कर कोर्ट मैरिज कर ली। शुरुआत में विरोध हुआ, मुकदमेबाज़ी तक पहुँची, पर धीरे-धीरे सब शांत हो गया।
नया जीवन, नई उम्मीदें
राजीव और राधिका ने साथ रहना शुरू किया। राजीव के घरवालों ने बहू का खूब मान-सम्मान किया। उन्हें लगा कि उनकी मेहनत रंग लाई है। राधिका भी शुरू में खुश थी। लेकिन धीरे-धीरे मायके का असर उस पर पड़ने लगा। माँ अक्सर ताना देती—
“देखा, तुम्हें इतना सम्मान इसलिए मिलता है क्योंकि हमने केस किया था। वरना कौन पूछता!”
राधिका के मन में शक की परछाइयाँ उतरने लगीं। छोटी-छोटी बातों पर मन खट्टा होने लगा। माँ की बातें उसके दिल में ज़हर घोलने लगीं।
राजीव मेहनत-मजदूरी करता था। पढ़ा-लिखा था, लेकिन नौकरी न लग पाने की वजह से हालात आसान नहीं थे। राधिका चाहती थी कि राजीव गाँव छोड़कर बाहर चले। राजीव अपने परिवार का साथ नहीं छोड़ना चाहता था। झगड़े बढ़ते गए। बात तलाक तक पहुँची।
टूटते रिश्ते
राधिका ने तलाक़ की ज़िद ठानी और कोर्ट-कचहरी के चक्कर शुरू हो गए। राजीव टूट चुका था, लेकिन उसने उसे आज़ाद कर दिया। उसे उम्मीद थी कि शायद वक़्त के साथ राधिका वापस आ जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तलाक़ हो गया।
यह सदमा राजीव की आत्मा को तोड़ गया। पड़ोसियों के ताने, समाज की बातें और भीतर का अकेलापन—सब मिलकर उसे मानसिक रूप से बीमार करने लगे। एक दिन वह चुपचाप घर छोड़ गया।
भटकता राजीव
वह बनारस पहुँच गया। काम-धंधा तलाशा, लेकिन मन और तन दोनों थक चुके थे। धीरे-धीरे उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ने लगी। कभी हँसता, कभी रोता, कभी गुमसुम बैठा रहता। काम पर भी लोग रखने से कतराने लगे। नहाना-धोना छोड़ दिया, कपड़े मैले हो गए। और आखिरकार वह सड़क किनारे, रेलवे स्टेशन पर भिखारियों की कतार में बैठने लगा।
कभी कोई बचा-खुचा खाना डाल देता तो उठा कर खा लेता। कभी कोई दया कर दो रोटी दे जाता। राजीव अब वही बन चुका था—जिससे समाज मुँह फेर लेता है।
राधिका की पीड़ा
उधर, राधिका मायके में रह रही थी। शुरू में उसने माँ की बातों पर भरोसा किया, लेकिन वक्त बीतने के साथ उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा। माँ-बाप दूसरी शादी के लिए दबाव डालते, पर राधिका साफ़ मना कर देती।
“मैंने एक बार प्यार किया था, अब दोबारा किसी और से नहीं कर सकती।”
माँ-बाप नाराज़ हुए, खर्च रोक दिया। राधिका की ज़िन्दगी भी उजाड़-सी हो गई। मन में पछतावा, आँखों में आंसू और दिल में टीस।
क़िस्मत का खेल
चार साल बीत गए। एक दिन काशी विश्वनाथ मंदिर जाने का कार्यक्रम बना। माँ ने राधिका को साथ लिया। बनारस रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरते ही उन्होंने टैक्सी का इंतज़ार किया। तभी राधिका की नज़र एक कोने में बैठे आदमी पर पड़ी।
वह आदमी ज़मीन पर गिरे थैले से बचा-खुचा खाना उठा कर खा रहा था। उसके मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी और अस्त-व्यस्त हालत देखकर राधिका का दिल काँप उठा। पर जैसे ही वह चेहरा साफ़ दिखाई दिया—उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं।
वह राजीव था!
मिलन का क्षण
राधिका के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह भाग कर उसके पास पहुँची। राजीव ने भी नज़र उठाई और उसे पहचाना। लेकिन उसकी आँखों में डर था। उसने खाना छुपाने की कोशिश की, मानो कोई छीन लेगा।
यह देखकर राधिका फूट-फूट कर रो पड़ी। उसने थैला उसके हाथ से छीन कर दूर फेंक दिया और उसे गले से लगा लिया। आसपास के लोग हैरानी से देखने लगे। माँ भी दंग रह गईं। पर राधिका ने किसी की परवाह नहीं की।
नई शुरुआत
वह राजीव को होटल लेकर गई। नहलाया, साफ़ कपड़े पहनाए, बाल-दाढ़ी बनवाई। राजीव कभी उसे पहचानता, कभी खाली निगाहों से देखता। लेकिन जब राधिका ने उसका हाथ थामा, तो वह चुपचाप उसके पीछे चल पड़ा।
राधिका उसे काशी विश्वनाथ मंदिर ले गई। आँसुओं में डूबकर उसने प्रार्थना की—
“हे भगवान, गलती मेरी थी। सज़ा इन्हें क्यों? कृपा कर इन्हें ठीक कर दो।”
घर वापसी
राधिका राजीव को लेकर उसके घर पहुँची। सब हैरान थे। माँ-बाप ने पहले कहा,
“अब तुम इसकी पत्नी नहीं हो, तलाक हो चुका है।”
लेकिन राधिका ने दृढ़ स्वर में कहा—
“कागज़ पर हस्ताक्षर से रिश्ते नहीं टूटते। अगर प्यार न होता, तो मैं इसे इस हालत में देखकर इसे वापस न लाती। यह मेरा पति है और मैं इसे छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी।”
सबकी आँखें भर आईं। राजीव का इलाज शुरू हुआ। महीनों तक राधिका ने उसकी सेवा की। समय पर दवा, खाना, देखभाल। धीरे-धीरे राजीव की मानसिक हालत सुधरने लगी।
अंतिम संदेश
चार साल की दूरी, तलाक़ की पीड़ा और समाज के तानों ने राजीव को तोड़ दिया था। लेकिन राधिका के प्रेम और देखभाल ने उसे नया जीवन दिया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि—
रिश्ते केवल कागज़ी दस्तावेज़ से नहीं टूटते।
प्यार त्याग और धैर्य का नाम है।
और कभी-कभी सबसे बड़ी गलती भी इंसान को सबसे बड़ा सबक सिखा देती है।
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