थप्पड़ मारते ही पुलिसवाले की जिंदगी बर्बाद! जब पता चला वो आम लड़की नहीं IPS थी!

अमन नगर नाम के एक व्यस्त इलाके में एक साधारण सी ऑटो रिक्शा धीरे-धीरे रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ रही थी। उस ऑटो में दो महिलाएं बैठी थीं – एक उम्रदराज मां और उसकी बेटी। मां सफेद दुपट्टा सिर पर ओढ़े हुए चेहरे पर मासूम मुस्कान लिए बाजार से अपने लिए कुछ नए कपड़े खरीदने के ख्याल से खुश थी। बेटी नीले सलवार कुर्ते में बिना किसी गहने या खास पहचान के बिल्कुल साधारण लग रही थी। किसी को अंदाजा भी नहीं था कि यही लड़की दरअसल एक आईपीएस अधिकारी है – आयशा खान।

आयशा का मकसद सिर्फ अपनी मां को बाजार ले जाना नहीं था। असल में वह अंडर कवर यानी गुप्त पहचान के साथ निकली थी। उनका मिशन था उन लोगों का असली चेहरा सामने लाना जो कानून के नाम पर दूसरों को सताते हैं। जैसे ही ऑटो चौराहे के पास पहुंचा, सामने एक चेक पोस्ट नजर आया। दो पुलिस वाले खड़े थे और उनके चेहरे पर वही घमंड साफ झलक रहा था जो अक्सर सत्ता के नशे में होता है। उनमें से एक था इंस्पेक्टर रमन सिन्हा।

रमन ने ऑटो को हाथ देकर रोका और रूखे स्वर में बोला, “कागज दिखा जल्दी।” ड्राइवर ने जेब से कुछ पुराने कागज निकाले और कांपते हाथों से रमन को थमा दिए। रमन ने उन्हें सरसरी निगाह से देखा और तुरंत तेवर बदल लिए। “अरे यह तो अधूरे हैं। ठीक से गाड़ी चलाना भी नहीं आता और ऊपर से कागज भी पूरे नहीं। अब दोगे ₹2000 तभी आगे जाने दूंगा।”

ड्राइवर का चेहरा पीला पड़ गया। उसने हाथ जोड़कर कहा, “साहब पैसे तो अभी नहीं हैं। घर पर रह गए हैं। आप चाहे तो कल ले आऊंगा।” लेकिन रमन सिंह की आंखों में कोई नरमी नहीं थी। उसने ठंडी हंसी हंसते हुए कहा, “अरे ओ गरीब, ज्यादा अकड़ मत दिखा। जल्दी 2000 निकाल। वरना तेरी ऑटो यहीं खड़ी रहेगी।”

बेबस ड्राइवर गिड़गिड़ाता रहा। और जब उसकी बातें रमन के कानों में चुभने लगीं तो उसने गुस्से में एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। यह नजारा देखकर पीछे बैठी आयशा का खून खौल उठा। मगर उन्होंने खुद को संभाला। उन्होंने सोचा, “यही तो देखने आई हूं कि यह लोग कितनी हद तक गिर सकते हैं।”

आयशा धीरे से ऑटो से उतर कर आगे बढ़ी और ठंडी पर कड़ी आवाज में बोली, “आपको इस ड्राइवर को थप्पड़ मारने का हक किसने दिया? आप वर्दी में हैं तो क्या इंसानियत भूल गए?” रमन चौंका। उसने सोचा एक साधारण लड़की मुझसे ऐसे सवाल पूछ रही है। उसकी आंखों में क्रोध भर आया।

“ए लड़की अपनी जुबान संभाल। ज्यादा कानून मत सिखा। नहीं तो तुझे भी हवालात का स्वाद चखाना पड़ेगा।” आयशा ने उसकी आंखों में सीधे देखते हुए कहा, “कानून सबके लिए बराबर है। चाहे वह पुलिस वाला हो या आम आदमी। रिश्वत मांगना गुनाह है और गरीब को थप्पड़ मारना अपराध।”

इतना सुनते ही रमन आगबोला हो गया। उसने अपनी पूरी ताकत से आयशा को भी थप्पड़ मार दिया और व्यंग से बोला, “अब तू मुझे कानून सिखाएगी। चुपचाप ऑटो में बैठ जा वरना तुझे और तेरी मां दोनों को जेल में सड़ा दूंगा।”

ऑटो ड्राइवर सहमा हुआ चुप खड़ा था। मां भी डर से कांप रही थी। मगर आयशा की आंखों में कोई डर नहीं था। उन्होंने गहरी सांस ली और मन ही मन ठान लिया। “अब देखना है यह इंसान कितनी दूर जा सकता है।”

वो वापस ऑटो में बैठ गईं। उनके होंठ भले ही बंद थे, लेकिन उनके भीतर की आग और तेज हो चुकी थी। यह तो बस शुरुआत थी। असली तू
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