दिल्ली में नौकरी ढूंढने गया लड़का… लेकिन करोड़पति औरत को बचाकर सबको रुला गया

यह कहानी है उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक छोटे से गांव की, जहां एक साधारण किसान का बेटा, शिवम त्यागी, अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए दिल्ली नौकरी की तलाश में निकलता है। उसकी किस्मत में कुछ ऐसा लिखा था कि उसकी मुलाकात नेहरू पार्क में एक ऐसी महिला से होती है, जिसकी जिंदगी मौत के दरवाजे पर खड़ी थी। क्या शिवम अपनी जान की परवाह किए बिना किसी की जान बचाएगा? यह कहानी न केवल शिवम की है, बल्कि इंसानियत, त्याग और हिम्मत की भी है।

गांव का जीवन

गांव की मिट्टी में सादगी और देसीपन बसा हुआ था। खेतों में पकी गेहूं की बालियां झूमती थीं, बच्चे मिट्टी में खेलते थे, और चौपाल पर बुजुर्गों की बातें गूंजती थीं। शिवम, उम्र 21 साल, दुबला-पतला, मेहनती और अपने परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने वाला था। उसके पिता, हरनाम त्यागी, एक छोटे किसान थे, जिनके पास केवल दो बीघे की जमीन थी। खेती से मुश्किल से इतना निकलता था कि घर का चूल्हा जल सके। घर में मां सरस्वती देवी और तीन बहनें थीं।

परिवार की जिम्मेदारी

हरनाम त्यागी बीते कुछ महीनों से बीमार चल रहे थे। कमर में दर्द और खांसी ने उनका शरीर तोड़ दिया था। अब घर की पूरी जिम्मेदारी धीरे-धीरे शिवम के कंधों पर आ रही थी। शिवम पढ़ाई में ठीक था, लेकिन हालात ने उसके सपनों के आगे दीवार खड़ी कर दी। एक शाम, पिता ने उसे चौपाल पर बुलाया और कहा, “बेटा, अब तू ही घर का सहारा है। तुझे बाहर जाकर कुछ करना होगा।” शिवम ने पिता के पैर छुए और कहा, “ठीक है बापू, मैं कुछ करूंगा।”

दिल्ली की यात्रा

अगले हफ्ते, शिवम को दिल्ली में एक होटल में सफाई और सर्विस का काम मिल गया। तनख्वाह 14,000 रुपये थी, जिसमें रहने और खाने की व्यवस्था थी। मां की आंखों में आंसू थे जब उसने बेटे को विदा किया। दिल्ली पहुंचना उसके लिए किसी नई दुनिया में कदम रखने जैसा था। वहां की भीड़-भाड़, ऊंची इमारतें और ट्रैफिक का शोर उसे थोड़ा अजीब लगा। लेकिन शिवम ने मेहनत से काम किया।

नेहरू पार्क में मुलाकात

शिवम ने दिल्ली में लगभग दो महीने बिताए। वह सुबह पार्क में टहलने जाता था। एक दिन, उसने पार्क में एक महिला को देखा, जो लगभग 27-28 साल की थी। उसकी आंखों में गहरी थकान थी। अचानक, महिला गिर गई। शिवम सबसे पहले वहां पहुंचा और उसे संभाला। उसने तुरंत एंबुलेंस बुलवाई और महिला को अस्पताल ले गया।

संध्या और गोविंद शर्मा

महिला का नाम संध्या था और उसके पिता का नाम गोविंद शर्मा था। गोविंद शर्मा एक बड़े कारोबारी थे, लेकिन अपनी बेटी की बीमारी के सामने वे बेबस थे। संध्या की दोनों किडनियां तेजी से फेल हो रही थीं और उसे ट्रांसप्लांट की आवश्यकता थी। शिवम ने गोविंद से कहा कि वह उनकी मदद करेगा।

संध्या की बीमारी

कुछ दिनों तक अस्पताल में इलाज चला। संध्या को डायलिसिस की आवश्यकता थी। गोविंद ने शिवम को कई बार धन्यवाद कहा, लेकिन शिवम ने पैसे लेने से मना कर दिया। वह बस इंसानियत का फर्ज निभा रहा था। धीरे-धीरे, शिवम और संध्या के बीच एक अजीब सा अपनापन पनपने लगा। संध्या ने शिवम से अपनी जिंदगी की बातें बताई।

किडनी दान करने का फैसला

एक दिन, डॉक्टर ने गोविंद को बताया कि अगर अगले तीन महीने में डोनर नहीं मिला, तो संध्या की हालत और बिगड़ सकती है। इस बात ने शिवम को गहराई से प्रभावित किया। उसने बिना किसी को बताए, अपनी किडनी का मैचिंग टेस्ट करवाने का फैसला किया। तीन दिन बाद, रिपोर्ट आई और पता चला कि उसकी किडनी संध्या के लिए मैच करती है।

किडनी दान की तैयारी

शिवम ने गोविंद और संध्या को अपने फैसले के बारे में बताया। संध्या ने कहा, “तुम पागल हो गए हो। तुम्हारी भी जिंदगी है।” लेकिन शिवम ने कहा, “आप अजनबी नहीं हैं। आप और अंकल मेरे लिए परिवार जैसे बन गए हैं।” गोविंद ने कहा, “बेटा, हम तुम्हें रोकेंगे नहीं, लेकिन सोच समझकर फैसला लेना।”

ऑपरेशन का दिन

ऑपरेशन की तारीख तय हुई। शिवम और संध्या को अस्पताल में ले जाया गया। गोविंद ने मंदिर में प्रार्थना की। ऑपरेशन सफल रहा और दोनों को आईसीयू में शिफ्ट किया गया। कुछ दिनों बाद, दोनों की हालत में सुधार आने लगा।

गांव की वापसी

मार्च के महीने में, शिवम ने गांव जाने का फैसला किया। गांव में उसकी मां और पिता ने उसे गले लगाया। लेकिन गांव में कुछ लोग उसकी किडनी बेचने की अफवाहें फैलाने लगे। शिवम ने अपनी मां को सच्चाई बताई और कहा, “मैंने किसी को बेचा नहीं। मैंने किसी की जिंदगी बचाई है।”

संध्या की शादी का प्रस्ताव

एक दिन, गोविंद शर्मा और संध्या गांव आए। संध्या ने सबके सामने कहा, “मैं शिवम से शादी करूंगी।” गांव वाले हैरान रह गए, लेकिन फिर तालियां गूंजने लगीं। शिवम की आंखों में आंसू थे।

शादी और नया जीवन

शिवम और संध्या की शादी धूमधाम से हुई। गांव के लोग अब गर्व से कहते थे, “वो देखो शिवम त्यागी, हमारे गांव का बेटा जिसने अपनी इंसानियत से इतिहास लिख दिया।”

समापन

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि पैसा बहुत कुछ कर सकता है, लेकिन इंसानियत और हिम्मत वह कर जाती है जो करोड़ों रुपये नहीं कर पाते। दूसरों की जिंदगी में रोशनी भरने वाला इंसान खुद एक दिन चमकता है। समाज की बातें तभी तक चलती हैं जब तक सच्चाई सामने नहीं आ जाती।

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