दुबई में एक मजदूर लड़के ने अरब इंजीनियर का खोया हुआ पर्स लौटाया, फिर जानकर चौंक जाएंगे आप…

उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव बेलसर में एक युवा रहता था – विवेक श्रीवास्तव। उसका सपना था एक बड़ा सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का। उसके पिता एक सरकारी क्लर्क थे और मां गृहिणी। विवेक पढ़ाई में होशियार था। उसने लखनऊ यूनिवर्सिटी से बी.सी.ए किया और बड़े जतन से एम.सी.ए की डिग्री भी हासिल की। लेकिन नौकरी… वो तो मानो उसकी किस्मत से कोसों दूर थी।

हर जगह एक ही जवाब मिलता – “तजुर्बा चाहिए।” और जहां तजुर्बा नहीं था, वहां सिफारिश चाहिए थी।

धीरे-धीरे घर की हालत बिगड़ने लगी। पिताजी बीमार रहने लगे, मां के गहने बिकने लगे, और विवेक के सपनों की चादर पर रोज़ एक नया पैबंद लग जाता। कई बार सोचता, सब कुछ छोड़कर किसी दुकान में काम कर ले, पर दिल नहीं मानता। तभी एक दिन उसके एक पुराने दोस्त से बात हुई जो अबू धाबी में एक लेबर कंपनी में काम करता था। उसने कहा, “भाई, कुछ पैसे कमाने हैं तो यहां आ जा, मजदूरी ही सही पर कम से कम महीने का ₹30,000 तो मिलेगा। दो साल में घर का कर्ज खत्म हो जाएगा।”

विवेक की आँखों के सामने अपने पापा की दवाइयों की पर्ची और घर की टूटी छत घूम गई। उसने भारी मन से हामी भर दी।

“पहचान से परे”

अबू धाबी में उसकी तैनाती एक सरकारी भवन निर्माण परियोजना में हुई। नीली वर्दी, स्टील टोपी और भारी-भरकम जूते पहनकर वो दिनभर सीमेंट की बोरियां ढोता, गर्मी में लोहे की छड़ों को ऊपर पहुंचाता, और शाम को थककर कैंप में वापस लौटता।

उसे कोई नहीं जानता था, और यही गुमनामी अब उसका कवच बन गई थी।

किसी को नहीं पता था कि वह अंग्रेज़ी बोल सकता है, कोडिंग जानता है, वेबसाइट बना सकता है। वह बस एक ‘लेबर’ था – और उसी पहचान में हर दिन घुलता जा रहा था।

“एक मौका, एक इम्तहान”

एक दिन साइट पर अचानक अफरा-तफरी मच गई। अबू धाबी के एक प्रिंस आने वाले थे निरीक्षण के लिए। हर चीज़ चमकाई जा रही थी, सब पर दबाव था। प्रोजेक्ट के डायरेक्टर थे – जॉन हैमिल्टन, एक ब्रिटिश मूल के अधिकारी, जो बहुत अनुशासित थे लेकिन मजदूरों से सीधे बातचीत नहीं करते थे।

शाम को जब सब जा चुके थे, विवेक मलबा साफ कर रहा था। तभी एक भारी-सा ब्लैक डायरीनुमा लैदर फोल्डर उसके फावड़े से टकराया। उसने देखा – अंदर एक पासपोर्ट, क्रेडिट कार्ड, कुछ सरकारी दस्तावेज़ और करीब 5000 दिरहम थे।

एक पल के लिए उसका दिल कांप उठा। ये किस्मत का तोहफा हो सकता है। वो सोचने लगा – ये पैसे घर भेज दूं तो पिताजी का इलाज हो जाएगा। ये दस्तावेज़ बेच दूं तो और पैसे मिलेंगे। और फिर कहीं चला जाऊं – गायब हो जाऊं।

लेकिन तभी, उस फोल्डर में एक फोटो दिखी – एक मासूम बच्ची की, जिसके पीछे लिखा था –
“To Papa – come home soon.”

विवेक को लगा मानो उसकी अपनी बहन कह रही हो – “भैया, कुछ गलत मत करना।”

वो वहीं ज़मीन पर बैठ गया। उसने आसमान की तरफ देखा, आँखें नम थीं। “हे भगवान, मैं गरीब हूँ, पर बेईमान नहीं।”

“सच की दस्तक”

अगली सुबह वह डायरेक्टर जॉन के ऑफिस के बाहर खड़ा था। गार्ड्स ने उसे रोक लिया। “लेबर हो तुम, यहां क्या काम है?”

विवेक ने कहा, “मुझे सर से जरूरी बात करनी है, प्लीज़ उन्हें एक बार बुलाइए।”

बहुत कहने पर जॉन बाहर आए, उनका चेहरा सख्त था। विवेक ने कांपते हाथों से फोल्डर बढ़ाया, और अंग्रेज़ी में कहा –
“Sir, I believe this belongs to you. I found it near the scaffolding yesterday.”

जॉन का चेहरा जैसे पिघलने लगा। उन्होंने तुरंत फोल्डर खोला – सब कुछ सही सलामत था। वो चुपचाप कुछ पल विवेक को देखते रहे। फिर बोले,
“What’s your name?”
“Vivek Srivastava, sir.”
“Where are you from?”
“India, Uttar Pradesh.”
“And what are you doing here?”
“Mazdoori, sir… par main software engineer hoon.”
विवेक की आवाज़ कांप रही थी, लेकिन उसमें झूठ का कोई नामोनिशान नहीं था।

जॉन ने गहरी सांस ली। फिर अपने फोन से किसी को कॉल किया –
“Send Mr. Rashid from HR to my office immediately.”

“इनाम नहीं, बदलाव”

विवेक को उसी दिन Data Entry Assistant की पोस्ट पर रखा गया। दो महीने बाद उसकी पदोन्नति हुई – IT Support Executive। फिर एक साल बाद – Systems Analyst। उसने अपने घर कर्ज चुकाया, बहन का दाखिला बी.कॉम में करवाया, और पापा को इलाज के लिए भारत बुलवा लिया।

अब उसके पास फ्लैट था, पहचान थी, और खुद पर गर्व करने लायक एक कहानी भी।

एक दिन डायरेक्टर जॉन ने अपने farewell के वक्त कहा:
“When I lost that folder, I thought I lost everything. But I gained something much more—faith in honesty. Vivek, you reminded me that integrity still exists. You didn’t return just my documents, you returned my trust in people.”

“परम सत्य”

विवेक की कहानी हमें यही सिखाती है –
सपनों की ऊँचाई आपकी डिग्री से नहीं, आपकी नीयत से तय होती है।

हालात भले ही आपको झुका दें, लेकिन अगर आपकी रीढ़ ईमानदारी से बनी है, तो कोई ताकत आपको तोड़ नहीं सकती।

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