दुष्ट बेटी ने अपनी माँ को घर से बाहर धकेल दिया। एक ऐसी कहानी जो आपको रुला देगी।

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दुष्ट बेटी ने अपनी माँ को घर से बाहर धकेल दिया – एक मार्मिक कहानी

एक छोटे से खूबसूरत गांव में फातिमा नाम की एक महिला अपने पति अमजद के साथ रहती थी। दोनों का ताल्लुक एक खुशहाल और इज्जतदार घराने से था। अमजद ने अपनी मेहनत और समझदारी से कारोबार और जमीनें बनाई थीं। उनके पास हर सुख-सुविधा थी, लेकिन उनकी जिंदगी में एक कमी थी – औलाद की कमी। शादी को छह साल गुजर चुके थे, मगर अल्लाह ने उन्हें संतान की नेमत से नहीं नवाजा था। फातिमा दिल ही दिल में तड़पती रहती और रोज़ दुआ करती कि उसकी गोद भर जाए।

एक दिन फातिमा ने हिम्मत करके अमजद से कहा, “तुम दूसरी शादी कर लो, शायद इससे तुम्हारी जिंदगी में खुशियां आ जाएं।” अमजद ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “मुझे औलाद चाहिए तो बस तुमसे, वरना मुझे औलाद ही नहीं चाहिए। मेरी सबसे बड़ी दौलत तुम हो।” फातिमा की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन एक मां की ख्वाहिश उसे बेचैन करती रही।

कुछ समय बाद अमजद के भाई फिरोज का एक्सीडेंट में निधन हो गया। उस वक्त फिरोज की पत्नी नजमा गर्भवती थी। अमजद ने भाभी को अपने घर ले आने का फैसला किया। फातिमा ने दिल से नजमा की देखभाल शुरू कर दी। नजमा के साथ उसकी छोटी बहन सलमा भी आई थी। सलमा ने पहली बार अमजद को देखा तो उसके दिल की दुनिया बदल गई। वह जानती थी कि अमजद शादीशुदा है, मगर फिर भी दिल पर काबू न रख सकी। उसने अमजद को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिशें शुरू कर दीं, मगर अमजद फातिमा से बेइंतहा मोहब्बत करता था। एक दिन सलमा ने अपनी मोहब्बत का इजहार किया, मगर अमजद ने उसे सख्ती से मना कर दिया। सलमा के दिल में गुस्से और बदले की आग भड़क उठी।

इसी बीच, नजमा ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, लेकिन उसकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। बच्ची को जन्म देते ही नजमा की मौत हो गई। फातिमा ने उस नवजात बच्ची को सीने से लगाकर कहा, “यह बच्ची आज से मेरी बेटी है।” अमजद ने भी फातिमा की बात का समर्थन किया। सलमा के दिल में यह बात खंजर की तरह चुभ गई। अब वह फातिमा की खुशियों को हर हाल में खत्म करना चाहती थी।

फातिमा ने उस बच्ची का नाम दुआ रखा और उसे अपनी जान से भी ज्यादा चाहने लगी। वक्त गुजरता गया, दुआ 11 साल की हो गई। एक दिन अमजद की फैक्ट्री में आग लग गई, जिससे उनका सारा कारोबार खत्म हो गया। उन्हें अपना बड़ा घर छोड़कर छोटे मकान में रहना पड़ा। फातिमा ने कभी शिकायत नहीं की, बल्कि हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा करती रही।

जैसे-जैसे दुआ बड़ी हुई, सलमा ने उसके दिल में जहर भरना शुरू कर दिया। उसने दुआ से कहा, “फातिमा तुम्हारी असली मां नहीं है, तुम्हारी मां को मारकर उसने तुम्हें अपना लिया।” पहले तो दुआ ने इंकार किया, लेकिन धीरे-धीरे सलमा का जहर असर करने लगा। दुआ के दिल में शक के कांटे उगने लगे।

जब दुआ 15 साल की हुई, तो उसके अंदर सिर्फ एक ही जज़्बा बाकी था – बदला लेने का। उसे यकीन हो गया था कि फातिमा उसकी मां की कातिल है। इसी दौरान अमजद का भी निधन हो गया। फातिमा टूट गई, लेकिन उसने अपना गम छुपाकर दुआ में अपनी जिंदगी तलाश करनी शुरू कर दी।

सलमा दुआ को और भड़काने लगी। एक दिन दुआ ने फातिमा से पूछा, “अम्मी, क्या आप मुझसे बहुत मोहब्बत करती हैं?” फातिमा ने जवाब दिया, “तुम तो मेरी जान हो।” मगर दुआ के दिल में सलमा का जहर पूरी तरह फैल चुका था। अब दुआ जवान हो चुकी थी, मगर दिल में कटाव और नफरत लिए हुई थी। फातिमा की हड्डियां कमजोर पड़ने लगी थीं। सलमा को यकीन था कि उसका बदला दुआ ही लेगी।

एक रात सलमा ने अपने गिरोह से बात की कि अगला शिकार दुआ है। वह लड़कियों को अगवा करके बेचती थी, और अब दुआ को भी बेचने का इरादा बना चुकी थी। इसी दौरान फातिमा की तबीयत बिगड़ गई, एक हादसे में उसकी एक टांग हमेशा के लिए खराब हो गई और वह व्हीलचेयर पर आ गई। घर लौटने के बाद सलमा और दुआ ने उसकी हालत पर खुशी जताई। अब फातिमा व्हीलचेयर पर मजबूर थी, मगर उसे यकीन था कि दुआ उसकी सेवा करेगी। मगर यह उसकी गलतफहमी साबित हुई।

एक दिन फातिमा ने दुआ से पानी मांगा, तो दुआ ने गुस्से में कहा, “मैं आपकी नौकरानी नहीं हूं, खुद जाकर पी लो।” फातिमा की आंखों में आंसू आ गए। दुआ ने कागजात मांगने शुरू कर दिए और फातिमा पर अपनी मां की हत्या का आरोप लगाया। फातिमा समझ नहीं पा रही थी कि उसकी बेटी उसे क्यों इतना बुरा कह रही है। दुआ ने फातिमा को घर से निकाल दिया।

रात को दुआ बेचैन थी, उसे चैन नहीं मिल रहा था। तभी उसने सलमा को फोन पर बात करते सुना कि दुआ को बेचने की तैयारी हो रही है और फातिमा को मारना है। दुआ ने सब सुन लिया और सलमा से सवाल किया। सलमा ने कबूल किया कि उसने ही दुआ को फातिमा के खिलाफ भड़काया था और असलियत में फातिमा ने उसकी मां को नहीं मारा था। दुआ फूट-फूट कर रोने लगी, उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।

सलमा ने दुआ को बेहोश कर दिया और अपने गिरोह के लोगों को बुलाकर उसे अगवा करवा दिया। दुआ को जंगल में ले जाया गया, मगर किस्मत से वह रस्सी खोलकर भाग निकली। कांटों और झाड़ियों में छुपकर उसने अपनी जान बचाई। वहां से निकलकर वह एक गांव पहुंची, जहां उसने अपनी अंगूठी और बालियां बेचकर किराये का घर लिया। दो महीने तक वह वहीं रही, रमजान में रोजे रखे और अल्लाह से मांफी मांगी।

ईद के दिन गांव में सब लोग इकट्ठा हुए। दुआ ने खीर बनाई और मैदान में पहुंची। वहां उसकी नजर एक व्हीलचेयर पर बैठी औरत पर पड़ी – वह फातिमा थी। दुआ दौड़कर उसकी गोद में गिर गई और माफी मांगने लगी। फातिमा ने उसे गले लगा लिया और कहा, “तुम्हारा कोई कसूर नहीं था, तुम मासूम थी।”

फिर दोनों अपने गांव लौटे। गांव वालों को सच बताया गया और सलमा की असलियत सबके सामने आ गई। गांव वालों ने सलमा को बुरी तरह बेइज्जत करके गांव से निकाल दिया। फातिमा ने दुआ को माफ कर दिया, और कुछ समय बाद दुआ की शादी अच्छे घर में कर दी। मगर दुआ शादी के बाद भी अपनी मां के साथ ही रहने लगी। फातिमा अल्लाह का शुक्र अदा करती रही कि मुसीबतों के बादल छट गए।

यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ और नफरत से सिर्फ बर्बादी होती है, जबकि सच्चाई और ममता हमेशा जीतती है।

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