दुष्ट मां वीआईपी कार में घूम रही थी, तभी उसने अचानक अपने बेटे को फुटपाथ पर भीख मांगते देखा।
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दुष्ट मां वीआईपी कार में घूम रही थी, तभी उसने अचानक अपने बेटे को फुटपाथ पर भीख मांगते देखा
दिल्ली की व्यस्त सड़कों पर रोज़ाना हजारों गाड़ियाँ दौड़ती हैं। ट्रैफिक सिग्नल पर रुकते ही कई बच्चे, बूढ़े और महिलाएँ गाड़ियों के आसपास आकर भीख मांगते हैं या छोटी-मोटी चीजें बेचते हैं। उन्हीं में एक मासूम सा लड़का था—राहुल। उसकी उम्र लगभग दस साल थी। उसकी आँखों में गरीबी की चमक थी, लेकिन दिल में उम्मीद थी। वह कभी गुब्बारे बेचता, कभी गुलाब के फूल, कभी पान के पत्ते। उसका चेहरा इतना मासूम था कि हर किसी का दिल छू जाता।
हर रोज़ एक वीआईपी कार उस सिग्नल पर रुकती थी। उसमें बैठी थी मेघला, जो अपने पति सुमन के साथ दफ्तर जाती थी। मेघला की ज़िन्दगी आरामदायक थी, लेकिन उसके दिल में एक खालीपन था जिसे वह खुद भी समझ नहीं पाती थी। जब भी कार सिग्नल पर रुकती, राहुल उसकी ओर भागता और कहता, “आंटी, एक गुब्बारा ले लो।” मेघला मुस्कुराती, कभी-कभी उससे गुब्बारे या फूल खरीद लेती। राहुल की मीठी बातें उसे बहुत भाती थीं। धीरे-धीरे मेघला को राहुल से एक अजीब सा लगाव हो गया।
एक दिन राहुल ने कहा, “आंटी, यह गुब्बारा अपने बेटे को दे देना।” मेघला उस वक्त छह महीने की गर्भवती थी। उसने हँसते हुए कहा, “जब मेरा बेटा दुनिया में आएगा, तब तक यह गुब्बारा फट चुका होगा।” राहुल ने मासूमियत से जवाब दिया, “नहीं आंटी, अगर आप इसे संभाल कर रखेंगी तो यह कभी नहीं फटेगा।” मेघला को उसकी बात बहुत प्यारी लगी। उसने दो गुब्बारे खरीद लिए। सिग्नल हरा हुआ और कार आगे बढ़ गई।
समय बीतता गया, और मेघला की राहुल से दोस्ती गहरी होती गई। जब भी वह सिग्नल पर रुकती, राहुल से कुछ न कुछ खरीदती और चुपके से उसे पैसे भी दे देती। एक दिन वह सिग्नल पर रुकी तो राहुल नजर नहीं आया। उसका दिल बेचैन हो गया। तभी कुछ लड़के दौड़ते हुए आए और बोले, “मैडम, आप राहुल को ढूंढ रही हैं ना? उसका एक्सीडेंट हो गया है।” मेघला के पैरों तले ज़मीन निकल गई। उसने घबराकर पूछा, “क्या हुआ? कहां है वो?” लड़कों ने बताया, “एक गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी। उसकी हालत बहुत खराब है।”
मेघला ने सुमन से कहा, “मैं राहुल को देखने जा रही हूँ।” सुमन ने कहा, “ठीक है, मैं दुकान जा रहा हूँ। जरूरत पड़े तो फोन करना।” मेघला उन लड़कों के साथ संगम विहार पहुंची। वहां एक बूढ़ी औरत बैठी थी, जिसे मेघला पहचानती थी। बूढ़ी औरत रोती हुई बोली, “मैं तुम्हारे बेटे को बचा नहीं पाई।” यह सुनकर मेघला सन्न रह गई। उसने पूछा, “क्या वो मेरा बेटा था?” बूढ़ी औरत ने रोते हुए कहा, “हाँ, यही तुम्हारा बेटा है।”
मेघला फूट-फूट कर रोने लगी। आठ साल बाद उसका बेटा उससे मिला और वह उसे पहचान नहीं सकी। उसने तड़पकर पूछा, “वो कहां है? उसकी हालत कैसी है?” बूढ़ी औरत ने उसे राहुल के पास ले चलने का वादा किया। अस्पताल में राहुल बेहोश था, डॉक्टर ने कहा, “उसके बचने की उम्मीद बहुत कम है।” मेघला ने दुआ की, “हे भगवान, मेरे बेटे को बचा लो।” कई घंटे बीत गए, राहुल आईसीयू में था। सुमन बार-बार फोन कर रहा था, लेकिन मेघला ने जवाब नहीं दिया। वह सिर्फ राहुल के लिए परेशान थी।
तीसरे दिन डॉक्टर ने बताया, “लड़के को होश आ गया है।” मेघला दौड़ती हुई आई और राहुल के पास पहुँची। राहुल ने आँखें खोलीं और कहा, “आंटी, आप आ गईं?” मेघला ने आँसू भरी आँखों से कहा, “बेटा, मैं आंटी नहीं हूँ। मैं तुम्हारी मां हूँ।” राहुल ने उसकी ओर देखा, जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो। डॉक्टर ने कहा, “अब ज्यादा बात मत करें। बच्चा होश में आ गया है।”
कुछ दिन बाद राहुल को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। मेघला उसे संगम विहार ले आई। वहाँ राहुल की दादी ने उसे गले से लगा लिया। मेघला ने सुमन को सच्चाई बताई। सुमन को पहले तो विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब उसने पूरी कहानी सुनी तो उसकी आँखों में भी आँसू आ गए।
अब कहानी थोड़ी पीछे जाती है। जब मेघला 18 साल की थी, वह रंजीत नाम के लड़के से प्यार करती थी। दोनों ने घरवालों की मर्जी के खिलाफ शादी कर ली। एक साल बाद राहुल पैदा हुआ। लेकिन रंजीत का जुड़ाव गलत लोगों से था। एक दिन उसके दुश्मनों ने उसे मार डाला। मेघला ने अपने बेटे को संभालने की कोशिश की, लेकिन उसके माता-पिता ने कहा, “तुम अभी जवान हो, हम तुम्हारी दूसरी शादी कर देंगे, लेकिन शर्त यह है कि तुम राहुल को भूल जाओ।” मजबूरी में मेघला ने अपने बेटे को दादी के हवाले कर दिया।
कुछ समय बाद मेघला की शादी सुमन से हो गई। उसने अपनी पहली जिंदगी का सच छुपा लिया। सुमन को बताया गया कि मेघला कभी शादीशुदा नहीं थी। शादी के बाद मेघला की जिंदगी फिर से ठीक हो गई, लेकिन राहुल की जिंदगी मुश्किलों में थी। दादी ने राहुल को पालने की कोशिश की, लेकिन गरीबी और बीमारी ने उन्हें तोड़ दिया। राहुल ने देखा कि कुछ बच्चे सड़कों पर भीख मांगते हैं, चीजें बेचते हैं। उसने भी यही करना शुरू कर दिया, ताकि दादी की मदद कर सके।
राहुल ने कभी अपनी मां को नहीं देखा था, लेकिन किस्मत ने उसे बार-बार मेघला के पास लाया। मेघला को उसका चेहरा हमेशा जाना-पहचाना लगता था, लेकिन वह सच्चाई नहीं जानती थी। आठ साल बाद एक हादसे ने सबकुछ बदल दिया। जब मेघला ने राहुल को अस्पताल में देखा, उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। वह फूट-फूट कर रोई, “मैं कितनी बदनसीब मां हूँ, जो अपने बेटे को पहचान नहीं सकी।”
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मेघला ने सुमन को सारी सच्चाई बता दी। सुमन ने कहा, “तुमने मुझसे झूठ बोला, लेकिन मैं तुम्हें और तुम्हारे बेटे को छोड़ नहीं सकता।” सुमन, मेघला, राहुल और दादी सब एक साथ रहने लगे। कुछ महीने बाद मेघला को दूसरा बेटा हुआ, फिर एक बेटी भी। अब सबकी जिंदगी खुशहाल थी। राहुल अपने छोटे भाई-बहन से बहुत प्यार करता था।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि मां-बेटे का रिश्ता दुनिया का सबसे गहरा रिश्ता है। हालात चाहे जैसे भी हों, मां अपने बच्चे को कभी नहीं भूल सकती। मजबूरी में अगर जुदाई हो जाए, तो भी दिल में उसकी याद हमेशा रहती है। मेघला ने अपने बेटे को खोया, लेकिन किस्मत ने उसे फिर से मिलाया। उसने अपनी गलती मान ली, और अपने बेटे को गले से लगा लिया।
आज राहुल स्कूल जाता है, पढ़ाई करता है। सुमन ने उसे अपना बेटा मान लिया। दादी की देखरेख में पूरा परिवार खुश है। मेघला ने अपने अतीत को स्वीकार किया, और अपने बेटे को नई जिंदगी दी। अब जब भी मेघला ट्रैफिक सिग्नल पर रुकती है, उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं, लेकिन दिल में सुकून है कि उसका बेटा उसके साथ है।
दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि मजबूरी में लिए गए फैसले कभी-कभी जिंदगी को बहुत बदल देते हैं। मां-बेटे का रिश्ता अनमोल है। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो कमेंट्स में जरूर बताइए।
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