दो बेघर बच्चों को कूड़े के ढेर में 10 करोड़ रुपये मिले! उन्होंने इसे बांटा नहीं…
कहते हैं कि दिल्ली की सड़कों पर अगर आप अपनी आंखें खुली रखें तो आपको हर रोज एक नई कहानी दिखेगी। लेकिन यह कहानी जो आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूं, यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि यह एक सबक है। यह कहानी है उस रात की जब दो बेघर बच्चों के हाथों में ₹10 करोड़ रुपए आए और उन्होंने उसे बांटा नहीं, बल्कि मिलकर कुछ ऐसा किया जिसने पूरे शहर के जमीर को हिलाकर रख दिया।
मुख्य पात्र
14 साल का इरफान और 9 साल की मिली। रिश्ते में भाई-बहन नहीं थे, लेकिन जिंदगी के थपड़ों ने उन्हें एक-दूसरे का साया बना दिया था। उनकी दुनिया उस पुराने बदबूदार निजामुद्दीन पुल के नीचे शुरू होती और वहीं खत्म हो जाती थी। इरफान की आंखें उसकी उम्र से कहीं ज्यादा गहरी थीं। उनमें भूख थी, गुस्सा था, लेकिन एक जिम्मेदारी भी थी। मिली की मुस्कान के पीछे एक खालीपन था, जिसे इरफान कूड़े के ढेर से छांट कर लाए बिस्कुट के पैकेट से भरने की कोशिश करता था। उनके मां-बाप कौन थे? कहां गए? यह ना उन्हें पता था, ना ही इस बेदर्द शहर को कोई परवाह थी।
ठंडी रात
उस रात दिसंबर की सबसे ठंडी रातों में से एक थी। ठंडी हवा हड्डियों को चीर रही थी और पुल के नीचे एक फटे हुए त्रिपाल में लिपटे इरफान और मिली एक-दूसरे की सांसों से गर्मी चुराने की कोशिश कर रहे थे। आधी रात के समय जब शहर गहरी नींद में था, पुल के ऊपर तेज टायरों की चीख और एक जोरदार धमाके की आवाज आई। इरफान ने मिली को कसकर पकड़ लिया। आवाज एक एक्सीडेंट की थी। इरफान छिपकर पुल के किनारे से ऊपर झांका। एक काली शानदार लग्जरी कार खंभे से टकरा कर रुकी थी। उसमें से एक आदमी लंगड़ाता हुआ बाहर निकला। उसने घबराकर इधर-उधर देखा जैसे किसी का पीछा कर रहा हो। फिर उसने कार की डिक्की खोली और एक बहुत बड़ा काला बैग निकाला। वह बैग बहुत भारी लग रहा था।
खौफनाक मंजर
सायरन की आवाज नजदीक आती देख उस आदमी ने बिना देखे वह भारी बैग पुल के नीचे, अंधेरे में, ठीक उस जगह फेंक दिया जहां कचरे का ढेर लगा था। इससे पहले कि पुलिस पहुंचती, वह आदमी अंधेरे में गायब हो गया। सब कुछ शांत हो गया। इरफान का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। वह जानता था कि जो भी उस बैग में था, वह मुसीबत थी। लेकिन मिली ठंड से कांप रही थी। शायद उस बैग में कोई कंबल हो।
खजाना या मुसीबत?
इरफान धीरे-धीरे उस कचरे के ढेर तक गया। बैग का झिप खोला। अंदर कंबल नहीं था। अंदर नोटों की गड्डियां थीं। इतनी कि इरफान ने अपनी पूरी जिंदगी में कागज के इतने टुकड़े एक साथ नहीं देखे थे। यह वो चीज थी जिसके लिए पुल के ऊपर वाली दुनिया जीती थी और पुल के नीचे वाली दुनिया मर जाती थी। इरफान की आंखें उस काले बैग पर जम गईं। उसकी उंगलियां कांप रही थीं। उसने पहले कभी ₹100 के नोट को एक साथ इतना नहीं देखा था। और यहां तो गड्डियों का अंबार था।
संघर्ष का क्षण
“भैया, क्या है इसमें?” मिली ने अपनी नींद भरी आंखों से पूछा। वह ठंड से सिकुड़ी हुई थी। इरफान ने झटके से जब बंद की, “कुछ नहीं। सो जा।” लेकिन उसका दिमाग दौड़ रहा था। एक पल के लिए उसके जेहन में एक गर्म रजाई, जूते और पेट भर खाने की तस्वीर कौंधी। वह मिली को उस गंदे स्वेटर से निकालकर एक नया गर्म कोट दिला सकता था। वह इस पुल के नीचे की जिंदगी से हमेशा के लिए आजाद हो सकते थे। लेकिन तभी उसे उस आदमी का घबराया हुआ चेहरा और पुलिस के सायरन की आवाज याद आई। यह पैसा अच्छा पैसा नहीं था। यह किसी की चोरी थी। किसी का गुनाह था।
ईमानदारी का फैसला
इरफान ने बैग को घसीटा और उसे अपने फटे हुए त्रिपाल के सबसे कोने में कुछ पुराने बोरे के नीचे छिपा दिया। “मिली,” उसने सख्ती से कहा, “तूने कुछ नहीं देखा। समझा?” मिली ने डर कर सिर हिलाया। वह दोबारा सोने की कोशिश करने लगी। लेकिन इरफान की आंखें उस ढेर को घूरती रहीं जहां करोड़ों रुपए दबे थे। वह पूरी रात सो नहीं सका। एक तरफ उस पैसे की गर्मी थी जो उनकी जिंदगी बदल सकती थी और दूसरी तरफ एक अनजाना डर था जो कह रहा था कि यह पैसा उन्हें खत्म कर देगा। उसके दिल में एक अजीब सी जंग छिड़ गई थी।
सुबह का फैसला
सुबह की पहली किरण के साथ जब पक्षी चहचहाने लगे, इरफान ने एक फैसला किया। वह इस पैसे को हाथ नहीं लगाएगा। यह उनका नहीं था। लेकिन वह इसे फेंक भी नहीं सकता था। अगर यह किसी गलत आदमी के हाथ लग गया तो ना जाने क्या होगा। तभी पुल के ऊपर गाड़ियों के रुकने की आवाज आई। इरफान ने फिर से किनारे से झांका। दो खुरदुरे दिखने वाले आदमी जो पुलिस जैसे बिल्कुल नहीं लग रहे थे, पुल के नीचे उस जगह को घूर रहे थे जहां कल रात कार टकराई थी। वे कुछ ढूंढ रहे थे। उनकी नजरें कचरे के ढेर पर थीं।
खतरनाक खोज
“मिल गया क्या लाला?” एक ने दूसरे से पूछा। “नहीं, यहीं कहीं फेंका था बॉस ने। अगर वो माल नहीं मिला तो वो हमें जिंदा गाड़ देगा,” दूसरे ने घबराहट में कहा। इरफान और मिली ने अपनी सांसें रोक लीं। वे आदमी धीरे-धीरे पुल के नीचे उतरने लगे। ठीक उस तरफ जहां इरफान और मिली का छोटा सा ठिकाना था। इरफान ने मिली का मुंह अपने हाथ से दबा दिया। उनकी अपनी सांसें गले में अटकी थीं। वे दोनों बोरी और त्रिपाल के उस ढेर में ऐसे समा गए जैसे वे खुद कचरे का हिस्सा हों।
सुरक्षा की तलाश
बाहर उन दो आदमियों के जूतों की आहट पास आ रही थी। “यहां तो कुछ नहीं है। सिर्फ बदबू और ये भिखमंगे हैं,” एक आदमी ने घृणा से कहा और पास पड़े एक खाली टिन के डिब्बे को लात मारी। वह डिब्बा लुढ़कता हुआ ठीक इरफान के छिपने की जगह के पास आकर रुका। “ढूंढ,” दूसरे ने लगभग चीखते हुए कहा। “बॉस ने कहा था कि बैग काला था और बहुत भारी था।”
पुलिस की दखल
एक आदमी का पैर इरफान के त्रिपाल से बस कुछ इंच दूर था। वह हर चीज को लात मार रहा था। हर बोरी को पलट रहा था। इरफान को लगा कि बस अब सब खत्म। तभी ऊपर पुल पर एक पुलिस वैन के लाउडस्पीकर की आवाज गूंजी, “ऐ पुल के नीचे क्या कर रहे हो? चलो निकलो यहां से।” दोनों आदमी एक पल के लिए ठिटके। “पुलिस एक फुसफुसया। चल यहां से निकलते हैं। रात को वापस आएंगे। ये भीख मांगने वाले कहीं नहीं जा रहे। अगर पैसा इनके पास हुआ तो सुबह तक ये राजा बन चुके होंगे। हम इन्हें रात को पकड़ेंगे।”
खतरे का सामना
दोनों आदमी जल्दी से वापस ऊपर चढ़ गए। कुछ ही पलों में उनकी गाड़ी के स्टार्ट होने और तेजी से जाने की आवाज आई। इरफान ने अपने कांपते हाथ से मिली के मुंह को छोड़ा। मिली की आंखों में आंसू थे, लेकिन आवाज नहीं निकल रही थी। वह डर से सुन्न हो गई थी। इरफान ने उसे कसकर गले लगा लिया। वह जानता था कि यह खतरा टला नहीं है। बस कुछ देर के लिए रुका है। वे लोग रात को वापस आएंगे। और जब वे आएंगे तो वे इस पैसे के लिए उनकी जान लेने से भी नहीं हिचकेंगे।
नई योजना
अब यह पैसा सिर्फ पैसा नहीं था। यह उनकी मौत का फरमान बन गया था। इरफान का दिमाग किसी तूफान की तरह चल रहा था। वह यहां नहीं रुक सकते। लेकिन वे कहां जा सकते थे? इस शहर में उनके लिए कोई दूसरी जगह नहीं थी। वह उस बैग को देख रहा था। यह सब तेरी वजह से हुआ। उसने मन ही मन उस बैग को कोसा। फिर उसकी नजर मिली की नंगे पैरों पर पड़ी जो ठंडी जमीन पर रहने से नीले पड़ गए थे। उसकी नजर अपनी फटी हुई शर्ट पर गई।
जिंदगी की नई शुरुआत
इस पैसे ने उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया था। लेकिन क्या यह उन्हें जिंदगी भी दे सकता था? नहीं। इरफान ने फैसला किया। वह इस पैसे को नहीं छुएगा। यह गंदा है। लेकिन वह इसे उन गुंडों के हाथ भी वापस नहीं जाने दे सकता। “हम यहां से जा रहे हैं।” “मिली?” उसने सहमी हुई आवाज में पूछा। “मुझे नहीं पता। लेकिन यहां नहीं।” इरफान ने उस भारी बैग को देखा। ₹10 करोड़ यह इतना था कि वह एक छोटा-मोटा राज्य खरीद सकता था। लेकिन इस वक्त यह उसके लिए एक लाश को ढोने जैसा था।
भागने का निर्णय
वह इसे छोड़ नहीं सकता था और रख भी नहीं सकता था। उसने मिली का हाथ पकड़ा। बैग को अपनी पीठ पर लादने की कोशिश की। वह बहुत भारी था। उसने बैग को जमीन पर घसीटना शुरू किया। “चल जल्दी,” उसने कहा और वे दोनों पुल के नीचे से निकलकर शहर की भीड़भरी गुमनाम गलियों की तरफ बढ़ चले। उन्हें नहीं पता था कि वे कहां जा रहे हैं। बस वे उस खतरे से दूर भाग रहे थे।
दिल्ली की सुबह
दिल्ली की सुबह का मतलब होता है रफ्तार। लोग ऑफिस भाग रहे थे। बसें धुआं उगल रही थीं और फुटपाथ पर जिंदगी अपनी जगह बनाने के लिए लड़ रही थी। और इस लड़ती हुई भीड़ के बीच 14 साल का इरफान अपनी 9 साल की साथी मिली के साथ एक ₹10 करोड़ से भरे बैग को घसीट रहा था। यह नजारा किसी फिल्म के सीन जैसा बेतुका था। दो बच्चे जिनके कपड़े धूल और मैल से सने थे, जिनके बाल उलझे हुए थे, वे एक महंगा दिखने वाला भारी ट्रैवल बैग घसीट रहे थे।
सामाजिक भेदभाव
लोग उन्हें देख रहे थे। कुछ घूर रहे थे। कुछ हंस रहे थे। एक सब्जी वाले ने आवाज लगाई, “ए लड़के, कहां से चुरा के लाया यह बैग? बड़ा माल लगता है।” इरफान ने उसकी बात अनसुनी कर दी। लेकिन उसका दिल धक से रह गया। वह जानता था कि वे किसी की भी नजर में आ सकते हैं। बैग बहुत भारी था। हर 10 कदम पर वह हाफने लगता। “भैया, रुक जाओ। मुझे भूख लगी है,” मिली ने रुआंसी आवाज में कहा। वह रात से भूखी थी और डर ने उसकी बची खुची ताकत भी छीन ली थी।
भोजन की तलाश
इरफान रुक गया। उसने बैग को देखा। ₹10 करोड़। वह अभी इसी वक्त सामने वाले होटल से उनके लिए पूरी सब्जी खरीद सकता था। वह मिली को वह गुलाबी फ्रॉक दिला सकता था जिसे वह हर रोज दुकान के शीशे से देखती थी। एक पल के लिए सिर्फ एक पल के लिए उसका हाथ बैग की जिप की तरफ बढ़ा और फिर रुक गया। “नहीं, यह पैसा जहर है। इसे छूते ही वह या तो उन गुंडों के हाथों मारे जाते या पुलिस उन्हें चोर समझकर पकड़ लेती।”

मौका मिलना
उसने अपनी फटी हुई पट की जेब में हाथ डाला। कल की कबाड़ बिकने के ₹7 उसके पास सिर्फ ₹7 थे। “यहीं रुक,” उसने मिली को एक दुकान के ओट में बिठाया। “हिलना मत।” वह सड़क पार करके उस चाय की टपरी पर गया, जहां से पुलिस वाले भी उसे रोज भगाते थे। उसने ₹7 देकर पारले जी का एक छोटा पैकेट खरीदा। जब वह वापस आया तो मिली की आंखों में चमक आ गई। इरफान ने बैग को एक गली के कोने में धकेला और वे दोनों ₹10 करोड़ के बैग पर टिक कर ₹5 के बिस्कुट खाने लगे।
नया रास्ता
“भैया, हम अब पुल पर वापस नहीं जाएंगे,” मिली ने बिस्कुट चबाते हुए पूछा। “नहीं,” इरफान ने कहा, उसकी नजरें सड़क पर थीं। “वे लोग हमें ढूंढ रहे होंगे।” “तो हम कहां जाएंगे?” इरफान के पास कोई जवाब नहीं था। वे शहर में भटकते रहे। एक गली से दूसरी गली। वे किसी ऐसी जगह की तलाश में थे जहां वे और यह बैग दोनों छिप सकें।
खतरनाक इमारत
आखिरकार एक तंग गली के आखिर में उन्हें एक पुरानी टूटी हुई इमारत दिखी। एक खंडहर जिसे मनसिपालिटी ने खतरनाक घोषित कर दिया था। कोई भी वहां नहीं जाता था। “हम यहां रहेंगे,” इरफान ने हाफते हुए कहा और बैग को खंडहर के अंधेरे तहखाने में धकेल दिया। यहां ना ठंड कम थी ना ही बदबू। लेकिन यहां वे लोगों की नजरों से दूर थे। वे थके-हारे उस बैग पर सिर रखकर लेट गए।
सच्चाई का सामना
“भैया,” मिली ने फिर पूछा, “इस बैग में ऐसा क्या है कि वो लोग हमें मार डालेंगे?” इरफान ने गहरी सांस ली। “इसमें वह चीज है जो पुल के ऊपर वालों को पुल के नीचे वालों से नफरत करना सिखाती है। इसमें पैसा है, मिली, बहुत सारा पैसा।” और जैसे ही उसने यह कहा, खंडहर के बाहर उन्हें किसी के रुकने की आहट सुनाई दी। वही खुरदुरी आवाज जो उन्होंने सुबह पुल के नीचे सुनी थी। “कहां गए होंगे वह हरामजादे? जमीन निगल गई या आसमान खा गया।”
खतरनाक स्थिति
इरफान ने एक झटके में मिली को अपनी तरफ खींचा और उसे खंडहर के और भी गहरे अंधेरे हिस्से में तहखाने की सीढ़ियों के नीचे धकेल दिया। यहां हवा में सीलन, चूहों की बदबू और मौत जैसी खामोशी थी। उसने मिली के मुंह पर अपना मैला हाथ रख दिया और दोनों अपनी सांसें रोककर टूटी हुई ईंटों और मकड़ी के जालों के बीच छिप गए। बाहर उन आदमियों की आवाजें बहुत साफ आ रही थीं। “कहां हो सकते हैं वह चूहे? जरूर इसी खटारा इमारत में छिपे होंगे। चल अंदर देखते हैं। अगर माल मिल गया तो ठीक। वरना दोनों की गर्दन मरोड़ कर इसी मलबे में दबा देंगे।”
परिस्थितियों का सामना
इरफान का दिल उसके सीने में नहीं बल्कि उसके गले में धड़क रहा था। उसने मिली को देखा जो डर के मारे पत्थर बन गई थी। दोनों आदमियों के भारी कदमों की आवाज खंडहर के मुख्य हिस्से में गूंजने लगी। वे हर चीज को लात मार रहे थे। पुराने डिब्बों को पलट रहे थे। एक की टॉर्च की तेज रोशनी उस अंधेरे तहखाने के मुहाने तक आई और जमीन पर पड़े ₹10 करोड़ के बैग से बस कुछ इंच की दूरी से गुजर गई, जिसे इरफान ने जल्दी में एक टूटे दरवाजे के पल्ले के नीचे छिपा दिया था।
सुरक्षा की उम्मीद
“यहां नीचे कुछ नहीं है,” एक ने कहा। “इतनी बदबू है कि कोई जानवर भी ना रहे। चल ऊपर देखते हैं।” इरफान ने अपनी आंखें जोर से बंद कर लीं। वह हर कदम की आहट गिन रहा था। उन आदमियों ने पहली मंजिल पर चढ़ना शुरू किया। वे चिल्ला रहे थे, गालियां दे रहे थे और शायद लकड़ी के तख्तों को तोड़ रहे थे। यह सब लगभग 15 मिनट तक चलता रहा। इरफान और मिली हिलने की हिम्मत भी नहीं कर रहे थे। फिर आवाजें धीमी पड़ने लगीं।
खतरा टला
“यहां भी नहीं है। जरूर रेलवे स्टेशन की तरफ भागे होंगे। वहां की भीड़ में छिपना आसान है। चल लाला को फोन कर कि वह स्टेशन पर अपने आदमी भेजें।” कुछ पलों की खामोशी के बाद बाहर एक गाड़ी के तेजी से जाने की आवाज आई। वे चले गए थे। इरफान ने अपना हाथ हटाया। मिली ने एक दबी हुई सिसकी ली और उसके गले लगकर रोने लगी। इरफान ने उसे चुप कराने की कोशिश नहीं की। वह खुद कांप रहा था। वे बच गए थे। लेकिन सिर्फ कुछ देर के लिए। वह जानता था कि वे इस खंडहर में ज्यादा देर नहीं रुक सकते और वे स्टेशन भी नहीं जा सकते। वे इस शहर में हर तरफ से घिर चुके थे।
नई दिशा
वह वापस उस बैग के पास गया। इस मुसीबत की जड़। उसने गुस्से में बैग को लात मारने के लिए पैर उठाया लेकिन रुक गया। उसे अब एक नई बात समझ आई थी। वे आदमी सिर्फ पैसे के लिए नहीं आए थे। वे उन्हें, यानी गवाहों को भी खत्म करने आए थे। अब यह पैसा सिर्फ कोई चोरी का माल नहीं था। यह सबूत था और वह और मिली गवाह थे। इरफान ने जिप खोली। उसने गड्डियों के नीचे हाथ डाला। शायद इसमें कोई सुराग हो कि यह किसका है।
खजाना या खतरा?
उसका हाथ किसी सख्त चीज से टकराया। उसने उसे बाहर निकाला। यह एक छोटी काली डायरी थी और उसके साथ एक पेन ड्राइव। इरफान को पढ़ना-लिखना नहीं आता था। लेकिन उसने डायरी खोली। उसमें कुछ नाम लिखे थे और उनके आगे नंबर लिखे थे। बहुत सारे नंबर और कुछ पन्नों पर हां या नहीं की जगह टिक मार्क या क्रॉस के निशान बने थे। इरफान को नहीं पता था कि यह क्या है। लेकिन उसका छोटा सा दिमाग यह समझ गया था कि यह ₹10 करोड़ के नोटों से भी ज्यादा कीमती चीज है। यह किसी का हिसाब-किताब था। यह उन गुंडों के बॉस का कच्चा चिट्ठा था।
नई योजना का जन्म
अचानक इरफान के ज़हन में एक ख्याल कौंधा। एक ऐसा ख्याल जिसने उसके डर को एक अजीब सी हिम्मत में बदल दिया। “मिली,” उसने फुसफुसाते हुए कहा, “भैया, मुझे डर लग रहा है।” “डर मत,” इरफान ने उस काली डायरी को मुट्ठी में भीते हुए कहा। “हम यह पैसा खर्च नहीं करेंगे और हम इसे वापस भी नहीं करेंगे। हम इन पैसों से कुछ ऐसा करेंगे कि उन लोगों को पता चले कि पुल के नीचे रहने वाले सिर्फ कीड़े-मकोड़े नहीं होते।” उसने बैग की जिप बंद की। अब उसकी आंखों में भूख या डर नहीं था। उसकी आंखों में एक मकसद था।
नए जीवन की शुरुआत
रात, खंडहर और ₹10 करोड़। इस दुनिया में शायद ही कोई और होगा जिसके पास इतना सब कुछ हो और फिर भी उसके पास कुछ भी ना हो। मिली डर और थकान से चूर इरफान की गोद में सिर रखकर सो चुकी थी। लेकिन इरफान की आंखें खुली थीं। वे उस अंधेरे को घूर रही थीं जिसमें ₹10 करोड़ की शक्ल में मौत छिपी बैठी थी। वह उन गुंडों की बात को याद कर रहा था। “अगर माल नहीं मिला तो वह हमें जिंदा गाड़ देगा।” इसका मतलब जो आदमी उस रात कार से उतरा था, वह भी किसी बॉस से डरता था और यह बैग, यह डायरी, यह पेन ड्राइव, यह सब उस बॉस का था।
खतरनाक रैकेट का सामना
इरफान को यह समझ आ गया था कि वह सिर्फ कुछ चोरों से नहीं बल्कि किसी बहुत बड़े और खतरनाक रैकेट से टकरा गया था। वह जानता था कि वे इस खंडहर में हमेशा के लिए नहीं छिप सकते। वे गुंडे वापस आएंगे। वे शहर का चप्पा-चप्पा छान मारेंगे। वह उस काली डायरी को अपनी उंगलियों से टटोल रहा था। वह अनपढ़ था। वह नहीं जानता था कि इसमें क्या लिखा है। यह नंबर क्या थे? यह नाम किसके थे? और यह पेन ड्राइव इसे कहां देखते हैं? उसे मदद की जरूरत थी। एक ऐसे इंसान की जो इन लकीरों और धब्बों का मतलब समझ सके।
अवस्थी जी का सहारा
तभी उसके ज़हन में एक धुंधला सा चेहरा उभरा। अवस्थी जी, जो जामा मस्जिद की सीढ़ियों के पास एक छोटी सी किताबों की पुरानी दुकान चलाते थे। वह एक बूढ़े कमजोर से दिखने वाले आदमी थे, जिनकी दुनिया उन पीली पड़ चुकी किताबों में थी। इरफान उन्हें जानता था क्योंकि वह कभी-कभी उनकी दुकान के बाहर से रद्दी अखबार चुराकर बेचता था। एक बार अवस्थी जी ने उसे पकड़ लिया था। लेकिन उसे मारने या पुलिस को बुलाने के बजाय उन्होंने उसे एक किताब दी और कहा, “इसमें जो ताकत है वह तेरे चुराए हुए अखबारों से हजार गुना ज्यादा है। जिस दिन पढ़ना सीख जाएगा, उस दिन चोरी करना भूल जाएगा।”
विश्वास का रिश्ता
इरफान ने वह किताब नहीं पढ़ी लेकिन वह अवस्थी जी का चेहरा नहीं भूला। वह अकेला आदमी था जिसने इरफान को एक चोर या भिखारी नहीं बल्कि एक इंसान की तरह देखा था। इरफान ने फैसला कर लिया। वह अवस्थी जी के पास जाएगा। लेकिन 10 करोड़ के बैग के साथ नहीं। यह बैग एक जाल था। यह जितना भारी था, उतना ही खतरनाक। इरफान को एहसास हुआ कि असली ताकत उन नोटों में नहीं बल्कि उस छोटी सी डायरी और पेन ड्राइव में थी।
नए साहस का संचार
“मिली,” उसने सोती हुई मिली के बालों को सहलाया। “अब हमें लड़ना होगा।” उसने बैग को तहखाने के सबसे अंधेरे कोने में मलबे और टूटी ईंटों के एक बड़े ढेर के नीचे दबा दिया। उसने उसे इतनी अच्छी तरह छिपाया कि अगर कोई खास तौर पर उसे ढूंढने ना आए तो उसे वह कभी ना मिले। फिर उसने वह काली डायरी और पेन ड्राइव अपनी शर्ट के अंदर पेट पर बांध ली।
सड़क पर नया सफर
“उठ, मिली, चल,” उसने मिली को जगाया। “हमें सुबह होने से पहले निकलना है।” वे दोनों उस खंडहर से बाहर निकले। सड़क पर अभी भी सन्नाटा था। ₹10 करोड़ पीछे छूट गए थे। लेकिन इरफान को लग रहा था कि वह पहली बार सच में अमीर हुआ है। सुबह की अजान के साथ दिल्ली ने अपनी आंखें मलनी शुरू कर दी थीं। इरफान और मिली दो नन्हे सायों की तरह शहर की तंग गलियों से गुजर रहे थे। वे अब उस खंडहर से बहुत दूर थे। लेकिन खतरा अभी भी उनके साथ चल रहा था। हर पुलिस की गाड़ी, हर घूरती हुई नजर इरफान के दिल की धड़कन बढ़ा देती।
अवस्थी जी की दुकान
घंटों पैदल चलने के बाद जब सूरज सिर पर चढ़ने लगा था, वे जामा मस्जिद की सीढ़ियों के पास पहुंचे। अवस्थी जी की दुकान वहीं थी। एक छोटी सी किताबों की महक से भरी दुनिया। अवस्थी जी अपने चश्मे के ऊपर से अखबार पढ़ रहे थे। उन्होंने इरफान को देखा। “अरे, तू आज फिर अखबार नहीं लाया?” इरफान ने हाफते हुए कहा, “आज अखबार नहीं, यह देखिए।” उसने अपनी शर्ट के अंदर से वो काली डायरी और पेन ड्राइव निकाली और कांपते हाथों से बूढ़े अवस्थी जी के सामने रख दी।
सच्चाई का खुलासा
“मिली,” अवस्थी जी के पैरों से चिपक कर खड़ी हो गई। जैसे उसे वहां कोई अपना मिल गया हो। अवस्थी जी ने हैरानी से डायरी उठाई। “यह क्या है बेटा?” “इसमें हिसाब है बाबा उन लोगों का हिसाब जो हमें मारना चाहते हैं। हमारे पास बहुत पैसा था। 10 करोड़ हमने उसे छिपा दिया लेकिन ये हमें मिला। आप इसे पढ़ सकते हैं।”
खतरनाक सच
अवस्थी जी ने अपना चश्मा ठीक किया और डायरी खोली। जैसे-जैसे वो पन्ने पलटते गए, उनके माथे की लकीरें गहरी होती गईं। उनके हाथ कांपने लगे। यह सिर्फ एक हिसाब नहीं था। यह शहर के जमीर का कच्चा चिट्ठा था। इसमें शहर के सबसे बड़े बिल्डर राणा कंस्ट्रक्शन के नाम थे। उसके साथ कुछ बड़े पुलिस अफसरों और नेताओं के नाम थे। यह डायरी उन जमीनों का हिसाब थी जो गरीबों से छीनकर उनकी बस्तियों को जलाकर विकास के नाम पर बेची गई थी। और अब वो 10 करोड़ शायद किसी सौदे की कीमत थी।
सच्चाई का सामना
अवस्थी जी ने पेन ड्राइव को देखा। “इसमें जरूर वह सारे सबूत होंगे।” वह समझ गए कि यह दो बच्चे किस आग से खेल रहे थे। एक पल के लिए उन्होंने सोचा कि इस डायरी को जला दें और बच्चों को भगा दें। लेकिन फिर उन्होंने इरफान की आंखों में देखा। उन आंखों में डर नहीं था। एक सवाल था। अवस्थी जी ने एक फैसला किया। उन्होंने इरफान के सिर पर हाथ रखा। “तुमने आज इस शहर को बचा लिया, बेटा।”
सच्चाई की विजय
उन्होंने फोन उठाया। लेकिन पुलिस को नहीं। उन्होंने शहर के सबसे पुराने और सबसे ईमानदार रिटायर्ड जज जस्टिस सिन्हा को फोन किया। अगले कुछ घंटे किसी तूफान की तरह थे। जज सिन्हा आए। उनके साथ एक ईमानदार मीडिया टीम आई। डायरी और पेन ड्राइव सबूत बने। जब वह खबर बाहर निकली तो शहर हिल गया। राणा कंस्ट्रक्शन का पूरा एंपायर ढह गया। भ्रष्ट अफसरों और नेताओं पर छापे पड़े। वो गुंडे जो इरफान और मिली को ढूंढ रहे थे, सलाखों के पीछे पहुंच गए। पुलिस ने खंडहर से वह ₹1 करोड़ बरामद कर लिए।
नई शुरुआत
कुछ हफ्तों बाद, अवस्थी जी की दुकान पर इरफान और मिली अब साफ कपड़ों में थे। जज सिन्हा और शहर के कुछ भले लोगों ने मिलकर एक ट्रस्ट बनाया था, जिसने अवस्थी जी के साथ मिलकर उन जैसे बेघर बच्चों के लिए एक छोटा सा घर शुरू किया था। इरफान अवस्थी जी के पास बैठा था। वही किताब हाथ में थी जो उन्होंने उसे पहली बार दी थी। वह अब हर्फ जोड़ना सीख रहा था। मिली पास में एक गुलाबी फ्रॉक पहने एक तस्वीर में रंग भर रही थी।
सच्चाई की पहचान
इरफान ने अवस्थी जी से पूछा, “बाबा, वो ₹1 करोड़ का क्या हुआ?” अवस्थी जी मुस्कुराए। “वो सरकार के पास है, ना बेटा? वो गंदे पैसे थे। लेकिन तुमने उन गंदे पैसों को हाथ ना लगाकर इस शहर की सबसे बड़ी सफाई कर दी। तुमने पैसा नहीं, तुमने इज्जत कमाई है।” इरफान ने बाहर सड़क पर भागती दुनिया को देखा। आज पहली बार उसे वह पुल, वह खंडहर और वह अंधेरा एक सपना लग रहा था।
निष्कर्ष
इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि सच्चाई और ईमानदारी हमेशा जीतती है। इरफान और मिली ने न केवल अपनी जान बचाई, बल्कि उन्होंने एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश भी किया। उनकी हिम्मत और एकता ने उन्हें एक नई जिंदगी दी और साबित किया कि सच्चाई की ताकत हर मुसीबत से बड़ी होती है।
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