धर्मेंद्र के बाद हेमा के घर जाकर सनी देओल ने क्या किया, आप भी देखें

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धर्मेंद्र के बाद हेमा के घर जाकर सनी देओल ने क्या किया, आप भी देखें

परिवार की जटिलता और बॉलीवुड की असली कहानी

बॉलीवुड में जितनी मोहब्बत की कहानियां पर्दे पर दिखाई जाती हैं, उतना ही दर्द उसके पीछे छिपा होता है। धर्मेंद्र, हेमा मालिनी और सनी देओल का परिवार भी उन्हीं जटिल कहानियों में से एक है, जिसमें प्यार, आंसू, गुस्सा और इंसानियत के कई रंग हैं। यह कहानी सिर्फ एक अभिनेता या सुपरस्टार की नहीं, बल्कि एक पिता, एक बेटे और दो परिवारों के बीच बसी संवेदनाओं, संघर्षों और अंत में इंसानियत की है।

धर्मेंद्र की दूसरी शादी—एक रात जिसने सब बदल दिया

साल था 1980। धर्मेंद्र, बॉलीवुड के ही-मैन, लाखों दिलों की धड़कन, लेकिन उनके लिए सबसे कीमती थीं उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर और उनके चार बच्चे—सनी, बॉबी और दो बेटियां। धर्मेंद्र ने 1955 में प्रकाश कौर से शादी की थी, और 1960 में फिल्मी करियर शुरू किया। लेकिन 1980 में धर्मेंद्र ने हेमा मालिनी से शादी कर ली, जिसके लिए उन्हें मुस्लिम धर्म अपनाना पड़ा क्योंकि हिंदू कानून के तहत दूसरी शादी संभव नहीं थी। हेमा मालिनी भी धर्मेंद्र के साथ इस नए रिश्ते में शामिल हो गईं।

यह शादी उनके पहले परिवार के लिए सदमे जैसी थी। प्रकाश कौर हर रात आंसू बहाती थीं, और सनी देओल रोज अपनी मां का दर्द देखता था। एक बेटे के लिए सबसे दुखद बात यही होती है कि उसकी मां सामने रो रही हो। सनी देओल के अंदर गुस्से की आग थी, लेकिन साथ ही दिल बहुत नरम था।

वह रात—अफवाहें और सच्चाई

मीडिया और बॉलीवुड में अफवाह फैली कि सनी देओल गुस्से में हेमा मालिनी के बंगले पहुंचे, हाथ में चाकू लेकर। इस खबर ने पूरे इंडस्ट्री को हिलाकर रख दिया। लेकिन क्या यह सच था? नहीं, यह पूरी तरह से झूठ था। उस वक्त न्यूज़ मीडिया में सिर्फ धर्मेंद्र की दूसरी शादी की चर्चा थी और परिवार में मचे तहलके को सनसनी बनाने के लिए यह अफवाह उड़ाई गई थी।

सनी की मां प्रकाश कौर ने पहली बार मीडिया के सामने आकर कहा—“मेरा बेटा कोई अपराधी नहीं है। वह सिर्फ इमोशनल है। मैंने अपने बेटे को यही सिखाया है कि हर औरत की इज्जत करो।” उन्होंने साफ किया कि सनी देओल न तो चाकू लेकर गए थे, न ही किसी को चोट पहुंचाने की मंशा थी। वह टूटे दिल के साथ गए थे, समझाने के लिए। हेमा मालिनी ने भी कभी पहले परिवार में हस्तक्षेप नहीं किया। उन्होंने धर्मेंद्र से शादी के बाद अपनी अलग जिंदगी जी, जमीन-जायदाद या परिवार से कोई मांग नहीं की।

धर्मेंद्र—दो परिवार, दो जिम्मेदारियां

धर्मेंद्र ने दोनों परिवारों को संभालने की कोशिश की। दिन में पहले परिवार के साथ रहते, रात में हेमा मालिनी के साथ। प्रकाश कौर ने भी समय के साथ समझौता कर लिया। उन्होंने हेमा मालिनी की सुंदरता की तारीफ की और कहा कि धर्मेंद्र अच्छे पति भले न बन पाए हों, लेकिन अच्छे पिता जरूर बने हैं। हेमा मालिनी भी कभी पहले परिवार में हस्तक्षेप नहीं करती थीं।

सनी देओल—गुस्से वाला बेटा या नरम दिल इंसान?

लोग मानते हैं कि सनी देओल बहुत गुस्सैल हैं। लेकिन असलियत यह है कि वह बहुत नरम दिल के इंसान हैं। उन्होंने अपने पिता के फैसलों को समझा, मां के दर्द को भी महसूस किया। लेकिन कभी किसी पर हाथ नहीं उठाया। वह हमेशा परिवार के सम्मान को सबसे ऊपर रखते हैं।

हेमा मालिनी का एक्सीडेंट—इंसानियत की परीक्षा

1990 के दशक में हेमा मालिनी का भयानक एक्सीडेंट हुआ। चेहरा लहूलुहान, आंख के पास गहरा कट। उस वक्त धर्मेंद्र मुंबई में नहीं थे। पूरे परिवार में अफरातफरी थी। सबकी नजरें सनी देओल पर थीं—क्या वे अनदेखा करेंगे? लेकिन सनी देओल तुरंत अस्पताल पहुंचे, डॉक्टरों से बात की, स्पेशलिस्ट बुलवाए, प्लास्टिक सर्जन का इंतजाम किया ताकि हेमा मालिनी के चेहरे पर निशान न रह जाए। हेमा मालिनी ने अपनी किताब “बियॉन्ड द ड्रीम गर्ल” में लिखा—“जब मैंने सनी को वहां खड़ा देखा, तो पहली बार लगा कि मेरे पास भी कोई अपना है। वह तब तक अस्पताल से नहीं गया जब तक मैं ठीक नहीं हो गई।”

रिश्तों की बर्फ पिघलना शुरू

एक दौर था जब सनी और हेमा मालिनी आमने-सामने आते तो खामोशी रहती थी। लेकिन समय के साथ रिश्तों में बर्फ पिघलनी शुरू हुई। हेमा मालिनी ने भी सनी को अपने बेटे जैसा मानना शुरू किया। “गदर 2” के रिलीज़ पर हेमा मालिनी ने खुलेआम कहा—“सनी मेरा बेटा है।” ईशा देओल ने भी अपने भाइयों के लिए प्राइवेट स्क्रीनिंग रखी। दोनों परिवारों के बीच धीरे-धीरे मरहम लगना शुरू हुआ।

देओल परिवार—समझौते और इंसानियत की मिसाल

देओल परिवार की कहानी सिर्फ बॉलीवुड की नहीं, बल्कि हर भारतीय परिवार की कहानी है। जहां रिश्ते जटिल होते हैं, भावनाएं गहरी होती हैं और समय के साथ घाव भरना सीखना पड़ता है। सनी देओल ने साबित किया कि इंसानियत नफरत से बड़ी होती है। उन्होंने अपनी मां के दर्द को समझा, अपने पिता के दूसरे परिवार को भी इज्जत दी। यही सच्ची मर्दानगी है, यही असली मजबूती। जब भी परिवार पर तूफान आया, वही ढाई किलो वाला हाथ दीवार बनकर खड़ा हुआ।

धर्मेंद्र की विदाई—फिर वही दीवार

धर्मेंद्र के निधन पर उनकी प्रेयर मीट में पूरा बॉलीवुड मौजूद था। लेकिन हेमा मालिनी, ईशा देओल, आहना देओल—तीनों गायब थीं। उन्हें बुलाया ही नहीं गया। न बुलावा, न सूचना, न सम्मान। यह सिर्फ नहीं बुलाना नहीं था, यह एक स्पष्ट संदेश था—“तुम हमारे परिवार का हिस्सा नहीं हो।” सोचिए, एक पत्नी जिसने अपनी जिंदगी का सबसे सुंदर और कठिन हिस्सा धर्मेंद्र के साथ बिताया, उसी आदमी की विदाई में उसके लिए कोई जगह नहीं थी। दो बेटियां जिन्होंने अपने पिता को फिल्मों और टीवी पर देखा, लेकिन उन्हें अंतिम अलविदा कहने का हक भी नहीं मिला।

दुनिया कहती रही धर्मेंद्र एक महान इंसान थे, लेकिन उसी इंसान की अपनी तीन स्त्रियां उनके आखिरी सफर में शामिल नहीं हो पाईं। इससे बड़ा अन्याय क्या होगा? क्या किसी की अंतिम यात्रा भी पारिवारिक खटास का हिस्सा बन जाती है? क्या एक पत्नी को इतना हक भी नहीं कि वह अपने पति को अंतिम प्रणाम दे सके?

निष्कर्ष—क्या सनी देओल ने सही किया?

इस पूरी कहानी में सबसे बड़ी सीख यही है—समय हर जख्म को भरता है। सनी देओल चाहें तो जिंदगी भर नफरत को ईंधन बनाकर जलाते रह सकते थे, लेकिन उन्होंने इंसानियत को चुना। उन्होंने अपनी मां के दर्द को समझा, लेकिन अपने पिता के दूसरे परिवार को भी इज्जत दी। यही सच्ची मर्दानगी है, यही असली मजबूती। देओल परिवार की कहानी हर भारतीय परिवार में कहीं न कहीं दोहराई जाती है।

आपका क्या मानना है?

क्या सनी देओल ने सही किया? क्या इंसानियत हर जख्म पर मरहम बन सकती है? अपनी राय कमेंट में ज़रूर लिखें। बॉलीवुड की यह कहानी हमें सिखाती है कि परिवार, सम्मान और इंसानियत से बड़ा कोई रिश्ता नहीं। समय हर जख्म को भरता है, और सच्ची मजबूती वही है जो दिलों को जोड़ती है।

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