पति ने कहा – “निकल जा बदचलन कहीं की”…

क्या आपने कभी सोचा है कि जिस इंसान के लिए आपने अपना सब कुछ त्याग दिया हो, वही आपको मनहूस कहकर दरवाजे से बाहर निकाल दे? यह कहानी है रागिनी की। एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की, जिसने अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए पढ़ाई में अपना पूरा जीवन लगा दिया। रागिनी की शादी अभिनव से 5 साल पहले हुई थी। उसके पिता, राजेंद्र प्रसाद, एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे और माता, सुधा देवी, एक गृहिणी। रागिनी उनकी इकलौती बेटी थी, और उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर उसे एमबीए करवाया था।

रागिनी को एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई, जहां उसकी तनख्वाह भी अच्छी थी। लेकिन जैसे ही उसकी उम्र बढ़ी, घर में शादी की चर्चा शुरू हो गई। अभिनव से रागिनी की मुलाकात एक मैट्रिमोनियल साइट के जरिए हुई थी। अभिनव एक निजी कंपनी में मैनेजर था, देखने में आकर्षक और सभ्य लगता था। उसके बोलने का ढंग, विनम्रता, और सुलझी हुई बातें रागिनी और उसके परिवार को बहुत पसंद आईं। दोनों परिवारों ने मिलकर शादी तय कर दी।

भाग 2: सुखद शुरुआत

शादी की रस्में धूमधाम से हुईं। रागिनी के माता-पिता ने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च करके बेटी की विदाई की ताकि उनकी बेटी की ससुराल में इज्जत बनी रहे। शुरुआत के कुछ महीने बहुत अच्छे बीते। अभिनव रागिनी का बहुत ख्याल रखता था, उसके साथ घूमने जाता था, और हर बात में उसका साथ देता था। रागिनी को लगा कि उसकी जिंदगी परफेक्ट है।

भाग 3: बदलता हुआ चेहरा

लेकिन धीरे-धीरे तस्वीर बदलने लगी। शादी के 6 महीने बाद अभिनव की असली सूरत सामने आने लगी। पहले तो छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ना शुरू हुआ। खाना थोड़ा कम नमक हो तो झगड़ा, घर में जरा सी गड़बड़ी हो तो ताने। रागिनी सोचती थी कि शायद नई शादी का तालमेल बैठने में समय लगता है, इसलिए वह चुप रहकर सब सहन करती रही।

असली मुसीबत तब शुरू हुई जब अभिनव का बिजनेस चौपट होने लगा। उसने अपनी नौकरी छोड़कर कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक स्टार्टअप शुरू किया था। शुरुआत में सब अच्छा चल रहा था, लेकिन फिर धीरे-धीरे कंपनी को नुकसान होने लगा। अभिनव ने रागिनी की सैलरी से पैसे लेना शुरू कर दिए। पहले तो रागिनी ने खुशी से पैसे दिए, यह सोचकर कि पति-पत्नी के बीच यह सब तो चलता ही रहता है। लेकिन अभिनव की मांग बढ़ती गई।

भाग 4: अत्याचार का दौर

उसने रागिनी के गहने बेचवा दिए, उसके बैंक अकाउंट खाली करवा दिए और फिर भी उसका बिजनेस नहीं संभला। जैसे-जैसे अभिनव का बिजनेस डूबता गया, वैसे-वैसे उसका व्यवहार और भी बदतर होता गया। वह शराब पीने लगा और घर आकर रागिनी के साथ बदतमीज़ी करने लगा। उसने रागिनी को मारना-पीटना भी शुरू कर दिया।

रागिनी की सास और ससुर भी उसे ही दोष देने लगे। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि रागिनी की वजह से ही घर में अशांति है। उसके आने के बाद से ही घर में मुसीबतें आने लगी हैं। रागिनी के लिए यह सब सहना बेहद मुश्किल था। लेकिन वह अपने माता-पिता को परेशान नहीं करना चाहती थी। उसके पिता की तबीयत भी खराब रहने लगी थी। इसलिए उसने अपनी सारी तकलीफें अपने दिल में ही दबा ली।

भाग 5: एक निर्णायक दिन

फिर एक दिन वह दिन आया जिसने रागिनी की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया। अभिनव का बिजनेस पूरी तरह से डूब चुका था और उस पर कर्ज का बोझ था। उसने रागिनी से मायके से पैसे मांगने के लिए कहा, लेकिन रागिनी ने साफ मना कर दिया। उसे पता था कि उसके माता-पिता के पास अब कुछ नहीं बचा था और उनके पास जो थोड़ा बहुत था, वह उसके पिता के इलाज के लिए चाहिए था।

यह सुनकर अभिनव आग बबूला हो गया। उसने रागिनी को थप्पड़ मारा और गालियां देते हुए बोला, “तुम मनहूस हो। तुम्हारे आने के बाद से ही मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई है।” रागिनी के दिल में गहरी चोट लगी, लेकिन उसने खुद को संभाला।

भाग 6: नई शुरुआत

अगले दिन से रागिनी ने अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू किया। उसने एक छोटा सा फ्लैट किराए पर लिया और अपने ऑफिस में पहले से भी ज्यादा मेहनत करने लगी। पहले वह अपनी पूरी सैलरी अभिनव को दे देती थी, लेकिन अब वह अपने लिए बचत करने लगी। उसने अपने काम में इतनी लगन दिखाई कि उसके बॉस ने उसे प्रमोशन दे दिया।

रागिनी की सैलरी बढ़ गई और उसे एक बड़ी प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी मिल गई। वह सुबह जल्दी उठती, योग करती, ऑफिस जाती और देर रात तक काम करती। उसने अपने आप को इतना व्यस्त रख लिया कि उसे अपने दुख के बारे में सोचने का भी समय नहीं मिलता था। धीरे-धीरे रागिनी की मेहनत रंग लाने लगी। उसे कंपनी में एंप्लई ऑफ द ईयर का अवार्ड मिला।

भाग 7: सफलता की सीढ़ी

उसकी कंपनी के सीईओ ने उसे बधाई दी और कहा कि वह उनकी कंपनी की सबसे मेहनती और ईमानदार कर्मचारी है। रागिनी को अपने ऊपर गर्व महसूस हुआ। उसने महसूस किया कि उसे किसी की जरूरत नहीं है। वह खुद अपनी जिंदगी जी सकती है। उसने अपनी एक छोटी सी कंसल्टिंग फर्म शुरू करने का फैसला किया।

उसने अपने बचे हुए पैसों से एक छोटा सा ऑफिस लिया और अपने कुछ भरोसेमंद साथियों के साथ मिलकर काम शुरू किया। शुरुआत में बहुत मुश्किलें आईं, क्लाइंट्स नहीं मिलते थे और उसे अपने खर्चे चलाने में भी दिक्कत होती थी। लेकिन रागिनी ने हार नहीं मानी।

भाग 8: कठिनाइयों का सामना

उसने अपने नेटवर्क का इस्तेमाल किया और धीरे-धीरे छोटे-छोटे प्रोजेक्ट मिलने लगे। उसकी मेहनत और ईमानदारी की वजह से उसके क्लाइंट्स खुश रहते थे और वे उसे और लोगों को रेफर करते थे। इस तरह रागिनी का बिजनेस बढ़ने लगा। 2 साल के अंदर ही उसकी कंपनी शहर की एक जानी मानी कंसल्टिंग फर्म बन गई।

उसने 10 लोगों को नौकरी दी और उसका टर्नओवर करोड़ों में पहुंच गया। दूसरी ओर अभिनव की हालत और भी बदतर होती जा रही थी। उसका बिजनेस पूरी तरह से बंद हो चुका था और उस पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा था।

भाग 9: पछतावा

उसे नौकरी ढूंढनी पड़ी लेकिन उसकी रेपुटेशन खराब हो चुकी थी। इसलिए उसे अच्छी जगह नौकरी नहीं मिल रही थी। उसे एक छोटी सी कंपनी में कम सैलरी पर नौकरी करनी पड़ी। उसकी सास और ससुर भी बीमार रहने लगे और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया।

अभिनव को रागिनी की याद आने लगी। उसे एहसास हुआ कि रागिनी ही घर की असली कमाऊ सदस्य थी और उसने कितनी बड़ी गलती की थी। एक दिन अभिनव को अपने एक दोस्त से पता चला कि रागिनी अब एक सफल बिजनेस वुमन बन चुकी है।

भाग 10: रागिनी की सफलता

उसकी कंपनी बहुत अच्छा काम कर रही है और वह शहर में एक जानी मानी शख्सियत बन गई है। यह सुनकर अभिनव को बहुत बुरा लगा। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सोचा कि अगर उसने रागिनी को घर से नहीं निकाला होता तो आज वह भी सुखी होता। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।

अभिनव की माली हालत इतनी खराब हो गई कि उसे अपना घर भी बेचना पड़ा। वह और उसके माता-पिता एक छोटे से किराए के मकान में रहने लगे। इधर रागिनी की जिंदगी में नई खुशियां आने लगीं। उसने अपने माता-पिता को अपने साथ बुला लिया और उनका बेहतरीन इलाज करवाया।

भाग 11: नई जिंदगी

उसके पिता की तबीयत सुधर गई और उसकी मां बहुत खुश थी कि उसकी बेटी इतनी सफल हो गई है। रागिनी ने एक बड़ा सा घर खरीदा और उसमें अपने माता-पिता के साथ रहने लगी। उसने अपनी मां को अपनी कंपनी में एडमिन के तौर पर काम दिया ताकि वह भी व्यस्त रहे और खुश रहे।

रागिनी की जिंदगी अब बिल्कुल बदल चुकी थी। वह अब वह निरीह और कमजोर औरत नहीं रह गई थी जो अपने पति के अत्याचार सहती थी। वह अब एक मजबूत, स्वतंत्र और सफल महिला थी।

भाग 12: सम्मान की पहचान

एक दिन रागिनी को एक बड़े कॉर्पोरेट इवेंट में चीफ गेस्ट के रूप में बुलाया गया। वह इवेंट शहर के सबसे बड़े होटल में था। वहां बहुत सारे बिजनेसमैन और इंडस्ट्री के बड़े लोग मौजूद थे। रागिनी ने बहुत ही सुंदर साड़ी पहनी हुई थी और वह बेहद खूबसूरत लग रही थी।

उसके चेहरे पर एक अलग ही आत्मविश्वास था। जब वह स्टेज पर अपना स्पीच देने के लिए गई तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उसने अपने संघर्ष के बारे में बताया कि कैसे उसे मनहूस कहकर घर से निकाला गया था और कैसे उसने अपनी मेहनत से खुद को साबित किया।

भाग 13: प्रेरणा का स्रोत

उसके स्पीच को सुनकर हॉल में मौजूद सभी लोग भावुक हो गए। कई महिलाओं की आंखों में आंसू आ गए क्योंकि वे भी रागिनी की तरह किसी ना किसी रूप में घरेलू हिंसा या अपमान का शिकार रही थीं। रागिनी ने अपने स्पीच में कहा, “आज मैं यहां खड़ी हूं यह इसलिए नहीं कि मुझे किसी ने सहारा दिया, बल्कि इसलिए कि मैंने खुद पर विश्वास किया। मुझे मनहूस कहा गया था लेकिन आज मैं साबित कर चुकी हूं कि किसी के जीवन में सफलता या असफलता किसी और की वजह से नहीं होती। यह हमारी अपनी मेहनत और इरादों से तय होती है।”

भाग 14: मीडिया का ध्यान

इस इवेंट की खबर अगले दिन सभी अखबारों और न्यूज़ चैनलों में छा गई। रागिनी की कहानी हर जगह चर्चा का विषय बन गई। उसे कई टीवी शोज़ में बुलाया जाने लगा और उसकी कहानी सुनकर हजारों महिलाएं प्रेरित हुईं। रागिनी ने महिलाओं के लिए एक एनजीओ भी शुरू की, जहां घरेलू हिंसा और अत्याचार की शिकार महिलाओं को कानूनी सहायता और स्किल ट्रेनिंग दी जाती थी।

उसकी एनजीओ ने सैकड़ों महिलाओं की जिंदगी बदल दी। रागिनी अब सिर्फ एक बिजनेस वुमन नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता भी बन गई थी।

भाग 15: पछतावे का एहसास

अभिनव को जब रागिनी की सफलता के बारे में पता चला तो वह बहुत शर्मिंदा हुआ। उसे अपनी गलती का गहरा एहसास हुआ। उसे याद आने लगा कि कैसे रागिनी ने उसके और उसके परिवार के लिए इतना कुछ किया था और उसने उसे क्या दिया।

उसने अपनी मां से भी इस बारे में बात की और उसकी मां भी रोने लगी। उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने एक बहुत अच्छी बहू को खो दिया है। अभिनव ने रागिनी से मिलने की कोशिश की। उसने रागिनी के ऑफिस में कई बार फोन किया, लेकिन रागिनी ने उसकी एक भी कॉल नहीं उठाई।

भाग 16: आमना-सामना

आखिरकार एक दिन अभिनव खुद रागिनी के ऑफिस पहुंच गया। जब अभिनव रागिनी के ऑफिस पहुंचा तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह उसी रागिनी का ऑफिस है जिसे उसने मनहूस कहकर घर से निकाला था। बड़ा सा ऑफिस, कई कर्मचारी, शानदार फर्नीचर और दीवारों पर लगे अवार्ड्स।

अभिनव ने रिसेप्शनिस्ट से रागिनी से मिलने की इजाजत मांगी। रिसेप्शनिस्ट ने अंदर फोन किया और कुछ देर बाद रागिनी की असिस्टेंट बाहर आई। उसने अभिनव से पूछा कि उसे क्या काम है। अभिनव ने कहा कि वह रागिनी का पति है और उसे उससे मिलना है।

भाग 17: ठंडा स्वागत

असिस्टेंट ने अंदर जाकर रागिनी को बताया। रागिनी ने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा कि उसे अंदर भेज दो। जब अभिनव रागिनी के केबिन में दाखिल हुआ तो वह रागिनी को देखकर हैरान रह गया। रागिनी बिल्कुल बदल चुकी थी। वह पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत और आत्मविश्वास से भरी हुई लग रही थी।

रागिनी ने अभिनव को बैठने का इशारा किया, लेकिन खुद अपनी कुर्सी पर बैठी रही और अपने काम में व्यस्त रही। कुछ मिनटों के बाद उसने अभिनव की तरफ देखा और ठंडे स्वर में पूछा, “कहिए, क्या काम है?” अभिनव की हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ कहने की। उसकी आंखों में शर्म और पछतावा साफ दिख रहा था।

भाग 18: पछतावे का इजहार

उसने हिचकिचाते हुए कहा, “रागिनी, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। मैं तुमसे वापस आने के लिए कह रहा हूं। हम फिर से एक साथ रह सकते हैं।” रागिनी ने एक लंबी सांस ली और फिर मुस्कुराते हुए बोली, “अभिनव, मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए। तुमने मुझे मनहूस कहा था और घर से निकाला था। आज मैं यहां हूं अपनी मेहनत से। मुझे तुम्हारी या किसी और की कोई जरूरत नहीं है।”

भाग 19: स्वार्थ की पहचान

अभिनव ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “प्लीज रागिनी, मुझे एक मौका दो। मैं बदल गया हूं। मैं तुम्हारी कद्र नहीं कर पाया। यह मेरी सबसे बड़ी गलती थी। लेकिन अब मुझे सब समझ में आ गया है।” रागिनी ने सख्त आवाज में कहा, “अभिनव, जब तुम्हारे पास पैसे थे, जब सब कुछ ठीक था, तब तुमने मुझे क्या समझा? तुमने मुझे मनहूस कहा, मुझे मारा-पीटा, मेरा अपमान किया और आज जब तुम्हारी हालत खराब है, तुम्हें मेरी याद आई। यह प्यार नहीं है। अभिनव, यह स्वार्थ है। मैं अपनी जिंदगी में खुश हूं और मुझे अतीत में नहीं जाना है।”

भाग 20: हार की स्वीकार्यता

अभिनव की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, “रागिनी, मैं जानता हूं कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया। मैं अपनी मां को भी साथ लाया हूं। वह नीचे कार में बैठी है। वह तुमसे माफी मांगना चाहती है। प्लीज एक बार उनसे मिल लो।” रागिनी ने दृढ़ता से कहा, “अभिनव, जो बीत गया वह बीत गया। मैं किसी से बदला नहीं लेना चाहती। लेकिन मैं अतीत में भी नहीं लौटना चाहती। तुम लोगों ने मुझे तोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं कूटी नहीं। अब मुझे अपनी जिंदगी जीने दो। तुम भी अपनी जिंदगी संभालो।”

भाग 21: अंतिम विदाई

अभिनव समझ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता। वह धीरे-धीरे उठा और रागिनी के केबिन से बाहर चला गया। उसके चेहरे पर हार और निराशा साफ दिख रही थी। जब वह नीचे पहुंचा तो उसकी मां ने पूछा, “क्या कहा रागिनी ने?” अभिनव ने सिर हिलाते हुए कहा, “वो हमें माफ नहीं करेगी मां और शायद यही सही भी है। हमने उसके साथ जो किया उसके बाद वह क्यों माफ करें।”

भाग 22: पछतावे का बोझ

अभिनव और उसकी मां वापस अपने छोटे से किराए के मकान में चले गए। अभिनव की जिंदगी अब और भी मुश्किल हो गई थी। उसके पिता की तबीयत बिगड़ती जा रही थी और उनके इलाज के लिए पैसे नहीं थे। अभिनव की छोटी सी नौकरी की सैलरी से घर का खर्च मुश्किल से चल रहा था। कर्ज वाले लगातार उसके पीछे पड़े रहते थे।

भाग 23: बर्बादी की ओर

एक दिन उसके पिता की तबीयत अचानक बहुत ज्यादा बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। लेकिन इलाज के खर्चे के लिए पैसे नहीं थे। अभिनव ने अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों से मदद मांगी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। वही दोस्त जो कभी उसके साथ पार्टियों में जाते थे, अब उसकी कॉल्स भी नहीं उठाते थे।

भाग 24: रागिनी का सहारा

एक दिन अभिनव को अपने एक पुराने दोस्त से पता चला कि रागिनी की एनजीओ मेडिकल इमरजेंसी में गरीब लोगों की मदद करती है। अभिनव के दिमाग में विचार आया कि क्या वह रागिनी से अपने पिता के इलाज के लिए मदद मांग सकता है। लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई। उसे अपने किए का पछतावा हो रहा था।

आखिरकार हालात इतने बुरे हो गए कि उसकी मां ने खुद रागिनी की एनजीओ में फोन किया। एनजीओ के स्टाफ ने उनका केस देखा और जब उन्हें पता चला कि यह रागिनी की सास है, तो उन्होंने रागिनी को इन्फॉर्म किया।

भाग 25: इंसानियत का परिचय

रागिनी को जब यह बात पता चली तो वह कुछ देर के लिए चुप हो गई। उसके मन में तूफान उठ रहा था। एक तरफ वह दर्द था जो उसे अभिनव और उसके परिवार ने दिया था और दूसरी तरफ उसकी इंसानियत थी। रागिनी ने अपनी एनजीओ को निर्देश दिया कि अभिनव के पिता के इलाज का पूरा खर्च उठाया जाए। लेकिन उसने यह भी कहा कि उसका नाम इसमें ना आए।

एनजीओ के स्टाफ ने अभिनव के परिवार को बताया कि उनकी एनजीओ उनके पिता के इलाज का खर्च उठा लेगी। अभिनव और उसकी मां को बहुत राहत मिली। इलाज शुरू हुआ और कुछ हफ्तों में अभिनव के पिता की हालत में सुधार आने लगा।

भाग 26: एहसास

अभिनव को बाद में पता चला कि उसके पिता के इलाज का खर्च रागिनी की एनजीओ ने उठाया था। उसे यह भी पता चला कि यह रागिनी के निर्देश पर हुआ था। आंखों में आंसू आ गए। उसे एहसास हुआ कि रागिनी कितनी महान है। उसने अभिनव और उसके परिवार को कभी माफ नहीं किया, लेकिन फिर भी उसने अपनी इंसानियत नहीं खोई।

भाग 27: पुनर्मिलन की कोशिश

अभिनव ने फिर से रागिनी से मिलने की कोशिश की। उसने एनजीओ के ऑफिस में जाकर उससे मिलने की गुजारिश की। रागिनी ने इस बार उससे मिलने से मना कर दिया। उसने अपने स्टाफ के जरिए संदेश भिजवाया, “अभिनव, मैंने तुम्हारे पिता की मदद अपनी इंसानियत की वजह से की है। तुम्हारी वजह से नहीं। मैं नहीं चाहती कि तुम इसे गलत समझो। हमारे बीच जो कुछ हुआ उसे भुलाया नहीं जा सकता। तुम अपनी जिंदगी जियो और मुझे मेरी जिंदगी जीने दो।”

भाग 28: अंत की ओर

अभिनव को समझ में आ गया कि रागिनी ने अपना फैसला कर लिया है। उसने रागिनी को फिर से परेशान नहीं किया। लेकिन उसकी जिंदगी अब एक बोझ बन गई थी। हर दिन वह अपनी गलतियों के बारे में सोचता रहता था। उसका छोटा सा घर, छोटी सी नौकरी और उस पर अभी भी बाकी कर्ज का बोझ, उसके दोस्त उससे दूर हो गए थे।

भाग 29: अकेलापन

समाज में उसकी कोई इज्जत नहीं रह गई थी। लोग उसे उस आदमी के रूप में जानते थे जिसने अपनी पत्नी को मनहूस कहकर घर से निकाला था और अब खुद बर्बाद हो गया था। अभिनव के पिता का इलाज तो हो गया, लेकिन अब उनकी उम्र भी बढ़ गई थी और वे ज्यादातर बीमार ही रहते थे।

भाग 30: अंतिम क्षण

एक दिन अभिनव की मां ने उससे कहा, “बेटा, हमने रागिनी के साथ बहुत बुरा किया। भगवान हमें माफ नहीं करेगा। हमने एक पतिव्रता और मेहनती बहू को घर से निकाल दिया और आज हम इस हाल में हैं। यह हमारे कर्मों का फल है।” अभिनव ने कुछ नहीं कहा। वह जानता था कि उसकी मां सही कह रही है।

भाग 31: बर्बादी की कहानी

उसकी जिंदगी एक सबक बन गई थी उन सभी लोगों के लिए जो अपने रिश्तों की कदर नहीं करते, जो अपने जीवन साथी का अपमान करते हैं। इधर रागिनी की जिंदगी में सिर्फ सफलता और खुशियां थीं। उसने अपने माता-पिता के साथ एक सुखी जीवन बिताया।

भाग 32: रागिनी की उपलब्धियां

उसकी कंपनी देश की टॉप कंसल्टिंग फर्म्स में शामिल हो गई। उसकी एनजीओ ने हजारों महिलाओं की जिंदगी बदल दी। वह एक प्रसिद्ध हस्ती बन गई और उसे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। लेकिन उसके दिल में अभी भी कहीं ना कहीं एक खालीपन था।

भाग 33: अकेलापन

उसने कभी दोबारा शादी नहीं की। उसने कभी किसी से प्यार नहीं किया। वह अपने काम में इतनी व्यस्त हो गई कि उसे अपनी व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में सोचने का समय ही नहीं मिला। कई साल बाद एक दिन रागिनी को खबर मिली कि अभिनव की मृत्यु हो गई है। वह अपने छोटे से मकान में अकेला मर गया था।

भाग 34: अंतिम विदाई

जब उसकी लाश मिली तो उसके पास रागिनी की एक पुरानी तस्वीर थी जो उसने अपने हाथ में पकड़ी हुई थी। रागिनी को यह खबर सुनकर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। उसने बस इतना कहा, “हर इंसान को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है।” लेकिन उस रात रागिनी को नींद नहीं आई।

भाग 35: यादों का सफर

उसे अपनी शादी की वे यादें याद आ गईं जब सब कुछ ठीक था। उसे वह अभिनव याद आया जो उससे प्यार करता था, उसका ख्याल रखता था। लेकिन फिर उसे वह दिन भी याद आया जब उसे मनहूस कहकर घर से निकाला गया था।

भाग 36: इंसानियत की पहचान

रागिनी ने खुद से कहा, “मैंने अभिनव को माफ नहीं किया। लेकिन मैंने अपनी इंसानियत नहीं खोई। मैंने उसकी मदद की जब उसे जरूरत थी लेकिन मैं उसे अपनी जिंदगी में वापस नहीं ले सकती थी। कुछ जख्म कभी नहीं भरते।” उसने आसमान की तरफ देखा और बड़बड़ाई, “अभिनव, तुमने मेरे साथ बहुत बुरा किया था। लेकिन मैं तुम्हारे लिए बुरा नहीं चाहती थी। तुम्हें अपने कर्मों का फल मिल गया। मैं तुम्हें माफ नहीं कर सकती लेकिन तुम्हारी आत्मा को शांति मिले।”

अंत

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