पहली पत्नी प्रकाश कौर ने शौक सभा में खोला 45 साल पुराना राज। Prakash Kaur expose hema secret

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प्रकाश कौर ने शोक सभा में खोला 45 साल पुराना राज: धर्मेंद्र, हेमा मालिनी और परिवार की अनकही कहानी

मुंबई। जब बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र का 24 नवंबर 2025 को निधन हुआ, तो पूरा देश शोक में डूब गया। टीवी, अखबार, सोशल मीडिया—हर जगह श्रद्धांजलि दी जा रही थी। लेकिन उनके घर के भीतर एक ऐसी सच्चाई सामने आई, जिसने सिर्फ रिश्तों को नहीं, बल्कि पूरे बॉलीवुड को हिला दिया। यह कहानी है धर्मेंद्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर की, जिन्होंने शोक सभा में 45 साल पुराना राज सबके सामने खोल दिया।

धर्मेंद्र की विदाई: रील नहीं रियल

धर्मेंद्र की विदाई किसी फिल्मी सीन से कम नहीं थी, फर्क सिर्फ इतना था कि यह रील नहीं, रियल जिंदगी थी। इसमें भावनाएं थीं, टूटते रिश्ते थे, पुराने जख्म थे और एक ऐसा फैसला था जो 45 साल पहले लिया गया और आखिरी दिन तक कायम रहा।

27 नवंबर की शाम मुंबई में माहौल अलग था। हवा में अजीब सी खामोशी थी। सड़कें वही थीं, लोग वही थे, लेकिन चेहरों पर भारीपन था। वजह थी—हिंदी सिनेमा के दिग्गज धर्मेंद्र अब इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन यह सिर्फ दुख की बात नहीं थी, इसके पीछे एक ऐसा किस्सा था जिसने बॉलीवुड को अंदर तक हिला दिया।

शोक सभा की शुरुआत: एक चेहरा गायब

धर्मेंद्र जी की प्रेयर मीट रखी गई थी, जहां हर वह इंसान मौजूद था जिसने कभी धर्मेंद्र से प्यार किया था, उनके साथ काम किया था या उनकी किसी फिल्म से जुड़ी कोई याद अपने दिल में संभाल कर रखी थी। बड़े-बड़े स्टार्स आए, पुराने दोस्त आए, इंडस्ट्री के लोग आए, लेकिन भीड़ में एक चेहरा ऐसा था जिसे हर रिपोर्टर, कैमरा, फैन तलाश रहा था—हेमा मालिनी।

वही हेमा मालिनी जिनके बिना धर्मेंद्र की कहानी अधूरी मानी जाती है। लेकिन उस दिन वह शोक सभा में नहीं थीं। सवाल उठे—क्या उन्हें बुलाया ही नहीं गया? सच यही था, उन्हें बुलाया ही नहीं गया था। यह फैसला अचानक नहीं, बल्कि 45 साल पुराना था।

45 साल पुराना फैसला: दो दुनिया, दो परिवार

यह वही फैसला था, जो प्रकाश कौर ने 1980 में लिया था, जब धर्मेंद्र और हेमा मालिनी का रिश्ता पूरे देश की हेडलाइन बन गया था। प्रकाश कौर ने अपने दिल में संकल्प लिया था—”मैं हेमा से कभी नहीं मिलूंगी और अपने बच्चों को भी उनकी दुनिया में कदम नहीं रखने दूंगी।” यह फैसला सिर्फ गुस्से का नहीं था, यह एक पत्नी का दर्द, एक मां का डर और एक महिला का टूटता हुआ भरोसा था।

साल गुजरते गए, बच्चे बड़े हो गए, लेकिन वह फैसला कभी नहीं बदला। शोक सभा में सबसे आगे प्रकाश कौर बैठी थीं, चेहरे पर दर्द, आंखों में खालीपन। उनके बगल में सनी और बॉबी देओल बैठे थे, दोनों बेटे उस दिन सिर्फ बेटे नहीं थे, पिता के लिए टूट चुके दिलों का सहारा भी थे और मां के लिए ताकत भी।

हेमा मालिनी की गैरमौजूदगी: खाली कुर्सी का सवाल

शोक सभा में एक खाली कुर्सी सबके मन में सवाल उठा रही थी—क्या यह जानबूझकर खाली छोड़ी गई? बाद में खबर आई कि यह सीट किसी के लिए नहीं रखी गई थी, हेमा मालिनी के नाम का कोई कार्ड ही नहीं था। यानी उन्हें इस विदाई का हिस्सा बनने की इजाजत नहीं थी। परिवार ने इसे पारिवारिक फैसला बताया, लेकिन अंदर की कहानी कुछ और थी।

सूत्रों के मुताबिक, यह निर्णय उसी पुराने वादे की वजह से लिया गया था, जो प्रकाश कौर ने 1980 में किया था। उनके मुताबिक, अंतिम संस्कार और प्रेयर मीट सिर्फ परिवार की होती है, और परिवार वही है जो उनकी शादी से जुड़ा है।

हेमा मालिनी की प्रतिक्रिया: चुप्पी में छुपा दर्द

हेमा मालिनी को जब पता चला कि निमंत्रण भेजा ही नहीं गया, तो वह पूरी तरह चौंक गईं। उन्होंने किसी से झगड़ा नहीं किया, बस चुपचाप खुद के स्तर पर एक छोटी सी प्रेयर मीट आयोजित की, जहां इंडस्ट्री के कई सितारे आए। उनकी खामोशी ही बता रही थी कि अंदर कितना बड़ा तूफान आया हुआ था। यह दर्द सिर्फ उस दिन का नहीं था, यह 45 साल के रिश्ते का था, जिसे दुनिया ने स्वीकार किया, लेकिन पहली पत्नी ने कभी दिल से नहीं माना।

धर्मेंद्र की अंतिम यात्रा: तनाव और दूरी

अक्सर बड़े कलाकारों की विदाई उनके घर से शुरू होती है—भीड़, मीडिया, इंतजाम। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। धर्मेंद्र की अंतिम यात्रा को तुरंत श्मशान घाट ले जाने का फैसला क्यों लिया गया? इसका कारण भी वही पुराना तनाव था। सनी और बॉबी जानते थे कि अगर अंतिम यात्रा घर से निकलेगी, तो हेमा मालिनी का परिवार, उनके रिश्तेदार, बेटियां सब आएंगे। दोनों परिवार एक दूसरे के सामने होंगे, कैमरे होंगे, मीडिया होगी और माहौल बिगड़ जाएगा।

इसलिए सनी और बॉबी ने फैसला लिया कि पिता को सीधे श्मशान ले जाया जाए, ताकि दोनों परिवारों का आमना-सामना न हो। किसी तरह की बहस या असहज स्थिति न बने। यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन परिस्थितियों में सही था—यह सिर्फ दो औरतों के बीच की दूरी नहीं, दो पूरी दुनियाओं के बीच का फासला था।

भावनाओं की गहराई: रिश्ते, सम्मान और दर्द

सनी और बॉबी ने हमेशा अपनी मां का सम्मान किया है, उन्होंने कभी हेमा के खिलाफ कुछ नहीं बोला, न कोई विवाद बढ़ाया। हेमा मालिनी ने भी कभी कोई नेगेटिव बात नहीं कही। दोनों तरफ से एक मौन सी इज्जत रही, लेकिन वह दूरी कभी कम नहीं हुई और यही दूरी धर्मेंद्र के जाने के बाद सबसे ज्यादा दिखाई दी।

धर्मेंद्र का जीवन जितना चमकदार था, उतना ही उलझा हुआ भी था। दो परिवार, दो दुनिया, दो जिम्मेदारियां—उन्होंने जिंदगी भर संभालने की कोशिश की। उन्होंने कभी चाहा नहीं कि उनके कारण किसी को दर्द मिले, लेकिन जिंदगी हमेशा उतनी सरल नहीं होती। और इसी वजह से जब आखिर में वह गए, तो उनके पीछे पुराने किस्से, एहसास, अधूरे रिश्ते सब दोबारा सामने आ गए।

शोक सभा: दो परिवारों की अनकही कहानी

यह सिर्फ एक शोक सभा नहीं थी, यह दो परिवारों की अनकही, अनसुनी, अनछुई कहानी थी। एक ऐसी कहानी जिसे कभी किसी ने आधिकारिक तौर पर नहीं बताया, लेकिन हर किसी ने महसूस जरूर किया। 45 साल पुराने फैसले के कारण धर्मेंद्र जी की शोक सभा में इतना बड़ा विवाद खड़ा हो गया।

बाहर खड़े लोग आपस में फुसफुसाते दिखे—हेमा जी क्यों नहीं आई? प्रकाश कौर ने उन्हें बुलाया क्यों नहीं? 45 साल पुरानी बात आज भी जिंदा है? क्या इतने साल में कुछ भी नहीं बदला? हर तरफ यही सवाल थे। मीडिया वाले तो जैसे भूखे थे इस खबर पर। हर न्यूज़ चैनल पर एक ही हेडलाइन घूम रही थी—धर्मेंद्र की प्रेयर मीट में हेमा गायब। आखिर क्यों?

दोनों औरतें: दर्द, मजबूती और समझदारी

प्रकाश कौर की आंखों में उस दिन एक अजीब सी मजबूती थी। जैसे वह खुद से कह रही हों—”मैंने जो फैसला 45 साल पहले लिया था, वह सही था। मैं हिली नहीं, आज भी वहीं खड़ी हूं।” लेकिन क्या यह सच में मजबूती थी, या यह पुराना दर्द था जिसे समय ने मिटने ही नहीं दिया?

धर्मेंद्र की पहली पत्नी और दूसरी पत्नी के रिश्ते में दूरी थी, मगर जंग नहीं थी। दोनों ने किसी तरह इस दूरी को संभाल कर रखा और जिंदगी निकाल दी। हेमा मालिनी ने कभी इंटरव्यू में प्रकाश कौर के खिलाफ कुछ नहीं कहा, न कोई आरोप लगाया। प्रकाश कौर ने भी मीडिया में बहुत कम बोला। एक बार उन्होंने कहा था—”अगर कोई भी आदमी हेमा जैसी खूबसूरत औरत से मिलता, तो शायद वही फैसला लेता, लेकिन दर्द तो इससे कम नहीं होता।” इसमें गुस्सा नहीं था, स्वीकार भी नहीं था, सिर्फ एक टूटा हुआ दिल था।

निष्कर्ष: रिश्तों की उलझन और विरासत की सीख

45 साल बाद भी वह फैसला इतना मजबूत बना रहा कि हेमा मालिनी को धर्मेंद्र की शोक सभा में नहीं बुलाया गया। श्मशान घाट में दोनों दुनिया एक साथ खड़े थीं, लेकिन बीच में फासला था। धर्मेंद्र ने जिंदगी भर दोनों परिवारों को संभालने की कोशिश की, लेकिन अंत में अधूरे रिश्ते, पुराने जख्म और अनकही कहानियां ही रह गईं।

यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों की उलझनें, दर्द और फैसले समय के साथ भी मिटते नहीं हैं। धर्मेंद्र की विदाई में सिर्फ एक सुपरस्टार का जाना नहीं था, बल्कि दो परिवारों की भावनाओं, समझदारी और मजबूती की कहानी थी। शायद यही उनकी असली विरासत है—समझ, सम्मान और इंसानियत।

ओम शांति।

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