पूर्व पति बन गया वकील, माँ से छीनने आया बेटे को, कोर्ट में जो हुआ इंसानियत रो पड़ी |

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माँ की गोद से बड़ा कोई घर नहीं

लखनऊ की जिला अदालत का बरामदा चहल-पहल से भरा हुआ था। लोग अपनी-अपनी फाइलों के साथ भागदौड़ कर रहे थे। वहीं एक कोने में खड़ी थी प्रिया, अपनी गोद में 7 साल के बेटे अयान को कसकर पकड़ते हुए। आज उसका दिल सीने से बाहर कूदने जैसा महसूस कर रहा था। यह सिर्फ एक केस नहीं था, यह उसकी जिंदगी का फैसला था।

दरवाजा खुला और केस नंबर 217 की कॉल हुई – “अयान की कश्ती।” प्रिया कांपते हुए भीतर दाखिल हुई और उसकी नजरें ठहर गईं। सामने वकील की कुर्सी पर खड़ा था वही आदमी जिसे उसने सालों पहले प्यार करके शादी की थी – राहुल शर्मा। वही राहुल जिसने उसका दिल तोड़कर उसे छोड़ दिया था, आज अपने बेटे की कश्ती के लिए उसके खिलाफ वकील बनकर खड़ा था।

प्रिया की सांसे रुक गईं, आंखों से आंसू छलकने लगे। “हे भगवान! यह क्या खेल है? जिसने मुझे छोड़ा, वही मेरे बेटे को मुझसे छीनने आया है।”

राहुल ने भी उसे देखा। एक पल के लिए उसकी आंखें झपकी। चेहरे पर हल्की कसक आई, लेकिन तुरंत उसने फाइल खोली और सख्त आवाज़ में कहा, “माननीय अदालत, बच्चा हमारे मुवकिल के घर में ज्यादा सुरक्षित रहेगा। वहाँ बेहतर पढ़ाई, बड़ा घर और सारी सुविधाएँ हैं।”

प्रिया का दिल टूट कर बिखर गया। कांपते हाथों से माइक पकड़ते हुए उसने कहा, “जज साहब, यह बच्चा सिर्फ मेरा बेटा नहीं, मेरी जान है। मैंने इसे अपने आंसुओं से पाला है। इसके हर बुखार, हर खांसी, हर रात की नींद मैंने देखी है। क्या कोई बड़ा घर मां के आंचल से बड़ा हो सकता है?”

कोर्ट में सन्नाटा छा गया। लोग प्रिया की ओर देखने लगे। पीछे बैठा छोटा अयान मासूमियत से सब देख रहा था। उसने धीरे से मां की साड़ी खींची और पूछा, “मां, यह अंकल कौन हैं? यह क्यों कह रहे हैं कि मैं आपके पास नहीं रह सकता?”

प्रिया ने उसे बाहों में कसकर लिया। कांपती हुई आवाज़ में बोली, “बेटा, यह लड़ाई घर की नहीं, मां की गोद की है। और मां की गोद कोई अदालत कभी छीन नहीं सकती।”

राहुल के चेहरे पर भी एक पल के लिए शिकन आई। उसकी आंखें झुक गईं, लेकिन वह पेशे के दायित्व में बंधा हुआ था।


कुछ साल पहले की बात है। प्रिया और राहुल की शादी बड़े अरमानों से हुई थी। दोनों कॉलेज में मिले थे। राहुल का सपना बड़ा वकील बनने का था और प्रिया बस यही चाहती थी कि उसका पति उसे समझे और साथ निभाए। शुरुआती दिन हंसी-खुशी से भरे थे। छोटा सा किराए का घर, टूटी दीवारें, लेकिन प्यार से भरा हुआ।

धीरे-धीरे राहुल की महत्वाकांक्षा और गुस्सा हावी होने लगे। वह कहता, “मुझे बड़ा बनना है, नाम कमाना है। तुम घर गृहस्ती में मत उलझाओ मुझे।” प्रिया चुप हो जाती, लेकिन दिल में सवाल उठता, “क्या मेरे सपनों और मेरी इज्जत की कोई जगह नहीं?”

झगड़े बढ़ते गए। ताने और गहरी होते गए। आखिरकार एक दिन राहुल गुस्से में बोला, “अगर तुम्हें अपने तरीके से जीना है तो मेरे साथ मत रहो।” और सच में रिश्ता वहीं खत्म हो गया। तलाक हो गया।

कुछ साल बाद प्रिया की दूसरी शादी हुई। शुरुआत में सब ठीक चला, लेकिन पति का स्वभाव बदल गया। रोज़ झगड़े, लापरवाही और आखिरकार दूसरा रिश्ता भी टूट गया। अब प्रिया अकेली थी, छोटे से कमरे में अपने बेटे के साथ। लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। दिन में ट्यूशन पढ़ाई, रात में सिलाई। हर मेहनत उसने अयान की दुनिया को सुरक्षित बनाने में लगाई।


फिर एक दिन नोटिस आया। अयान के पिता और उनका नया परिवार बच्चे की कश्ती चाहते थे। उनका कहना था कि उनके पास बड़ा घर, पैसे और अच्छे स्कूल हैं। प्रिया के पैर तले जमीन खिसक गई। बड़े घर और महंगी किताबों से क्या मां की गोद की जगह ली जा सकती थी?

हिम्मत जुटाकर प्रिया केस लड़ने अदालत पहुंची। लेकिन सामने खड़ा था राहुल – उसका पहला पति। उसकी आंखों से आंसू छलक रहे थे, लेकिन पेशे की गरिमा में बंधा हुआ।

जज ने केस शुरू किया। छोटा अयान कांपते कदमों से आगे बढ़ा। उसकी उंगलियां मां की साड़ी का किनारा पकड़ रही थीं। प्रिया ने कान में फुसफुसाया, “डरना मत बेटा, सच ही बोलना।”

अयान गवाही देने गया। जज ने मुस्कुराते हुए पूछा, “बेटा, हमें बताओ, तुम किसके साथ रहना चाहते हो?”

अयान ने झिझकते हुए मां की ओर देखा। धीरे-धीरे बोला, “मैं मां के साथ रहना चाहता हूँ।” कोर्ट में दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। जज ने पूछा, “क्यों?”

अयान ने मासूमियत से कहा, “जब मुझे बुखार आता है, मां सारी रात मेरे पास बैठती है। जब मुझे डर लगता है, मां कहानियां सुनाती है। जब मेरे पास कुछ नहीं होता, मां अपनी रोटी का टुकड़ा मुझे खिला देती है। अगर मैं मां के पास नहीं रहूंगा, तो मुझे कौन थपकी देगा और सुलाएगा?”

कोर्ट में बैठे लोग भावुक हो गए। प्रिया के आंसू खुद-ब-खुद बह पड़े। उसने बेटे का हाथ कसकर थाम लिया।


अब राहुल की बारी थी। उसने फाइल उठाई, लेकिन आंखें धुंधली थीं। पेशे के ताने-बाने के बावजूद, उसका दिल बोल रहा था। उसने फाइल बंद कर दी और साफ आवाज़ में कहा,

“माननीय अदालत, मैं पेशे से वकील हूँ, लेकिन आज मैं सबसे पहले इंसान हूँ। मैंने अपनी आंखों से देखा है कि यह बच्चा अपनी मां की गोद से दूर नहीं रह सकता। जो मां रात-भर जागती रही, अपनी भूख दबाकर बच्चे को खिलाती रही – उससे बेटा छीनना इंसाफ नहीं है। इसलिए मैं अनुरोध करता हूँ कि कश्ती प्रिया को दी जाए।”

जज साहब ने फैसला सुनाया। बच्चे की कश्ती माँ प्रिया को दी गई। पिता पक्ष को मुलाकात का अधिकार नियत समय पर रहेगा। कोर्ट में हलचल मच गई। प्रिया रोते-रोते बेटे को गले से लगा रही थी।

राहुल भी चुपचाप खड़ा था। आँखों में आंसू थे, लेकिन चेहरे पर सुकून की मुस्कान थी। उसने मन ही मन कहा, “रिश्ते टूट सकते हैं, लेकिन इंसानियत कभी नहीं।”


उस दिन अदालत ने केवल एक मां और बच्चे का फैसला नहीं सुनाया। उसने यह भी सिखाया कि कागज़ की दुनिया और पेशेवर दायित्व से बढ़कर इंसानियत की कीमत होती है।

रात में प्रिया अपने छोटे से कमरे में अयान को सुला रही थी। उसका सिर मां की गोद में था। प्रिया उसके माथे पर हाथ फेरते हुए रो रही थी। हर तकलीफ, हर संघर्ष याद आ रहा था। उसने फुसफुसाया, “बेटा, चाहे कल क्या भी हो, मां तुझे कभी नहीं छोड़ेगी। तू मेरी आखिरी उम्मीद है।”

राहुल अपने बड़े घर में अकेला बैठा। उसने पुराना एल्बम निकाला, शादी के शुरुआती दिनों की तस्वीरें देखीं। उसने खुद से कहा, “काश मैं उस दिन प्रिया को समझ पाता। काश अपना अहंकार छोड़ पाता।”

अगली सुबह अदालत भरी हुई थी। प्रिया और अयान वहाँ थे। जज ने दोनों पक्षों की अंतिम दलील सुनी। फिर जज ने फैसला सुनाया – अयान की कश्ती प्रिया को दी जाती है।

कोर्ट रूम में सब सन्न रह गए। प्रिया ने अपने बेटे को गले लगाया। अयान हंसते हुए बोला, “मां, अब मैं हमेशा आपके पास रहूंगा ना।”

प्रिया ने उसे चूमते हुए कहा, “हां बेटा, अब कोई तुझे मां से अलग नहीं कर सकता।”

राहुल ने धीरे से कहा, “मैं बहुत देर से समझा, लेकिन आज मैंने इंसानियत को चुना। मां से बड़ी कोई अदालत नहीं होती।”

अयान ने हंसते हुए पूछा, “मां, अंकल, आप दोनों क्यों रो रहे हैं? हम सब साथ क्यों नहीं चल सकते?”

प्रिया ने उसे गले लगाया, “बेटा, जिंदगी में सब साथ नहीं चल पाते, लेकिन तेरे लिए मां और यह अंकल हमेशा साथ खड़े रहेंगे।”

राहुल ने अयान के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, जब भी तुम्हें मेरी जरूरत होगी, बस याद कर लेना। मैं आ जाऊंगा।”

प्रिया और राहुल ने एक-दूसरे की ओर देखा। अब उनका रिश्ता पति-पत्नी का नहीं, लेकिन एक बच्चे के लिए इंसानियत का रिश्ता हमेशा रहेगा।

बरामदे से बाहर निकले। धूप की किरणें चेहरों पर पड़ीं। हवा हल्की थी और आसमान साफ। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति भी इस फैसले से खुश हो। प्रिया ने बेटे का हाथ कसकर पकड़ा और आगे बढ़ गई। राहुल वहीं खड़ा रह गया। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन होठों पर शांति की मुस्कान थी।

रिश्ते टूट सकते हैं, लेकिन इंसानियत कभी नहीं।


यह कहानी हमें यह सिखाती है कि चाहे रिश्ते टूट जाएँ, तलाक हो जाए, अहंकार हावी हो जाए, माँ और बच्चे का रिश्ता हमेशा सबसे मजबूत होता है। इंसानियत का फैसला हमेशा दिल से किया जाता है, कानून या कागज़ से नहीं।

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