बचपन का प्यार सड़क किनारे भीख मांगते मिला… फिर जो हुआ

शिवानी एक प्राइवेट कंपनी में काम करती थी। अचानक उसका ट्रांसफर केरल हो गया। नौकरी का यह नया पड़ाव उसके लिए उतना आसान नहीं था, क्योंकि जैसे ही वह केरल पहुँची, उसके सामने पुरानी यादें तैरने लगीं। यह वही जगह थी जहाँ उसने अपने जीवन का सबसे खूबसूरत समय बिताया था—मुन्नार। हरे-भरे पहाड़, दूर तक फैले चाय के बागान और प्रकृति की ताज़गी मानो उसे बार-बार याद दिला रही थी कि उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा किस्सा यहीं छिपा हुआ है।

ऑफिस जॉइन करने के कुछ ही दिन बाद उसने तय किया कि एक बार उस जगह को ज़रूर देखेगी जहाँ उसके दिल की धड़कनें कभी तेज़ हो जाया करती थीं। एक दिन छुट्टी लेकर वह मुन्नार की ओर निकल पड़ी। पहाड़ी रास्तों पर कार की खिड़की से बाहर झाँकते हुए हर मोड़ पर उसे अपना अतीत दिखाई देता। जब वह उस पत्थर तक पहुँची, जहाँ कभी घंटों बैठा करती थी, तो उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। लेकिन वहाँ का नज़ारा देखकर उसका कलेजा दहल गया।

एक आदमी वहीं पड़ा था—मैला कुचैला, लंबे उलझे बाल, दाढ़ी-मूँछों से भरा चेहरा, चारों ओर शराब की टूटी बोतलें और बदबू। पहले तो वह पहचान नहीं पाई, पर जब झुककर गौर से देखा तो उसकी साँसें थम गईं। उसने काँपते स्वर में कहा—“राजू… यह तुम हो?”

आवाज़ सुनते ही वह आदमी धीरे-धीरे उठकर बैठा। आँखें लाल थीं, मगर जैसे ही उसने ऊपर देखा और शिवानी की आँखों में झाँका, उसके आँसू फूट पड़े। वह फूट-फूटकर रोने लगा। शिवानी ने एक पल भी देर नहीं की। उसे परवाह नहीं थी कि ऑफिस के कपड़े गंदे होंगे या कोई देख लेगा। उसने तुरंत झुककर राजू को गले से लगा लिया। राजू उस आलिंगन में ऐसे टूटकर रो रहा था, मानो बरसों से दबा हुआ सारा दर्द बाहर निकल आया हो।

लेकिन सवाल यह था—राजू कौन था? शिवानी उसे इतनी अच्छी तरह क्यों पहचानती थी?

असल में राजू उसका बचपन का साथी था। दोनों एक ही अनाथाश्रम में पले-बढ़े थे। न माँ, न बाप—बस वही आश्रम उनका घर था। शिवानी और राजू हमउम्र थे और बचपन से साथ-साथ बड़े हुए। आश्रम की सख्ती, बच्चों की शरारतें, त्योहारों की छोटी-छोटी खुशियाँ—सब कुछ उन्होंने मिलकर बाँटा। धीरे-धीरे दोस्ती गहरी होती गई।

राजू का सपना था करोड़पति बनना। वह अक्सर बच्चों से कहता—“देखना, एक दिन मैं ढेर सारा पैसा कमाऊँगा।” बच्चे हँसते, मज़ाक उड़ाते, लेकिन शिवानी उसकी आँखों में चमकते उस सपने को सच मानती। उसके अपने दिल में राजू के लिए मासूम-सा प्यार पनप चुका था। उसने कभी कहा नहीं, पर चाहती थी कि राजू सिर्फ उसका हो।

दोनों साथ-साथ पढ़ाई करते हुए स्कूल से कॉलेज तक पहुँचे। लाइब्रेरी में घंटों पढ़ना, छुट्टियों में घूमना, एक-दूसरे की मदद करना—उनकी दुनिया बस एक-दूसरे के इर्द-गिर्द थी। मगर जैसे-जैसे वक़्त बढ़ा, राजू की महत्वाकांक्षाएँ और बड़ी होती गईं। शिवानी चाहती थी कि पढ़ाई खत्म होते ही दोनों शादी कर लें, लेकिन राजू कहता—“पहले करोड़पति बनना है।”

कॉलेज खत्म हुआ, दोनों को प्राइवेट कंपनियों में नौकरी मिल गई। काम का बोझ, नई ज़िम्मेदारियाँ, नए शहर… सबकुछ तेज़ रफ़्तार में चल रहा था। शिवानी ने सोचा कि अब वक़्त है, अपने दिल की बात राजू से कह दे। वह उसे शहर की एक शांत कॉफ़ी शॉप में बुलाती है। हल्की बारिश के बाद की ठंडी हवा, काँच पर टपकती बूँदें और दोनों आमने-सामने। शिवानी ने हिम्मत जुटाकर पूछा—“राजू, अब शादी के बारे में क्या सोचते हो?”

राजू ने बहुत सामान्य स्वर में कहा—“शिवानी, तुम जानती हो मेरा सपना है करोड़पति बनना। जब तक वह पूरा नहीं होगा, मैं शादी नहीं करूँगा। और जब करूँगा तो किसी अमीर घर की लड़की से, ताकि मेरी पत्नी भी वैसी ही हो।”

यह सुनकर शिवानी का दिल चीर गया। मगर उसने मुस्कुराकर बस इतना कहा—“आँख में कुछ चला गया।” असल में टूटे सपने किरच-किरच होकर उसकी आँखों से बह रहे थे। उसी रात उसने तय किया कि अब वह मुन्नार की उस चट्टान पर नहीं जाएगी। तभी किस्मत ने नया दरवाज़ा खोला—कंपनी की दूसरी ब्रांच से ट्रांसफर का प्रस्ताव मिला। बेहतर वेतन, नया शहर। उसने तुरंत हाँ कर दी और बिना किसी से कुछ कहे वहाँ से चली गई।

उधर राजू ने पैसे की दौड़ तेज़ कर दी। दिन-रात काम, बचत, हिसाब-किताब। उसने हर रुपए को जोड़कर पाँच सालों में बड़ी रकम जमा कर ली। उसे लगा अब वह करोड़पति बन चुका है। लेकिन तभी किस्मत ने खेल खेला। एक दिन उसकी कमर में दर्द हुआ, डॉक्टर ने जाँच की और रिपोर्ट में लिखा आया—कैंसर, वह भी आख़िरी स्टेज का।

डॉक्टर ने कहा—“अगर इलाज नहीं कराओगे तो 30 दिन, और इलाज कराओगे तो शायद दो महीने।” राजू की दुनिया हिल गई। उसने सोचा—मैंने इतने साल मेहनत में गुज़ारे, अब जीने का वक़्त ही नहीं बचा। उसने तय किया कि अब इलाज नहीं कराएगा, बस इन 30 दिनों को खुलकर जिएगा।

उसने बैंक से पैसे निकाले, आलीशान होटल में रहा, महँगी कारें खरीदीं, रेस्टोरेंट्स में खाना खाया। जो सपने कभी काग़ज़ पर लिखे थे, वे पूरे किए। पर महीने का आख़िरी दिन आया और वह अभी भी जिंदा था। उल्टा पहले से स्वस्थ महसूस कर रहा था। उसने दोबारा टेस्ट कराया और रिपोर्ट नॉर्मल निकली। पहली रिपोर्ट में प्रिंटिंग मिस्टेक थी।

यह सुनकर राजू की हँसी और आँसू साथ निकल पड़े। पर भीतर से वह टूट चुका था। अब पैसा बेमानी लगने लगा। धीरे-धीरे उसने शराब पकड़ ली। पहले होटल में, फिर सड़क पर। कुछ ही समय में उसका सबकुछ बिक गया—कारें, बैंक बैलेंस, रिश्ते। वह नशे में डूबा सड़कों पर गिरने वाला इंसान बन गया।

पाँच साल बीत गए। शिवानी भी अपनी नौकरी में व्यस्त हो गई। पर 5 साल 6 महीने बाद उसका ट्रांसफर फिर से केरल हो गया। एक दिन उसने सोचा कि मुन्नार की चट्टान पर फिर चले। वहाँ पहुँची तो उसने राजू को उसी हालत में पाया। वही उसका बचपन का साथी, अब टूटा हुआ इंसान।

शिवानी ने उसे सहारा दिया, अपने फ्लैट में ले गई। नहलाया, साफ़ कपड़े पहनाए, फिर से इंसान बनाया। राजू ने रोते हुए अपनी पूरी कहानी सुनाई। शिवानी ने कहा—“अब बस। उठो राजू, मैं तुम्हें संभालूँगी।”

धीरे-धीरे राजू ने नौकरी ढूँढनी शुरू की और उसे काम भी मिल गया। एक दिन उसने पूछा—“शिवानी, तुमने अब तक शादी क्यों नहीं की?” शिवानी मुस्कुराई—“क्योंकि मैं सही इंसान का इंतज़ार कर रही थी।”

राजू ने उसका हाथ थामते हुए कहा—“तो मुझसे शादी कर लो। करोड़पति पत्नी का सपना बेमानी था। मुझे बस तुम्हारी ज़रूरत है।” शिवानी की आँखों से आँसू बह निकले। उसने कहा—“तुमने देर की, मगर सही वक्त पर पहचान लिया। मैं तैयार हूँ।”

मार्च 2022 में दोनों की शादी हुई। बहुत साधारण शादी थी, पर उसमें वह सच्चा प्यार था जो करोड़ों से भी कीमती था। आज उनके पास करोड़ों की दौलत नहीं है, पर एक-दूसरे का साथ, भरोसा और प्रेम है—और वही उनकी सबसे बड़ी संपत्ति है।

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