बच्चे की शक्ल पति जैसी नहीं थी… पत्नी और बच्चे दोनों को घर से निकाला… फिर जो हुआ…
प्रयागराज के चौड़ी गलियों और पुराने भवनों के बीच खड़ा चौधरी निवास, बाहर से जितना भव्य था, अंदर से उतना ही ठंडा और अहंकार से भरा हुआ। रिया ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन यही दरवाजा उसके लिए जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ बन जाएगा। रिया, रसूलाबाद मोहल्ले की रहने वाली एक सीधी सादी लड़की थी, जो एक प्राइवेट स्कूल में असिस्टेंट टीचर थी। उसकी जिंदगी में सब कुछ सामान्य था, जब तक उसकी मुलाकात वेदांत चौधरी से नहीं हुई।
वेदांत, जो अपने भतीजे का एडमिशन कराने आया था, रिया की विनम्रता और उसकी सच्चाई से प्रभावित हुआ। रिया भी वेदांत के शांत स्वभाव और परिपक्व व्यवहार से आकर्षित हुई। धीरे-धीरे उनकी बातचीत बढ़ी और कुछ महीनों बाद वेदांत ने रिया से कहा, “रिया, मुझे लगता है तुम ही वो हो जिसके साथ मैं पूरी जिंदगी बिताना चाहता हूं।” रिया की पलकों में एक शर्माई चमक थी, और उसने हंसते हुए कहा, “हां, मैं भी यही चाहती हूं।”
लेकिन वेदांत के घर की दीवारें इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं थीं। जब उसने अपनी मां यशोदा देवी को रिया के बारे में बताया, तो उनका पहला वाक्य था, “एक मिडिल क्लास टीचर चौधरी परिवार की बहू? यह तुम्हारी जिद है, प्यार नहीं।” वेदांत ने रिया के लिए खड़ा होने की कोशिश की, और मजबूरी में शादी की अनुमति मिल गई। पर वह अनुमति आशीर्वाद नहीं, बल्कि एक समझौता थी।
शादी के दिन, रिया साधारण लाल बनारसी साड़ी में दुल्हन बनी थी, भोली खुश और उम्मीदों से भरी। लेकिन जैसे ही वह चौधरी निवास में कदम रखी, यशोदा देवी की पहली बात उसके दिल में बर्फ की तरह उतर गई। “घर में कदम रख देने से कोई बहू नहीं बन जाती।” रिया ने मुस्कुराकर सब स्वीकार किया और सोचा कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन घर की हर दीवार उसे यह एहसास दिला रही थी कि वह यहां मेहमान भी नहीं, बल्कि किसी बोझ की तरह है।
घर में करण नाम का एक लड़का था, जो औपचारिक रूप से नौकर था। लेकिन उसके चेहरे और व्यवहार में एक अलग ही डर छिपा रहता था। वह रिया से नजरें चुराता, पर कभी-कभी उसके हावभाव बताते थे कि वह रिया को किसी अनदेखी मुसीबत से बचाना चाहता है। रिया ने कई बार उसकी आंखों में अजीब सा दर्द देखा था, लेकिन करण हमेशा सिर झुका कर चुप हो जाता।
शादी के कुछ ही हफ्तों बाद रिया पर तानों की बारिश शुरू हो गई। “बहू, खाना अच्छा नहीं।” “बहू, काम में तेजी नहीं है।” “बहू, अपने घर की आदतें यहां मत लाना।” यशोदा देवी का हर वाक्य एक नया घाव था। और वेदांत धीरे-धीरे अपनी मां की बातों में बहने लगा। पहले वह रिया का साथ देता था, फिर उदासीन हो गया।
फिर एक सुबह रिया के चेहरे पर चमक आई। वह मां बनने वाली थी। उसने वेदांत को यह खबर दी, और वह मुस्कुराया जरूर, लेकिन उसकी आंखों में वह खुशी नहीं थी जो रिया देखना चाहती थी। यशोदा देवी का जवाब और भी चोट देने वाला था। “देखते हैं बच्चा किस पर जाता है। खून की पहचान होती है।”
समय बीतने लगा, गर्भ बढ़ रहा था, और उसी के साथ बढ़ रहा था करण का डर। कई बार वह रिया के पास आकर धीमे से कहता, “भाभी जी, अगर कभी कुछ गलत लगे तो घबराना मत।” रिया पूछती, “तुम कहना क्या चाहते हो?” लेकिन करण हर बार किसी छाया से डरकर चुप हो जाता।
डिलीवरी का दिन आया। रिया घंटों दर्द में थी। यशोदा देवी ने करण से कहा, “गाड़ी निकाल।” करण की आंखों में वही डर आज फिर तैर रहा था। कई घंटों की पीड़ा के बाद रिया ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया। उसे गोद में लेते ही रिया रो पड़ी। खुशी से उसे लगा अब घर बदल जाएगा, अब सब ठीक होगा।
लेकिन शाम को दुनिया बदल गई। वेदांत कमरे में आया। रिया ने बेटे को आगे बढ़ाया, “देखो वेदांत, हमारा बेटा।” वेदांत ने बच्चे को देखा। 2 सेकंड, 3 सेकंड और अचानक उसका चेहरा सख्त हो गया। “यह बच्चा मेरा नहीं हो सकता।” रिया का दिल धड़कना भूल गया। “क्या?” तभी यशोदा देवी कमरे में आईं। बच्चे पर उंगली रखकर बोलीं, “इसकी शक्ल देखो। यह चौधरी खानदान पर नहीं गया। यह करण जैसी शक्ल का है।”
रिया हिल गई। “मां जी, यह क्या कह रही हैं? यह झूठ है।” लेकिन वेदांत अब शक में जल रहा था। उसने रिया की कलाई पकड़ ली। “तुम दोनों अभी इस घर से निकलो।” रिया चिल्लाई, “वेदांत, मैं कसम खाती हूं। यह बच्चा तुम्हारा है।” लेकिन वेदांत ने कुछ नहीं सुना। उसने रिया को धक्का दिया। रिया लड़खड़ा कर गिरी, लेकिन बच्चे को बचा लिया।
यशोदा देवी की ठंडी आवाज आई, “इसे हमारे घर से बाहर कर दो। अभी!” रिया खून से भीगी थी, चल भी नहीं पा रही थी, लेकिन उसे अस्पताल के बाहर धकेल दिया गया। नवजात को सीने से चिपकाए आधी रात की ठंडी सड़क पर। उसे नहीं पता था कि जिस शक के कारण उसे घर से निकाला गया, उस शक की असली जड़ किसी और के भीतर छिपी थी जो एक दिन फटने वाली थी।
रिया अपने नवजात बेटे को सीने से लगाए अस्पताल के बाहर पड़ी थी, जैसे दुनिया ने उससे सारी पहचान, सारी इज्जत और सारी उम्मीद छीन ली हो। उसके गले से आवाज ही नहीं निकल रही थी। शरीर वैसे ही दर्द में था जैसे किसी ने उसके भीतर की पूरी हिम्मत को निचोड़ लिया हो। और ऊपर से वेदांत का वह थप्पड़, वह इल्जाम, वह नफरत भरी आंखें, सब कुछ उसके सीने में पत्थर बनकर धंस चुका था।
बच्चा उसके सीने पर हल्के-हल्के रो रहा था, जैसे उसे भी इस दुनिया की बेरहमी का एहसास हो रहा हो। हर सांस के साथ रिया को अपने बदन में झटके लगते थे। लेकिन वह अपने बच्चे को ढकने के लिए दुपट्टे का आखिरी कोना उसके ऊपर डाल देती ताकि उसकी एक सांस भी खतरे में न पड़े।
रात बढ़ती जा रही थी। सड़क के ऊपर टिमटिमाते पीले लैंप झुककर जैसे रिया की हालत देख रो रहे थे। कुछ लोग वहां से गुजरते हुए उसे अजीब नजरों से देखते। कोई रुकने की हिम्मत नहीं करता। किसी को क्या फर्क पड़ता कि एक औरत अपने नवजात के साथ ऐसे पड़ी है जैसे कोई ठुकराई हुई छाया।
रिया उस रात बस यही सोचती रही, “मैंने आखिर ऐसा क्या किया था? मैंने तो सारी जिंदगी इसी घर को बस अपना घर माना था। मैंने तो बस प्यार किया था।” लेकिन सवालों के जवाब उस रात हवा में भी नहीं थे।
सुबह की पहली किरण के साथ जब शहर धीरे-धीरे जागने लगा, रिया के अंदर एक फैसला और भी पक्का हो चुका था। अब उसे मदद की जरूरत नहीं थी। उसे एक ऐसी जगह चाहिए थी जहां इंसानियत का आखिरी टुकड़ा बाकी हो। उसे याद आया मंदिर देवी के चरणों वाला वो मंदिर, जो उसके घर से ज्यादा साफ, शांत और सुकून देने वाला था।
वह लड़खड़ाते कदमों से उठी, रिक्शा बुलाया और अपने बेटे को सीने में कसकर मंदिर की ओर निकल पड़ी। रिक्शा वाला उसे हैरानी से देख रहा था। “बहन जी, कुछ हुआ है क्या?” “हॉस्पिटल से आ रही हूं,” रिया बस सिर झुका ली। “मंदिर ले चलो।” वह शब्द उसकी टूटती सांसों से निकले थे।
मंदिर पहुंचकर उसे पहली बार लगा कि वह सुरक्षित है। यहां कोई उसे शर्म की नजर से नहीं देख रहा था। कोई उसके बच्चे के रंग, शक्ल, शक या उसके पति का नाम नहीं पूछ रहा था। घंटी की आवाज, जलती अगरबत्तियां और ठंडा संगमरमर उसका दर्द थोड़ी देर के लिए थाम रहे थे।
पंडित जी ने रिया की हालत देखकर तुरंत एक पुराना सा छोटा कमरा दे दिया। छत पर बना हुआ जर्जर सा कोना, जिसमें एक टूटी चारपाई और दो बर्तन पड़े थे। लेकिन रिया के लिए वह किसी महल से कम नहीं था। कम से कम वहां किसी की नफरत नहीं थी।
रिया अपने बेटे को आरव नाम देती है। अपनी सबसे बड़ी ताकत, अपनी सबसे बड़ी उम्मीद और उसी मंदिर के उसी कमरे में अपने नए जीवन की शुरुआत करती है। एक टूटी हुई औरत की तरह नहीं, बल्कि एक मां की तरह। दिन बीतता गया। रिया मंदिर की सीढ़ियों पर बैठती। लोग दान में दिया खाना उसे भी दे देते। कभी किसी ने चाय थमा दी, कभी किसी ने दूध।
आरव धीरे-धीरे उसकी बाहों में मजबूत होता जा रहा था। और जैसे-जैसे आरव की आंखें खुलने लगीं, रिया के अंदर एक नई हिम्मत जागने लगी। लेकिन इसके बीच एक अजीब सी बेचैनी हमेशा उसके आसपास रहती थी। निकाल दिया गया होना नहीं, इल्जाम नहीं, डर नहीं, बल्कि एक चेहरा, एक आवाज, एक डर जो दीवारों की तरह रिया के पीछे-पीछे आता था।
करण, हां वही करण जिसके लिए कहा गया था कि बच्चे की शक्ल उससे मिलती है। रिया नहीं जानती थी कि यह सवाल ही उसका रास्ता बदल देंगे। एक शाम जब मंदिर की भीड़ कम थी, रिया अपने बेटे को गोद में लिए प्रांगण के कोने में बैठी थी। तभी मंदिर के मुख्य दरवाजे से एक टूटा हुआ, कमजोर कांपता हुआ साया भीतर आया।
रिया ने जैसे ही उस चेहरे को देखा, उसकी सांसे हलक में अटक गई। वह करण था, पर वैसा करण नहीं। वो मिट्टी से भरा था। कपड़े फटे हुए थे। चेहरा सूजा हुआ था और उसकी आंखों में डर से ज्यादा पछतावा था। वह सीधे मंदिर में जाकर कोने में बैठ गया। लोगों को देखते हुए अपने हाथ जोड़कर कांपती आवाज में वही शब्द दोहराने लगा जो रिया ने कभी चुपके से सुने थे। “हे भगवान, भाभी जी का बच्चा कृपया इसे दुनिया में मत आने देना या सच्चाई को दफन रहने देना।”
रिया का दिल जोर से धड़का। यह क्या बकवास है? कौन सी सच्चाई? कौन सा डर? किसका रिश्ता? उसकी नसें तंग गईं। उसने आरव को कसकर पकड़ा। वो जानती थी आज जो भी सुनेगी, उसे फिर कभी चैन से जीने नहीं देगा। रिया धीरे-धीरे उसकी तरफ चली और उसके बिल्कुल सामने जाकर खड़ी हो गई। करण की नजरें ऊपर उठीं और उसे देख वह जैसे पत्थर हो गया।
उसने इतना ही कहा, “भाभी जी, आप और रिया की आवाज पहली बार इतनी तेज निकली। बोल करण, आज बोल तुम जिस सच्चाई से भाग रहे थे, आज वो मैं सुनना चाहती हूं। मेरे बच्चे का तेरा क्या रिश्ता? मेरा घर क्यों उजड़ा? कौन सी आग है जो तुम छुपा रहे हो?” करण फूट-फूट कर रोने लगा। घुटनों पर गिर गया। उसके शब्द टूटते जा रहे थे।
“भाभी जी, मैं दोषी नहीं हूं। लेकिन सच बहुत खौफनाक है।” रिया का दिल अब उसके सीने में नहीं था। गले में आ चुका था। उसने कहा, “सच बताओ करण, वरना आज मैं मर जाऊंगी। लेकिन इस अनिश्चितता में नहीं जी पाऊंगी।”

करण कांपते हुए बोला, “भाभी जी, आपका बच्चा आपका ही है, लेकिन जिस वजह से आपको घर से निकाला गया, वो वजह मैं नहीं हूं, बल्कि वो राज मेरी नसों में है। मेरी शक्ल में है। मेरे खून में है।” रिया की सांसें रुक गईं।
“राज कौन सा राज?” करण ने सिर उठाकर उसके आंखों में देखकर कहा, “क्योंकि जिस शक्ल से तुम्हारे बेटे की तुलना की गई, वह शक्ल मेरे पिता की है और वही पिता वेदांत के भी पिता थे।”
रिया के पैरों तले से जमीन खिसक गई। करण की बात सुनकर वह जैसे पत्थर बन गई। मंदिर की सीढ़ियों पर चलते लोगों की आवाजें भी मानो दूर कहीं खो गईं। रिया के कानों में बस करण के वही शब्द बार-बार गूंजते रहे, “मेरे पिता वही पिता वेदांत के भी पिता थे।”
रिया को लगा किसी ने उसकी सांसों पर ताला लगा दिया हो। उसकी उंगलियां अपने बच्चे के चारों तरफ और कस गईं। जैसे दुनिया उसे फिर से छीनने वाली हो। करीब कुछ सेकंड तक वो बोल भी नहीं पाई। उसका गला सूख गया। आंखें फैल गई और दिल जैसे धड़कना भूल गया। “क्या क्या मतलब है तुम्हारा?” उसने धीरे से कहा।
लेकिन आवाज इतनी टूटी हुई थी कि खुद उसे भी अपनी आवाज पर यकीन नहीं हुआ। करण ने आंखें बंद कर लीं। जैसे सच कहना उसके लिए किसी सजा जैसा हो। उसके चेहरे पर ऐसा दर्द था जैसे सालों का बोझ आज पहली बार उतर रहा हो। “भाभी जी, जब मैं छोटा था, मेरी मां की मौत के बाद मेरे पिता ने शादी कर ली थी। वेदांत की मां से हम दोनों एक ही बाप के बेटे हैं। लेकिन मुझे भाई नहीं, नौकर बनाया गया।”
रिया की पलकें भारी हो गईं। वो थरथराते हुए बोली, “अगर तुम दोनों भाई हो तो फिर मेरे बच्चे की शक्ल?” करण ने सिर झुका लिया। “मेरी शक्ल मेरे पिता पर गई है और वेदांत की शक्ल उसकी मां पर। आपका बेटा जिस पर गया है, वह मेरे पिता की मिलती-जुलती रंगत है। वही नाक, वही आंखें।”
रिया का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने महसूस किया कि उसकी उंगलियां ठंडी हो चुकी हैं। आंखें भर आईं पर रो नहीं पाई। क्योंकि यह दुख नहीं, यह सदमा था। मतलब वेदांत के शक की वजह तुम नहीं थे। “बल्कि तुम दोनों के पिता,” करण ने रोते हुए कहा। “यही मेरा डर था भाभी जी। अगर यह सच्चाई सामने आती, तो घर टूट जाता, वेदांत बिखर जाता और मुझे उस औरत से, वेदांत की मां से इतना खौफ था कि मैं सच बोल ही नहीं पाया।”
रिया के अंदर गुस्सा, दर्द और हैरानी एक साथ उठे। “उस औरत ने तुम्हें भाई बनकर नहीं देखा। तुम्हें नौकर बनाया। तुमसे तुम्हारा हक छीना। और फिर उसी राज को छिपाने के लिए मेरे बेटे को नाजायज कह दिया।”
करण फूट पड़ा। “हां भाभी जी, मेरी मजबूरी मेरी खामोशी बन गई और आपकी मजबूरी आपकी बर्बादी।” रिया की आंखें भर आईं। वो कांपते हुए जमीन पर बैठ गई। उसे लगा अगर वह उस रात यह सच जानती तो शायद उसके हाथ में आज भी उसका घर होता।
“शायद वेदांत की आंखों में शक ना होता। शायद वह सड़क पर नवजात लेकर नहीं भटक रही होती।” लेकिन रिया की मजबूती टूटने वाली नहीं थी। उसने आंसू पोंछे और उठकर बोली, “अब जो होना था, हो चुका करण। लेकिन यह सच अब दफन नहीं रहेगा। मेरा बच्चा किसी के पाप का दाग नहीं है। वो मेरी इज्जत है। मेरी पहचान है।”
करण ने सिर उठाया। “भाभी जी, अगर आप चाहें तो मैं सारा सच बता दूंगा।” रिया ने बेटे को सीने से और कस लिया। “पहले एक काम करना होगा।” करण ने घबराकर पूछा, “कौन सा?” रिया की आवाज सख्त हो गई। “आरव का डीएनए टेस्ट।”
करण ने एक पल को कुछ नहीं कहा। फिर सिर झुका कर बोला, “मैं आपके साथ हूं। अब चाहे जो भी हो। मैं इस बार नहीं डरूंगा।”
उस दिन रिया पहली बार मंदिर से बाहर निकली। बिना किसी डर, बिना किसी शर्म, सिर्फ अपने बेटे के लिए खड़ी हुई। एक मां के हौसले के साथ वो आरव का डीएनए टेस्ट करवाती है। रिपोर्ट आने में दो दिन लगने वाले थे। इन दो दिनों में रिया सोई नहीं। खाई भी नहीं। बस अपने बेटे को सीने से लगाकर यही सोचती रही, “जब सच सामने आएगा तो क्या वेदांत मेरी आंखों में अपनी गलती देख पाएगा?”
दूसरे दिन शाम को रिपोर्ट उसके हाथ में थी। उसने जैसे ही रिपोर्ट खोली, उसका दिल धड़कना भूल गया। वह दीवार से टिक गई। आंखों से आंसू निकलने लगे। पर इस बार यह दर्द के नहीं, एक राहत के आंसू थे। रिपोर्ट साफ-साफ कह रही थी, “आरव का बाप वेदांत ही है।”
रिया की सांसें भारी हो गईं। उसने अपने बेटे को चूमा और कहा, “अब कोई नहीं कहेगा कि तुम नाजायज हो। अब कोई तुम्हें धक्का नहीं देगा। मम्मी तुम्हारे लिए लड़ेंगी।” रिपोर्ट हाथ में लेकर रिया और करण उसी रात चौधरी निवास के गेट पर खड़े हो गए। वहीं जहां से रिया को बेइज्जत करके निकाला गया था।
करण ने रिया की तरफ देखा। “तैयार है भाभी जी?” रिया ने बेटे को सीने से लगाया। सिर उठाया और गेट में कदम रखा। आज वह गिरने नहीं आई थी। आज वह उठने आई थी।
उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस सच को घर के अंदर ले जाने के बाद कितनी जिंदगियां तिनके की तरह गिरने वाली थीं। हवेली के ड्राइंग रूम में रोशनी कम थी। दीवार पर लगी पुराने जमाने की घड़ी टिक टिक कर रही थी। और सोफे पर वेदांत बैठा अपनी ही दुनिया में खोया हुआ था।
दरवाजा खुला। उसने सिर उठाया और एक पल के लिए उसकी सांसे थम गईं। उसकी आंखों में हैरानी, डर और पछतावे का तूफान एक साथ दिखाई दिया। रिया बस इतना ही कह पाई, “रिया अंदर आई। शांत लेकिन दृढ़ कदमों से उसने बेटे को संभालते हुए कहा, ‘आज मैं रोने नहीं आई। ना सफाई देने, ना इल्जाम झेलने, आज मैं सच दिखाने आई हूं।’”
यशोदा देवी तेजी से भीतर आईं और रिया को देखते ही तानों का तूफान शुरू कर दिया। “फिर आ गई तुम, कोई शर्म नहीं है क्या?” रिया ने पहली बार उन्हें एक पल के लिए भी नहीं झेलना चाहा। वो बोली, “मां जी, मेरी शर्म उस रात खत्म हो गई थी। जब आप दोनों ने मुझे नवजात बच्चे के साथ घर से निकाल दिया।”
कमरे में अचानक सन्नाटा उतर गया। रिया ने वेदांत की तरफ देखा और फाइल उसकी ओर बढ़ा दी। “यह डीएनए रिपोर्ट है। देख लो, जिस बच्चे को तुमने नाजायज कहा था, वो तुम्हारा ही खून है।” वेदांत के हाथ कांपने लगे। उसने हर पन्ना ध्यान से पढ़ा। जैसे-जैसे उसकी आंखें आगे बढ़ रही थीं, उसका चेहरा सफेद पड़ता जा रहा था।
अंतिम पन्ने पर पहुंचकर उसकी आंखें भर आईं। वह रिया के पैरों में घुटनों के बल बैठ गया और फूट पड़ा। “रिया, मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। मैंने तुम्हें तकलीफ दी। मेरे शक ने तुम्हारी जिंदगी छीन ली। मुझे माफ कर दो। बस एक मौका और दे दो।”
लेकिन रिया आज टूटी नहीं थी। वो मजबूत थी। उसकी आवाज में गुस्सा नहीं, दर्द नहीं, बस एक सख्त साफ सच्चाई थी। “वेदांत, माफ करना आसान है लेकिन टूटे भरोसे को फिर से जोड़ना आसान नहीं। तुम्हारी गलती सिर्फ शक नहीं थी। तुमने मुझे सड़क पर फेंक दिया था, एक मां को जिसने तुम्हारे लिए सब छोड़ा, एक बच्चे को जो तुम्हारा ही था।”
वेदांत रो पड़ा। “मैं जानता हूं, मैंने सिर्फ गलती नहीं, पाप किया है।” यशोदा देवी तुरंत बीच में बोलीं, “रिया, तू घर मत तोड़। लौट आ, भूल जा सब।”
रिया ने उनकी आंखों में देखा। “घर आप लोगों ने तोड़ा है, मैंने नहीं। आपके एक झूठ ने करण का हक छीना, मुझसे मेरी इज्जत छीनी और मेरे बच्चे को नाजायज कहा। आज अगर आपका बेटा पछता रहा है, तो यह सिर्फ कर्मों का हिसाब है।”
करण चुपचाप खड़ा था, आंखों में आंसू। कंधों पर सालों का बोझ। “भाभी जी, अगर आप चाहें तो मैं इस घर को छोड़कर चला जाऊं। आपको किसी तरह का डर ना रहे।”
रिया ने मुड़कर उसे देखा। “तुम क्यों जाओगे? गलती तुम्हारी नहीं थी।” उसने बेटे के माथे को चूमा और कहा, “यह घर अब मेरे लिए सिर्फ चार दीवारें हैं। रिश्ते नहीं।”
वेदांत ने कांपती आवाज में कहा, “रिया, अगर तुम चली गई तो मैं टूट जाऊंगा।” रिया के कदम जमीन पर जमे थे। लेकिन दिल भीतर से टूट रहा था। फिर भी उसने अपनी आवाज को स्थिर रखा। “तुम पहले ही मुझे तोड़ चुके हो।”
वेदांत ने पुकारा। “रिया, आरव को एक बार मुझे पकड़ने दो। बस एक बार।” रिया ठिटकी। पीछे मुड़ी और बोली, “बच्चे को पकड़ना आसान है वेदांत, लेकिन उसके अधिकार, उसकी मां की इज्जत उन्हें पकड़ना मुश्किल होता है।”
वेदांत वही टूटकर घुटनों पर गिर गया। यशोदा देवी पहली बार बिना शब्दों के खड़ी थीं। जैसे उनका बनाया हुआ झूठ उनके सामने राख बनकर बिखर गया हो।
रिया ने आखिरी कदम बाहर रखा और उसने महसूस किया कि उस रात हवा पहले से हल्की थी, जैसे भगवान भी उसके सच के साथ खड़े हों। करण ने धीरे से कहा, “अब कहां चले भाभी जी?” रिया ने अपने बेटे को देखकर मुस्कुराया। “जहां इज्जत मिले, वही हमारा घर होगा।”
और वो रात सिर्फ चौधरी निवास का अंत नहीं थी। वो एक नई शुरुआत थी। एक मां और उसके बेटे की, जिसे किसी शक, किसी झूठ, किसी आदमी की गलत सोच कभी नहीं हरा सकी। रिया ने अपने बेटे को देखकर मुस्कुराया। “जहां इज्जत मिले, वही हमारा घर होगा।”
वो सीधे उसी मंदिर गई, जहां कभी उसकी शादी हुई थी। वहीं उसने करण का हाथ पकड़कर सात फेरों के साथ दोबारा जीवन शुरू किया। बिना डर, बिना झूठ, सिर्फ सच्चाई के साथ।
बाद में रिया ने कानूनी प्रक्रिया शुरू की और अदालत में सारे सबूत रखकर करण को उसके पिता की संपत्ति में पूरा हक दिलवाया। वो हक जो सालों से छीन लिया गया था। आज रिया, करण और छोटा आरव इज्जत, सच और अपनेपन के साथ एक नई जिंदगी जी रहे हैं।
समाप्त
इस कहानी की सीख यही है कि घर शक से नहीं, भरोसे से चलता है और रिश्तों में सबसे बड़ी जिम्मेदारी यही है कि किसी भी आरोप से पहले सच को समझा जाए। क्योंकि एक गलत फैसला कई जिंदगियां तोड़ देता है।
आप बताइए, क्या रिया ने अपना सम्मान बचाते हुए जो फैसला लिया, वह परिस्थितियों के हिसाब से सही था या गलत? कमेंट में अपनी राय जरूर लिखिए। आपकी एक राय किसी और की आंखें खोल सकती है।
अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो, तो वीडियो को लाइक करें। शेयर करें और चैनल “स्टोरी बाय अनिकेत” को सब्सक्राइब जरूर करें। मिलते हैं अगले वीडियो में। तब तक खुश रहिए, रिश्तों की कीमत की समझिए और अपनों के साथ सदा रहिए। जय हिंद, जय भारत।
Play video :
News
10 साल का बच्चा हॉस्पिटल में खून देने आया…डॉक्टर ने उसका नाम सुना तो रो पड़ा
10 साल का बच्चा हॉस्पिटल में खून देने आया…डॉक्टर ने उसका नाम सुना तो रो पड़ा कभी-कभी जिंदगी ऐसा सवाल…
Garib Admi Ko Kachre Mein Mile Crore Rupaye! Aage Usne Jo Kiya, Sab Hairaan Reh Gaye!
Garib Admi Ko Kachre Mein Mile Crore Rupaye! Aage Usne Jo Kiya, Sab Hairaan Reh Gaye! गांव के बाहर फैले…
दूधवाले के भेष में पहुंचा IPS अधिकारी, पुलिस इंस्पेक्टर ने समझा साधारण आदमी…
दूधवाले के भेष में पहुंचा IPS अधिकारी, पुलिस इंस्पेक्टर ने समझा साधारण आदमी… गांव में दरोगा का आतंक था। रोज…
आम लड़की के सामने क्यों झुक गया पुलिस वाला…
आम लड़की के सामने क्यों झुक गया पुलिस वाला… सुबह का वक्त था। एक ऑटो धीरे-धीरे चल रहा था और…
आखि़र SP मैडम क्यों झुक गई एक मोची के सामने जब सच्चाई आया सामने….
आखि़र SP मैडम क्यों झुक गई एक मोची के सामने जब सच्चाई आया सामने…. एक सुबह, जिले की आईपीएस मैडम…
इंस्पेक्टर ने–IPS मैडम को बीच रास्ते में थप्पड़ मारा और बत्तमीजी की सच्चाई जानकर पहले जमीन खिसक गई.
इंस्पेक्टर ने–IPS मैडम को बीच रास्ते में थप्पड़ मारा और बत्तमीजी की सच्चाई जानकर पहले जमीन खिसक गई. सुबह के…
End of content
No more pages to load






