बाप को बोझ समझकर बेटे – बहू ने रची साजिश, भेजा जेल… लेकिन फिर जो हुआ | Inspirational story
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बाप को बोझ समझकर बेटे-बहू ने रची साजिश, भेजा जेल… लेकिन फिर जो हुआ | एक प्रेरणादायक कहानी
राजस्थान के जयपुर में रहने वाले शिव प्रसाद जी की ज़िंदगी हमेशा खुशहाल रही थी। उन्होंने अपनी जवानी में खूब मेहनत की, एक अच्छा घर बनाया, बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और अपनी पत्नी के साथ हर सुख-दुख साझा किया। मगर जब पत्नी का साथ छूटा, शिव प्रसाद जी की दुनिया जैसे वीरान हो गई। उनके लिए घर की दीवारें भी तन्हाई का सबब बन गईं। अकेलापन उनका साथी बन गया।
शिव प्रसाद जी के बेटे विकास ने पढ़ाई के बाद न्यूयॉर्क में नौकरी पकड़ ली थी। वह अपनी पत्नी संध्या और दो बच्चों—रिया और आरव के साथ वहीं बस गया। शिव प्रसाद जी हर साल कुछ महीने बेटे के पास न्यूयॉर्क चले जाते थे। उन्हें उम्मीद थी कि बेटे के साथ रहने से अकेलापन दूर होगा। लेकिन वहां की जिंदगी, बच्चों की आदतें, बहू की बोली—सब कुछ अजनबी सा लगता था। घर में रहते हुए भी उन्हें अपनापन महसूस नहीं होता था।
बच्चे स्कूल चले जाते, विकास और संध्या ऑफिस। शिव प्रसाद जी दिनभर घर की दीवारों को ताकते रहते। कई बार उन्होंने बेटे से कहा, “बेटा, चलो गांव चलते हैं। अपने घर में अपनापन है, रिश्तों में गर्मी है।” मगर विकास हमेशा बात टाल देता।
एक दिन शिव प्रसाद जी कुर्सी पर बैठे-बैठे सोच रहे थे कि अब इस घर में रहना मुश्किल है। तभी दरवाजे की घंटी बजी। सामने लक्ष्मी खड़ी थी—घर की सफाई और खाना बनाने वाली। उसकी उम्र करीब 56 साल थी। शिव प्रसाद जी को लक्ष्मी से बातें करना अच्छा लगता था। उससे बातों में अपनापन मिलता था।
उस दिन शिव प्रसाद जी ने पूछा, “लक्ष्मी बहन, तुम्हारा बेटा अब नहीं रहा। फिर भारत क्यों नहीं गई?” लक्ष्मी ने गहरी सांस लेकर जवाब दिया, “साहब, बेटा सब बेचकर मुझे अपने साथ ले आया था। अब वहां मेरा कोई नहीं। यहां बेटे की विदेशी पत्नी ने मुझे घर से निकाल दिया। अब यही काम कर रही हूं। किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती।”
शिव प्रसाद जी की आंखें भर आईं। उन्होंने सोचा, “मैं भी तो यही गलती करने जा रहा हूं। बेटा कहता है सब बेच दो, यहीं बस जाओ। लेकिन अगर कभी कुछ हो गया तो?” तभी लक्ष्मी ने कहा, “साहब, खाना बन गया है। आज आपकी पसंद की कढ़ी बनाई है। आइए खा लीजिए, बच्चे भी आते ही होंगे।”
शिव प्रसाद जी डाइनिंग टेबल की ओर बढ़े, तभी पोते-पोती स्कूल से लौट आए। मगर उनका मन कभी बच्चों के साथ खाने बैठने का नहीं करता था। वह चुपचाप अपनी थाली लेकर एक कोने में बैठ गए। थोड़ी देर बाद बोले, “लक्ष्मी, मेरा चश्मा नहीं मिल रहा। देखो कहीं रखा है क्या?” लक्ष्मी ने जवाब दिया, “साहब, मैंने तो रिया के कमरे में देखा था।”
शिव प्रसाद जी जैसे ही कमरे में दाखिल हुए, रिया जोर से चिल्ला पड़ी, “हाउ डयर यू? डोंट यू नो हाउ टू नॉक? यू आर इन माय रूम!” शिव प्रसाद जी हकबका गए। “बेटा, माफ कर, ध्यान नहीं रहा। बस चश्मा लेने आया था।” मगर रिया का गुस्सा थमता ही नहीं था। शिव प्रसाद जी थरथराते हुए बाहर निकल आए। आंखों से आंसू बहने लगे। लक्ष्मी ने बाहर आकर उनका चश्मा दिया और कहा, “साहब, यहां ना तो कोई रिश्तों की गर्मी समझता है, ना ही दर्द। बच्ची है, कुछ भी कह गई होगी।”
शिव प्रसाद जी बोले, “नहीं लक्ष्मी, अब मैं इस घर में एक पल भी नहीं रहूंगा। अपना सामान पैक कर लिया है। चलो तुम्हारे घर चलता हूं।” लक्ष्मी ने घबरा कर कहा, “अरे साहब, कहां जाएंगे आप इस उम्र में? आप तो हमारे रूम पर चलो।” शिव प्रसाद जी ने हामी भरी और दोनों घर से निकल गए। रिया और आरव खिड़की से उन्हें जाते देख रहे थे और हंसते हुए बोले, “वाओ! व्हाट ए लव स्टोरी! दादू मेड के घर रहने चले गए।”
लक्ष्मी के छोटे से घर में पहुंचकर शिव प्रसाद जी को अपनापन मिला। वहां शांति थी जो बेटे के आलीशान घर में नहीं थी। लक्ष्मी ने उन्हें आत्मीयता से जगह दी। शिव प्रसाद जी बोले, “तुम्हें यहां क्या मिल रहा है लक्ष्मी, जो इतनी दूर अकेली जी रही हो?” लक्ष्मी बोली, “भैया, जब तक मैं यहां हूं, मुझे लगता है मेरा बेटा मेरे आसपास है। उसकी यादें इसी शहर में हैं।”
शाम को विकास और संध्या घर लौटे तो रिया ने शिकायतें शुरू कर दीं, “डैडी, दादू मेरे कमरे में बिना नॉक किए घुस आए थे।” आरव बोला, “दादू तो मेड के साथ चले गए हैं।” विकास को गुस्सा आया लेकिन वह भीतर से टूट गया। उसकी पत्नी और बच्चे अब उसके खिलाफ थे।
अगली सुबह शिव प्रसाद जी ने लक्ष्मी से कहा, “अब तुम कहीं नहीं जाओगी। जब तक मैं हूं, तुम मेरी बहन हो और तुम्हारा भाई जिंदा है।” लक्ष्मी की आंखें भर आईं। “भैया, मेरे तो कोई भाई नहीं था, लेकिन ईश्वर ने मुझे सात समंदर पार भेजकर एक सच्चा भाई दे दिया।” वह फूट-फूटकर रो पड़ी।
तभी दरवाजे पर विकास आया। लक्ष्मी घबरा गई, मगर शिव प्रसाद जी शांत थे। विकास उन्हें एक साथ देखकर बिना कुछ कहे वापस चला गया। रास्ते भर सोचता रहा, “क्या बच्चों की बातों पर भरोसा करूं या जो आंखों से देखा उस पर?”
अगले दिन लक्ष्मी का मोबाइल बजा—स्क्रीन पर विकास का नाम। विकास ने ताने और इल्जाम के साथ कहा, “आंटी, आप जो कर रही हो, वह ठीक नहीं है। कल जब मैं पापा को लेने आया था, तो देखा आप उनके गले लगी थीं।” लक्ष्मी के हाथ कांपने लगे। उसने फोन स्पीकर पर कर दिया। शिव प्रसाद जी ने गुस्से में फोन लिया, “बेटा, अब मैं बोल रहा हूं। तेरी बीवी ने तुझे इतना बदल दिया कि अब तुझे अपने बाप और बहन के रिश्ते में भी गंदगी नजर आती है। क्या तुझे मैंने यही संस्कार दिए थे?”
फोन पर सन्नाटा छा गया। फिर एक धीमी आवाज आई, “पापा, मैं…” मगर शिव प्रसाद जी ने फोन काट दिया।
उसी दोपहर रिया और आरव घर में खाना खोजते घूम रहे थे। रिया चिल्लाई, “मॉम्मा, आज डिनर कौन बनाएगा? उस मेड को कभी वापस मत बुलाना। उसने दादू को फंसा लिया है।” संध्या बोली, “तेरे दादू ने नौकरानी को लेकर भागने का काम किया है, और तुझे भूख लगी है!” विकास ने गुस्से में कहा, “स्टॉप इट! वो मेरे पिता हैं, रिस्पेक्ट से बात करो वरना…” मगर संध्या ने उंगली दिखाकर कहा, “यू सेड अप। अगर तुम्हें अपने डैडी के साथ जाना है तो जाओ।”
विकास की आंखों में पछतावा था। वो रात बहुत भारी थी। लक्ष्मी और शिव प्रसाद जी चुपचाप बैठे थे। लक्ष्मी बोली, “भैया, सब मेरी वजह से हुआ है। अब जब मेरी वजह से आपके बेटे की फैमिली बिखर रही है तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।” उसी रात शिव प्रसाद जी बिना किसी को बताए उठे, छोटा बैग तैयार किया और लक्ष्मी को सोता छोड़कर होटल चले गए।
सुबह लक्ष्मी उठी तो बिस्तर खाली था। उसने विकास को कॉल किया, “तेरे पापा कहां चले गए हैं?” विकास घबरा गया, “आंटी, यह सब मेरी गलती है। मैं पुलिस को कॉल करता हूं।”
शाम को पुलिस शिव प्रसाद जी को लेकर घर आई। उनके कपड़े अस्त-व्यस्त थे, माथे पर पट्टी थी। लक्ष्मी दौड़कर आई, “भैया, क्या हुआ आपको?” शिव प्रसाद जी बोले, “तेरी भाभी तो पहले ही चली गई थी। अब लगा अपनी जान दे दूं, लेकिन किस्मत देखो, पुलिस बीच में आ गई।”
पुलिस ने संध्या से पूछताछ की तो वह मुकर गई, “मैंने इन्हें नहीं मारा।” शिव प्रसाद जी ने बेटे की आंखों में देखते हुए कहा, “क्या तेरी बीवी ने मुझे धक्का नहीं दिया था विकास?” दरअसल, रात को शिव प्रसाद जी बेटे-बहू के घर गए थे, संध्या ने ताने मारकर धक्का दे दिया था। शिव प्रसाद जी चुपचाप निकल गए थे।
रिया आगे आई और जहर उगल दिया, “दादू और मेड का अफेयर चल रहा है। मम्मी को बुरा लगा तो उन्होंने बस धक्का दे दिया। मुझे डर लगता है इस ओल्ड मैन से। पुलिस अंकल, इन्हें अरेस्ट कर लीजिए।” लक्ष्मी की आंखें भीग गईं। विकास कुछ नहीं बोल सका। पुलिस ने शिव प्रसाद जी को गिरफ्तार कर लिया।
लक्ष्मी भागी, “भैया रुको! कुछ तो बोलो!” मगर शिव प्रसाद जी ने सिर झुका लिया। लक्ष्मी ने विकास से कहा, “धिक्कार है तुम पर। एक पिता अपने बेटे के घर कुछ दिन को आया था और तुम सब ने उसे झूठे इल्जाम में जेल भिजवा दिया।”
मगर उसी वक्त विकास के अंदर कुछ टूट चुका था। वह लक्ष्मी के घर पहुंचा, उसके पैरों में गिर गया, “आंटी, मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। पापा को जेल भेजने में मैंने कुछ नहीं किया। अब मैं भी उन्हीं के साथ रहूंगा।” लक्ष्मी ने कांपते हाथों से सिर पर हाथ रखा, “अब पछताएगा जब चिड़िया चुक गई। चल अभी हम उन्हें छुड़ा सकते हैं।”
विकास और लक्ष्मी पुलिस स्टेशन गए, बड़ी मशक्कत के बाद शिव प्रसाद जी की जमानत करवाई। बाहर आकर लक्ष्मी ने कहा, “भैया चलो घर चलते हैं।” मगर शिव प्रसाद जी बोले, “तेरी मां हमेशा कहती थी कि बुढ़ापे में बेटा ही सहारा बनेगा। लेकिन देख, बेटे की बेटी ने मुझे दरिंदा कह डाला। अब क्या बचा है यहां?”
लक्ष्मी बोली, “अगर आप समझते हैं कि मैं आपको लेकर बदनाम हो रही हूं तो मैं तैयार हूं आपके साथ भारत लौटने के लिए। मैं बस चाहती थी कि विकास का घर बच जाए।” शिव प्रसाद जी बोले, “मुझे अब किसी का डर नहीं। बस इस डर से जी रहा हूं कि मेरी वजह से तू ना टूट जाए।”
विकास बोला, “पापा, अगर आप इंडिया जाएंगे तो मैं भी साथ चलूंगा। मैं तलाक के पेपर तैयार करवा रहा हूं। मेरे लिए अब सिर्फ आप मायने रखते हैं।”
अचानक रिया का फोन आया, “डैडी, जल्दी घर आइए। मम्मी गिर गई है, सर से खून बह रहा है। मैंने एंबुलेंस बुला ली है।” तीनों अस्पताल की तरफ भागे। ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा। अब खतरे से बाहर है।
रिया दौड़कर दादू के पैरों में गिर पड़ी, “दादू, प्लीज माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी।” शिव प्रसाद जी ने कहा, “चल उठ बिटिया। अब सब ठीक है। तेरी मम्मी भी ठीक हो जाएगी, और हमारा परिवार भी।” आरव भी दादू से लिपट गया।
संध्या ने शिव प्रसाद जी को देखकर हाथ जोड़ दिए, “पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। अब समझ गई हूं। आप अगर भारत जाना चाहें तो हम सब आपके साथ चलेंगे।”
शिव प्रसाद जी बोले, “माफी शब्द से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता। अगर तुमने यह महसूस कर लिया कि रिश्ते भावनाओं से बनते हैं तो समझ लो कि हमारी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत हो गई।”
अस्पताल से छुट्टी के बाद सब घर लौटे। घर की हवा में पहली बार अपनापन था। लक्ष्मी भी उसी घर में रहने लगी। वह अब सिर्फ मेड नहीं थी, परिवार की इज्जत थी। एक शाम रिया ने पूछा, “दादू, अगर मैं फिर से गलती करूं, तो क्या आप मुझे फिर माफ कर देंगे?” शिव प्रसाद जी ने हंसते हुए कहा, “गलती इंसान करता है बेटा, और माफ करना भगवान का काम है। मगर हम भारतीय हैं, हम इंसान बनकर भगवान की तरह माफ करना सीखते हैं।”
लक्ष्मी मुस्कुराई, “भैया, घर जोड़ने के लिए प्यार चाहिए और वह आपके पास हमेशा था। बस लोगों को उसकी अहमियत अब समझ आई है।”
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