बारिश में लड़की ने || टैक्सी ड्राइवर से थोड़ी सी मदद मांगी लेकिन फिर जो टैक्सी

दिल्ली की सर्द रात थी। घड़ी ने अभी-अभी बारह बजाए ही थे और आसमान से मानो पानी की चादर गिर रही थी। मूसलाधार बारिश ने सड़कों को वीरान कर दिया था। ऐसे में शहर की एक तंग सड़क के किनारे रवि अपनी पुरानी टैक्सी में सीट पीछे झुकाकर आराम कर रहा था।

रवि वही लड़का था जिसने अपने पिता की मौत के बाद उनकी टैक्सी संभाली थी। माँ भी कुछ ही सालों बाद दुनिया छोड़ गईं। बचपन में ही उसने जीवन की कठोर सच्चाइयाँ देख ली थीं। घर में अब केवल वही और उसकी बहन नेहा थे, जिसे उसने अपनी शादी से पहले ही ब्याह दिया था। वह बहन को देखकर मुस्कुराता था, लेकिन अपने छोटे से घर में अकेलापन उसे काटने को दौड़ता। इसलिए अकसर देर रात तक टैक्सी चलाना या सड़क किनारे गाड़ी खड़ी कर झपकी लेना उसकी आदत बन गई थी।

उस रात भी उसने यही किया। बाहर बारिश थी और टैक्सी के शीशे पर पानी की बूंदें सरक रही थीं। तभी अचानक ठक-ठक की आवाज़ हुई। रवि चौंककर उठ बैठा। खिड़की के पार एक लड़की खड़ी थी—भीगी हुई, अस्त-व्यस्त कपड़े, चेहरे पर डर और आँखों में दया की गुहार। वह हाथ जोड़कर अंदर आने का इशारा कर रही थी।

रवि का दिल दहल गया। आधी रात को, इस हाल में एक लड़की? उसने सोचा—“कहीं मुसीबत में न फँस जाऊँ।” लेकिन जब उसकी आँखों में देखा तो भीतर की इंसानियत ने जीत ली। उसने पिछला दरवाज़ा खोला और लड़की अंदर आ गई। वह घबराई आवाज़ में बोली—
“प्लीज़, गाड़ी चलाओ… कोई मेरा पीछा कर रहा है।”

लेकिन वाक्य पूरा होते-होते वह बेहोश होकर सीट पर गिर गई। रवि का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। तभी सामने से एक बड़ी कार आकर रुकी। दो युवक उतरे और उसकी खिड़की पर दस्तक दी।
“ओए ड्राइवर, इधर कोई लड़की भागकर आई क्या?”
रवि ने साँस रोकी, फिर बड़ी सहजता से बोला—
“नहीं साहब, मैं तो यहाँ कबसे सो रहा हूँ।”

बारिश ने उनका ध्यान भटका दिया और वे लोग आगे बढ़ गए। रवि ने राहत की साँस ली। उसने सोचा कि लड़की को अस्पताल ले जाए, पर मन ने कहा—“नहीं, वहाँ भी खतरा है।” आखिरकार वह उसे अपने छोटे से घर ले आया। बरसाती गली में सन्नाटा पसरा था। उसने शॉल में लपेटकर लड़की को कमरे में लिटाया और खुद कुर्सी पर बैठ गया।

सुबह आँख खुली तो देखा, लड़की गहरी नींद में है। रवि ने दो कप कॉफ़ी बनाई। तभी लड़की हड़बड़ाकर उठ बैठी—
“मैं यहाँ कैसे…?”
रवि ने मुस्कुराकर कहा—
“डरने की ज़रूरत नहीं है। आप सुरक्षित हैं। रात को बेहोश हो गई थीं, इसलिए मैं आपको यहाँ ले आया।”

धीरे-धीरे लड़की ने अपने मन का बोझ उतारा। उसका नाम था काव्या। वह कॉल सेंटर में काम करती थी। पिछली रात ड्यूटी से लौटते समय दो शराबी लड़कों ने उसे परेशान किया था। डरकर भागी तो उसका पर्स भी गिर गया। और फिर उसे रवि की टैक्सी दिखाई दी। उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े।

रवि ने चुपचाप सुना, फिर कहा—
“चिंता मत करो। मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ।”

वह उसे उसके मोहल्ले तक छोड़ आया। काव्या जाते-जाते बोली—
“थैंक्यू रवि… अगर आप न होते तो न जाने क्या होता।”

अगले दिन रवि अपने काम में लग गया, लेकिन काव्या की छवि उसकी आँखों में घूमती रही। वह सादा सलवार-कुर्ता, भीगी ज़ुल्फें और डरी हुई आँखें—उसे चैन नहीं लेने दे रही थीं।

कुछ ही दिनों बाद रवि के दरवाज़े पर दस्तक हुई। दरवाज़ा खोला तो सामने वही काव्या खड़ी थी, इस बार अपने माता-पिता के साथ। रवि चौंका। काव्या मुस्कुराई और बोली—
“यहीं खड़े रहोगे? घर के अंदर नहीं बुलाओगे?”

रवि ने झिझकते हुए सबको अंदर बिठाया। काव्या के पिता बोले—
“बेटा, आज के ज़माने में तेरे जैसा नेक इंसान मिलना मुश्किल है। तूने हमारी बेटी की जान बचाई, इसके लिए तेरा शुक्रिया।”

रवि ने सिर झुका लिया—
“अंकल, इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीं। जो मेरा फ़र्ज़ था, वही किया।”

काव्या चाय बनाने उठी और रसोई में जाकर सब संभाल लिया। रवि मन ही मन उसकी सादगी और आत्मनिर्भरता पर मोहित होता जा रहा था। धीरे-धीरे काव्या और उसका परिवार रवि से मिलने आने लगे। कभी माँ-बाप के साथ, तो कभी अकेले।

एक दिन काव्या अकेली आई। उसने खाना बनाया और अचानक रवि से कहा—
“रवि, मुझे तुमसे कुछ कहना है। उस रात से ही मेरे दिल में तुम्हारे लिए इज़्ज़त और अपनापन है। सच कहूँ तो मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ। क्या तुम मुझसे शादी करोगे?”

रवि अवाक रह गया।
“काव्या, मैं सिर्फ़ टैक्सी ड्राइवर हूँ। तुम्हारे घर वाले राज़ी नहीं होंगे। लोग हँसेंगे भी…”

काव्या ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा—
“मुझे दुनिया की परवाह नहीं। जिस इंसान ने उस रात मेरी इज़्ज़त और मेरी जान दोनों बचाईं, उसके साथ पूरी ज़िंदगी गुज़ार सकती हूँ। मेरे लिए वही काफ़ी है।”

रवि की आँखों में आँसू आ गए। उसने पहली बार महसूस किया कि ज़िंदगी की सारी तन्हाइयों के बीच अब कोई अपना है, जो उसके साथ हर हाल में खड़ा रहेगा।

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