बुजुर्ग ने बोर्डिंग से पहले सिर्फ पानी माँगा एयर होस्टेस ने कहा “यहाँ भीख नहीं मिलती”

दिल्ली एयरपोर्ट की सुबह

दिल्ली एयरपोर्ट की सुबह हमेशा की तरह भीड़भाड़ से भरी थी। चमचमाते फर्श पर लोग अपने ट्रॉली बैग घसीटते हुए जल्दी-जल्दी आगे बढ़ रहे थे। हर किसी के चेहरे पर कहीं पहुंचने की हड़बड़ी थी। उसी भीड़ में एक बुजुर्ग व्यक्ति, जिनकी उम्र लगभग सत्तर के आसपास रही होगी, धीरे-धीरे अपने थके कदमों से आगे बढ़ रहे थे। उनका पहनावा साधारण था—धुले हुए लेकिन पुराने और फीके पड़ चुके कुर्ता-पायजामा, घिसी हुई चप्पलें, हाथ में एक छोटा सा कपड़े का थैला। चेहरे पर हल्की थकान, आंखों में गहरी शांति।

गेट नंबर तीन के पास एक बड़ा सा बोर्डिंग काउंटर था, जहां नीले यूनिफार्म में एक जवान एयर होस्टेस खड़ी थी। बुजुर्ग वहाँ पहुंचे और धीमे स्वर में बोले, “बेटी, क्या एक गिलास पानी मिल सकता है?” लड़की ने उनकी तरफ देखा, फिर होठों पर हल्की-सी हँसी आ गई। अगले ही पल वह हँसी तंज में बदल गई। “यह कोई पानी का नल है क्या? जाओ बाहर, वहाँ भीख मांग लो।” पास खड़े कुछ यात्री हँस पड़े। किसी ने धीरे से कहा, “एयरपोर्ट पर भीख मांगने लगे हैं लोग।” एक लड़का मोबाइल निकालकर वीडियो बनाने लगा।

बुजुर्ग के चेहरे पर एक पल को शर्मिंदगी और दर्द की लकीर उभर आई। लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, बस नजरें झुका लीं। इतने में दो CISF जवान पास आए। एक ने कहा, “अरे बाबा, लाइन मत रोको। हटो साइड में।” दूसरा बोला, “पहले पैसे कमाओ, फिर हवाई जहाज में बैठना।” बुजुर्ग बिना कुछ बोले धीरे-धीरे पीछे हट गए। किसी ने उनके लिए कुर्सी ऑफर नहीं की, कोई पानी देने की कोशिश तक नहीं की। वह चुपचाप एक कोने में पड़ी लोहे की बेंच पर बैठ गए। चारों तरफ से लोग गुजर रहे थे, कोई उन्हें देखता तक नहीं। मानो वह वहाँ मौजूद ही न हों।

उनकी आंखों में नमी थी, होठ और सूख चुके थे। उन्होंने पास रखे बैग को देखा, फिर भीड़ की तरफ, फिर वापस फर्श की ओर। कुछ पल आंखें बंद कीं, फिर स्थिर होकर बैठ गए।

लाउडस्पीकर से आवाज आई, “अटेंशन प्लीज, फ्लाइट AI 827 मुंबई के लिए तैयार है।” अब बोर्डिंग यात्रियों में हलचल बढ़ गई। लोग अपने बैग उठाकर लाइन में लगने लगे। माहौल में यात्रा की उत्सुकता थी, पर उस कोने में बैठे बुजुर्ग के चारों ओर वक्त जैसे ठहर गया था। कोई नहीं सोच रहा था कि इस व्यक्ति को क्यों पानी चाहिए था या उसकी मदद कौन करेगा। सब अपने-अपने सफर में व्यस्त थे।

अचानक की हलचल

बोर्डिंग गेट पर भीड़ और बढ़ चुकी थी। वही एयर होस्टेस, जिसने बुजुर्ग का मजाक उड़ाया था, अब बड़े शौक से अमीर यात्रियों का स्वागत कर रही थी। तभी एयरपोर्ट के मुख्य दरवाजे से हलचल शुरू हुई। दो पुलिसकर्मी सबसे आगे चलते हुए रास्ता बना रहे थे। उनके पीछे चार-पाँच सीनियर अधिकारी हाथ में फाइलें और रेडियो लिए तेजी से बढ़ रहे थे। उनके चेहरे पर गंभीरता थी, जो रोज-रोज एयरपोर्ट पर नहीं दिखती।

भीड़ में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई। “अरे यह तो एयरलाइन के हेड ऑफिस वाले हैं। कोई VIP आ रहा है शायद।” गेट नंबर तीन के पास मौजूद लोग भी चौंक कर देखने लगे। अचानक उसी कोने से, जहाँ बुजुर्ग चुपचाप बैठे थे, हरकत हुई। वह धीरे-धीरे उठे, अपना थैला कंधे पर डाला और बिना जल्दी किए पुलिसकर्मियों के साथ आगे बढ़ने लगे।

पहले तो किसी को समझ नहीं आया कि यह हो क्या रहा है। यात्रियों ने आपस में कहा, “यह वही आदमी है ना जो पानी मांग रहा था?” “हां, लेकिन यह VIP प्रोसेशन में कैसे?” पुलिसकर्मी उनके दोनों ओर चल रहे थे, मानो किसी बड़े शख्सियत की सुरक्षा कर रहे हों। उनके पीछे एयरलाइन के सीनियर मैनेजर हाथ जोड़कर चलते हुए। वही एयर होस्टेस, जिसने उन्हें अपमानित किया था, उन्हें देखते ही सख्त हो गई। उसकी मुस्कान गायब हो गई, हाथ हल्का सा कांपने लगा।

बुजुर्ग का चेहरा शांत था। ना गुस्सा, ना घबराहट, बस एक गहरी गंभीरता। लोग मोबाइल निकालकर रिकॉर्ड करने लगे। सुरक्षा स्टाफ ने गेट तुरंत खाली कराया और बुजुर्ग को सबसे आगे ले जाया गया। वो कतार में खड़े नहीं हुए, सीधे गेट से अंदर।

एक यात्री जिसने उन पर ताना कसा था, बुदबुदाया, “यह तो कुछ बड़ा आदमी है।” उसका दोस्त बोला, “भाई, बड़ा आदमी तो होगा, लेकिन पहले पानी मांग रहा था, याद है?” अंदर जाने से पहले बुजुर्ग ने एक पल के लिए उस एयर होस्टेस की ओर देखा। वह नजर बहुत गहरी थी, जिसमें ना चीख थी, ना बदला, लेकिन दिल तक चुभ जाने वाली चुप्पी थी। लड़की की आंखें झुक गईं।

विमान के अंदर का माहौल

विमान का दरवाजा खुला और हल्की ठंडी हवा के साथ अलग सी खुशबू बाहर आई। बिजनेस क्लास का माहौल—नीली मखमली सीटें, चमकती खिड़कियों से आती सुनहरी धूप और सन्नाटा। दरवाजे के पास खड़े कैप्टन ने फौरन टोपी उतारकर सलाम किया, “वेलकम ए बोर्ड सर।” सीनियर क्रू मेंबर भी झुककर आदर में खड़े हो गए।

बाहर खड़े यात्रियों की आंखें चौड़ी हो चुकी थीं। “यह तो सच में बहुत बड़े आदमी हैं, लेकिन ऐसे कपड़ों में क्यों थे?” एयर होस्टेस, जिसने उनका मजाक उड़ाया था, अब विमान के अंदर खड़ी थी। उसके चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था। जैसे ही बुजुर्ग उसके सामने से गुजरे, वह एक पल को पीछे हट गई, सिर झुका लिया। बुजुर्ग ने उसकी तरफ बस एक नजर डाली, बिना कुछ बोले, बिना कोई गुस्से का इज़हार किए।

सीनियर मैनेजर ने उनका हाथ थामकर उन्हें सबसे आगे की विशेष सीट तक पहुंचाया, जिसे केवल एयरलाइन का मालिक या विशेष अतिथि ही इस्तेमाल करता है। सीट के पास पहले से ही मिनरल वाटर, ताजा जूस और गर्म तौलिया रखा था। जैसे ही वह बैठे, विमान के अंदर हल्की सी फुसफुसाहट शुरू हो गई। “भाई, अब तो पक्का यह मालिक है।” “हां, वरना कैप्टन खुद सलाम करता है क्या?”

बुजुर्ग शांत थे। उन्होंने पानी का गिलास उठाया, एक घूंट पिया और फिर खिड़की से बाहर रनवे की तरफ देखने लगे। यह वही पानी था, जो उन्हें देने से मना कर दिया गया था।

सच्चाई का खुलासा

कुछ ही देर में कैप्टन का अनाउंसमेंट स्पीकर पर गूंजा, “गुड मॉर्निंग लेडीज एंड जेंटलमैन। बिफोर वी टेक ऑफ, आई वुड लाइक टू रिक्वेस्ट योर अटेंशन फॉर अ स्पेशल अनाउंसमेंट।”

पूरे विमान में सन्नाटा छा गया। “टुडे वी आर ऑनर्ड टू हैव ऑन बोर्ड द चेयरमैन एंड ओनर ऑफ दिस एयरलाइन।”

यह सुनते ही कई यात्रियों ने मोबाइल निकालकर रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया। वह बुजुर्ग, जो कुछ देर पहले एक साधारण यात्री की तरह, यहाँ तक कि भिखारी समझे गए थे, अब सभी की निगाहों का केंद्र बन गए थे। पास बैठी एक महिला ने कहा, “बेटा, तुम तो बड़े आदमी निकले। लेकिन यह साधारण कपड़े?” उन्होंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, “कपड़े इंसान को नहीं, इंसान कपड़ों को सम्मान देता है। और यही देखना था।”

कैप्टन का अनाउंसमेंट खत्म होते ही सभी की नजरें बुजुर्ग पर टिक गईं। वह धीरे-धीरे उठे, अपने साधारण कुर्ते को ठीक किया और माइक के पास आए। उनकी आवाज शांत थी, लेकिन उसमें एक ऐसा वजन था कि पूरा विमान सुनने को मजबूर हो गया।

“दोस्तों,” उन्होंने शुरू किया, “आज मैं यहाँ एक मालिक के तौर पर नहीं, एक इंसान के तौर पर खड़ा हूँ। कुछ घंटों पहले मैंने यहाँ सिर्फ एक गिलास पानी माँगा था, लेकिन मुझे हँसी और अपमान मिला। कहा गया—जाओ बाहर भीख माँगो। उस वक्त शायद किसी को लगा होगा कि एक फटे चप्पल वाला बूढ़ा आदमी पानी माँगकर उनका वक्त बर्बाद कर रहा है।”

कई यात्रियों के चेहरे झुक गए। एयर होस्टेस जिसने उनका मजाक उड़ाया था, कांपते हाथों से ट्रे पकड़े खड़ी थी। “लेकिन एक बात याद रखिए, एक गिलास पानी की कीमत शायद शून्य हो, मगर एक इंसान की इज्जत अनमोल है।”

उन्होंने अपनी जेब से एक छोटा सा कार्ड निकाला और हवा में उठाया, “यह मेरा पहचान पत्र है—चेयरमैन एंड ओनर, स्काईव एयरलाइंस।”

पूरे विमान में सन्नाटा छा गया। सबके चेहरे पर सवाल था, “यह आदमी ऐसे कपड़ों में क्यों था?” वह मुस्कुराए, “मैं आज यहाँ ऐसे कपड़ों में इसलिए आया ताकि देख सकूं कि मेरी एयरलाइन में यात्री को कपड़ों से परखा जाता है या इंसानियत से।”

उन्होंने गहरी सांस ली, “और आज मुझे जवाब मिल गया।”

वो कैप्टन की तरफ मुड़े, “अभी से एक नया नियम लागू करो। इस एयरलाइन में किसी भी यात्री को, चाहे वह किसी भी कपड़े में हो, किसी भी क्लास में सफर करे, उसे सम्मान से पेश आया जाएगा। एक गिलास पानी हर किसी को मुफ्त मिलेगा, चाहे वह माँगे या नहीं।”

कैप्टन ने सिर हिलाकर सहमति दी। फिर उन्होंने सीनियर मैनेजर की ओर इशारा किया, “और जहां तक उस एयर होस्टेस का सवाल है, उसे तुरंत सस्पेंड किया जाए और ग्राहक सेवा की ट्रेनिंग के बाद ही वापस ड्यूटी पर भेजा जाए।”

एयर होस्टेस की आंखों में आंसू आ गए। वह समझ चुकी थी कि यह सजा सिर्फ उसके लिए नहीं बल्कि सबके लिए एक सबक है।

बुजुर्ग ने माइक पर आखिरी लाइन कही, “उन्होंने मुझे एक गिलास पानी से मना किया, लेकिन बदले में मैंने उन्हें एक समंदर जितनी शर्म लौटा दी।”

पूरा विमान तालियों से गूंज उठा। लेकिन कुछ ताली सिर्फ नियम के लिए नहीं, बल्कि उस इंसान के लिए थी जिसने साबित कर दिया कि इज्जत कपड़ों से नहीं, दिल से दी जाती है।

समाप्त