बूढ़े आदमी को बस से धक्का देकर उतार दिया गया और कहा गया कि अब कोई सीट खाली नहीं है। लेकिन अगले स्टॉप पर यही फिर हुआ।
सुबह का वक्त था। शहर की सड़कों पर हल्की-हल्की ठंडक के साथ बस स्टैंड पर भीड़ जमा थी। हर कोई अपनी मंजिल पर जल्दी पहुंचने की हड़बड़ी में था। उसी भीड़ में एक दुबला पतला बुजुर्ग व्यक्ति धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए आया। उसकी उम्र करीब 70 साल रही होगी। उसने हल्के भूरे रंग का पुराना फीका सा कुर्ता पहन रखा था। जिस पर समय और मेहनत के निशान साफ झलकते थे। पैरों में घिसी हुई चप्पलें थी और कंधे पर एक छोटा सा कपड़े का थैला लटका हुआ था। चेहरा झुर्रियों से भरा लेकिन आंखों में एक शांत सी चमक थी जैसे जिंदगी ने बहुत कुछ सिखा दिया हो। बस स्टॉप पर खड़ी
सरकारी बस धीरे-धीरे प्लेटफार्म की तरफ खिसकी। भीड़ ने एक साथ दरवाजे की ओर धक्का दिया। बुजुर्ग ने भी कोशिश की कि भीड़ में धक्कामुक्की ना हो। लेकिन किसी तरह बस में चढ़ने में सफल रहा। बस के अंदर पहले से ही ठसाठस भीड़ थी। हर सीट पर लोग बैठे हुए थे और गलियारे में खड़े लोग बैलेंस बनाने की कोशिश कर रहे थे। बुजुर्ग ने हल्की सी मुस्कान के साथ सबसे नजदीकी सीट पर बैठे युवक से कहा। बेटा अगर तुम उतरने वाले हो तो मुझे बैठने दे दो। पैर में दर्द है। युवक ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। होठों पर हल्की सी तिरछी मुस्कान आई और फिर आंखें घुमा ली। मानो कह रहा हो कि मुझे
परवाह नहीं। पास बैठे एक और यात्री ने हंसते हुए ताना मारा। अरे बाबा यह पब्लिक बस है। यहां सबको जगह मिलना मुश्किल है। अगर खड़े नहीं रह सकते तो टैक्सी कर लो। बुजुर्ग ने बस हल्का सा सिर झुका लिया। वो कुछ कहना चाहते थे। लेकिन आवाज गले में अटक गई। बस झटके से आगे बढ़ी। बुजुर्ग ने एक लोहे की रड पकड़ ली। लेकिन उनकी पकड़ ढीली थी। अगले मोड़ पर बस जोर से मुड़ी और पीछे खड़े एक युवक ने जानबूझकर उन्हें धक्का दिया। अरे बाबा अगर खड़े नहीं रह सकते तो क्यों चढ़े? युवक ने ऊंची आवाज में कहा। पूरी बस में कुछ लोग हंस पड़े। बुजुर्ग की आंखों में हल्की नमी उतर आई।
लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। अगले ही स्टॉप पर बुजुर्ग ने धीरे-धीरे बस से उतरने का फैसला किया। ड्राइवर ने दरवाजा बंद किया और बस फिर चल पड़ी। सड़क किनारे उतर कर बुजुर्ग एक पल को थमे थैला कंधे से उतारा और लंबी सांस ली। शायद वह अपमान का बोझ दिल में उतार रहे थे। उधर बस के अंदर माहौल जैसे कुछ हुआ ही नहीं। लोग फिर अपने मोबाइल बातें और खिड़की के बाहर देखते नजारों में खो गए। लेकिन उन्हें नहीं पता था यह सफर अब एक ऐसा मोड़ लेने वाला है जिसे वह कभी नहीं भूलेंगे। बस अपनी रफ्तार से अगले स्टॉप की ओर बढ़ रही थी। इंजन की घरघर आवाज, हॉर्न की तेज गूंज और भीड़ का
शोर सब एक साथ मिलकर एक सामान्य शहर की सुबह जैसा माहौल बना रहे थे। तभी अचानक बस के सामने से एक तेज सिटी की आवाज आई। ड्राइवर ने ब्रेक मारा और बस झटके से रुक गई। सड़क के बीचोंबीच एक सिक्योरिटी गार्ड खड़ा था। हरी वर्दी, सीना तना हुआ और चेहरे पर गंभीरता। उसके हाथ में वॉकी टॉकी थी और वह बस की ओर इशारा कर रहा था। बस रोको तुरंत रोको। यात्रियों में खुसरपुसर शुरू हो गई। क्या हुआ? किसी ने चैन खींची क्या? शायद टिकट चेक हो रहा है। ड्राइवर ने दरवाजा खोला और गार्ड तेज कदमों से अंदर चढ़ा आया। उसकी आंखें भीड़ में कुछ खोज रही थी। वो गलियारे से आगे बढ़ता गया।
हर सीट को ध्यान से देखते हुए। अचानक उसकी नजर एक सीट पर बैठे उस युवक पर पड़ी। वही जिसने थोड़ी देर पहले बुजुर्ग को धक्का देकर बस से उतार दिया था। गार्ड उसके सामने रुक गया और गहरी तेज आवाज में बोला। तुम थोड़ी देर पहले इस बस में एक बुजुर्ग को धक्का देकर उतारा था। युवक हड़बड़ा गया। नजरें झुका ली। लेकिन होठों पर एक बनावटी हंसी आ गई। अरे भाई वो बस ऐसे ही बैठने की जगह नहीं थी। गार्ड ने उसकी बात काटते हुए पूरे बस में गूंजने वाली आवाज में कहा। तुम जानते भी हो वह कौन थे। बस में सन्नाटा छा गया। ड्राइवर ने भी कान खड़े कर दिए और खिड़की से झांक रहे लोग चुप हो
गए। गार्ड ने गहरी सांस ली और कहा, वह हमारे शहर के ट्रांसपोर्ट विभाग के रिटायर्ड हेड है। वही शख्स जिन्होंने यह बस रूट बनाए जिन पर तुम रोज सफर करते हो। पूरा माहौल जैसे जम गया। कई लोग हैरानी से एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। गार्ड ने आगे कहा। तुमने उनका अपमान किया। उनकी उम्र का नहीं उनकी सेवा का भी। युवक का चेहरा पीला पड़ गया। उसकी हंसी गायब थी और आंखें नीचे झुक गई। गार्ड ने ड्राइवर की ओर देखा। बस को तुरंत रोकिए। उन्हें वापस लाना होगा। ड्राइवर ने बिना देर किए बस साइड में लगाई और गार्ड उतर कर तेजी से उसी रास्ते की ओर बढ़ा जहां बुजुर्ग को
उतारा गया था। बस के अंदर बैठे लोगों को अब हर सेकंड भारी लगने लगा। उनके मन में सवाल थे। शर्म थी और इंतजार कि अब आगे क्या होगा। गार्ड तेज कदमों से बस स्टॉप की ओर भागा। सड़क पर भीड़ थी। पर उसकी आंखें सिर्फ एक चेहरे को खोज रही थी। झुर्रियों से भरा, थका हुआ। लेकिन गरिमा से भरा वह चेहरा। थोड़ी दूर पेड़ की छाया में बुजुर्ग एक पत्थर पर बैठे थे। उनके हाथ में वही छोटा कपड़े का थैला था और आंखें सड़क पर नहीं बल्कि अपने पैरों की धूल में घूम थी। लगता था जैसे वह दुनिया से बातें करने की इच्छा छोड़ चुके हो। गार्ड उनके सामने रुक गया। सलाम ठोकते हुए
बोला सर कृपया वापस चलिए बस में सब आपका इंतजार कर रहे हैं। बुजुर्ग ने उसकी तरफ देखा हल्की मुस्कान दी पर आंखों में एक गहरा दर्द था। नहीं बेटा अब क्या जरूरत है? अपमान के बाद सम्मान का स्वाद कड़वा लगता है। गार्ड ने गंभीर स्वर में कहा, “सर, यह सिर्फ आपका नहीं, हम सबका सम्मान है। अगर आप वापस नहीं जाएंगे, तो जिनकी सोच तंग है, वह कभी सीख नहीं पाएंगे। कुछ पल की चुप्पी के बाद बुजुर्ग ने धीरे-धीरे उठकर अपने पैरों पर वजन डाला। उनके कदम धीमे थे। पर गार्ड की पकड़ मजबूत। जब वह बस के पास पहुंचे, ड्राइवर तुरंत खड़ा हो गया। टोपी उतार कर झुक गया। अंदर बैठे
यात्री जैसे सांस रोक कर इस पल का इंतजार कर रहे थे। गार्ड ने बुजुर्ग को बस में चढ़ने में मदद की। जैसे ही उनका पैर बस की सीढ़ी पर पड़ा। पूरी बस में एक अजीब सन्नाटा था। वो सन्नाटा जो शर्म और सम्मान के बीच पैदा होता है। सबसे आगे की सीट तुरंत खाली कर दी गई। एक बुजुर्ग महिला बोली। बाबूजी यहां बैठिए। यह सीट आपकी है। बुजुर्ग ने धीरे से कहा, सीट तो कोई भी ले सकता है, पर इंसानियत वह संभालनी पड़ती है। उनकी यह बात जैसे पूरे माहौल में गूंज गई। पीछे बैठा वही युवक जिसने उन्हें धक्का दिया था। सिर झुका कर उनके पास आया और कांपते स्वर में बोला, “माफ कर दीजिए।”
मैंने आपको पहचानने में गलती कर दी। बुजुर्ग ने उसकी ओर देखा। आंखों में कठोरता नहीं बल्कि एक गहरी थकान थी। उन्होंने बस इतना कहा पहचान चेहरे से नहीं कर्म से बनती है बेटा बस ने फिर से सफर शुरू किया लेकिन इस बार हवा में एक अलग तरह की खामोशी थी वो खामोशी जो किसी को सोचने पर मजबूर कर दे बस शहर की सड़कों से गुजर रही थी लेकिन अब हर नजर बुजुर्ग पर टिकी हुई थी वो खिड़की से बाहर देख रहे थे जहां धूप पेड़ों की पत्तियों से छनकर सड़क पर पड़ रही थी उनके चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था। बस एक शांत मुस्कान जैसे उन्होंने मन में किसी को माफ कर दिया हो।
पीछे बैठा युवक जिसने धक्का दिया था। बार-बार अपनी नजरें झुका रहा था। उसके कानों में बुजुर्ग की बात गूंज रही थी। पहचान चेहरे से नहीं कर्म से बनती है। वो शब्द उसकी सोच को चीरते जा रहे थे। कुछ देर बाद गार्ड ने धीरे से कहा। सर अगर आप इजाजत दें तो मैं सबको बता दूं ताकि यह गलती कोई दोबारा ना करे। बुजुर्ग ने सिर हिलाकर हामी भर दी। गार्ड खड़ा हुआ और बस में जोर से बोला यह वही इंसान है जिन्होंने हमारे शहर की बस सेवा की नींव रखी। जिन्होंने दिन रात मेहनत करके हर मोहल्ले हर गली को जोड़ने वाली बस रूट तैयार की। अगर आज हम आराम से सफर कर रहे
हैं तो इनके कारण बस में सन्नाटा और गहरा हो गया। कुछ यात्री अपनी सीटों से उठकर उनके पैर छूने लगे। एक महिला ने कहा बाबूजी हम शर्मिंदा है। हमने आपको पहचानने में देर कर दी। बुजुर्ग ने हल्के से मुस्कुराकर जवाब दिया। इंसानियत पहचानने में देर नहीं होनी चाहिए।
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