बूढ़े आदमी को बैंक से बाहर निकाल दिया गया… लेकिन फिर सिर्फ़ एक फ़ोन कॉल और पूरी शाखा को सज़ा मिल गई/

सुबह के करीब 11:00 बजे थे। शहर की एक पुरानी लेकिन व्यस्त बैंक शाखा में ग्राहक अपनी-अपनी लाइन में लगे थे। अंदर एसी चल रहा था। लेकिन माहौल में चिढ़ और हड़बड़ी थी। जैसे हर कोई किसी मजबूरी में यहां आया हो। उसी वक्त दरवाजे से एक बुजुर्ग व्यक्ति अंदर दाखिल हुए। उम्र लगभग 72 साल। बदन पर पुरानी सी धोती आधी सफेद आधी धूल में सनी। ऊपर एक ढीली हल्की फटी हुई शर्ट, हाथ में एक पुराना झोला और आंखों पर घिसा हुआ चश्मा। वो थोड़ा झुक कर चल रहे थे। जैसे हर कदम पर खुद से लड़ रहे हो। अंदर आते ही उन्होंने धीरे से पूछा। बेटा खाता सेक्शन किधर है? रिसेप्शन पर बैठी
लड़की ने उन्हें ऊपर से नीचे देखा और बिना मुस्कुराए कहा। आप लाइन में लगिए। वहां कोने में। बुजुर्ग वहीं दीवार के सहारे धीरे-धीरे चलते हुए उस डेस्क तक पहुंचे जहां तीन कर्मचारी बैठे थे। मोबाइल में लगे कुर्सियों पर फैल कर बैठे हुए। उन्होंने झुक कर हाथ जोड़ते हुए कहा बेटा बस खाता में एक गड़बड़ हो गई है। पिछले महीने की पेंशन नहीं आई। जरा देख लो। एक क्लर्क ने बिना सर उठाए कहा। अरे बाबा फॉर्म भरो पहले। फिर टोकन लेकर आओ। ऐसे ही आ गए हो। बुजुर्ग ने कांपते हाथों से एक कागज निकालते हुए कहा। यह रहा पेंशन स्लिप। मैं भटक गया था। मोबाइल नहीं है।
बेटा बाहर गया है। कोई मदद अब दूसरा क्लर्क चिढ़ गया। देखिए बाबा हम कोई हेल्पलाइन नहीं है। सबको जल्दी है। रोज-रोज यही बहाने सुनते हैं। अगर कोई मदद चाहिए तो बाहर जाए। पास खड़े कुछ ग्राहक देख रहे थे। लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। तीसरे कर्मचारी ने मजाक उड़ाते हुए कहा। साहब लोग भी अजीब है। पेंशन लेने आते हैं जैसे करोड़ों का ट्रांजैक्शन हो गया हो। बुजुर्ग का चेहरा पीला पड़ने लगा। उन्होंने बिना कुछ कहे वह पर्चा वापस जेब में डाला और धीरे से मुड़ने लगे। लेकिन तभी एक सुरक्षा गार्ड जो यह सब देख रहा था उन्हें रास्ते से हटाने के लिए बोल पड़ा।
बाबा अब बहुत देर हो गई है। चलिए बाहर भीड़ मत लगाइए। एक कर्मचारी हंसते हुए बोला, भिखारी टाइप के लोग भी अब बैंक में आकर शो करते हैं। यह शब्द जैसे किसी ने थप्पड़ की तरह बुजुर्ग के चेहरे पर मारे हो। उनका गला सूख गया। आंखों में आंसू उतर आए। लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। भीड़ के बीच कुछ चेहरे झुके, कुछ हंसे और बाकी चुपचाप तमाशा देखते रहे। बुजुर्ग धीरे-धीरे चलते हुए बैंक से बाहर निकले। उनके कांपते हाथ अब थामे नहीं जा रहे थे। वह सामने एक पुरानी पीसीओ बूथ के पास जाकर रुके। पीली दीवारें, टूटा हुआ बोर्ड लेकिन अंदर अब भी एक बूढ़ा फोन रखा था। बुजुर्ग

ने जेब से एक छोटा डायरी का पन्ना निकाला। उस पर लिखा एक नंबर देखा और धीरे से फोन उठाया। हां, मैं बात कर रहा हूं। हां, उसी ब्रांच से आज का व्यवहार देखा। मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस एक निरीक्षण चाहिए तुरंत। फिर उन्होंने फोन रख दिया। पीसीओ से निकलकर वह बुजुर्ग फिर उसी बैंक के सामने आकर फुटपाथ पर बैठ गए। उनकी आंखें अब बंद थी जैसे भीतर ही भीतर कुछ सोच रहे हो। कुछ याद कर रहे हो। इधर बैंक के भीतर वही माहौल जारी था। काउंटर पर लंबी लाइनें कर्मचारी अपनी सीटों पर झुझलाए बैठे। गार्ड मोबाइल पर व्यस्त। लेकिन लगभग 40 मिनट बाद एक काली कार ब्रांच के सामने आकर
रुकी। उसके पीछे एक और एसयूवी और कुछ ही सेकंडों में चार लोग तेज कदमों से बैंक के भीतर दाखिल हुए। उनके कोर्ट पर चमकता हुआ बैच था। सेंट्रल रेगुलेटरी ऑन गवर्नमेंट ऑफ इंडिया। बैंक का गार्ड कुछ बोल पाता। उससे पहले ही उनमें से एक ने कहा ब्रांच मैनेजर को बुलाइए। अभी भीतर बैठे कर्मचारी सकपका गए। यह सब अचानक क्यों? किस लिए? एक अधिकारी ने फाइल खोलते हुए कहा, “इस ब्रांच को आज एक विशेष शिकायत के तहत निगरानी में लिया गया है। शिकायतकर्ता का नाम वो कुछ पल रुका और फिर कहा, “श्री देवदत्त प्रसाद, रिटायर्ड सीनियर अकाउंट्स ऑफिसर, मिनिस्ट्री ऑफ फाइनेंस और इस बैंक
के चुपचाप बैठे एकमात्र प्राथमिक संस्थापक, शेयर धारक। पूरा बैंक जैसे सन्नाटे में जम गया। वही देवदत्त प्रसाद जिन्हें कुछ ही देर पहले भिखारी कहकर बाहर निकाला गया था। वही जो अब सड़क किनारे चुपचाप बैठे थे। वही जो बिना गुस्से बिना आक्रोश बस एक फोन कॉल में पूरी व्यवस्था हिला गए थे। ब्रांच मैनेजर भागता हुआ अंदर आया। पसीनापसीना। सर कोई गलती हुई हो तो अधिकारी ने बात काटते हुए कहा सभी सीसीटीवी फुटेज निकाले जाए खासकर पिछले दो घंटे के उस बुजुर्ग के साथ किसने क्या कहा हमें सब देखना है और जिसने भी उन्हें छुआ या अपमानित किया
उन्हें फौरन ड्यूटी से सस्पेंड किया जाएगा। इधर बाहर सड़क पर एक जूनियर अधिकारी भागता हुआ आया और बुजुर्ग के पास बैठ गया। सर आपको अंदर लाने भेजा गया हूं। मैं माफी चाहता हूं। हम नहीं जानते थे। देवदत्त जी ने धीरे से उसकी ओर देखा। मुझे किसी से बदला नहीं चाहिए बेटा। बस याद दिलाना था कि कभी-कभी साधारण दिखने वाला आदमी असाधारण होता है। बैंक के भीतर अब हर टेबल पर खामोशी थी। वही कर्मचारी जो कुछ देर पहले तक फॉर्म उलट पलट रहे थे। अब कंप्यूटर स्क्रीन की ओर देखना तक भूल चुके थे। सीसीटीवी फुटेज चल चुका था। बड़ी स्क्रीन पर सामने चल रही थी। वह शर्मनाक
क्लिप देवदत्त प्रसाद जी झुके हुए कांपते हुए और उनके सामने एक कर्मचारी उंगली दिखा रहा था। दूसरा उन्हें टोकन के लिए टरका रहा था। तीसरा हंसते हुए उन्हें भिखारी टाइप कह रहा था। बगल में गार्ड खड़ा था जो उन्हें थकिया रहा था। सीनियर ऑडिटर ने कैमरा रिकॉर्डिंग पॉज कर दी। नाम बताइए इन चारों का। ब्रांच मैनेजर की आवाज सूख गई थी। सर यह प्रदीप नरेश और विकास है और गार्ड रतन लाल इफेक्टिव इमीडिएटली ऑल फॉर सस्पेंडेड पेंडिंग इंक्वायरी भीतर खड़े बाकी कर्मचारी अब नजरें नहीं मिला पा रहे थे। कुछ देर में वही बुजुर्ग देवदत्त प्रसाद जी धीमे-धीमे चलते हुए भीतर आए। अब
उनकी चाल पहले से स्थिर थी। लेकिन चेहरा पहले जैसा ही शांत। पूरे बैंक ने जैसे सांसे रोक ली थी। ब्रांच मैनेजर उनके पास आया। सिर झुकाया। सर हम बहुत शर्मिंदा है। हम जान नहीं पाए। देवदत्त जी ने बस इतना कहा। यही तो बात है बेटा। पहचान ना हो तब भी इंसानियत होनी चाहिए। वह ब्रांच के भीतर घुसे और वही कुर्सी ढूंढने लगे जहां उन्हें बैठने से मना किया गया था। बैठकर बोले, “मुझे सिर्फ यह देखना था कि एक आम आदमी की तकलीफ सुनने का धैर्य बचा है या नहीं।” ऑडिटर ने उनसे पूछा, “सर, आप चाहते तो इस पूरे ब्रांच को सील करवा सकते थे।” आपने क्यों इंतजार किया? देवदत्त जी ने
हल्की मुस्कान के साथ कहा, जिस समाज को आप सुधारना चाहते हैं, उसमें चिल्लाने से नहीं सिखाने से बदलाव आता है और कभी-कभी एक थप्पड़ शब्दों से ज्यादा गहरा होता है। पर मेरा थप्पड़ सिर्फ सच था। अगले दिन देश के कई प्रमुख समाचार चैनलों पर हेडलाइन थी। बुजुर्ग को बैंक से निकाला गया। फिर पता चला वह है बैंक के संस्थापक शेयर धारक। देवदत्त प्रसाद की खामोशी ने पूरे सिस्टम को आईना दिखा दिया। सोशल मीडिया पर जाओ और रिस्पेक्ट एल्डर्स ट्रेंड करने लगा। लोग कह रहे थे शायद यही असली रिटायरमेंट है। जहां आदमी पद से नहीं अनुभव से बोलता है।