बेघर भूखी लड़की ने अपाहिज करोड़पति को एक रूटी के बदले चलना सिखाने का वादा किया
यह कहानी है एक छह साल की मासूम बच्ची गुड़िया की, जो भूखी थी, प्यास से बेहाल थी और अपनी बीमार मां का पेट भरने के लिए दिनभर फुटपाथों पर लोगों से खाना मांगती फिरती थी। गुड़िया की मां, जो एक घरेलू कामकाजी महिला थी, पिछले कुछ दिनों से बीमार थी। गुड़िया ने अपने छोटे से हाथों में एक कटोरा लेकर लोगों से मदद मांगना शुरू किया था। वह जानती थी कि अगर वह अपने लिए नहीं, तो अपनी मां के लिए कुछ खाना नहीं जुटाएगी, तो उनकी हालत और खराब हो जाएगी।
भाग 2: राजवीर का अकेलापन
एक दिन, गुड़िया की मुलाकात एक करोड़पति आदमी राजवीर मेहरा से हुई। राजवीर, जो अपने आलीशान बंगले में बैठकर महंगा खाना खा रहा था, पिछले 20 सालों से व्हीलचेयर पर कैद था। एक कार एक्सीडेंट ने ना सिर्फ उनकी टांगे छीन ली थीं, बल्कि उनकी जिंदगी की सारी रोशनी भी बुझा दी थी। वह अब अपनी सफलताओं और उपलब्धियों के बीच अकेलेपन का सामना कर रहे थे। उनकी पत्नी किरण ने सालों पहले तलाक लेकर दूसरी शादी कर ली थी और उनका बेटा विदेश में पढ़ाई कर रहा था।
भाग 3: गुड़िया का साहस
दिल्ली की ठंडी रात थी। गुड़िया राजवीर के बंगले के बाहर खड़ी थी। उसने दरवाजे पर हल्की सी दस्तक दी। राजवीर ने दरवाजा खोला और गुड़िया को देखकर चौंक गए। “कौन हो तुम, इतनी रात में यहां क्या कर रही हो?” गुड़िया ने कांपती आवाज में कहा, “मेरा नाम गुड़िया है। मम्मी दो दिन से बीमार हैं। हमने कुछ नहीं खाया। क्या आप हमें थोड़ा खाना दे सकते हैं?”
राजवीर का दिल उस मासूमियत पर पिघल गया। लेकिन गुड़िया ने आगे कहा, “अगर आप मुझे थोड़ा खाना देंगे, तो मैं आपको चलने लायक बना दूंगी।” यह सुनकर राजवीर हंस पड़े। “तू चलने लायक बनाएगी? मुझे तो बड़े-बड़े डॉक्टर भी ठीक नहीं कर पाए।”
भाग 4: गुड़िया का विश्वास
गुड़िया ने अपनी मासूमियत से कहा, “मेरी नानी कहती थीं, टूटे लोग ठीक हो सकते हैं अगर कोई उन पर विश्वास करे। आप विश्वास करेंगे?” राजवीर ने उसे गेट के अंदर बुलाया और कहा, “ठीक है, अंदर आओ।” गुड़िया धीरे-धीरे भीतर आई। उसकी छोटी-छोटी हथेलियों से ठंड भाप की तरह उठ रही थी। राजवीर ने कहा, “पहले थोड़ा खाना ले लो।” गुड़िया ने कहा, “नहीं, पहले मैं अपना वादा निभाऊंगी। मैं आपको चलने लायक बनाऊंगी।”
भाग 5: चमत्कार की शुरुआत
गुड़िया ने राजवीर के पैर छूने की अनुमति मांगी। जब उसने अपने छोटे हाथ उनके सुन्न पैरों पर रखे, तो राजवीर को एक हल्की सनसनी महसूस हुई। गुड़िया मुस्कुराई और बोली, “मैंने कहा था ना अंकल, चमत्कार बस विश्वास से होते हैं।” राजवीर ने महसूस किया कि 20 साल बाद उनके चेहरे पर पहली बार आंसू आए, लेकिन यह दर्द के नहीं, उम्मीद के थे।
भाग 6: गुड़िया का जादू
उस रात गुड़िया ने राजवीर को सूप पीते हुए देखा। उसकी आंखों में संतोष था, और राजवीर उसे चुपचाप देख रहे थे। गुड़िया ने कहा, “आप अब चल सकते हैं?” राजवीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, बेटी, तूने कर दिखाया।” डॉक्टर निधि, जो राजवीर की न्यूरोलॉजिस्ट थीं, भी इस चमत्कार पर हैरान थीं।
भाग 7: भीड़ का उग्र होना
अगली सुबह, राजवीर ने देखा कि शहर में खबर फैल गई थी कि एक करोड़पति को एक गरीब बच्ची ने छूकर फिर से चलने लायक बना दिया। टीवी चैनलों पर यही खबर चल रही थी। राजवीर अपने ड्राइंग रूम के पर्दे के पीछे से यह सब देख रहे थे। अचानक, उन्होंने महसूस किया कि गुड़िया खतरे में है।
भाग 8: गुड़िया की सुरक्षा
भीड़ बेकाबू हो गई थी। लोग गुड़िया को देखने के लिए टूट पड़े थे। राजवीर ने अपनी व्हीलचेयर से बाहर निकलने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “मुझे गुड़िया को बचाना है।” उन्होंने अपनी ताकत जुटाई और खड़े हो गए। यह एक अद्भुत पल था।
भाग 9: राजवीर का साहस
राजवीर ने गुड़िया को अपनी बाहों में भर लिया और कहा, “कुछ नहीं होगा बेटी, मैं आ गया।” गुड़िया की आंखों में आंसू थे। राजवीर ने कहा, “मैं अब तुमसे दूर नहीं जाने दूंगा।” भीड़ अब और उग्र हो गई थी। किसी ने चिल्लाया, “देखो वह आदमी तो चल रहा है!”
भाग 10: सच्चाई का सामना
राजवीर ने कहा, “यह बच्ची किसी को चमत्कार नहीं देती। यह बस भरोसा देती है।” गुड़िया ने कहा, “अंकल, क्या मैं भगवान का अवतार हूं?” राजवीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं, तुम बस एक बच्ची हो।”

भाग 11: किरण का प्रतिशोध
इस बीच, राजवीर की पूर्व पत्नी किरण भीड़ में थी। उसने कहा, “राजवीर, तुम अपनी बीमारी को नाटक बना रहे हो। तुम्हें इलाज की जरूरत है।” राजवीर ने शांत आवाज में कहा, “मैं ठीक हूं। इस बच्ची ने मुझे याद दिलाया कि इंसान का इलाज मशीनों से नहीं, मोहब्बत से होता है।”
भाग 12: गुड़िया का सही रास्ता
भीड़ में किसी मां ने अपने बच्चे को गोद में उठाया और बोली, “अगर यह बच्ची भगवान नहीं है, तो भगवान ऐसे ही बच्चों के रूप में आता है।” राजवीर ने गुड़िया का हाथ थाम लिया और कहा, “चलो, हम घर चलते हैं।”
भाग 13: इंसानियत का चमत्कार
राजवीर ने गुड़िया के साथ मिलकर एक नए जीवन की शुरुआत की। उन्होंने अपने बंगले को एक आश्रम में बदल दिया, जहां वह अपंग बच्चों को नई उम्मीद सिखाते थे। गुड़िया हर शाम मंदिर के बाहर खड़ी होकर आने-जाने वालों को मुस्कान बांटती थी।
भाग 14: नई पहचान
गुड़िया ने एक दिन राजवीर से कहा, “अंकल, देखिए अब आप चल सकते हैं और मैं लोगों को मुस्कुराना सिखाती हूं। अब तो दोनों ठीक हो गए ना?” राजवीर ने कहा, “हाँ बेटी, अब हम दोनों सच में जिंदा हैं।”
भाग 15: अंत में
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि चमत्कार बाहर नहीं, हमारे विश्वास और करुणा के भीतर छिपे होते हैं। अगर हम दूसरों की मदद सच्चे दिल से करें, तो हम किसी और की जिंदगी नहीं, अपनी जिंदगी भी बदल सकते हैं।
दोस्तों, कभी भी उम्मीद और इंसानियत पर से भरोसा मत खोइए। यही असली ताकत है।
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