बेघर लड़की ने मरते हुए अरबपति की जान बचाई – आगे जो हुआ उसने सबको चौंका दिया

दोस्तों, यह कहानी है गरीब लड़की पल्लवी की, जो निर्माण स्थल पर काम करती थी। घर में बीमार पिता और गरीबी का माहौल था। इसी मजबूरी में वह मुंबई की ट्रेन पकड़ी। लेकिन उसे क्या पता था कि जिस महिला ने उसे अच्छा काम देने का वादा किया था, वही महिला चोरी छिपे उसकी जिंदगी का सौदा करने वाली बड़ी साजिश का हिस्सा थी। जब उसने अपना शरीर बेचने से मना कर दिया, तो उसे बेघर और निराश करके बाहर फेंक दिया गया। वह सिर्फ जिंदा रहने के लिए पानी बेचती हुई सड़कों पर भटकती रही। फिर एक दिन गहरे जंगल में उसे एक मरता हुआ आदमी मिला। बंदूक धारियों ने उसे गोली मारकर मरने के लिए छोड़ दिया था। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह आदमी एक अरबपति था और उसकी जान बचाना पल्लवी की अपनी जिंदगी को पूरी तरह से बदल देगा।

गांव की कठिनाइयां

उत्तर प्रदेश राज्य में वाराणसी से थोड़ा दूर एक छोटा धूल भरा गांव था, हरियालीपुर। सुबह की पहली किरण अभी भी पेड़ों की पत्तियों को भेद नहीं पाई थी। लेकिन पल्लवी 22 साल की पास के निर्माण स्थल पर पहले से ही मौजूद थी। उसके हाथ मिट्टी और सीमेंट की गंध से सने हुए थे, और उसकी पीठ पर रात के ओस की नहीं बल्कि अथक परिश्रम के पसीने की धार बह रही थी। वह दर्जनों हट्टे-कट्टे मजदूरों के बीच अकेली थी। फिर भी सबसे ज्यादा मेहनत करती थी। उसका पुराना दुपट्टा सिर पर कसकर बंधा हुआ था ताकि धूल बालों में ना जाए। हथेलियों पर दर्द भरे छाले थे जो उसकी मजबूरी की कहानी कह रहे थे। पर उसे इन सब की परवाह नहीं थी।

पल्लवी बस एक ही उद्देश्य के लिए जी रही थी: अपने बीमार पिता रामकिशन जी को जीवित रखना। उसके पिता, जो कभी गांव के एक सम्मानित मास्टर जी हुआ करते थे, अब अपने छोटे से कच्चे घर में बिस्तर पर पड़े थे। दो साल पहले एक अजीबोगरीब बीमारी ने उन्हें घेर लिया था। तब से उनका शरीर कमजोर होता चला गया और उनकी आवाज अब एक धीमी फुसफुसाहट में बदल गई थी। उसकी मां गोपालता दिन-रात उनकी सेवा में लगी रहती थी, हर पल किसी चमत्कार की आस लगाती थी।

मुंबई की ओर यात्रा

वह चमत्कार कभी नहीं आया। इसलिए पल्लवी ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और फावड़ा उठाकर मजदूरी करने लगी। एक मजदूर ने फफती कसी, “अरे, इस उम्र में तो लड़कियां कॉलेज आती हैं। यह क्या गारा उठा रही है?” पल्लवी ने सुना पर अनसुना कर दिया। उसके माथे का हर पसीना उसके बाबूजी के लिए था। उसका हर छाला एक मूक प्रार्थना था और उसका कमाया हुआ एक-एक रुपया सीधे दवाइयों और जरूरी राशन के लिए जाता था।

तभी एक दिन, दोपहर की तपती धूप में काम की जगह के पास एक शानदार काली एसयूवी आकर रुकी। गाड़ी से एक महिला बाहर निकली। वह महंगी साड़ी और सोने के आभूषण पहने थी। मजदूरों ने फुसफुसाते हुए कहा, “वो देखो, मैडम उर्वशी।” पल्लवी ने ऊपर देखा। मैडम उर्वशी सीधे उसकी ओर आई।

“तुम्हारा नाम क्या है?”

“पल्लवी।”

“जी मैडम।” पल्लवी ने बाल्टी छोड़कर अपनी कमीज के दामन से धूल भरा चेहरा पोछा।

सपनों का वादा

मैडम उर्वशी ने उसे देखा, “तुम मजबूत हो। मुझे यह गुण बहुत पसंद आया और इस सीमेंट के बावजूद तुम बहुत सुंदर दिखती हो।”

“अगर मैं तुम्हें कहूं कि मैं तुम्हारी जिंदगी बदल सकती हूं, तो तुम क्या कहोगी?”

पल्लवी ने पलके झपकाए, “मेरी जिंदगी पर कैसे मैडम?”

“मैं मुंबई में रहती हूं। वह सपनों का शहर है। मैं वहां व्यापार करती हूं और तुम जैसी मेहनती सुंदर लड़कियों की मदद करती हूं। मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें यहां के काम से 10 गुना बेहतर नौकरी दूंगी। तुम्हें फिर कभी यह ईंटें नहीं भरनी पड़ेगी।”

पल्लवी के हाथों में कंपन शुरू हो गई। उसने कभी नहीं सोचा था कि कोई ऐसा वादा करेगा। “क्या आप सच कह रही हैं मैडम?”

“हां, मुझे तुम में काबिलियत दिखती है।”

उस शाम पल्लवी खुशी से भागकर घर पहुंची।

परिवार का समर्थन

“मां, बाबूजी, मैडम उर्वशी ने कहा कि वह मुझे मुंबई ले जाएंगी।”

रामकिशन जी ने कमजोर आवाज में बोले, “पल्लवी, मुंबई बड़ा शहर है मेरी बेटी। वहां हर चमकती चीज सोना नहीं होती। बहुत सावधानी रखना।”

पल्लवी ने कहा, “बाबूजी, मुझे आपके इलाज के लिए यह मौका लेना ही होगा, आपके लिए, मां के लिए।”

अगली सुबह रामकिशन जी ने अपना कांपता हाथ पल्लवी के सिर पर रखा और उसे आशीर्वाद दिया। “जा बेटी, मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है।”

सपनों का शहर

जैसे ही एसयूवी मुंबई की तरफ बढ़ी, पल्लवी ने पीछे मुड़कर अपने माता-पिता को देखा जो धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे थे। उसे नहीं पता था कि सपनों का शहर खुली बाहों से उसका इंतजार नहीं कर रहा था, बल्कि उसे तोड़ने के लिए एक खतरनाक जाल तैयार कर रहा था।

हरियालीपुर से मुंबई तक का सफर पल्लवी के लिए आशा और उत्साह से भरा था। ट्रेन की खिड़की के बाहर भागते खेत और बदलती हुई दुनिया को देखकर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। उसने अपने छोटे से झोले से अपने बाबूजी रामकिशन जी की एक पुरानी तस्वीर निकाली। धुंधली पर अनमोल। उसने तस्वीर को कसकर पकड़ लिया और फुसफुसाई, “बाबूजी, बस कुछ ही महीने। फिर आपके इलाज के लिए मुंबई में इतना कम करूंगी कि आप जल्द ही स्वस्थ हो जाएंगे।”

मुंबई की सच्चाई

जब ट्रेन ने मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर सांस ली, तो पल्लवी चौंक गई। यह स्टेशन नहीं, जैसे इंसानों का एक बहता हुआ समंदर था। शोर, भागदौड़ और हर तरफ अनजानी भाषाएं। मैडम उर्वशी ने उसे स्टेशन के बाहर खड़ी अपनी शानदार कार में बिठाया। जैसे-जैसे कार शहर की ओर बढ़ी, पल्लवी देखती रही। विशाल आसमान छूती इमारतें, चमकती रोशनी और एक ऐसी गति जो उसके गांव की शांत जिंदगी से कोसों दूर थी।

यह सचमुच सपनों का शहर था, जो अपनी भव्यता से डरा भी रहा था और मोहित भी कर रहा था। कार मुंबई के एक पौश इलाके में एक आलीशान बंगले के सामने रुकी। बंगला बाहर से जितना शानदार था, अंदर से उतना ही खामोश और रहस्यमय। पल्लवी को लगा कि वह किसी राजा के महल में आ गई है।

धोखा और निराशा

घर में नौकर चाकर थे, लेकिन वे अजीब तरह से चुप थे। मैडम उर्वशी पल्लवी को एक शानदार कमरे में ले गई। जहां मखमली बिस्तर और महंगा परफ्यूम था।

“आज रात आराम करो। कल से तुम्हारा काम शुरू होगा,” मैडम उर्वशी ने कहा।

अगले दिन सूरज अभी पूरी तरह उगा भी नहीं था कि दरवाजे पर दस्तक से पल्लवी जाग गई। मैडम उर्वशी अंदर आई। उनके चेहरे पर एक कठोर मुस्कान थी।

“देखो, यह सब तुम्हारे लिए है। अब भूल जाओ वो सीमेंट और ईंटें। तुम्हारा काम बहुत आसान है। तुम्हें बस सुंदर दिखना है, मुस्कुराना है और कुछ बहुत बड़े अमीर लोगों से मिलना है।”

पल्लवी को कुछ अजीब लगा। “मिलन कैसा मिलन मैडम? मेरा काम क्या होगा?”

उर्वशी ने सोफे पर बैठ गई। “देखो, अब कोई नाटक नहीं। यहां पैसा ऐसे ही नहीं बरसता। तुम्हें अपनी सुंदरता का इस्तेमाल करना होगा। तुम्हें आज रात एक बहुत बड़े व्यापारी के साथ जाना है।”

पलवी के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसकी आंखों के सामने अचानक रामकिशन जी का कमजोर चेहरा तैर गया।

संघर्ष का निर्णय

उसने लड़खड़ाती आवाज में पूछा, “क्या? क्या आप मुझे एक गलत काम करने को कह रही हैं?”

मैडम उर्वशी ने ठंडी हंसी हंसते हुए कहा, “गलत काम? यह सपनों के शहर में व्यापार कहलाता है। अब यह सब मासूमियत बंद करो, वरना पछताओगी। यही तुम्हारे बाबूजी के इलाज का सबसे तेज और आसान रास्ता है।”

पलवी की आवाज में कांपते हुए भी एक अटूट दृढ़ता आ गई। उसने गहरी सांस ली। अपनी हथेली के छाले महसूस किए और मैडम उर्वशी की आंखों में देखा। “नहीं मैडम, मैं अपने बाबूजी से झूठ बोलकर नहीं आई हूं। मेरे बाबूजी ने मुझे सिखाया है कि इज्जत से बड़ा कोई धन नहीं होता। मैं मर जाऊंगी, भूखी रहूंगी पर यह पाप नहीं कर सकती। मैं अपने उसूलों को नहीं बेचूंगी।”

मैडम उर्वशी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। “क्या कहा? तू मेरा नुकसान करेगी?” उन्होंने पल्लवी को जोर से धक्का दिया। “बाहर निकालो मेरी नजरों से। तुम्हें लगता है कि तुम अकेली हो? मेरे दरवाजे पर लाइन लगी है। जाओ। और सुनो, उस सड़क पर जहां से आई हो।”

नया जीवन

पलवी को लगभग धक्के मारकर उस शानदार बंगले से बाहर कर दिया गया। उसके हाथ में सिर्फ उसका छोटा सा झोला था, जिसमें रामकिशन जी की तस्वीर और कुछ पुराने कपड़े थे। वह मुंबई की सड़क पर अकेली खड़ी थी। रात के सन्नाटे में ऊंची इमारतों की छांव तले सपने टूट गए थे। उसकी आत्मा घायल थी पर उसकी इज्जत सुरक्षित थी।

सपनों का शहर अब एक निर्दयी राक्षस जैसा लग रहा था। पल्लवी रोने लगी। लेकिन तभी उसे याद आया रामकिशन जी का आशीर्वाद। “जा बेटी, तू हमेशा अपने उसूलों पर खड़ी रहना।” अब उसे पता था कि उसे अकेले ही जीना होगा लेकिन वह कभी भी अपनी पवित्रता नहीं बेचेगी।

वह सड़क पर बैठ गई। बेघर और असहाय। मैडम उर्वशी के आलीशान बंगले से निकाले जाने के बाद पल्लवी के लिए मुंबई शहर की रात एक भयानक सपना बन गई। ऊंची इमारतें अब उसे सुरक्षा देने वाली छत नहीं बल्कि विशाल क्रूर परछाइयां लग रही थी।

संघर्ष और साहस

उसके पास ना रहने की जगह थी, ना खाने के लिए पैसे और ना ही कोई सहारा। वह अगले कुछ दिन मुंबई की निर्दई गलियों में भटकती रही। दिन में वह ट्रेन स्टेशनों और भीड़भाड़ वाली सड़कों के किनारे बैठ जाती। उसे अपने गांव की याद सताती थी। अपने बाबूजी की धीमी आवाज और मां की ममता।

रात में वह मंदिरों के पास या किसी बंद दुकान के बरामदे में सिकुड़ कर सोती थी। डर और उदासी उसके दिल को खाए जा रहा था। उसके पास अब ईंटें उठाने का काम भी नहीं था क्योंकि उसके पास काम ढूंढने का रास्ता नहीं था।

एक सुबह भूख और निराशा से थककर उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी पूंजी रामकिशन जी की तस्वीर को सीने से लगाया। उसे कुछ करना था। उसने देखा कि लोग सड़कों पर पानी की बोतलें बेच रहे हैं। पल्लवी ने अपने पास बचे हुए थोड़े से पैसे से कुछ पानी की बोतलें खरीदी और सपनों के शहर की तपती सड़कों पर पैदल चलते हुए चिल्लाचिल्ला कर पानी बेचना शुरू कर दिया।

नई शुरुआत

“पानी ठंडा, पानी ₹10 की बोतल!” उसकी आवाज पहले तो कांपती थी, पर धीरे-धीरे उसमें दृढ़ता आ गई। यह काम ईंटों से ज्यादा कठिन था। इसमें अपमान था, अनसुना किया जाना था और हर पल हार मानने का खतरा था। लेकिन उसने यह तय कर लिया था कि वह मर जाएगी पर हार नहीं मानेगी।

उसकी कमाई बहुत कम थी। बस इतनी कि वह दो वक्त की रोटी खा सके और अपने बाबूजी को फोन करके उनका हालचाल पूछ सके। वो उन्हें कभी नहीं बताती थी कि वह किस हाल में है। बस कहती थी, “बाबूजी, मेरा काम अच्छा चल रहा है। आप चिंता मत करना।”

एक संयोग

एक दिन जब पल्लवी एक सुनसान औद्योगिक क्षेत्र के पास पानी बेच रही थी, तो उसे झाड़ियों में कुछ हलचल महसूस हुई। यह जगह बहुत वीरान थी, इसलिए वह डर गई लेकिन उसका स्वभाव उसे जाने नहीं दे सकता था। उसने हिम्मत जुटाई और झाड़ियों के पास गई। वहां का दृश्य देखकर उसके मुंह से चीख निकल गई।

जमीन पर खून में लथपथ एक आदमी पड़ा था। उसकी आंखें बंद थी और उसके पेट पर गहरा घाव था। वह महंगे कपड़े पहने हुए था लेकिन वह खून से भीगे हुए थे। ऐसा लग रहा था कि उसे गोली मारी गई है और मरने के लिए वही छोड़ दिया गया है।

मदद का संकल्प

पलवी घबरा गई लेकिन तभी उसे रामकिशन जी की बात याद आई। “किसी की मदद करने से बड़ा कोई धर्म नहीं।” वह आदमी लगभग मर चुका था। पल्लवी ने तुरंत अपनी पानी की बोतल और झोला जमीन पर फेंका। उसने अपने दुपट्टे को फाड़ा और उसके घाव को कसकर बांध दिया ताकि खून रुक जाए।

उसने अपने झोले से एक और बोतल निकाली और धीरे-धीरे उसके होठों पर पानी की बूंदें डाली। उसे घायल व्यक्ति ने कांपते हुए अपनी आंखें खोली। पलवी ने झुककर उसके कान के पास फुसफुसाया, “आप घबराइए नहीं। मैं आपको बचा लूंगी।”

साहस का फल

उस आदमी के पास एक महंगा फोन पड़ा था। उसने उसे उठाने की कोशिश की। लेकिन तभी वहां से एक ट्रक गुजर गया जिससे उसे लगा कि कोई उसे देख रहा है। उसने तुरंत फोन उठा लिया और उस घायल व्यक्ति को सहारा देकर उसे झाड़ियों के अंदर और अंदर खींच लिया।

वह आदमी कोई सामान्य व्यक्ति नहीं था। उसका नाम रमन मेहरा था, जो देश के सबसे बड़े और सबसे अमीर व्यापारी घरानों में से एक का वारिस था। उसे उसके कुछ प्रतिद्वंदियों ने धोखे से मारने की कोशिश की थी। पलवी को नहीं पता था कि उसने सिर्फ एक आदमी को नहीं बल्कि अपनी तकदीर को मौत के मुंह से निकाला था।

सुरक्षित स्थान

रमन की सांसे तेज थी और उसकी हालत बहुत नाजुक। पलवी के पास ना अस्पताल ले जाने का साहस था क्योंकि पुलिस आ सकती थी और ना ही कोई और रास्ता। उसने जंगल के अंदर एक छोटी पर सूखी टूटी हुई झोपड़ी देखी। वह पूरी ताकत लगाकर रमन को घसीट कर उसे झोपड़ी तक ले गई।

अंदर अंधेरा था पर सुरक्षित। पल्लवी बैठ गई। उसके हाथ खून से सने थे। उसने रमन को देखा। उसका चेहरा इतना शांत और शक्तिशाली था कि पल्लवी को लगा कि वह किसी राजा को बचा रही है। अब क्या करूं? पल्लवी ने अपने आप से पूछा।

लेकिन तभी उसे गांव की एक बात याद आई कि जब डॉक्टर नहीं होते तब जड़ी बूटियां ही दवा होती है। पल्लवी जानती थी कि उसे अब रामकिशन जी की सीख और गांव की देसी दवाइयों पर निर्भर रहना होगा।

घाव की देखभाल

गांव में उसने अपनी मां को कभी-कभी छोटे-मोटे घावों पर जड़ी बूटियां लगाते देखा था। उसी याद और रामकिशन जी की दी हुई हिम्मत के सहारे उसने सुबह होते ही झाड़ियों में नीम की पत्तियां और कुछ और देसी जड़ी बूटियां ढूंढी। धीरे-धीरे बहुत सावधानी से उसने रमन के घाव को साफ किया।

जब वह घाव पर नीम का कड़वा लेप लगा रही थी तो रमन दर्द से करा उठा। पल्लवी ने उसका हाथ पकड़ा। उसकी आवाज में मां जैसी कोमलता थी। “हिम्मत रखिए, थोड़ा दर्द होगा पर यह आपको बचाएगा। मैं आपके साथ हूं।”

नई पहचान

रमन ने धीरे से अपनी आंखें खोली। उनकी आंखें अब तक बंद थीं। लेकिन वह पहली बार पल्लवी की और पूरी तरह से केंद्रित थी। वो एक खूबसूरत लड़की को देख रहा था, जिसकी हथेलियां छालों से भरी थी। जिसके कपड़े फटे हुए थे। लेकिन जिसकी आंखों में एक अजीब सी पवित्रता और निडरता थी।

उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कौन थी और कहां थी? उसने धीमी कमजोर आवाज में पूछा, “तुम कौन हो? मैं कहां हूं?”

पल्लवी ने एक भी पल बर्बाद किए बिना कहा, “मैं पल्लवी हूं। आपको चोट लगी थी, बहुत गहरी और आप यहां सुरक्षित हैं। ज्यादा बात मत कीजिए। आपको आराम चाहिए।”

स्नेह और देखभाल

अगले कुछ दिन पल्लवी ने एक नर्स, एक रसोइया और एक रक्षक की तरह रमन की सेवा की। वह सुबह जल्दी उठकर पानी और थोड़ी सी रोटी खरीदने शहर की सड़क तक जाती और वापस आकर रमन को खिलाती। रमन की हालत धीरे-धीरे सुधरने लगी। वह ज्यादा देर तक जाग सकता था और पल्लवी से बात कर सकता था।

रमन ने एक दोपहर पूछा, “पल्लवी, तुम मेरे लिए इतना क्यों कर रही हो? तुम्हें तो मुझे छोड़कर भाग जाना चाहिए था। मैं तुम्हें कोई इनाम नहीं दे सकता।”

पल्लवी ने जवाब दिया, “इनाम मैं किसी चीज के लिए नहीं कर रही हूं। मेरे बाबूजी रामकिशन जी। उन्होंने हमेशा कहा है कि अगर तुम किसी की मदद कर सकते हो तो सवाल मत पूछो। और मैं जानती हूं कि मुश्किल में होना कैसा होता है।”

गहरी समझ

उसकी आवाज में छिपा दर्द सुनकर रमन ने पल्लवी की जिंदगी के बारे में जानना चाहा। पल्लवी ने उसे अपनी पूरी कहानी सुनाई: गांव, बाबूजी की बीमारी, मैडम उर्वशी का धोखा और फिर सड़क पर पानी बेचने का संघर्ष।

रमन को एहसास हुआ कि इस छोटे से गांव की लड़की में इतनी अमीरी थी जो उसके पूरे अरबपति परिवार में नहीं थी। ईमानदारी और दयालुता उसे पल्लवी के प्रति गुस्सा आ गया। गुस्सा इस बात पर कि वह इतनी सीधी क्यों थी कि मैडम उर्वशी जैसी औरत ने उसे धोखा दिया। लेकिन इस गुस्से से ज्यादा उसे पल्लवी के प्रति गहरा सम्मान महसूस हुआ।

एक नया वादा

एक शाम, जब सूरज अपनी आखिरी किरणें झोपड़ी के अंदर फेंक रहा था, रमन ने पल्लवी से कहा, “पल्लवी, मैं रमन हूं। मैं मुंबई के सबसे बड़े व्यापारिक घरानों में से एक का वारिस हूं। मुझे मेरे ही कुछ रिश्तेदारों ने मारने की कोशिश की थी। अगर तुमने मुझे ना बचाया होता तो मैं आज जिंदा ना होता।”

पल्लवी ने सिर हिलाया। “आपने जो किया वह मैंने अपने मन से किया।”

रमन ने पहली बार पल्लवी के हाथों के छालों को देखा। वह जानता था कि इन हाथों ने ना केवल ईंटें उठाई थी बल्कि उसकी जान भी बचाई थी। उसने कसम खाई कि वह इस लड़की को वो सब कुछ देगा जिसकी वह हकदार थी।

सुरक्षित स्थान

उसने पल्लवी का हाथ पकड़ा और उसकी आंखों में देखकर कहा, “पल्लवी, मैं वादा करता हूं। मैं तुम्हें उस हर चीज से आजाद करूंगा जिसने तुम्हें दर्द दिया है। मैं तुम्हें तुम्हारा भविष्य वापस दूंगा।”

यह एक अनकहा भावुक वादा था जो एक टूटी-फूटी झोपड़ी में एक अरबपति और एक गरीब लड़की के बीच बुना गया था। रमन की घाव धीरे-धीरे भरने लगे थे। लेकिन पल्लवी के प्रति उनका सम्मान और कर्ज का एहसास हर गुजरते दिन के साथ गहरा होता जा रहा था।

नया जीवन

जब रमन थोड़ा चलने फिरने लगा, तो उसने पल्लवी से जोर देकर कहा कि अब बाहर निकलने का समय आ गया है। रमन ने पल्लवी से कहा, “अब मैं काफी ठीक हूं। मेरे पास एक योजना है।”

पल्लवी ने डरते हुए पूछा, “कैसी योजना, रमन?”

रमन ने अपने कपड़ों के अंदर छिपे हुए फोन को निकाला। “यह फोन मेरे परिवार के सबसे भरोसेमंद आदमी, मेरे चीफ ऑफ सिक्योरिटी को संदेश भेजेगा। यह संदेश केवल उसे ही पता चलेगा। वे हमें इस झोपड़ी से निकालेंगे और फिर हम हिसाब बराबर करेंगे।”

एक रात रमन का संदेश काम कर गया। काली बिना नंबर प्लेट वाली एक कार झोपड़ी के पास आकर रुकी। रमन का विश्वास पात्र आदमी गोपाल, जो एक लंबा मजबूत और शांत स्वभाव का व्यक्ति था, कार से बाहर निकला।

सुरक्षा का अहसास

गोपाल को देखकर रमन की आंखों में पहली बार राहत दिखी। रमन ने तुरंत गोपाल को पल्लवी से मिलवाया। “गोपाल, यह पल्लवी है। इसने मेरी जान बचाई है। यह हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है और अब मेरी जिम्मेदारी भी। यह मेरी मेहमान नहीं बल्कि मेरा परिवार है।”

पलवी को एक सुरक्षित और आलीशान जगह ले जाया गया। जहां उसकी हर जरूरत पूरी की गई। पहली बार उसने गर्म पानी से नहाया और साफ सुंदर कपड़े पहने। लेकिन उसके दिल में अभी भी एक ही चिंता थी: रामकिशन जी।

खुशखबरी

एक शाम, जब रमन अब पूरी तरह से ठीक हो चुका था और वापस अपने व्यापार को संभाल रहा था, पल्लवी के पास आया। उसने पल्लवी के सामने एक लिफाफा रखा।

“पल्लवी,” रमन ने कहा, “मैंने तुम्हें वापस लाने का वादा किया था। तुम्हारे बाबूजी रामकिशन जी अब वाराणसी के सबसे अच्छे अस्पताल में हैं। उनकी बीमारी का इलाज शुरू हो गया है और मैडम उर्वशी को उनके कर्मों की सजा मिल चुकी है। उनका वह व्यापार हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है।”

पल्लवी की आंखों से आंसू बह निकले। यह खुशी के आंसू थे। ऐसे आंसू जिनका स्वाद जीत जैसा था। उसने लिफाफा खोला। उसमें अस्पताल के बिल भरे हुए थे और सबसे नीचे एक कागज पर लिखा था, “यह हरियालीपुर के पास की जमीन है। वहां तुम्हारे लिए एक नया घर बनाया जा रहा है और तुम्हें अपने गांव की लड़कियों की मदद के लिए एक छोटी सी संस्था शुरू करने की जिम्मेदारी दी गई है।”

नई शुरुआत

पल्लवी की आवाज खुशी से रूठ गई। “रमन जी, आपने मेरे लिए इतना सब कुछ कर दिया। मैं आपको कैसे धन्यवाद दूं?”

रमन मुस्कुराया। “तुमने मेरी जान बचाकर जो कर्ज मुझ पर चढ़ाया है, यह उसका एक छोटा सा हिस्सा है। यह दान नहीं है पल्लवी। यह तुम्हारी ईमानदारी और दयालुता का प्रतिफल है। तुमने अपनी इज्जत नहीं बेची और इसीलिए तुम्हें यह तकदीर दी है।”

कुछ हफ्तों बाद पल्लवी अपने गांव हरियालीपुर वापस लौटी। लेकिन अब वह वही टूटी हुई मजबूर लड़की नहीं थी। स्टेशन पर उसकी मां और रामकिशन जी, जो व्हीलचेयर पर थे, अब मुस्कुरा रहे थे।

परिवार का प्यार

पल्लवी ने दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। “बाबूजी, मां!” रामकिशन जी ने अपनी बेटी के माथे को चूमा। उनकी आवाज अब पहले से ज्यादा मजबूत थी। “मेरी बेटी वापस आ गई। मुझे तुम पर गर्व है। तुमने शहर में जाकर भी अपने उसूल नहीं बेचे।”

पल्लवी ने अपने बाबूजी के हाथों को छुआ, जो अब इलाज के कारण पहले से ज्यादा गर्म थे। उस पल उसने समझा कि सपनों का शहर मुंबई नहीं था, बल्कि वह उम्मीद थी जो उसके दिल में थी और वह ईमानदारी थी जिसे उसने हर मुश्किल में बचाए रखा।

समापन

दोस्तों, पल्लवी की कहानी हमें यही सिखाती है कि अगर हम अपनी नैतिकताओं पर डटे रहे, तो नियति भी हमें हमारे कर्तव्यों और अच्छे कर्मों का फल जरूर देती है। याद रखिए, आपके चरित्र की पूंजी दुनिया की किसी भी दौलत से बड़ी होती है। जब आप जमीर को साफ रखते हुए कड़ी मेहनत करते हैं, तो आपकी वह सच्चाई एक दिन चमत्कार बनकर वापस आती है।

आपको यह कहानी कैसी लगी? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताइए। अगर कहानी अच्छी लगी हो तो वीडियो को लाइक कीजिए और अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूलिए। अगर आप इस कहानी का पार्ट टू देखना चाहते हैं, तो कृपया कमेंट में “पार्ट टू” लिखकर हमें बताएं। आपके कमेंट्स हमें अगली कहानी जल्द लाने में मदद करेंगे। ऐसी ही और दिल छू लेने वाली कहानियां सुनने के लिए हमारे चैनल सब्सक्राइब करना ना भूलें। मिलते हैं अगली कहानी के साथ। तब तक के लिए जय हिंद!

Play video :