बेटा जब कलेक्टर बनकर घर पहुंचा तो मां टूटे फूटे घरें रह रही थी फिर बेटा ने जो किया
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मां की ममता और बेटे का संघर्ष: एक कलेक्टर की दिल छू लेने वाली कहानी
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में एक टूटा-फूटा घर था। उस घर की दीवारें जगह-जगह से उखड़ी हुई थीं, छत से पानी टपकता था और दरवाजे की कुंडी भी जंग खा चुकी थी। देखने से ही लग जाता था कि इस घर में पिछले कई सालों से कोई मरम्मत नहीं हुई है। इसी घर में रहती थी दयावती, एक बूढ़ी महिला, जिसकी दुनिया में कोई अपना नहीं था। पड़ोस के लोग कभी-कभी खाने-पीने का सामान दे देते थे, जिससे उसका जीवन किसी तरह कट रहा था।
संघर्ष की शुरुआत
दयावती का जीवन कभी खुशहाल हुआ करता था। उसके पति लाल सिंह मेहनत-मजदूरी करके घर चलाते थे। शादी के पांच साल बाद दयावती मां बनी, उसके बेटे का नाम अरुण रखा गया। अरुण के जन्म से पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जब अरुण पांच साल का हुआ, उसके पिता बीमारी के चलते चल बसे। दयावती पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। मायके वालों ने समझाया कि दूसरी शादी कर लो, हम बच्चे को पाल लेंगे। लेकिन दयावती ने साफ कह दिया, “यह मेरे पति की निशानी है, मैं इसी के साथ अपनी जिंदगी बिताऊंगी।”
दयावती ने दूसरों के घरों में काम करना शुरू किया। मजदूरी करती, झाड़ू-पोंछा लगाती, ताकि अरुण को पढ़ा सके, खिला सके। अरुण धीरे-धीरे बड़ा होने लगा, लेकिन किशोरावस्था में वह मां की बातों को नजरअंदाज करने लगा। गलत संगति में पड़ गया, दोस्तों के साथ घूमना-फिरना, शराब पीना उसकी आदत बन गई। मां बार-बार समझाती, डांटती, लेकिन अरुण पर कोई असर नहीं हुआ।
एक दिन जब अरुण शराब पीकर घर लौटा, मां ने गुस्से में उसे बहुत डांटा। रोते हुए बोली, “तेरे जैसा बेटा होने से अच्छा होता कि मुझे कोई संतान ही न होती।” अरुण को मां की बातें चुभ गईं, रातभर सोचता रहा और तड़के अपने कपड़े एक थैली में भरकर चुपचाप घर छोड़कर चला गया।
नए शहर में संघर्ष
अरुण गांव से निकलकर शहर पहुंचा। वहां किसी होटल में काम मांगने गया। मालिक ने कहा, “काम करोगे तो खाना मिलेगा, रहने को जगह मिल जाएगी।” अरुण ने बर्तन धोने, सब्जी काटने, ग्राहकों को खाना परोसने जैसे छोटे-छोटे काम करने शुरू किए। मेहनत और ईमानदारी से काम करता, होटल के सभी काम सीख लिए। दो साल तक वह होटल में ही रहा, खाना मिलता, रात को वहीं सो जाता।
एक दिन होटल मैनेजर छुट्टी पर चला गया, होटल की जिम्मेदारी अरुण पर छोड़ दी। अरुण ने होटल को बखूबी संभाला, ग्राहकों को संतुष्ट किया। जब मालिक ने देखा कि अरुण ईमानदारी से काम करता है, तो उसने उसे होटल का मैनेजर बना दिया। अब अरुण की जिम्मेदारी और बढ़ गई थी। होटल की बिक्री बढ़ने लगी, मालिक खुश हुआ और अरुण को अपने सभी होटलों की जिम्मेदारी सौंप दी।
अरुण अब 22 साल का हो चुका था। मालिक के घर भी आता-जाता, हिसाब-किताब समझाता। मालिक और उसकी पत्नी अरुण को बेटे की तरह मानने लगे। लेकिन कुछ समय बाद मालिक की पत्नी का निधन हो गया। मालिक अकेला रह गया, अरुण को अपने घर बुला लिया। अरुण ने मालिक की सेवा की, उनके दुख में उनका सहारा बना।
सच का सामना
एक दिन मालिक ने अरुण से पूछा, “तुम्हारे बारे में कभी जानने की कोशिश नहीं की, बताओ कहां से आए थे?” अरुण ने अपनी पूरी कहानी सुनाई – पिता की मौत, मां का संघर्ष, अपनी गलतियां, मां की डांट और घर छोड़ना। अरुण की आंखों में आंसू थे, मालिक भी भावुक हो गए। मालिक बोले, “मेरी कोई संतान नहीं है, मैं अपनी सारी संपत्ति तुम्हारे नाम करना चाहता हूं। लेकिन पहले अपनी मां को यहां लेकर आओ।”
अरुण के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। अगले दिन मालिक ने अपनी पूरी संपत्ति अरुण के नाम कर दी और उसे गाड़ी देकर गांव जाने को कहा।
मां से मिलन
अरुण 10 घंटे का सफर तय कर अपने गांव पहुंचा। बचपन की सारी यादें आंखों के सामने तैर गईं – टूटा-फूटा घर, मां की ममता, उसकी डांट। गांव वाले बड़े आदमी की गाड़ी देखकर हैरान थे। अरुण सीधे घर गया, मां दयावती कुछ काम कर रही थी। अरुण दौड़कर उनके पैरों में गिर गया, रोते हुए बोला, “अगर आपने मुझे ऐसे नहीं निकाला होता तो मैं आज इस मुकाम तक नहीं पहुंचता।”
दयावती हैरान थीं, सोचने लगीं यह कौन है। अरुण ने मां को गले लगाया और कहा, “मां मैं तुम्हारा अरुण हूं, जो 10 साल पहले चला गया था।” दयावती फूट-फूटकर रोने लगीं, बेटे को गले लगा लिया। गांव वालों ने भी खुशी मनाई, मां-बेटे के मिलन का दृश्य देख सबकी आंखें नम हो गईं।
अरुण ने अपनी पूरी कहानी मां और गांव वालों को सुनाई। मां को गर्व हुआ कि उसका बेटा इतने संघर्षों के बाद बड़ा आदमी बन गया है। अरुण ने मां से कहा, “अब चलो मेरे साथ, आपको किसी से मिलाना है।” मां ने पहले मना किया, लेकिन अरुण के आग्रह पर तैयार हो गईं।
नई जिंदगी की शुरुआत
अरुण अपनी मां को लेकर मालिक के पास गया। मालिक ने दयावती के पैर छुए, कहा, “आप देवी हैं, जिन्होंने ऐसे महान बेटे को जन्म दिया।” दयावती भावुक हो गईं। अब अरुण, उसकी मां और होटल मालिक एक ही घर में रहने लगे। दयावती जब भी गांव जातीं, कार से जातीं, अच्छे कपड़े पहनतीं, गांव वालों से बातें करतीं।
अरुण भी कभी-कभी गांव जाता, उन सभी का आभार व्यक्त करता जिन्होंने उसकी मां की मदद की थी। अब अरुण के जीवन में संघर्ष, मेहनत और मां की ममता का संगम था। उसने मां को सुख-सुविधाएं दीं, उनका हर सपना पूरा किया।
कहानी की सीख
यह कहानी सिर्फ एक बेटे के संघर्ष की नहीं, बल्कि मां की ममता, जीवन की सच्चाई और इंसान की मेहनत की है। अगर दयावती ने अरुण को डांटकर घर से न निकाला होता, तो शायद अरुण कभी इतना बड़ा आदमी नहीं बनता। मां की डांट ने अरुण को बदल दिया, उसे संघर्ष सिखाया, मेहनत करना सिखाया। अरुण ने भी अपनी गलतियों को स्वीकार किया, जीवन में आगे बढ़ा, और अंत में अपनी मां को वो सुख दिए, जिसकी वह हकदार थीं।
दोस्तों, जीवन में मुश्किलें आती हैं, लेकिन हार मानना सही नहीं। संघर्ष और मेहनत से इंसान अपनी किस्मत बदल सकता है। मां की ममता कभी गलत नहीं होती, उनकी बातें हमेशा हमारे भले के लिए होती हैं।
अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो, तो अपने दोस्तों के साथ जरूर साझा करें। ऐसी कहानियां हमें जीवन की सच्चाई से रूबरू कराती हैं, और हमें सिखाती हैं कि मेहनत, ईमानदारी और मां-बाप का सम्मान ही असली सफलता है।
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