बेटी का बदला — वर्दी वाले दरिंदे को सिखाया कानून का असली मतलब” वर्दी का घमंड चकनाचूर

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बेटी का बदला — वर्दी वाले दरिंदे को सिखाया कानून का असली मतलब

गांव की सुबह हमेशा की तरह शांत थी। सूरज की पहली किरणें जब झोपड़ी की छत पर पड़ीं, तो रामदीन दादा और उनकी पत्नी सुमित्रा दादी अपने छोटे से खेत की ओर निकल पड़े। उम्र के इस पड़ाव पर, जहां लोग आराम करना पसंद करते हैं, वहीं ये दोनों पति-पत्नी मेहनत और ईमानदारी की मिसाल बने हुए थे। उनका छोटा सा खेत, मौसमी सब्जियों से लहलहा रहा था। ताजी भिंडी, हरी पालक, चमकती लौकी—इन सब्जियों में उनका खून-पसीना बसा था।

हर सुबह वे ठेले पर सब्जियां लादकर शहर की भीड़-भाड़ वाली सड़क के किनारे अपनी छोटी सी दुकान लगाते। उनकी मीठी बोली और सब्जियों की ताजगी के कारण ग्राहक खिंचे चले आते। रामदीन दादा और सुमित्रा दादी की जिंदगी भले ही साधारण थी, लेकिन उसमें आत्मसम्मान और संतोष कूट-कूटकर भरा था। उनकी एकमात्र बेटी सरिता, दूर एक बड़े शहर में पढ़ रही थी। माता-पिता को अपनी बेटी पर बेहद गर्व था। वे अक्सर उम्मीदों और सपनों की बातें करते, कि एक दिन सरिता उनका नाम रोशन करेगी।

लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उनकी बेटी सरिता अब सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक मिसाल बनने जा रही है।

एक दिन दोपहर की तेज धूप में, जब बाजार में भीड़ थी, तभी एक तेज़ रफ्तार काली Mahindra Bolero, जिस पर पुलिस का लोगो लगा था, उनकी दुकान के सामने आकर रुकी। गाड़ी से उतरा इंस्पेक्टर धर्मवीर सिंह—अपने इलाके में क्रूरता और घमंड के लिए कुख्यात। उसका चेहरा हमेशा रूखा और आंखों में सत्ता का नशा साफ झलकता था। आज भी वह गुस्से में लाल था। आते ही उसने आसपास के दुकानदारों को धमकाना शुरू कर दिया, “हट जाओ सब यहां से! ट्रैफिक जाम हो रहा है!”

सभी दुकानदार डर के मारे अपने-अपने ठेले हटाने लगे। लेकिन रामदीन दादा और सुमित्रा दादी ने हमेशा की तरह अपनी दुकान पर ध्यान लगाए रखा। धर्मवीर की नजर उनकी दुकान पर पड़ी। उसे गुस्सा आ गया कि एक बूढ़ा आदमी उसकी बात को अनसुना कर रहा है। “ओए बूढ़े! सुनाई नहीं देता? हट जाओ यहां से!” धर्मवीर ने चीखते हुए कहा।

रामदीन दादा ने डरते-डरते सिर उठाया, “साहब, हम तो हमेशा यहीं बैठते हैं, किसी को परेशानी नहीं होती…” धर्मवीर का पारा चढ़ गया। “यह मेरी सड़क है, मैं जो चाहूं करूंगा!” उसने अपनी लाठी निकाली और रामदीन दादा के ठेले पर मारना शुरू कर दिया। ताजी सब्जियां सड़क पर बिखर गईं। रामदीन दादा अपनी सब्जियों को बचाने की कोशिश करने लगे, लेकिन धर्मवीर ने उन्हें जोर से धक्का दे दिया। वे जमीन पर गिर पड़े।

सुमित्रा दादी की आंखों में आंसू आ गए, “साहब, यह आप क्या कर रहे हैं? हमारी मेहनत है ये!” उन्होंने धर्मवीर का हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसने उन्हें भी धक्का दे दिया। धर्मवीर ने रामदीन दादा पर लाठी से कई वार किए। रामदीन दादा दर्द से कराह उठे, उनके हाथ-पैरों में चोटें आईं। आसपास के लोग देख रहे थे, लेकिन धर्मवीर के डर से कोई आगे नहीं आया। धर्मवीर रामदीन दादा को वहीं छोड़कर गाड़ी में बैठ गया और चला गया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

रामदीन दादा दर्द से तड़प रहे थे, सुमित्रा दादी उनके पास बैठकर रो रही थीं। किसी तरह वे उन्हें घर ले गईं। रामदीन दादा का आत्मसम्मान टूट चुका था। उन्होंने ठान लिया कि अब कभी उस जगह दुकान नहीं लगाएंगे।

इस घटना ने दोनों के दिल में गहरा घाव छोड़ दिया। उधर, सरिता, जो अब एक जिले में सहायक पुलिस अधीक्षक (ASP) थी, अपने काम में व्यस्त थी। तेजतर्रार और ईमानदार अधिकारी के रूप में उसकी पहचान थी। एक शाम, ड्यूटी से लौटने के बाद, उसने अपने घर से मिस्ड कॉल देखी। वह घबरा गई। फोन मिलाया तो चाचा ने घटना विस्तार से सुनाई—कैसे एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उसके माता-पिता को पीटा और सब्जियां फेंक दीं।

सरिता के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके ईमानदार, मेहनती माता-पिता के साथ ऐसा हो सकता है। उसकी आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उसने खुद को संभाला। अब वह सिर्फ बेटी नहीं, एक पुलिस अधिकारी भी थी। उसने तय किया कि वह अपने माता-पिता के साथ हुए अन्याय का बदला जरूर लेगी।

सरिता ने अपने वरिष्ठ अधिकारी से छुट्टी ली और उसी रात घर के लिए रवाना हो गई। अगली सुबह वह माता-पिता के पास पहुंची। माता-पिता उसे देखकर रो पड़े। सरिता ने उनके घाव देखे, उन्हें गले लगाया और कहा, “माफ करिए पापा, मैं आपकी रक्षा नहीं कर पाई।” रामदीन दादा ने उसे दिलासा दिया, “बेटी, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं।”

सरिता ने पूरी घटना की जानकारी ली—कब, कैसे, किसने, किस गाड़ी से। धर्मवीर सिंह का नाम सुनते ही उसके चेहरे पर सख्ती आ गई। उसने अपने जिले के एसपी को फोन किया, अपनी पहचान बताई और तत्काल कार्रवाई की मांग की। एसपी ने तुरंत जानकारी दी, “मैडम, धर्मवीर सिंह इसी थाने में तैनात है।”

सरिता ने वर्दी पहनी, चेहरे पर दृढ़ संकल्प था। वह सीधा थाने पहुंची। सभी पुलिसकर्मी खड़े हो गए। धर्मवीर सिंह भी खड़ा हो गया, लेकिन पहचान नहीं पाया। “इंस्पेक्टर धर्मवीर सिंह?” सरिता ने पूछा। “जी, मैडम,” धर्मवीर ने अकड़कर जवाब दिया। “मुझे पहचानते हो?” सरिता ने उसकी आंखों में देखा। धर्मवीर असमंजस में पड़ गया।

“शायद आपने मेरे माता-पिता को देखा होगा,” सरिता ने शांत स्वर में कहा। धर्मवीर के चेहरे का रंग उड़ गया। “आपके माता-पिता…?” “हां, वही बूढ़े दादा-दादी जो सड़क किनारे सब्जी बेचते हैं, जिन्हें आपने पीटा था।” सरिता की आवाज में बर्फ सी ठंडक थी।

धर्मवीर के पसीने छूट गए। “मैडम, मुझे माफ कर दीजिए, मुझे नहीं पता था…” सरिता ने उसकी बात काट दी, “तुम्हें यह जानने की जरूरत नहीं थी कि वे मेरे माता-पिता हैं या किसी और के। तुम्हारा फर्ज था लोगों की रक्षा करना, न कि उन्हें मारना।”

पूरा थाना सन्नाटा। सरिता ने अपना पहचान पत्र निकाला, “मैं IPS सरिता, सहायक पुलिस अधीक्षक।” धर्मवीर की हालत पतली हो गई। “मैं तुम्हें तत्काल निलंबित करती हूं। तुम्हारे खिलाफ विभागीय जांच होगी और मैं सुनिश्चित करूंगी कि तुम्हें कड़ी सजा मिले।”

धर्मवीर गिड़गिड़ाता रहा, “मैडम, मेरी नौकरी चली जाएगी, मैं गरीब आदमी हूं…” “जब तुम मेरे माता-पिता को पीट रहे थे तब दया नहीं आई?” सरिता ने उसी समय एसपी को फोन किया, धर्मवीर के निलंबन के आदेश जारी हुए। उसकी वर्दी उतरवा दी गई, सर्विस रिवॉल्वर जमा करवा ली गई। उसी दिन उसे थाने से बाहर कर दिया गया।

यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। दुकानदारों और आम लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई। सबने सरिता की बहादुरी और न्याय के लिए उसकी लड़ाई की सराहना की। रामदीन दादा और सुमित्रा दादी को भी सुकून मिला कि उनके साथ हुए अन्याय का बदला मिल गया।

सरिता ने कुछ दिन माता-पिता के साथ बिताए, उन्हें फिर से दुकान लगाने के लिए प्रेरित किया। इस बार उसने सुनिश्चित किया कि कोई उन्हें परेशान न करे। स्थानीय पुलिस को सख्त निर्देश दिए कि सभी छोटे दुकानदारों को सुरक्षा मिले।

धर्मवीर सिंह के खिलाफ विभागीय जांच हुई, उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और आपराधिक मामला भी दर्ज हुआ। उसे अपने किए की सजा मिली, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

यह कहानी सिर्फ एक इंस्पेक्टर के निलंबन की नहीं, बल्कि न्याय की जीत और एक बेटी के प्रेम और साहस की कहानी है। यह कहानी बताती है कि सत्ता का दुरुपयोग कभी सफल नहीं होता, अंत में सच्चाई और ईमानदारी की जीत होती है।

अब रामदीन दादा और सुमित्रा दादी पहले से ज्यादा आत्मविश्वास के साथ दुकान लगाते हैं। लोग उन्हें सिर्फ सब्जी वाले नहीं, बल्कि न्याय की मिसाल मानते हैं। सरिता उनकी ढाल बनकर खड़ी है।

सीख:
वर्दी का सम्मान तभी है जब वह सही तरीके से पहनी जाए। जनता की सेवा ही पुलिस अधिकारी का सबसे बड़ा कर्तव्य है। और जब अन्याय के खिलाफ एक बेटी उठ खड़ी होती है, तो कानून का असली अर्थ सबको समझ आ जाता है।