बेटे के इलाज के लिए भीख मांग रहा था… डॉक्टर निकली तलाकशुदा पत्नी, फिर जो हुआ… |
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बेटे के इलाज के लिए भीख मांग रहा था… डॉक्टर निकली तलाकशुदा पत्नी, फिर जो हुआ…
उत्तराखंड के ऋषिकेश के एक बड़े अस्पताल के गेट पर सुबह-सुबह का अजीब सा मंजर था। भीड़भाड़, एंबुलेंस की आवाजें, मरीजों की चिंता, और उसी गेट के एक किनारे फटी चादर पर बैठा था राकेश। उसके सामने रखा था एक पुराना कटोरा जिसमें कुछ सिक्के थे। पास ही लेटा था उसका बेटा आर्यन, जिसकी सांसें तेज-तेज चल रही थीं और चेहरा पीला पड़ चुका था। राकेश की आंखों से आंसू रुक ही नहीं रहे थे। हर आते-जाते इंसान से वह हाथ जोड़कर कहता, “मेरे बच्चे का इलाज करवा दो, भगवान तुम्हारा भला करेगा।” कोई दया से देखता, कोई सिक्का डाल देता, कोई ताना मारता—“यहां भीख क्यों मांग रहे हो? काम क्यों नहीं करते?” लेकिन राकेश की मजबूरी उन तानों से कहीं बड़ी थी। उसका बच्चा मौत से जूझ रहा था और उसके पास इलाज के पैसे नहीं थे।
तभी अस्पताल कैंपस में एक चमचमाती काली कार आकर रुकी। उसमें से उतरी एक महिला डॉक्टर—सफेद कोट, गले में स्टेथोस्कोप, चेहरे पर आत्मविश्वास। उनकी चाल तेज और सख्त थी। वो गेट की ओर बढ़ रही थीं, तभी उनकी नजर फटी चादर पर लेटे बच्चे और उसके पास बैठे राकेश पर पड़ी। एक पल को उन्होंने अपनी चाल धीमी की और ध्यान से देखा। बच्चे का चेहरा पीला, सांसें लड़खड़ाती हुई, और उसके पास बैठा आदमी—बिखरे बाल, आंसुओं से भरी आंखें, टूटे हौसले। डॉक्टर का चेहरा अचानक बदल गया, उनकी आंखें ठिटक गईं, होठ कांपने लगे। वह चेहरा अजनबी नहीं था। यह वही इंसान था जिसके साथ उन्होंने कभी सात फेरे लिए थे। राकेश। उनके मुंह से नाम खुद-ब-खुद निकल पड़ा।
राकेश ने सिर उठाया, उसकी आंखों में नींद की रातें और होठ कांप रहे थे। उसने सामने खड़ी डॉक्टर को देखा और दिल जोर से धड़क उठा। सामने खड़ी थी कविता—उसकी तलाकशुदा पत्नी। कविता का चेहरा सख्त था, लेकिन आंखों में तूफान साफ दिखाई दे रहा था। राकेश से नजरें मिलते ही अतीत की ढेर सारी बातें जैसे पलभर में लौट आईं। लेकिन अगले ही पल उसने पेशेवर डॉक्टर की तरह खुद को संभाला और सीधे बच्चे की ओर झुकी। “यह बच्चा?” उसने हड़बड़ाकर पूछा। राकेश की आवाज भर गई, “यह मेरा बेटा है, दूसरी शादी से। उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है। डॉक्टर साहिबा, प्लीज इसे बचा लो। यह मेरा सब कुछ है।”
कविता का दिल धड़क उठा। वही आदमी, जिसने कभी उन्हें अपना सब कुछ कहा था, आज अपने बच्चे के लिए जमीन पर बैठा भीख मांग रहा था। उनके मन में गुस्सा भी था, तकरारों की पुरानी यादें भी थीं, मगर उस सबसे ऊपर एक मासूम की सांस थी। कविता ने तुरंत नर्स को आवाज दी, “इमरजेंसी स्ट्रेचर लाओ!” कुछ ही सेकंड में नर्स और वार्ड बॉय वहां पहुंचे। बच्चे को स्ट्रेचर पर लेटाया गया और तेजी से अंदर की ओर ले जाया गया। राकेश उनके पीछे-पीछे भागा, लेकिन रिसेप्शन पर खड़े एक क्लर्क ने हाथ रोक दिया, “पहले एडवांस जमा करना होगा, वरना केस आगे नहीं बढ़ेगा।”
राकेश की आंखों में फिर से आंसू आ गए। वह कांपती आवाज में बोला, “भाई साहब, मेरे पास कुछ नहीं है। जो था वो दवा में चला गया। प्लीज मेरे बेटे को मरने मत दो।” कविता यह सब सुन रही थी। उसने सख्त लहजे में क्लर्क से कहा, “यह मेरा केस है। पेमेंट की चिंता बाद में करना, पहले बच्चे का इलाज शुरू करो।” उनकी आवाज में इतनी ठसक थी कि क्लर्क चुपचाप रास्ता छोड़कर हट गया।
कविता ने खुद आगे बढ़कर बच्चे की जांच शुरू की। ऑक्सीजन लेवल खतरनाक रूप से गिरा हुआ था। छाती में संक्रमण की संभावना थी। उन्होंने टीम को आदेश दिया, “नेबुलाइजर लगाओ, तुरंत खून की जांच करो, एक्सरे और सीबीसी कराओ, आईसीयू में शिफ्ट करो।” राकेश दूर खड़ा यह सब देख रहा था। उसके चेहरे पर राहत भी थी और शर्म भी। राहत इसलिए कि उसका बेटा अब सुरक्षित हाथों में था, और शर्म इसलिए कि जिस औरत को उसने कभी छोड़ दिया था, आज वही उसके बेटे की जान बचाने की जद्दोजहद कर रही थी।
भीतर इमरजेंसी वार्ड में मशीनों की बीप-बीप गूंज रही थी। कविता ने मास्क पहना और बच्चे के पास खड़ी हो गई। उनकी आंखों में अब सिर्फ एक ही ख्वाहिश थी—किसी भी तरह इस मासूम की सांसें थमनी नहीं चाहिए। करीब एक घंटे तक जांच और इलाज चलता रहा। बाहर राकेश बार-बार भगवान से प्रार्थना करता रहा। कभी हाथ जोड़ता, कभी रोकर जमीन पर सिर पटकता। उसके दिल में बस एक ही सवाल गूंज रहा था—क्या मेरा बेटा बच जाएगा?
घंटे भर बाद कविता बाहर आई। उनके चेहरे पर थकान थी, लेकिन हल्की सी मुस्कान भी। राकेश भागकर उनके पास आया, “कैसा है मेरा बेटा?” कविता ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “अभी खतरे से बाहर है, लेकिन अगले 24 घंटे बहुत नाजुक हैं। हमें लगातार निगरानी रखनी होगी।” राकेश की आंखों से आंसू बह निकले। उसने जमीन पर झुककर कविता के पैर छूने की कोशिश की। लेकिन कविता ने तुरंत उसे रोक दिया, “यह सब मत करो राकेश। मैं यह किसी रिश्ते की वजह से नहीं, बल्कि इसलिए कर रही हूं क्योंकि मैं डॉक्टर हूं और इंसान भी।”
राकेश का गला रंध गया। उसने कांपते शब्दों में कहा, “फिर भी आज तुमने साबित कर दिया कि इंसानियत सबसे बड़ा रिश्ता होती है।” वार्ड के बाहर भीड़ खड़ी थी। कुछ लोग अब वीडियो बनाने के बजाय राकेश को सहानुभूति से देख रहे थे। लेकिन राकेश के लिए मायने सिर्फ इतना था कि उसका बेटा जिंदा है।
आर्यन की धड़कनें थोड़ी स्थिर हुईं तो कविता ने मॉनिटर पर नजर डालकर चैन की सांस ली और नर्स को निर्देश दिया कि हर 5 मिनट पर बच्चे की जांच करें। बाहर आकर उन्होंने राकेश की ओर देखा—दीवार से टिके राकेश की आंखों में आंसू थे, चेहरा शर्म से झुका हुआ। अब वह सिर्फ एक टूटा हुआ बाप दिखाई दे रहा था।
कविता ने गंभीर स्वर में कहा, “राकेश, मेरे चेंबर में चलो, हमें बात करनी है।” सालों बाद कविता के साथ अकेले बैठने का मौका पाकर राकेश चौंक गया। गला सूखा था, कदम भारी, पर वह चुपचाप उनके पीछे चल पड़ा। चेंबर का दरवाजा बंद होते ही गहरी खामोशी छा गई। बाहर शोर था, भीतर दो दिलों का अतीत गूंज रहा था।
राकेश की आंखें भर आईं। कांपते स्वर में उसने कहा, “कविता, मैं तुम्हारे माफी के लायक भी नहीं हूं। लेकिन आज हाथ जोड़कर कहता हूं, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें जितना दुख दिया, उसकी सजा मैं हर दिन भुगत रहा हूं। तुम्हारे सपनों को बोझ समझा, तुम्हें रोकता रहा। यही मेरी सबसे बड़ी भूल थी। तुम्हें खोकर खुद को भी खो बैठा।”
उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उसने जोड़ते हुए कहा, “तुम्हारे जाने के बाद दूसरी शादी की। सोचा जख्म भरेंगे, लेकिन पत्नी बच्चे को जन्म देकर चली गई। अब यही बच्चा मेरी आखिरी उम्मीद है और मौत से जूझ रहा है। कविता, मैं टूट चुका हूं।”
कविता की आंखें भीग गईं, पर स्वर दृढ़ था, “राकेश, माफी से अतीत नहीं बदलता। फर्क इतना है कि मैंने उस बोझ को मेहनत में बदला और तुमने पछतावे में। तुम्हें याद है हमारी शादी के शुरुआती दिन? वो छोटा सा घर, टूटी दीवारें, लेकिन हंसी गूंजती थी। तुम घाट से लौटते, मैं पराठे बनाती। हमारे पास कुछ नहीं था, पर तुम्हारी मुस्कान ही मेरी दौलत थी। तुम कहते थे, एक दिन तुम्हें बड़ा डॉक्टर बनाऊंगा।”
राकेश की आंखें छलक पड़ीं, “हां, याद है। और याद है वह रात जब मैंने गुस्से में कहा था—अगर तुम्हें डॉक्टर बनना है तो मेरे साथ मत रहो। वही मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा अपराध था।”
कविता की आंखों से आंसू छलक गए, “उस रात मैंने सोचा था शायद तुम पीछे मुड़कर देखोगे। लेकिन अदालत की सीढ़ियों से उतरते वक्त तुमने मेरी तरफ एक बार भी नहीं देखा और मैं अकेली रह गई।”
राकेश फूट पड़ा, “हां, और उसकी गलती का बोझ आज तक ढो रहा हूं। अब अगर यह बच्चा भी…” उसकी सिसकियां कमरे में गूंज उठीं। कविता ने टिश्यू बढ़ाया और दृढ़ स्वर में बोली, “राकेश, अतीत मिटाया नहीं जा सकता। लेकिन यह बच्चा अब तुम्हारी पूरी दुनिया है। उसके लिए तुम्हें मजबूत होना होगा। यही तुम्हारी असली परीक्षा है। और मैं उसे बचाने की हर कोशिश करूंगी—डॉक्टर होने के नाते भी, इंसान होने के नाते भी।”
कमरे में खामोशी छा गई। बाहर एंबुलेंस का सायरन था, अंदर दो टूटे दिल और एक मासूम की जिंदगी। दोनों जानते थे, अब सारी लड़ाई सिर्फ उस बच्चे की सांसों के लिए है।
रात गहरा चुकी थी। अस्पताल की गलियों में सन्नाटा पसरा था। राकेश बाहर बेंच पर बैठा था—चेहरा थका हुआ, आंखें लाल, होंठ लगातार बुदबुदा रहे थे, “हे भगवान, मेरा बेटा ठीक हो जाए।” तभी अचानक आईसीयू से मशीन की तेज बीप सुनाई दी। नर्स घबरा कर बाहर निकली, “डॉक्टर मैम, बच्चे की हालत बिगड़ रही है।” राकेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। कविता बिना वक्त गवाए आईसीयू में दौड़ी। उनका चेहरा गंभीर था, लेकिन आंखों में मां जैसी बेचैनी थी।
अंदर बच्चे का ऑक्सीजन लेवल तेजी से गिर रहा था। धड़कनें धीमी हो रही थीं। कविता ने मास्क पहना, दस्ताने चढ़ाए और आदेश दिए, “जल्दी नेबुलाइजर ऑन करो, ऑक्सीजन सिलेंडर बदलो, ब्लड रिपोर्ट लाओ, वेंटिलेटर तैयार रखो।” टीम भाग दौड़ में लग गई। कविता ने बच्चे की छाती पर स्टेथोस्कोप रखा। उसका नन्हा सीना उठता-गिरता देख उनकी आंखें भीग गईं। उन्होंने अनजाने में उसकी छोटी उंगलियां पकड़ लीं और मन ही मन कहा, “तू मासूम है, तेरी सांसों की डोर अब मेरे हाथ में है, तुझे खोने नहीं दूंगी।”
बाहर राकेश दरवाजे पर खड़ा कांप रहा था। नर्स ने उसे रोका। उसकी आंखों से आंसू बहते रहे, वह बुदबुदा रहा था, “भगवान, मेरी एक ही आसरा है, इसे मत छीनना।” अंदर तीन घंटे तक संघर्ष चलता रहा। कभी धड़कनें धीमी हो जातीं, कभी ऑक्सीजन लेवल गिर जाता, लेकिन कविता हर बार हालत को संभाल लेती। पसीना उनके माथे से बह रहा था, थकान आंखों में थी, लेकिन उनके कदम डगमगाए नहीं। आखिरकार सुबह चार बजे मॉनिटर पर स्थिर लकीरें उभरीं। बच्चे की सांसें सामान्य होने लगीं। कविता ने गहरी सांस ली और धीरे से कहा, “स्टेबल है, खतरा टल गया।”
पूरे आईसीयू में राहत की लहर दौड़ गई। बाहर बैठे राकेश ने दरवाजा खुलते ही दौड़कर कविता का चेहरा देखा। उनके थके लेकिन संतोष भरे भाव देखकर उसकी आंखों से आंसू फूट पड़े। वह कांपती आवाज में बोला, “कैसा है मेरा बेटा?” कविता हल्की मुस्कान के साथ बोली, “अब खतरे से बाहर है। अगले 24 घंटे निगरानी रखनी होगी, पर अभी डरने की जरूरत नहीं है।”
यह सुनते ही राकेश की आंखों से राहत के आंसू बरस पड़े। वह वही जमीन पर बैठ गया और हाथ जोड़कर बोला, “धन्यवाद प्रभु, और धन्यवाद कविता। तुमने मेरे बेटे को नया जीवन दिया, यह एहसान मैं जिंदगीभर नहीं चुका पाऊंगा।”
कविता की आंखें भी नम थीं, लेकिन आवाज दृढ़ रही, “राकेश, इसे एहसान मत कहो। यह मेरा फर्ज है—एक डॉक्टर का भी, एक इंसान का भी। लेकिन याद रखो, बच्चा सिर्फ दवाओं से नहीं जिएगा, उसे तुम्हारे सहारे, तुम्हारे प्यार और जिम्मेदारी की भी जरूरत है।”
राकेश ने आंसू पोंछते हुए सिर झुका लिया, “हां कविता, अब मैं समझ गया हूं। यही मेरी आखिरी दौलत है।”
कविता कुछ पल चुप रही। फिर बोली, “राकेश, इंसान की असली परीक्षा वही होती है जब हालात उसके खिलाफ हों। तुम्हें यह मौका मिला है, इसे खोना मत।”
बाहर आसमान में सुबह की पहली किरणें फैल चुकी थीं। ऐसा लग रहा था जैसे पूरी प्रकृति इस मासूम की नई जिंदगी का जश्न मना रही हो। अगले दो दिन इलाज चलता रहा। धीरे-धीरे आर्यन की आंखों में चमक लौटी, होठों पर मुस्कान खिली। जब आर्यन कमजोर हाथों से राकेश की उंगली थामे, तो राकेश का दिल भर आया। उस पल उसे लगा कि दुनिया की सारी दौलत भी इस एहसास के आगे फीकी है।
छुट्टी के दिन कविता ने राकेश को अपने चेंबर में बुलाया। माहौल भारी था। राकेश ने रुंधे गले से कहा, “कविता, मैंने तुम्हें जितना दुख दिया, उतना कोई पति अपनी पत्नी को नहीं देता। तुम्हारे सपनों को बोझ समझा, तुम्हें रोका-टोका, और फिर छोड़ दिया। आज अगर तुम ना होती तो मैं अपने बेटे को खो देता। तुम चाहो तो सजा दो, लेकिन मुझे माफ कर दो।”
कविता की आंखें भीग गईं, लेकिन आवाज ठहराव से भारी थी, “राकेश, सबसे बड़ी गलती वही होती है जब इंसान वक्त रहते रिश्तों की कदर नहीं करता। तुमने वही किया। हां, तुमने मुझे बहुत दर्द दिया। लेकिन अब तुम्हें पछताते हुए देखकर लगता है कि शायद जिंदगी ने तुम्हें सिखा दिया कि प्यार और सम्मान ही सबसे बड़ी पूंजी है।”
राकेश ने कांपती आवाज में कहा, “अगर तुम चाहो तो हम फिर से…” कविता ने बीच में ही उसकी बात रोक दी, “नहीं राकेश, जो रिश्ता एक बार टूट जाता है, उसे जोड़ने की कोशिश और दर्द ही देती है। मैं अब अपनी दुनिया में हूं—अपने मरीजों और अपने फर्ज के साथ। तुम्हें पति के रूप में नहीं अपना सकती। लेकिन इंसानियत का रिश्ता हमारे बीच हमेशा रहेगा। मैंने तुम्हारे बेटे को बचाया क्योंकि इंसानियत किसी तलाक की मोहर से नहीं टूटती।”
राकेश का सिर और झुक गया। आंखों में पछतावा था, लेकिन दिल में कविता के लिए सम्मान और कृतज्ञता भी। कुछ पल की खामोशी के बाद कविता बोली, “राकेश, अब तुम्हें अपने बेटे के लिए जीना होगा। याद रखना, वह तुम्हारे अतीत का बोझ नहीं, तुम्हारे भविष्य की उम्मीद है। उसे संभालना ही तुम्हारी सबसे बड़ी परीक्षा और सच्चा प्रायश्चित है।”
राकेश ने सिर उठाकर कहा, “कविता, अब यही मेरी दुनिया है। मैं वादा करता हूं, इसे कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।” कविता की आंखों में हल्की मुस्कान आई, “यही सही फैसला है। और याद रखो, इंसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा होता है।”
कुछ देर बाद राकेश अपने बेटे को लेकर अस्पताल से बाहर निकला। ठंडी सुबह की हवा में उसे कई साल बाद सुकून मिला। बेटे की नन्ही उंगली उसकी हथेली में थी, और उसके दिल में एक संकल्प—अब वही उसका सब कुछ है। खिड़की से यह दृश्य देखती कविता के चेहरे पर संतोष था। अतीत की कसक अब भी थी, लेकिन एक सुकून भी था कि उन्होंने इंसानियत का सबसे बड़ा फर्ज निभाया।
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