बैंकों ने गरीब लोगों को बैंकों से बाहर निकाला, लेकिन 5 मिनट में पूरी बैंकिंग व्यवस्था ध्वस्त हो गई – अविश्वसनीय घटना
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बैंकों ने गरीबों को बाहर निकाला, लेकिन 5 मिनट में पूरी बैंकिंग व्यवस्था ध्वस्त हो गई — अविश्वसनीय घटना
दिल्ली की दोपहर सूरज की तेज़ धूप से झुलस रही थी। सड़क पर चलने वाले हर शख्स का चेहरा पसीने से तर था। धूल और गर्मी ने हवा को बोझिल बना दिया था। रिक्शों की आवाज़ें, बसों के हॉर्न, और दूर से आती रेलवे इंजन की सीटी मिलकर एक शोर पैदा कर रही थी। इन शोर-शराबे वाली गलियों में एक दुबला-पतला आदमी धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा था। उसके कंधे झुके हुए थे, कपड़े पसीने और मिट्टी से सने हुए थे, और चप्पल के तले घिस चुके थे, जिन पर जगह-जगह छेद भी हो चुके थे।
यह था अनवार अहमद, एक आम मजदूर। रोज सुबह वह अपने छोटे से कच्चे घर से निकलता और शाम तक किसी निर्माण स्थल पर काम करता। कभी ईंटें ढोता, कभी सीमेंट की बोरी उठाता, तो कभी मजदूरों के साथ रेत के ट्रक को खाली करता। दिल्ली की कड़ी धूप और मेहनत के बाद शाम को उसके हाथ में चंद सौ रुपये आते, जिनसे वह अपनी पत्नी सफिया और दो छोटे बच्चों का भरण-पोषण करता था।
अनवार का शरीर थकान से टूट चुका था, लेकिन दिल में एक अटूट विश्वास था कि वह अपनी मेहनत की कमाई से परिवार का पालन-पोषण कर रहा है। सफिया अक्सर उसके पसीने से भीगे कपड़ों को धोते हुए कहती, “अनवार, ये कपड़े चाहे जितने मैले हों, मेरे लिए ये सबसे कीमती हैं क्योंकि इनमें मेहनत की खुशबू है।”
उस दिन मजदूरी खत्म करके अनवार सीधे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक एटीएम की ओर बढ़ा। जेब से उसने एक पुराना, रंग फीका पड़ चुका बटुआ निकाला, जिसमें एक खस्ता एटीएम कार्ड रखा था। कार्ड के किनारे कट चुके थे। कई बार उसने सोचा नया कार्ड बनवा ले, लेकिन दिल ही दिल में कहा, “यह पुराना ही ठीक है। असल में मेहनत की कमाई है जो इसमें आती है।”
अनवार के लिए यह कार्ड केवल प्लास्टिक का टुकड़ा नहीं था, बल्कि उसके परिवार के भविष्य की उम्मीद थी। जब भी वह कार्ड निकालता, उसे याद आता कि यह उसके पसीने की कमाई की नुमाइंदगी करता है।
एटीएम रूम में कदम रखते ही ठंडी हवा ने उसके भीगे बदन को छुआ। अंदर कतार में कई लोग खड़े थे—साफ-सुथरे कपड़ों में, कुछ टाई लगाए हुए, कुछ चमकते जूतों में। अनवार की नजर अपनी पुरानी चप्पलों पर पड़ी, जिन पर सीमेंट की मैल लगी थी। वह झिझका कि कहीं लोग उसे देखकर हंसे न। लेकिन पैसे निकालना जरूरी था—बच्चों के लिए आटा, दाल, सब्जी खरीदनी थी।
कतार में खड़े लोग अनवार को देखकर मुंह फेरने लगे। एक नौजवान ने तंज भरी नजरों से कहा, “लगता है मजदूरों ने भी एटीएम कार्ड बना लिया है।” साथ खड़ी लड़की ने हंसते हुए कहा, “हाँ, लेकिन कार्ड तो खाली ही होगा। दिखावा है।” ये बातें अनवार के दिल को चुभीं, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं, बस दिल में दुआ की, “या अल्लाह, आज मेरा नसीब अच्छा हो।”
तभी बैंक का मैनेजर रविंद्र शर्मा अंदर आया। साफ-सुथरे कपड़ों में, गर्दन में नीली टाई और चमकते जूतों के साथ। उसकी नजरें कतार में खड़े लोगों पर पड़ीं और जब अनवार को देखा तो तंजिया मुस्कुराहट के साथ बोला, “अरे मियां, तुम्हारे खाते में क्या होगा? ज्यादा से ज्यादा ₹100-₹200 ही होंगे। इतना झंझट क्यों?”
कमरे में मौजूद लोग हँस पड़े। रविंद्र ने कहा, “अगर यह कार्ड मशीन में डालेगा, तो मशीन ही फट जाएगी। इसमें जितने सफर होंगे, उतनी बड़ी खराबी मैंने कभी नहीं देखी।” एक महिला ने तो यह दृश्य मोबाइल में रिकॉर्ड करने की कोशिश भी की।
अनवार की बारी आई। उसने हाथ कांपते हुए कार्ड निकाला और मशीन में डाला। पिन डाला, मशीन ने बीप की आवाज़ दी और फिर चुप हो गई। सन्नाटा छा गया। सभी की निगाहें स्क्रीन पर टिकी थीं। अचानक प्रिंटर से कागज निकलने लगा। अनवार ने रसीद ली और देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। रसीद पर अरबों का बैलेंस लिखा था।
कमरे में हैरानी की लहर दौड़ गई। रविंद्र शर्मा का चेहरा सफेद पड़ गया। वह बोला, “यह सिस्टम की खराबी है। ऐसे कपड़ों वाले के खाते में अरबों कैसे हो सकते हैं?” लेकिन कई लोग सोच में पड़ गए कि क्या खराबी अरबों का बैलेंस दिखा सकती है?
अनवार ने रसीद जेब में रख ली। दिल जख्मी था, लेकिन चेहरे पर सुकून था। वह एटीएम से बाहर निकला। धूप ढल रही थी, लेकिन दिल का बोझ अभी भी था। उसने ठाना कि सब्र से काम लेगा।
घर पहुंचकर सफिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “अस्सलाम वालेकुम, आज देर हो गई।” बच्चे दौड़े आए, मुआज ने गले लगाया और राबिया ने पूछा, “अब्बा, आज हमारे लिए क्या लाए हो?” अनवार ने जेब से पकोड़े और समोसे निकाले। बच्चे खुशी से ताली बजाने लगे।
खाने के बाद बच्चे खेलने लगे। अनवार कमरे में गया, जहां पुरानी मेज पर उसका लैपटॉप और रजिस्टर रखा था। उसने लैपटॉप चालू किया। स्क्रीन पर एक फाइल खुली, जिसमें मुनाफे का चार्ट ऊपर की ओर जा रहा था। अनवार की आंखों में सुकून था।
असल में अनवार सालों से ऑनलाइन बिजनेस कर रहा था। दिन में मजदूर, रात में बिजनेसमैन। शुरू में छोटी-छोटी चीजें बेचता, फिर होलसेल सप्लायर्स से संबंध बनाए। यूट्यूब वीडियो और किताबों से सीखता रहा। मेहनत से उसका बिजनेस करोड़ों में पहुंच गया था।
उसने रजिस्टर पर लिखा, “मेहनत और दुआ से तकदीर बदलती है। असली कामयाबी वही है जो दूसरों को इज्जत दे।” वह लैपटॉप बंद कर मुस्कुराया, “या अल्लाह, यह सब तेरी रहमत है।”
अगली सुबह बैंक में हलचल थी। हेड ऑफिस से सूचना आई थी कि आज एक बड़ा निवेशक ब्रांच का दौरा करेगा। कर्मचारी तैयारियों में जुट गए। रविंद्र शर्मा पूरे बैंक का जायजा ले रहा था। वह सोच रहा था कि अगर निवेशक प्रभावित हुआ तो वह रीजनल मैनेजर बन जाएगा।
कॉन्फ्रेंस रूम तैयार था। सफेद कपड़ा, कुर्सियां, पानी की बोतलें, और प्रोजेक्टर सब सेट थे। रविंद्र बार-बार अपनी टाई ठीक करता और मुस्कुराता था, लेकिन मन में अनवार की रसीद का मंजर बार-बार आ रहा था।
शाम को गाड़ियों की आवाजें बढ़ने लगीं। सब सोच रहे थे कि कोई बड़ा बिजनेसमैन आएगा। अचानक दरवाजा खुला और अंदर वह मजदूर अनवार अहमद आया। पुराने कपड़ों में, घिसी चप्पलें पहने, चेहरा धूप से झुलसा लेकिन आंखों में वकार था।
लोग स्तब्ध रह गए। रविंद्र का चेहरा रंग गया, गर्व गायब हो गया। वह बड़बड़ाया, “यह कैसे संभव है?” अनवार ने सुकून से आगे बढ़ा। सबकी नजरें झुकीं।
अनवार लॉबी से गुजरा। सेक्रेटरी ने आदब से कहा, “अस्सलाम वालेकुम अनवार साहब, बराहे करम आइए, सब कुछ तैयार है।” कल जिसे जलील किया गया था, आज इज्जत से अनवार साहब कहा जा रहा था।
रविंद्र की नजरें झुकीं, वह अनवार को देख नहीं सका। उसका गर्व टूट चुका था।
कॉन्फ्रेंस रूम में अनवार बैठा। उसने फोल्डर खोला, जिसमें अरबों की कहानी थी। रविंद्र कोने में खड़ा था, होंठ चबा रहा था। अनवार ने कहा, “मेहनत मेरी आदत है, सब्र मेरा हथियार। अल्लाह ने चाहा तो यह मेहनत कामयाबी में बदली।”
सभी शर्मिंदा थे। एक नौजवान ने कहा, “सर, हमने आपको गलत समझा। हमें माफ कर दीजिए।” अनवार ने कहा, “मैं किसी का नाम नहीं लेता, लेकिन हर एक का जमीर जानता है कि उसने क्या किया।”
रविंद्र ने रोते हुए माफी मांगी। अनवार ने समझाया, “माफी तभी कबूल होती है जब दिल से हो और सोच बदले।”
अनवार ने कहा, “इज्जत लिबास से नहीं, किरदार से मिलती है। मेहनत करने वाला कभी हकीर नहीं होता।”
रविंद्र ने घुटनों के बल गिरकर माफी मांगी। अनवार ने कहा, “मैं आपको माफ कर सकता हूं, लेकिन इज्जत अल्लाह के हाथ में है।”
कमरे में खामोशी छा गई। रविंद्र रोता रहा। अनवार धीरे-धीरे बाहर निकला। उसने सबको याद दिलाया कि इंसान की असली कीमत उसके किरदार और अखलाक में है, न कि उसके कपड़ों या दौलत में।
बाहर की शाम सुनहरी थी। अनवार साधारण मजदूर था, लेकिन उसकी मेहनत, ईमानदारी और वकार ने उसे सबका सरमायाकार बना दिया था। उसने दिखा दिया कि असली दौलत इंसानियत और चरित्र है, न कि पद या पैसा।
यह कहानी हमें सिखाती है कि इंसान की असली कीमत उसके चरित्र और मेहनत में होती है, न कि उसके बाहरी रूप या आर्थिक स्थिति में। जो दूसरों को उनके हालात के कारण जलील करता है, वह खुद सबसे बड़ा हकीर होता है। हमें हर इंसान की इज्जत करनी चाहिए, क्योंकि इज्जत तो अल्लाह देता है।
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