भाई को कंधे पर लेकर बच्चे ने पिता को ढूँढा, उसका गीत सुनकर अरबपति रो पड़ा और परिवार मिल गया!

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जब बीवी भिखारी बनकर शौहर के होटल में गई, फिर क्या हुआ — सबक़ आमोज़ कहानी

भूमिका

गोदावरी नदी के किनारे बसी एक गरीब बस्ती में अर्जुन और राजू, दो भाई, अपने पिता को खोजने के लिए मुंबई तक की पैदल यात्रा शुरू करते हैं। उनके पिता पिछले 10 वर्षों से लापता हैं। मां के गुजरने के बाद, अर्जुन के पास केवल एक आखिरी वादा और चांदी का एक लॉकेट बचा था, जो उनके पिता को पहचानने की निशानी थी। बिना पैसे और रिश्तेदारों के, 10 साल का यह लड़का अपने छोटे भाई को पीठ पर लादकर निकल पड़ा।

गरीबी की कहानी

बस्ती में सुबह की शुरुआत हमेशा पानी पर नाव के चपुओं की हल्की आवाज और झुग्गियों से आती मुर्गों की बांग से होती थी। लेकिन अर्जुन और राजू के लिए यह आवाजें कभी भी उनके दिल के खालीपन को दूर नहीं कर सकीं। उनका घर कच्ची पगडंडी के आखिर में था, जिसकी टीन की छत में जंग लगा था और जगह-जगह छेद थे। हर बरसात में घर के फर्श पर पानी भर जाता था।

अर्जुन और राजू अब बस एक-दूसरे के सहारे दिन काट रहे थे। उनके पिता विजय, जब अर्जुन बहुत छोटा था, काम करने मुंबई गए थे। शुरुआत में कुछ चिट्ठियों के जरिए वादे आए और फिर समय के साथ वे भी गायब हो गए। पीछे रह गई तो बस मां लक्ष्मी और उनका लंबा इंतजार जो घर के सामने बहती नदी की धारा की तरह खींचता चला गया।

जब भी बस्ती में लक्ष्मी के पति के लापता होने की बात होती, अर्जुन वहां से हट जाता। वह उन बातों को नहीं सुनना चाहता था जो अनजाने में ही सही उसकी मां को दुखी करती थीं। लेकिन वह कितना भी बचने की कोशिश करता, पुरानी तस्वीर में मुस्कुराते हुए पिता की छवि हमेशा उभर आती थी।

मां की बीमारी

एक भारी बरसात के मौसम में बीमारी ने मां की ताकत को निचोड़ना शुरू कर दिया। लक्ष्मी को इतनी खांसी आती कि कई रातें वे सो नहीं पातीं। अर्जुन समझ गया था कि मां तेजी से कमजोर हो रही हैं। लेकिन वह घर संभालने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था।

जब नदी का पानी कम होता, मां अक्सर टोकरी लेकर घाट पर सब्जी धोने जातीं और अर्जुन बगल में बैठकर फटी हुई जाली को सिलता ताकि अगले दिन मां उसे बाजार में बेचकर चावल ला सकें। राजू तो हर वक्त पीछे लगा रहता।

मां का अंतिम समय

एक दिन, अर्जुन ने देखा कि मां की हालत बहुत बिगड़ गई है। उनकी आंखें सूजी हुई थीं और शरीर बुरी तरह कमजोर हो गया था। अर्जुन ने अपनी हिम्मत जुटाई और मां से कहा, “मां, मैं काम करने जाऊंगा। आप आराम करें।”

लेकिन मां ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, तुम बस मेरी देखभाल करो। मैं ठीक हो जाऊंगी।” लेकिन अर्जुन को पता था कि मां की स्थिति ठीक नहीं है।

मां का निधन

एक रात, जब बारिश हो रही थी, अर्जुन ने मां को बुखार में तड़पते देखा। उसने उन्हें गर्म कपड़े ओढ़ाए, लेकिन मां की हालत बिगड़ती चली गई। अगले दिन, जब अर्जुन जागा, उसने मां को बिस्तर पर लेटा पाया। उनकी सांसे थम चुकी थीं। अर्जुन का दिल टूट गया।

उस पल अर्जुन ने महसूस किया कि अब उसे अपने छोटे भाई राजू का ख्याल रखना होगा। उसने राजू को गोद में उठाया और उसे समझाया कि सब ठीक है। लेकिन राजू ने मां को खोने का दर्द महसूस किया और रोने लगा।

पिता की खोज

अर्जुन ने तय किया कि वह अपने पिता को खोजने जाएगा। उसने राजू को अपनी पीठ पर लाद लिया और गोदावरी नदी के किनारे से मुंबई की ओर चल पड़ा। रास्ते में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उसका इरादा मजबूत था।

जब वे मुंबई पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि यह शहर कितना बड़ा और व्यस्त है। अर्जुन ने अपने पिता के बारे में पूछताछ शुरू की, लेकिन किसी को भी उनके बारे में कुछ नहीं पता था।

भिखारी बनकर होटल में जाना

एक दिन, अर्जुन और राजू ने एक फाइव स्टार होटल के बाहर एक गार्ड से पूछा कि क्या उन्हें अपने पिता का पता मिल सकता है। लेकिन गार्ड ने उन्हें भिखारी समझकर अंदर जाने से रोक दिया। अर्जुन ने कहा, “हमें सिर्फ अपने पिता को ढूंढना है।”

गार्ड ने कहा, “यहां आम लोगों का दाखिला मना है।” अर्जुन ने हार नहीं मानी और राजू को लेकर आगे बढ़ा।

मीरा की दया

तभी, एक धूल से भरी औरत, मीरा, अपने छोटे बच्चे के साथ वहां आई। उसने अर्जुन और राजू की कहानी सुनी और उन्हें मदद करने का निर्णय लिया। उसने गार्ड से कहा, “मैं इन बच्चों को अंदर ले जाने की अनुमति देती हूं।”

गार्ड ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन मीरा ने अपनी बात रखी। “यहां कोई भी इंसान अपनी पहचान के बिना नहीं आ सकता।”

पिता की पहचान

अर्जुन ने मीरा से कहा, “हम अपने पिता को खोजने आए हैं।” मीरा ने उनकी मदद की और उन्हें होटल के रिसेप्शन पर ले गई। वहां, मीरा ने अर्जुन से कहा कि वह अपने पिता को पहचानने के लिए लॉकेट दिखाए।

अर्जुन ने लॉकेट निकाला और कहा, “यह मेरे पिता की पहचान है।” मीरा ने उसे ध्यान से देखा और कहा, “चलो, हम इसे रिसेप्शन पर दिखाते हैं।”

भावुक क्षण

जब अर्जुन ने लॉकेट रिसेप्शन पर रखा, तो वहां मौजूद सभी लोग चौंक गए। अर्जुन ने अपनी कहानी बताई कि कैसे वह अपने पिता को खोजने आया है।

उस पल, होटल के मालिक दीवान प्रताप सिंह, जो मीरा के पिता थे, वहां आए। उन्होंने अर्जुन को देखा और तुरंत पहचान लिया। “तुम्हारे पिता विजय मेरे पुराने दोस्त हैं।”

पिता का मिलन

अर्जुन ने खुशी से कहा, “क्या आप मेरे पिता को जानते हैं?” प्रताप ने सिर हिलाया और कहा, “हाँ, वह अभी भी जीवित हैं। मैं तुम्हें उनसे मिलवाता हूँ।”

प्रताप ने अर्जुन और राजू को अपने साथ लिया और उन्हें विजय के पास ले गए। जब विजय ने अपने बेटों को देखा, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने दोनों को गले लगा लिया।

एक नई शुरुआत

उस दिन, अर्जुन और राजू ने अपने पिता को वापस पा लिया। मीरा ने उनकी मदद की और उनके परिवार को फिर से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

समापन

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि प्यार और परिवार की ताकत किसी भी कठिनाई को पार कर सकती है। जब हम अपने प्रियजनों के लिए संघर्ष करते हैं, तो उम्मीद कभी समाप्त नहीं होती।

इस कहानी ने हमें यह भी याद दिलाया कि इंसानियत की पहचान कपड़ों से नहीं, बल्कि दिल से होती है। मीरा की दया और अर्जुन का संघर्ष एक नई शुरुआत का प्रतीक बन गया।

धन्यवाद!

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