भिखारी समझकर बच्चे को बैंक से निकाला, निकला अरबपति बिज़नेसमैन का बेटा। फिर आगे जो हुआ..

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भिखारी समझकर बच्चे को बैंक से निकाला, निकला अरबपति बिज़नेसमैन का बेटा

सोनू, एक दस साल का दुबला-पतला लड़का, अपनी आठ महीने की बहन पूनम को गोद में लिए चुप कराने की कोशिश कर रहा था। पूनम भूख से बिलख रही थी, उसका मासूम रोना उस तंग कमरे की दीवारों से टकराकर गूंज रहा था। तभी दरवाजा खुला और उसके पिता संजय घर में दाखिल हुए — शहर के एक प्रसिद्ध व्यापारी, परंतु घर में उनके हावभाव एकदम साधारण।

उन्होंने अलमारी से एक पुरानी सी कमीज और घिसा-पिटा पायजामा निकाला और सोनू की ओर बढ़ाया, “यह पहन लो बेटा।”

सोनू चौंका, “पापा, ये तो बहुत पुराने हैं। अगर मैं स्कूल में ये पहनकर गया तो सब मेरा मजाक उड़ाएंगे।”

संजय मुस्कुराए, पर आंखों में गंभीरता थी। “आज स्कूल नहीं जाना बेटा, आज की क्लास कहीं और होगी। आज तुम वो सीखोगे जो कोई किताब नहीं सिखाती।”

उन्होंने जेब से एटीएम कार्ड निकालते हुए कहा, “बैंक जाना है, ₹9000 निकालना है। पूनम के लिए दूध और घर के लिए राशन भी लाना है।”

सोनू घबरा गया, “पापा, आप क्यों नहीं जा रहे? मैं तो छोटा हूँ।”

संजय ने गहरी सांस ली, “क्योंकि तुम्हें यह जानना जरूरी है कि दुनिया तब तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार करती है जब उसे नहीं पता होता कि तुम कौन हो। और याद रखना – कुछ भी हो, गुस्सा मत करना।”

थोड़ी देर बाद, सोनू पुराने कपड़े पहनकर, घिसी हुई चप्पलों में, कंधे पर थैला लिए निकल पड़ा। लगभग 3 किमी का रास्ता, तेज धूप और रास्ते में बेपरवाह लोग।

बैंक पहुंचते ही गार्ड ने उसे रोका, “अबे पागल, कहां घुस रहा है? ये बैंक है, भीख मांगने की जगह नहीं।”

सोनू ने हिम्मत से कहा, “मैं पैसे निकालने आया हूं। ये मेरे पापा का कार्ड है।”

गार्ड ने कार्ड देखकर उसे अंदर जाने दिया। अंदर का माहौल एकदम अलग – ठंडी हवा, चमचमाते जूते, महंगे बैग, परफ्यूम की खुशबू।

सोनू काउंटर पर पहुंचा, “दीदी, ₹9000 निकालने हैं।”

कैशियर ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, तंज कसते हुए बोली, “ये बैंक है, मुफ्त राशन की दुकान नहीं। ये कार्ड तुझे कहां से मिला?”

“ये मेरे पापा का कार्ड है।”

महिला हंस पड़ी, “ये तो खिलौनों जैसा लग रहा है। इसमें पैसे कहां से आएंगे?”

लाइन में खड़े कुछ लोग हंसे, किसी ने कहा, “बच्चे को ₹2 दे दो, टॉफी खरीद लेगा।”

सोनू शर्मिंदा, चुप। पर जब उसने कार्ड वापस लेने की कोशिश की, तो कैशियर ने हाथ पीछे खींच लिया, “यहां नाटक नहीं चलेगा।”

तभी बैंक मैनेजर मनोज कुमार बाहर आए, “क्या तमाशा लगा रखा है?”

कैशियर शिकायत करने लगी, “सर, ये बच्चा ₹9000 निकालना चाहता है। कपड़े मैले, शक्ल भिखारियों जैसी। कहता है ये उसके पापा का कार्ड है।”

मैनेजर गरजे, “ये जुर्म है। ये कार्ड तेरा नहीं है। सिक्योरिटी, इसे बाहर निकालो।”

गार्ड ने धीरे से कहा, “बेटा चलो, ये जगह तुम्हारे लिए नहीं है।”

सोनू का दिल टूट गया। बाहर बारिश की हल्की बूंदें गिर रही थीं। वह दीवार से टिक कर बैठ गया, पूनम को छाती से लगाए, एटीएम कार्ड को कसकर मुट्ठी में पकड़े।

उसी वक्त एक काली कार बैंक के सामने आकर रुकी। चमचमाते जूते और महंगी घड़ी पहने एक आदमी बाहर निकला — संजय, सोनू के पिता।

उन्होंने बेटे को देखा, दौड़कर उसके सामने घुटनों के बल बैठे, “बेटा, सब ठीक है न?”

सोनू सिसक पड़ा, “पापा, मैंने कुछ नहीं किया। बस पैसे निकालना चाहता था।”

संजय ने कुछ नहीं कहा। उसे उठाया, पूनम को गोद में लिया और सीधे बैंक के अंदर घुसे।

बैंक का पूरा माहौल पल में बदल गया। लोग चौकन्ने हो गए। मैनेजर के चेहरे से पसीना टपकने लगा।

“मेरे बेटे को किसने बाहर निकाला?” संजय की आवाज गंभीर पर संयमित थी।

मैनेजर हकलाया, “सर, हमें नहीं पता था कि यह आपका बेटा है।”

संजय ने मोबाइल निकाला, बैंक बैलेंस स्क्रीन पर दिखा दिया — ₹200 करोड़।

“मेरे बेटे के हाथ में कार्ड था, लेकिन तुमने उसमें झूठ देखा। तुमने कपड़ों से इज्जत तय की। अब मैं ये अकाउंट यहीं और अभी बंद कर रहा हूं।”

मैनेजर कांपने लगा, “सर, इतनी बड़ी रकम के लिए हमें हेड ऑफिस से परमिशन लेनी होगी।”

“मेरे पास वक्त है। लेकिन तुम्हारे पास अपनी इज्जत बचाने का नहीं।”

संजय ने कॉल किया, सख्ती से कहा, “2 घंटे में ₹200 करोड़ कैश में तैयार हो और बाकी ट्रांसफर।”

तब तक बैंक की हर परत हिल चुकी थी। न्यूज़ चैनल्स, सोशल मीडिया, Instagram और Twitter पर वीडियो वायरल हो गया।

शाम होते-होते, हेडलाइन हर जगह थी:

“बच्चे को भिखारी समझकर निकाला, पिता ने ₹1300 करोड़ का अकाउंट बंद किया।”

बैंक की साख मिट्टी में मिल चुकी थी।

अंत में, इस घटना ने देश को एक सीख दी —
इंसान की इज्जत उसके कपड़ों से नहीं, उसके कर्मों और संस्कारों से होती है।

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