भिखारी सोफ़ा उठाकर घर ले गया। अंदर जो था उसे देखकर सब हैरान रह गए।
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रामू यादव और सोफे की कहानी
शहर की एक गंदी कचरा ढेरी पर एक गरीब मजदूर, रामू यादव, अपनी नन्ही बेटी सविता को सीने से बांधे भटक रहा था। दिनभर भूख और अपमान सहने के बाद अचानक उसकी नजर एक पुराने सोफे पर पड़ी। सोफा ऊपर से साधारण लग रहा था, लेकिन रामू के मन में ख्याल आया कि शायद इसे बेचकर वह अपनी बच्ची के लिए दूध खरीद सके। उसने सोफे को उठाया और अपने टूटे-फूटे झोपड़े में ले आया।
सोफे का रहस्य
रात भर वह सोफे के पास बैठा सोचता रहा कि कल इसे किस दुकानदार को दिखाएगा। मगर अगली सुबह जब नन्ही सविता खेलते-खेलते उस सोफे के कुशन को हिलाने लगी, तो अचानक एक ऐसी चीज बाहर निकली जिसने रामू की सांसे रोक दी। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। हाथ कांपने लगे और दिल की धड़कन तेज हो गई।
अंदर एक गुप्त खाना था जिसमें नोटों के बंडल भरे थे। डॉलर, यूरो, पाउंड। रामू के हाथ कांपने लगे। नोट असली थे। सामने दौलत का अंबार पड़ा था। वह खुशी से चिल्लाना चाहता था, मगर डर ने उसे जकड़ लिया। अगर किसी को पता चल गया तो? पुलिस आ गई तो यह पैसा किसका है? उसने बेटी को सीने से लगाकर आंसुओं भरी आवाज में कहा, “बेटी, भगवान ने हमारी सुन ली है। यह चमत्कार है।”
राजन प्रसाद का घमंड
उधर, शहर के एक बड़े नेता, राजन प्रसाद, ने अपनी पत्नी विशाखा के साथ अपने महल में आराम कर रहा था। राजन प्रसाद एक ऐसा नाम था जिसे सुनकर मंत्रियों की आवाजें कांप जाती थीं। उसकी दौलत और ताकत के आगे कोई खड़ा नहीं हो सकता था। वह हमेशा गरीबों को तुच्छ समझता था और कहता था, “यह लोग, यह जनता, यह मेरे गुलाम हैं।”
राजन प्रसाद ने अपनी पत्नी से कहा, “ये गरीब कभी नहीं बदल सकते। वे हमेशा झुकने के लिए पैदा हुए हैं।” विशाखा हंसते हुए बोली, “और हम हमेशा राज करने के लिए।” मगर तकदीर ने इस घमंड को तोड़ने के लिए एक साधारण रास्ता चुना – एक पुराना सोफा।
रामू का संघर्ष
रामू की जिंदगी में बदलाव आ रहा था। सोफे में छुपे खजाने ने उसे एक नई उम्मीद दी थी। लेकिन उसके मन में एक सवाल था, “क्या यह दौलत वरदान है या अभिशाप?” वह सोचता रहा कि यह पैसा किसी और का है तो उसका जमीर उसे चैन नहीं लेने देगा।
अगले दिन, रामू ने तय किया कि वह किसी दूसरे शहर जाकर नई शुरुआत करेगा। उसने सविता को कपड़ों में लपेटा और एक टैक्सी रोकी। बोरी उसके साथ थी, जिसमें खजाने का राज छुपा था। टैक्सी शहर के दरवाजे की ओर बढ़ने लगी। रामू की आंखों में सपने झलकने लगे।
अचानक का मोड़
लेकिन अचानक सविता रोने लगी। रामू ने घबराकर उसे गोद में लिया और लोरी गुनगुनाने लगा। वह इतना मशगूल हो गया कि उसे याद ही नहीं रहा कि बोरी उसने अपनी सीट के पास ही रख छोड़ी है। टैक्सी अपने स्टॉप पर पहुंची। रामू जल्दी से उतरा, लेकिन जैसे ही वह दो कदम चला, दिल में बिजली सी कौंधी, “मेरी बोरी!” वह पलटा और टैक्सी के पीछे भागने लगा, चिल्लाता रहा, “रुको, मेरा सामान!” लेकिन टैक्सी धूल उड़ाती दूर निकल चुकी थी।
रामू के कदम लड़खड़ा गए। वह जमीन पर गिर पड़ा, बच्ची को सीने से चिपटाकर आसमान की ओर देखने लगा। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। “भगवान, यह कैसा इम्तिहान है? तूने दिया और फिर छीन लिया। क्या मेरी बेटी को इज्जत की जिंदगी नसीब नहीं होगी?”
एक नई उम्मीद
उधर, टैक्सी ड्राइवर ने देखा कि पिछली सीट पर पड़ी बोरी रामू की थी। उसने तुरंत गाड़ी मोड़ी और वापस जाने लगा। रास्ते भर वह बड़बड़ाता रहा, “बेचारा गरीब आदमी लग रहा था।”
जब वह रामू के पास पहुंचा, तो उसने ऊंची आवाज में पुकारा, “भाई, तुम्हारी बोरी। यह रही तुम्हारी बोरी!” रामू ने अविश्वास भरी आंखों से ड्राइवर को देखा। फिर वह दौड़ता हुआ आया और कांपते हाथों से बोरी पकड़ ली। “भगवान तुम्हें खुश रखे। तुमने मुझे नई जिंदगी दे दी है।”
राजन प्रसाद की बर्बादी
इस बीच, राजन प्रसाद को अपने खोए हुए सोफे का डर सताने लगा। उसे पता चला कि उसका खजाना अब नहीं है। वह घबराकर अपनी पत्नी से फोन पर बात करने लगा। “विशाखा, मास्टर बेडरूम का सोफा कहां है?” विशाखा ने कहा, “वो पुराना सोफा फेंक दिया। नया डिजाइन आ गया है।”
राजन के होश उड़ गए। “तुम पागल हो? जानती हो उसमें क्या था?” विशाखा घबरा गई। “मुझे क्या मालूम था कि उस सोफे में इतना बड़ा राज है।”
चुनाव का दिन
कुछ हफ्तों बाद चुनाव का दिन आया। राजन प्रसाद के महल के बाहर गाड़ियों की कतारें होती थीं, लेकिन इस बार सब कुछ बदल चुका था। बाहर सन्नाटा था। लोग खामोश थे। जो कभी उसकी एक झलक पाने को दौड़ पड़ते थे, अब उसके नाम पर हंसी उड़ा रहे थे।
जब मतगणना पूरी हुई, तो ऐलान हुआ कि राजन प्रसाद हार गए हैं। यह खबर बिजली की तरह पूरे शहर में फैल गई। लोग सड़कों पर निकल आए और खुशी मनाने लगे।
रामू की नई जिंदगी
वक्त के पहिए ने सब कुछ बदल दिया। रामू यादव, जो कभी कचरे के ढेर के पास बच्ची को सीने से लगाए भूख और जिल्लत सहता था, अब एक इज्जतदार और खुशहाल इंसान बन चुका था। उसने सोफे से मिले खजाने को फिजूल अय्याशी पर नहीं उड़ाया। सबसे पहले उसने एक छोटा सा घर लिया, जहां उसकी बेटी सविता नरम बिस्तर पर सो सके और भूख से कभी ना रोए।
सविता की सफलता
सविता बड़ी होती गई। स्कूल में हमेशा आगे रहती। उसके अध्यापक कहते, “यह लड़की मेहनत और हिम्मत की मिसाल है।” रामू हर शाम उसे पढ़ते देखता और आंखों में आंसू भर लाता।
आखिर वह दिन भी आ गया जिसका रामू ने बरसों इंतजार किया था। यूनिवर्सिटी के बड़े हाल में हजारों लोग जमा थे। सविता ने गाउन पहन रखा था और हाथ में डिग्री थी। जैसे ही उसने माइक्रोफोन पर कदम रखा, पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।
पिता का गर्व
सविता ने कहा, “यह सफलता सिर्फ मेरी नहीं, मेरे पिता की है। वह पिता जिसने भूख सही लेकिन मुझे भूखा नहीं रहने दिया। वह पिता जिसने अपना दुख छुपाकर मुझे हंसाने की कोशिश की। वह पिता जो मेरा हीरो है।”
रामू के आंसू बह निकले। उसने हाथ जोड़कर आसमान की ओर देखा और कहा, “भगवान, आज मेरी जिंदगी का सबसे खुशकिस्मत दिन है। मैंने अपना वादा निभाया।”
निष्कर्ष
यह कहानी सिर्फ रामू और सविता की नहीं थी। यह सबके लिए एक सबक थी। यह याद दिलाती है कि दौलत और ताकत हमेशा कायम नहीं रहती। लेकिन दुआ, सब्र और मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाते। रामू ने अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रखा और धीमे से कहा, “बेटी, यह सब तेरे सपनों के लिए था। आज मैं जीत गया क्योंकि तू जीत गई है।”
हॉल एक बार फिर तालियों से गूंज उठा। लोग रामू की ओर देखकर कह रहे थे, “यही है असली हीरो, एक आम मजदूर जिसने प्यार और सब्र से इतिहास बदल दिया।”
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