भीख माँगते बच्चे को देखकर DM मैडम रह गई हैरान, जब पता चला वो उनका ही बेटा है
सालों की तलाश, अनगिनत आंसू और फिर अचानक हुई सबसे बड़ी मुलाकात। यह कहानी एक मां की है, जिसने 15 साल अपने बेटे की याद में बिताए और फिर एक दिन उसे फिर से पाया। यह कहानी है डीएम सोनम सिंह की, जो एक सड़क पर घायल बच्चे को देखकर अपनी खोई हुई दुनिया को फिर से खोज लेती हैं।
सुबह का सफर
सुबह के 7:00 बजे थे। डीएम सोनम सिंह अपनी सफेद इनोवा में बैठकर जिले के दौरे पर निकल रही थीं। आज का दिन बेहद अहम था। राज्य सरकार के एक बड़े प्रोजेक्ट का उद्घाटन होना था। चेहरे पर हमेशा की तरह गंभीरता थी, मगर आंखों में एक अजीब सी उदासी भी तैर रही थी। पिछले 15 सालों से वह खुद को काम में डुबोकर किसी गहरे दर्द से बचने की कोशिश कर रही थीं।
सड़क पर गड़बड़ी
ड्राइवर कमलेश धीरे-धीरे गाड़ी चला रहा था। सड़कों पर सुबह की भीड़ थी। सोनम जी खिड़की से बाहर देख रही थीं, जहां बच्चे स्कूल जा रहे थे। हर बच्चे को देखकर उनके दिल में एक टीस उठती थी, जैसे कोई पुराना जख्म फिर हरा हो गया हो। तभी अचानक सामने से अजीब सा शोर सुनाई दिया।
“मैडम, आगे कुछ गड़बड़ लग रही है,” कमलेश ने घबराते हुए कहा। सड़क पर भीड़ जमा थी। लोग एक ही दिशा में दौड़े जा रहे थे। “गाड़ी रोकिए। देखिए क्या हुआ है,” सोनम जी ने आदेश दिया और खुद भी तुरंत उतर गईं।
घायल बच्चे की पहचान
जैसे ही वह भीड़ के पास पहुंचीं, देखा सड़क के बीचोंबीच एक छोटा बच्चा बेहोश पड़ा था। उसके कपड़े फटे हुए थे, सिर से खून बह रहा था। आसपास खड़े लोग तमाशा देख रहे थे। “यह क्या हो रहा है यहां?” उनकी आवाज में सख्ती थी। एक बुजुर्ग आदमी ने कांपती आवाज में कहा, “मैडम, एक ट्रक वाले ने इस बच्चे को टक्कर मारी और भाग गया। यह बच्चा पिछले 10 मिनट से यहीं पड़ा है।”
सोनम जी का दिल तेजी से धड़कने लगा। वह तुरंत आगे बढ़ीं। बच्चे के पास घुटनों के बल बैठ गईं। वह लगभग 15 साल का था। चेहरा खून और मिट्टी से सना हुआ, लेकिन फिर भी बहुत मासूम और प्यारा लग रहा था। जैसे ही उन्होंने बच्चे का चेहरा ध्यान से देखा, उनके शरीर में सिहरन दौड़ गई। यह चेहरा, यह आंखें कुछ जाना-पहचाना सा लगा।
एंबुलेंस की व्यवस्था
सोचने का वक्त नहीं था। उन्होंने तुरंत फोन निकाला। “हेलो, मैं डीएम सोनम सिंह बोल रही हूं। मुझे तुरंत एंबुलेंस चाहिए। मेन रोड पर एक बच्चे का एक्सीडेंट हुआ है।” फोन रखते ही उन्होंने भीड़ से कहा, “सब लोग पीछे हटिए। बच्चे को सांस लेने दीजिए।” लेकिन एंबुलेंस आने में देर हो रही थी। बच्चे की सांसे धीमी पड़ रही थीं। “कमलेश, गाड़ी लेकर आओ। जल्दी!” वह चिल्लाईं और बहुत संभालकर बच्चे को अपनी बाहों में उठा लिया।
अस्पताल की दौड़
जैसे ही उन्होंने उसे गोद में लिया, एक अजीब सा एहसास हुआ। जैसे यह लम्हा उन्होंने पहले भी जिया हो। लेकिन उन्होंने अपने मन को झटका। अभी बस बच्चे की जान बचाना है। गाड़ी आते ही बच्चे को पीछे की सीट पर लिटाया गया। “सीधा सिटी हॉस्पिटल चलो, जितनी तेज हो सके।” पूरे रास्ते सोनम जी बच्चे का माथा सहलाती रहीं। “बेटा, आंख खोलो। कुछ नहीं हुआ है। सब ठीक हो जाएगा।” उनकी आवाज में एक मां की करुणा और बेचैनी साफ झलक रही थी।
डॉक्टर की उम्मीद
हॉस्पिटल पहुंचते ही उन्होंने डॉक्टरों को आवाज दी। “डॉक्टर साहब, इस बच्चे का तुरंत इलाज कीजिए। पैसों की कोई चिंता नहीं है।” बच्चे को आईसीयू में ले जाया गया। सोनम जी बाहर बेंच पर बैठकर बेचैनी से इंतजार करने लगीं। उनके हाथ कांप रहे थे। आंखों में डर और उम्मीद दोनों थे।
कई घंटे बाद डॉक्टर बाहर आए। “मैडम, सिर में चोट थी लेकिन अब खतरा टल गया है।” 3 घंटे बाद जब बच्चा होश में आया तो उसने सबसे पहले सोनम जी को देखा। “आंटी, मैं कहां हूं?” उसकी आवाज कमजोर थी। “बेटा, तुम हॉस्पिटल में हो। तुम्हें चोट लगी थी लेकिन अब तुम बिल्कुल ठीक हो।”
अनीश की पहचान
“मेरा नाम अनीश है,” बच्चे ने धीरे से कहा। “यह नाम सुनते ही सोनम जी की सांस रुक सी गई।” 15 साल पहले उनके बेटे का नाम भी अनीश ही था। “अनीश कितना प्यारा नाम है,” उन्होंने कहा, लेकिन आंखों में आंसू आ गए। “तुम्हारे मम्मी-पापा कहां हैं, बेटा?” इस सवाल पर बच्चे की आंखें भर आईं। “मेरे मम्मी-पापा नहीं हैं आंटी। मैं अनाथ आश्रम में रहता हूं।”
यह सुनकर सोनम जी का दिल टूट गया। 15 साल का बच्चा बिल्कुल अकेला। “कोई बात नहीं, बेटा। अब मैं हूं ना तुम्हारे साथ,” उन्होंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा। अनीश ने पहली बार मुस्कुराने की कोशिश की।
नए रिश्ते की शुरुआत
अगले दो दिन सोनम जी उसी के पास रहीं। वह उसे खाना खिलाती, कहानियां सुनाती, रात में सुलाती। डॉक्टर हैरान थे। “एक अजनबी बच्चे के लिए डीएम साहिबा इतनी फिक्रमंद क्यों हैं?” तीसरे दिन जब अनीश को डिस्चार्ज मिला तो सामने सबसे बड़ा सवाल था, क्या उसे वापस अनाथ आश्रम भेजा जाए?
“डॉक्टर, क्या मैं इस बच्चे को अपने साथ रख सकती हूं? मैं इसकी पूरी जिम्मेदारी लूंगी,” सोनम जी बोलीं। डॉक्टर ने कहा, “मैडम, आपको अनाथ आश्रम से अनुमति लेनी होगी।”
अनाथ आश्रम की अनुमति
सोनम जी उसी वक्त वहां पहुंचीं। “सर, मैं अनीश को गोद लेना चाहती हूं। सारी लीगल फॉर्मेलिटी पूरी कर दूंगी।” सुपरिंटेंडेंट मुस्कुराया। “मैडम, यह हमारे लिए गर्व की बात होगी।” एक हफ्ते बाद सारे कागज पूरे हो गए और अनीश उनके घर आ गया।
वो घर जो 15 साल से सुनसान था, अब फिर से रोशनी से भर गया। सोनम जी ने उसके लिए एक खूबसूरत कमरा तैयार किया था। नए कपड़े, खिलौने और दीवारों पर रंगीन पोस्टर। “यह सब मेरा है,” अनीश ने चमकती आंखों से पूछा। “हां बेटा, अब यह तुम्हारा घर है,” उन्होंने उसे गले लगाते हुए कहा।
मम्मी का संबोधन
पहली बार उस घर में फिर से हंसी की आवाज गूंजी। शाम को जब सोनम जी ऑफिस से लौटीं, अनीश दौड़ कर उनके पास आया। “मम्मी, आप आ गईं!” यह शब्द सुनते ही सोनम जी की आंखों से आंसू निकल आए। 15 साल बाद किसी ने उन्हें मम्मी कहा था।
रात के खाने के दौरान अनीश ने पूछा, “मम्मी, आपके कोई बच्चे नहीं हैं?” यह सवाल सुनते ही सोनम जी का दिल थम गया। कुछ पल चुप रहीं। फिर बोलीं, “बेटा, पहले थे। लेकिन अब तुम हो ना?” अनीश मुस्कुराया और वह चुपचाप समझ गया। कभी-कभी रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं।
अतीत की यादें
उस रात सोनम जी अपने कमरे में अकेली बैठी थीं। बाहर हल्की हवा चल रही थी, पर उनके भीतर यादों का तूफान उठ रहा था। वह अपने अतीत में खोई हुई थीं। 15 साल पहले की वह जिंदगी जब सब कुछ कितना खूबसूरत था। जब उनकी शादी हुई थी तो जैसे दुनिया ही रंगीन हो गई थी।
उनके पति मनोज एक सच्चे नेक दिल और ईमानदार आईएएस अफसर थे। दोनों का जीवन किसी सपने से कम नहीं था। 2 साल बाद उनके घर नन्हा अनीश आया। गोलमटोल चेहरा, मासूम सी मुस्कान और आंखों में चमक जैसे आसमान के सबसे चमकीले तारे।
दुखद घटना
सोनम जी ने सोचा भी नहीं था कि यह खुशी इतनी जल्दी रेत की तरह उनकी उंगलियों से फिसल जाएगी। एक दिन मनोज किसी सरकारी काम से बाहर गए थे। उन्होंने कहा था, “दोपहर तक लौट आऊंगा।” साथ में अनीश भी था। लेकिन उस दिन शाम तक वह वापस नहीं आए। धीरे-धीरे चिंता ने बेचैनी का रूप ले लिया।
जब उन्होंने फोन मिलाया, “द नंबर स्विच्ड ऑफ है।” रात के 10:00 बज गए लेकिन कोई खबर नहीं। आखिरकार उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। अगली सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई। एक पुलिस अफसर खड़ा था। “मैडम, आपके पति का एक्सीडेंट हुआ है। वह अस्पताल में हैं।”
बुरी खबर
सोनम जी चीख पड़ीं। पुलिस वाले ने नजर झुका ली। “मैडम, कार में सिर्फ आपके पति मिले। बच्चे का कोई सुराग नहीं मिला।” उस पल जैसे सोनम जी की जमीन खिसक गई। 2 महीने तक पुलिस ने हर कोना छाना, हर गांव, हर अस्पताल, हर अनाथालय तक तलाश की। लेकिन अनीश का कोई निशान नहीं मिला।
मनोज की हालत भी गंभीर थी। एक्सीडेंट में उन्हें गहरी चोट आई थी और जब होश आया तो याददाश्त जा चुकी थी। उन्हें कुछ भी याद नहीं था। यहां तक कि उनका बेटा भी नहीं। कुछ हफ्तों बाद मनोज ने हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं। अब सोनम जी अकेली रह गई थीं।

दर्द भरी तलाश
एक मां जिसने अपना बेटा खो दिया और एक पत्नी जिसने अपना जीवन साथी। उन्होंने हर दरवाजा खटखटाया। हर अखबार में इश्तहार दिया। लेकिन उम्मीद धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी और फिर उन्होंने अपने दर्द को अपने काम में दफना दिया। वक्त बीतता गया।
वह एक सख्त, ईमानदार और कामयाब डीएम बन गईं। लेकिन उनके दिल में एक कोना हमेशा खाली रहा। हर बच्चे के चेहरे में उन्हें अपने अनीश की झलक नजर आती। और फिर किस्मत ने जैसे अचानक करवट ली। आज 15 साल बाद उनके सामने खड़ा था एक बच्चा, नाम भी वही अनीश।
नए जीवन की शुरुआत
अगली सुबह अनीश स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहा था। सोनम जी ने उसके लिए शहर के सबसे अच्छे स्कूल में दाखिला करवाया था। “मम्मी, मैं स्कूल जाने से डर रहा हूं,” अनीश बोला। “सब बच्चे पूछेंगे कि मेरे असली मम्मी-पापा कहां हैं?”
सोनम जी ने उसे प्यार से गले लगाया। “बेटा, बस इतना कहना कि मैं ही तुम्हारी मम्मी हूं और याद रखना तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है।” स्कूल में प्रिंसिपल ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैडम, अनीश बहुत इंटेलिजेंट बच्चा है। एंट्रेंस टेस्ट में उसने टॉप किया।”
गर्व का एहसास
सोनम जी के होठों पर गर्व भरी मुस्कान तैर गई। शाम को अनीश घर लौटा। उसकी आंखों में चमक थी। “मम्मी, आज सारे बच्चे कह रहे थे कि मैं बहुत लकी हूं। मैंने सबको बताया कि आप वर्ल्ड की बेस्ट मम्मी हैं।” सोनम जी ने उसे गले से लगा लिया। “मेरा बेटा सच कहता है।”
कुछ दिन यूं ही बीत गए। फिर एक दिन ऑफिस में फोन बजा। “मैडम, मैं सिटी अनाथ आश्रम से बोल रहा हूं। हमारे पास अनीश के बारे में कुछ जानकारी है जो शायद आप जानना चाहेंगी।”
अतीत की खोज
“क्या कहा?” सोनम जी की सांसे तेज हो गईं। “मैडम, 15 साल पहले एक बच्चा हमारे यहां लाया गया था। करीब एक साल का रेलवे स्टेशन के पास मिला था। उसके गले में एक छोटी सी चैन थी जिस पर ‘अनीश’ लिखा था।”
सोनम जी का दिल जोर से धड़कने लगा। “क्या वह चैन अभी आपके पास है?” उन्होंने कांपती आवाज में पूछा। “जी हां, मैडम। हमारे पास रिकॉर्ड में मौजूद है।” सोनम जी तुरंत अनाथ आश्रम पहुंचीं। जैसे ही सुपरिंटेंडेंट ने वह चैन दिखाई, उनकी आंखों के सामने धुंध छा गई।
पहचान की पुष्टि
वही पतली सोने की चैन जिस पर अनीश खुदा था। वही जो उन्होंने अपने बेटे के जन्म के एक महीने बाद पहनाई थी। “यह यह वही है,” उनके होंठ बुदबुदाए। घर लौटकर उन्होंने वह चैन अनीश को दिखाई। “बेटा, यह तुम्हारी है।”
अनीश की आंखें चमक उठीं। “हां मम्मी, यह मेरे पास थी जब मैं छोटा था।” अब संदेह की कोई जगह नहीं बची थी। सब कुछ उसी ओर इशारा कर रहा था। यही उनका खोया हुआ बेटा था। फिर भी उन्होंने सबूत पुख्ता करने के लिए डॉक्टर से बात की।
सच्चाई का सामना
“मेडिकल रिकॉर्ड्स निकाले। अनीश का ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था। बिल्कुल वैसा ही जैसा उनके असली बेटे का।” और जब उन्होंने पुराने एल्बम से अपने एक साल के बेटे की फोटो उठाई तो सब कुछ साफ था। वही आंखें, वही मुस्कान, वही भोला चेहरा।
लेकिन सच्चाई बताने का वक्त कब होगा? यह फैसला सबसे कठिन था। फिर एक शाम अनीश रोता हुआ घर लौटा। “मम्मी, स्कूल में एक बच्चे ने कहा कि मैं अडॉप्टेड हूं कि आप मेरी असली मम्मी नहीं हैं।”
सच्चाई का खुलासा
सोनम जी का दिल टूट गया। उन्होंने उसे पास बिठाया। “बेटा, मेरे लिए तुम सबसे कीमती हो। चाहे तुम अडॉप्टेड हो या नहीं। लेकिन मैं तुम्हें एक सच बताना चाहती हूं।”
अनीश ने आंसुओं से भरी आंखों से पूछा, “क्या मैं सच में आपका बेटा नहीं हूं?” सोनम जी ने गहरी सांस ली। “नहीं बेटा, तुम मेरे ही बेटे हो। 15 साल पहले मेरा बेटा खो गया था। उसका नाम भी अनीश था। मैंने उसे हर जगह ढूंढा पर नहीं मिला। और अब जब तुमसे मिली हूं तो मुझे पूरा यकीन है तुम वहीं हो।”
पुनर्मिलन का क्षण
कुछ पल की खामोशी के बाद अनीश ने धीमे से पूछा, “तो मतलब आप मेरी असली मम्मी हैं?” “हां बेटा,” सोनम जी की आवाज कांप गई। “मैं तुम्हारी असली मम्मी हूं।” अनीश फूट पड़ा और सोनम जी की बाहों में समा गया। “मम्मी, आप मुझे छोड़कर क्यों चली गई थीं?”
सोनम जी रो पड़ीं। “मैंने तुम्हें कभी नहीं छोड़ा बेटा। मैंने तुम्हें हर जगह ढूंढा था। पर कोई नहीं जानता था तुम कहां हो।” अनीश ने अपने नन्हे हाथों से उनके आंसू पोंछे। “मम्मी, अब मैं आपके पास हूं ना। अब मैं आपको कभी नहीं छोड़ूंगा।”
नए रिश्ते का आरंभ
और उस पल जैसे 15 साल का सूना आंगन फिर से हंसी से भर गया। सोनम जी ने अपने बेटे को सीने से लगाकर महसूस किया। जैसे जिंदगी ने उन्हें फिर से जीने की वजह दे दी हो। “अनीश, क्या तुम्हें अपने पापा के बारे में कुछ याद है?” सोनम जी ने नरम आवाज में पूछा।
“नहीं मम्मी, मुझे सिर्फ एक आंटी याद है जो मुझसे बहुत प्यार करती थी,” अनीश ने थोड़ी देर सोचकर कहा। फिर मुस्कुराते हुए बोला, “अब मुझे पता चल गया कि वह आंटी आप ही थीं।” सोनम जी की आंखें नम हो गईं।
पापा की यादें
“बेटा, तुम्हारे पापा की एक्सीडेंट में डेथ हो गई थी।” कुछ पल के लिए कमरे में खामोशी छा गई। अगले दिन सोनम जी ने फैसला किया कि अब सच्चाई को पूरी तरह पक्का कर लेना चाहिए। उन्होंने डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया।
“मम्मी, यह टेस्ट क्यों जरूरी है?” अनीश ने भोलेपन से पूछा। सोनम जी ने मुस्कुराते हुए उसके बाल सहलाए। “बेटा, यह सिर्फ कंफर्मेशन के लिए है ताकि ऑफिशियली भी साबित हो जाए कि तुम मेरे ही बेटे हो।”
डीएनए टेस्ट का परिणाम
टेस्ट के रिजल्ट आने में 3 दिन लगे। हर दिन सोनम जी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। आखिरकार तीसरे दिन फोन आया। “डॉक्टर की आवाज गूंज उठी। कांग्रेचुलेशंस मैडम, टेस्ट रिजल्ट पॉजिटिव है। अनीश आपका बायोलॉजिकल सन है।”
यह सुनते ही सोनम जी के हाथ कांपने लगे। आंखों से आंसू बह निकले। 15 साल की तलाश, 15 साल की तन्हाई। आज सब खत्म हो गया था। उनका खोया हुआ बेटा आखिरकार उन्हें मिल गया था। जब उन्होंने अनीश को यह खबर दी तो वह खुशी से उछल पड़ा। “मम्मी, अब मैं ऑफिशियली आपका बेटा हूं।”
खुशी का जश्न
“हां बेटा,” सोनम जी ने उसे सीने से लगाते हुए कहा, “अब कोई हमें अलग नहीं कर सकता।” इस खबर ने पूरे शहर में सनसनी मचा दी। डीएम साहिबा को उनका खोया हुआ बेटा मिल गया। अखबारों में यही हेडलाइन थी। हर जगह लोग इस कहानी की चर्चा कर रहे थे।
स्कूल में हलचल
अनाथ आश्रम के सुपरिंटेंडेंट भी भावुक हो गए। “यह तो अविश्वसनीय है, मैडम। किस्मत ने वाकई करिश्मा कर दिखाया।” अनीश के स्कूल में भी हलचल थी। टीचर्स और बच्चे दोनों इस सच्चाई को जानकर हैरान थे। अब कोई भी उसे अडॉप्टेड कहने की हिम्मत नहीं करता था।
अनीश का नया जीवन
प्रिंसिपल ने सोनम जी से कहा, “मैडम, अनीश सच में बहुत लकी है कि उसे आप जैसी मां मिली।” सोनम जी मुस्कुराई। “असल में लकी तो मैं हूं कि मुझे मेरा बेटा वापस मिला।” शाम को जब अनीश घर लौटा तो उसकी आंखों में चमक थी।
“मम्मी, आज सारे बच्चे कह रहे थे कि मैं बहुत लकी हूं। मैंने सबको बताया कि आप वर्ल्ड की बेस्ट मम्मी हैं।” सोनम जी ने उसे गले से लगा लिया। “मेरा बेटा सच कहता है।”
पापा की याद में
कुछ महीने बाद सोनम जी ने अनीश के साथ अपने पति मनोज की कब्र पर जाने का निर्णय लिया। “अनीश, चलो आज हम अपने पापा से मिलने चलते हैं।” कब्रिस्तान पहुंचकर अनीश ने अपने पापा की कब्र पर फूल चढ़ाए और बोला, “पापा, मैं आपका बेटा अनीश हूं। मैं अब मम्मी के साथ बहुत खुश हूं। आप चिंता मत करना। मैं हमेशा मम्मी का ख्याल रखूंगा।”
भावनाओं का बंधन
सोनम जी की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। “मनोज, हमारा बेटा वापस आ गया है। अब मैं अकेली नहीं हूं।” वापसी में अनीश ने पूछा, “मम्मी, क्या पापा को पता चल गया होगा कि मैं वापस आ गया हूं?”
सोनम जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां बेटा, पापा को सब पता है। वह ऊपर से हमें देख रहे हैं और बहुत खुश होंगे।” उस दिन के बाद से अनीश हर शाम अपने पापा की फोटो के सामने बैठकर उनसे बातें करता था।
अनीश का भविष्य
वह बताता स्कूल में क्या हुआ, कौन सा सब्जेक्ट अच्छा लगा और कैसे वह अच्छा इंसान बनने की कोशिश कर रहा है। एक साल बीत गया। अनीश का नाइंथ बर्थडे आया। सोनम जी ने इस दिन को खास बनाने के लिए एक बड़ी पार्टी रखी। उसमें अनीश के सारे क्लासमेट्स, टीचर्स, अनाथ आश्रम के बच्चे और शहर के कई जानेमाने लोग शामिल हुए।
बर्थडे का जश्न
सोनम जी ने स्टेज पर आकर कहा, “आज मेरे बेटे का नौवां बर्थडे है। यह सिर्फ एक जश्न नहीं बल्कि मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी है।” तभी अनीश माइक लेकर बोला, “मैं सबको थैंक यू कहना चाहता हूं। पहले मुझे लगता था कि मैं अकेला हूं। लेकिन अब मुझे पता चला कि मेरी भी एक मम्मी है जो मुझसे बहुत प्यार करती है। मैं प्रॉमिस करता हूं कि मैं बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बनूंगा।”
एक नई शुरुआत
उसकी बात सुनकर पूरा ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा और सोनम जी की आंखों से गर्व के आंसू झर गए। 5 साल बीत गए। अब अनीश 18 साल का हो चुका था। समझदार, जिम्मेदार और अपने भविष्य को लेकर साफ सोच रखने वाला।
भविष्य की योजना
एक शाम वह अपनी मम्मी के पास आया और बोला, “मम्मी, मैं अपने फ्यूचर के बारे में सोच रहा हूं।” सोनम जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा बेटा, बताओ क्या सोच रखा है?” अनीश की आंखों में एक चमक थी। “मम्मी, मैं मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम देना चाहता हूं। मैं डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करना चाहता हूं।”
सोनम जी के चेहरे पर गर्व की मुस्कान फैल गई। “यह तो बहुत अच्छी बात है बेटा। डॉक्टर बनना सबसे बड़ा सेवा कार्य है। यह सिर्फ एक प्रोफेशन नहीं बल्कि एक नोबल मिशन है।”
मेहनत का फल
उन्होंने तुरंत अनीश का दाखिला शहर के सबसे अच्छे कोचिंग इंस्टिट्यूट में करा दिया। हर दिन वह देखती थीं कि उनका बेटा कितनी लगन और मेहनत से पढ़ाई करता है। रात दिन वह अपनी किताबों में डूबा रहता था। लेकिन चेहरे पर कभी थकान नहीं। सिर्फ एक दृढ़ संकल्प।
मां का प्यार
एक दिन सोनम जी ने प्यार से पूछा, “बेटा, डॉक्टर बनने की प्रेरणा तुम्हें कहां से मिली?” अनीश कुछ पल चुप रहा। फिर भावुक होकर बोला, “मम्मी, उस दिन जब मेरा एक्सीडेंट हुआ था तो डॉक्टर्स ने मेरी जान बचाई थी। तभी मैंने तय कर लिया था कि मैं भी एक दिन किसी की जान बचाऊंगा। मैं भी वही करूंगा जो उन्होंने मेरे लिए किया।”
जीवन के अनुभव
यह सुनकर सोनम जी की आंखें भीग गईं। उन्हें महसूस हुआ कि जिंदगी का हर मोड़, हर घटना किसी ना किसी कारण से होती है। उन्होंने अनीश के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, अगर उस दिन वह एक्सीडेंट नहीं होता तो शायद हम मिल ही नहीं पाते।”
सफलता की ओर
अनीश मुस्कुराया। “हां मम्मी, और शायद मुझे यह भी नहीं पता चलता कि जिंदगी में कितने अनमोल अनुभव छिपे होते हैं।” 2 साल बाद अनीश ने मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम में टॉप रैंक हासिल की। उसे देश के एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला।
खुशी का जश्न
यह खबर सुनते ही पूरे शहर में खुशी की लहर दौड़ गई। “डीएम साहिबा के बेटे ने नीट में टॉप रैंक किया है।” यह हेडलाइन हर अखबार की पहली खबर बनी। एडमिशन सेरेमनी के दिन कॉलेज का ऑडिटोरियम खचाखच भरा हुआ था। सोनम जी मंच पर खड़ी थीं। आंखों में गर्व की चमक थी।
बेटे का अभिवादन
“आज मैं सिर्फ एक अफसर नहीं बल्कि एक मां के रूप में सबसे ज्यादा खुश हूं,” उन्होंने भावुक होकर कहा। अनीश ने साबित कर दिया कि अगर मेहनत और लगन हो तो कोई सपना असंभव नहीं। तालियों की गूंज में जब अनीश मंच पर आया तो उसने माइक थामा और कहा, “मैं सबसे पहले अपनी मां को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मुझे एक अनाथ बच्चे से उठाकर आज इस मुकाम तक पहुंचाया है।”
पुनर्मिलन की कहानी
उसकी बात सुनकर पूरा हॉल सन्नाटे में डूब गया और फिर भावनाओं से गूंज उठा। लोगों की आंखें नम थीं। तालियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। अनाथ आश्रम के सुपरिंटेंडेंट भी वहां मौजूद थे। वे मंच पर आए और बोले, “यह कहानी हमेशा याद रखी जाएगी। कैसे एक मां का प्यार और एक बच्चे की मेहनत मिलकर चमत्कार कर सकते हैं।”
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
उस दिन सोनम जी को लगा कि जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि ना तो पद है, ना सफलता, बल्कि एक मां को उसका बेटा मिल जाना और उसका उसे गर्व से देखना। दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
निष्कर्ष
क्योंकि कभी-कभी जीवन के सबसे कठिन मोड़ पर हमें सबसे बड़ा उपहार मिल जाता है। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो, तो कृपया वीडियो को लाइक करें और हमारे चैनल “डाकी स्टोरी” को सब्सक्राइब जरूर करें। यहां तक वीडियो देखने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।
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