भूखे बच्चे ने सिर्फ एक रोटी मांगी थी, लेकिन करोड़पति ने जो दिया | पूरी इंसानियत हिल गई | फिर जो हुआ.

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भूखे बच्चे ने सिर्फ एक रोटी मांगी थी, लेकिन करोड़पति ने जो किया – इंसानियत की सबसे बड़ी कहानी

सुबह की ठंडी हवा में शहर की सड़कों पर हल्की धुंध तैर रही थी। हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त था, गाड़ियों का शोर, हॉर्न की आवाजें, और भागती भीड़। इसी भीड़ के बीच, एक टूटी झोपड़ी के पास सड़क किनारे बैठा था आठ-नौ साल का छोटा सा बच्चा। उसके कपड़े फटे हुए, चेहरे पर धूल, बाल बिखरे और आंखों में भूख की बेचैनी थी। उसके सामने एक पुराना स्टील का कटोरा रखा था जिसमें कुछ सिक्के पड़े थे, लेकिन उन सिक्कों से उसका पेट नहीं भर सकता था। वह बार-बार बस एक ही बात कहता, “मुझे एक रोटी चाहिए, बस एक रोटी।”

लोग आते-जाते उसे देखते, कुछ सिक्का डालकर आगे बढ़ जाते, कुछ उसे दया की नजर से देखते, लेकिन उसकी फरियाद सुनकर भी अनसुनी कर देते। वह बच्चा भीख नहीं मांग रहा था, उसे पैसे नहीं चाहिए थे, उसे सिर्फ रोटी चाहिए थी। इसी बीच एक बड़ी काली कार सड़क पर आकर रुकी। उसमें से एक आदमी उतरा, उम्र लगभग पचास साल, महंगे कपड़े, सोने की घड़ी, काला चश्मा। वह था शहर का मशहूर करोड़पति – अरविंद मेहरा।

अरविंद मेहरा को लोग जानते थे, उसकी पहचान एक अमीर, सफल और अपने बिजनेस में डूबे रहने वाले व्यक्ति के रूप में थी। गरीबों की परवाह न करने वाला, सिर्फ अपने फायदे की सोचने वाला। लेकिन उस दिन उसकी नजर उस भूखे बच्चे पर पड़ी। बच्चा फिर बोला, “अंकल, मुझे बस एक रोटी चाहिए।” अरविंद मेहरा रुक गया। उसके चेहरे पर पहले हल्की झुंझलाहट आई, फिर अचानक एक ठहराव। वह बच्चे के पास जाकर बोला, “पैसे नहीं चाहिए तुम्हें? लोग तो सिक्के डाल रहे हैं, उनसे कुछ खरीद लो।” बच्चा मासूमियत से उसकी आंखों में देखता है, “साहब, पैसे तो बहुत मिल जाते हैं, लेकिन पेट तो आज भूखा है। मुझे अभी रोटी चाहिए, कल नहीं।”

अरविंद मेहरा के लिए यह शब्द किसी धमाके की तरह थे। उसने जिंदगी में कभी किसी से सिर्फ रोटी की भीख नहीं सुनी थी। वह खुद दुकान पर गया, दो गरम-गरम रोटियां और सब्जी का पैकेट लेकर आया। बच्चे के सामने बैठकर प्लेट रख दी। बच्चा कांपते हाथों से रोटी उठाकर खाने लगा। उसके चेहरे पर जो सुकून था, वह किसी महंगे होटल की डिश खाने वाले के चेहरे पर भी नहीं होता।

अरविंद मेहरा उसे देखता रहा। पहली बार उसके दिल में हलचल हुई। उसने सोचा, “मैंने दौलत तो खूब कमाई, लेकिन कभी सोचा है कि एक भूखे पेट के लिए रोटी का क्या मतलब होता है?” बच्चा खाना खत्म करता है, हाथ जोड़कर कहता है, “धन्यवाद अंकल, आपने मुझे आज जिंदा रखा।” अरविंद का दिल हिल गया। उसे लगा यह बच्चा कोई साधारण बच्चा नहीं, बल्कि ऊपर वाले का संदेश लेकर आया है।

अरविंद ने बच्चे से पूछा, “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?” बच्चा बोला, “राहुल।” “मां-बाप कहां हैं?” राहुल की आंखें भर आईं, “मां थी, बहुत बीमार रहती थी, एक दिन चली गई। पापा दिहाड़ी मजदूर थे, शराब पीते थे, वो भी एक दिन मुझे छोड़कर चले गए। तब से मैं अकेला हूं, कभी मंदिर के बाहर सो जाता हूं, कभी फुटपाथ पर।”

इतनी छोटी उम्र में इतना बड़ा दर्द! अरविंद के भीतर कुछ टूटने लगा। उसने पूछा, “तुम स्कूल क्यों नहीं जाते?” राहुल बोला, “स्कूल में फीस मांगते हैं, और मेरे पास तो सिर्फ भूख है।” यह जवाब अरविंद को अंदर तक झकझोर गया। उसने सोचा, “जिस बच्चे को आज रोटी की जरूरत है, अगर उसे शिक्षा मिले तो कल यह समाज बदल सकता है।”

अरविंद ने राहुल का हाथ थामकर कहा, “बेटा, आज से तुम अकेले नहीं हो। मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा, पढ़ाऊंगा, अच्छा खाना खिलाऊंगा, तुम्हारा भविष्य बनाऊंगा।” भीड़ में खुसफुसाहट तेज हो गई, “क्या यह करोड़पति सच में बच्चे को अपनाएगा?” राहुल की आंखों में पहली बार उम्मीद की चमक थी।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। असली मोड़ तब आया जब राहुल ने अरविंद से पूछा, “अंकल, अगर आप मुझे अपने साथ ले जाएंगे तो बहुत अच्छा होगा। लेकिन क्या आप सिर्फ मुझे ही अपनाएंगे? इस शहर की बाकी गली-कूचों में, फुटपाथों पर, मंदिरों और मस्जिदों के बाहर जो सैकड़ों बच्चे भूखे सोते हैं, उनका क्या होगा?”

यह सवाल सुनकर भीड़ सन्न रह गई। अरविंद की आंखें भर आईं। उसने सोचा, “अगर मैंने सिर्फ राहुल की मदद की तो क्या बदल जाएगा? बाकी बच्चे तो फिर भी भूखे रहेंगे। इंसानियत का असली मतलब तो तभी है जब हर भूखे पेट तक रोटी पहुंचे।” उसने कहा, “बेटा, तुम सही कहते हो। इंसानियत सिर्फ एक को सहारा देने से पूरी नहीं होगी। आज तुमने मेरी आंखें खोल दी हैं। अब मैं सिर्फ तुम्हारा नहीं, बल्कि हर उस बच्चे का सहारा बनूंगा जो भूखा सोने पर मजबूर है।”

अरविंद ने रातभर चैन से नहीं सो पाया। उसके सामने बार-बार वही दृश्य आता रहा – फुटपाथ पर भूखे बच्चे, कूड़े में खाना ढूंढती मासूम आंखें, मंदिरों के बाहर फैले हुए हाथ। उसने फैसला लिया, अब उसकी दौलत सिर्फ आलीशान कारों, महलों या पार्टियों पर नहीं, इंसानियत पर खर्च होगी।

सुबह होते ही उसने अपनी कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को बुलाया। सबको उम्मीद थी कि आज कोई नया प्रोजेक्ट, नया बिजनेस डील आएगा। लेकिन अरविंद ने कहा, “आज मैं अपने दिल की बात बताऊंगा। कल मैंने एक बच्चे को भूख से तड़पते देखा। उसने मुझसे पैसे नहीं, सिर्फ एक रोटी मांगी और उसके सवाल ने मेरी जिंदगी बदल दी। उसने पूछा कि बाकी बच्चों का क्या होगा? अब से हमारी कंपनी का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट होगा – भूखे पेट को रोटी।”

कुछ लोग हैरान रह गए, कुछ मुस्कुराए, कुछ ने दबी आवाज में कहा, “क्या यह पागलपन है? करोड़ों रुपए गरीबों पर लुटाना?” लेकिन अरविंद ने उनकी परवाह नहीं की। उसने ऐलान किया, “आज से मैं अपनी दौलत का बड़ा हिस्सा उन बच्चों की पढ़ाई, खाने और भविष्य पर खर्च करूंगा। पूरे शहर में फ्री किचन सेंटर बनाएंगे, जहां कोई बच्चा भूखा नहीं सोएगा। फ्री स्कूल प्रोग्राम शुरू करेंगे, जहां बच्चे बिना फीस पढ़ सकेंगे।”

राहुल की आंखों में चमक और बढ़ गई। वह सोच भी नहीं सकता था कि उसकी एक भूख, उसकी एक रोटी की चाह इतने बड़े बदलाव की चिंगारी बन जाएगी। लेकिन इंसानियत का यह रास्ता आसान नहीं था। बहुत से लोग अरविंद के खिलाफ खड़े हो गए। बिजनेस पार्टनर्स बोले, “इससे कंपनी का नुकसान होगा।” समाज के ठेकेदार बोले, “इससे भीख मांगने वालों की संख्या बढ़ेगी।”

अरविंद की असली लड़ाई शुरू हुई – दौलत बनाम इंसानियत, लालच बनाम दया। जब पहला फ्री किचन सेंटर खुला, वहां बच्चों की लंबी कतारें लगी थीं। अरविंद खुद साधारण कपड़ों में, बच्चों को खाना परोस रहा था। राहुल उसके साथ था। उसने कहा, “अंकल, मैंने सोचा भी नहीं था कि मेरी एक रोटी की भूख से इतनी बड़ी रसोई खुलेगी।” अरविंद मुस्कुराया, “बेटा, असली करोड़पति वही है जिसके पास बांटने का दिल हो। दौलत तो कागज है, लेकिन रोटी जिंदगी है।”

मीडिया भी पहुंच चुकी थी। पत्रकारों ने सवाल किया, “क्या यह आपकी पब्लिसिटी का तरीका है?” अरविंद ने कहा, “नहीं, यह इंसानियत है। इंसानियत को किसी कैमरे की जरूरत नहीं। आज यह शुरुआत है, कल तक हर बच्चा यहां खाना खा सकेगा।”

लेकिन मुश्किलें आईं। होटल मालिक, व्यापारी, भ्रष्ट अफसर सबको डर था कि अगर यह योजना सफल हो गई, तो उनका धंधा प्रभावित होगा। षड्यंत्र शुरू हुआ। एक रात फ्री किचन सेंटर में आग लगा दी गई। पुलिस ने शॉर्ट सर्किट बता दिया, लेकिन अरविंद जानता था कि यह साजिश थी। उसने कहा, “अगर इंसानियत को जलाने की कोशिश की जाएगी, तो मैं 100 रसोइयां और खोलूंगा।”

भ्रष्ट अफसरों ने उसके खिलाफ झूठे केस दर्ज करवा दिए। अखबारों में बदनाम करने वाली खबरें छपने लगीं। जनता ने सच देख लिया था। भूखे बच्चों की मुस्कान ने झूठी खबरों को पीछे धकेल दिया। लोग अब अरविंद के साथ खड़े हो गए। होटल मालिकों ने गुंडे भेजकर धमकाया। राहुल डर गया, लेकिन अरविंद ने उसका हाथ थामकर कहा, “बेटा, डरना नहीं। जब इंसानियत साथ हो तो कोई ताकत हमें हरा नहीं सकती।”

धीरे-धीरे शहर के लोग खुलकर अरविंद के साथ आने लगे। अब यह लड़ाई एक आदमी की नहीं, पूरे समाज की बन चुकी थी। लोग अपने घरों से अनाज लाकर दान करने लगे, औरतें अपने हाथों से खाना बनाकर रसोई में देने लगीं। अरविंद ने समझ लिया था कि असली जीत तब होगी जब यह काम सिर्फ उसका नहीं, पूरे समाज का बन जाएगा।

सरकार तक यह बात पहुंची। दबाव बढ़ा, मंत्री और अफसर सोचने लगे, अगर विरोध किया तो जनता हमें दुश्मन मान लेगी। आखिरकार सरकार ने अरविंद की इस पहल को राष्ट्रीय योजना बना दिया। पूरे राज्य में स्कूलों, मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे फ्री किचन खुलने लगे। बच्चे अब लाइन में बैठकर गरम-गरम रोटियां खा रहे थे। उनकी आंखों में हंसी और उम्मीद थी।

राहुल अब सिर्फ एक भूखा बच्चा नहीं रहा, वह पढ़ाई करने लगा और अपने जैसे बच्चों का सहारा बनने का सपना देखने लगा। एक दिन उसने अरविंद से कहा, “अंकल, जिस दिन मैं बड़ा हो जाऊंगा, उस दिन मैं भी ऐसे ही बच्चों को पढ़ाऊंगा, क्योंकि असली भूख सिर्फ पेट की नहीं, दिमाग की भी होती है।”

समाज में बदलाव आया। अमीर लोग भी आगे आने लगे – किसी ने जमीन दान की, किसी ने पैसा, किसी ने समय। शहर का नजारा बदल चुका था। भूख जो कभी गली-गली की बदबू थी, अब इंसानियत की खुशबू में बदल रही थी।

मीडिया ने अरविंद से पूछा, “अब आपको कैसा लगता है?” अरविंद मुस्कुराया, “करोड़पति होना मतलब सिर्फ पैसों का मालिक होना नहीं है। असली करोड़पति वह है जिसके पास बांटने का दिल हो। पहले मैं दौलत से अमीर था, आज इंसानियत से हूं।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि असली दौलत पैसों में नहीं, इंसानियत में है। एक भूखे बच्चे की भूख ने एक करोड़पति की जिंदगी बदल दी और पूरे समाज को जागरूक कर दिया। याद रखिए, कभी-कभी एक रोटी किसी की जान बचा सकती है और किसी का भविष्य भी बना सकती है।

अगर अगली बार कोई भूखा बच्चा दिखे, तो समझिए वह सिर्फ रोटी नहीं मांग रहा, बल्कि हमारी इंसानियत की परीक्षा ले रहा है। यही इंसानियत ही हमें सच्चा करोड़पति बनाती है।

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