भूखे माँ-बेटे को घर में जगह दी… आगे जो हुआ इंसानियत रो पड़ी
कहते हैं इंसान का असली इम्तिहान तब होता है जब उसके सामने किसी भूखे को रोटी और किसी बेघर को छत देनी हो। हिमाचल के एक छोटे से गाँव में बरसाती रात में राकेश के दरवाज़े पर भी ऐसी ही परीक्षा आई।
उस रात लगातार बारिश हो रही थी। अकेलेपन से भरी ज़िंदगी जी रहा राकेश अपने घर में बैठा था। तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। सामने पूजा खड़ी थी—भीगी हुई साड़ी, कांपता हुआ चार साल का बेटा “लकी” गोद में और आँखों में डर और भूख। उसने हाथ जोड़कर कहा कि बस एक रात के लिए पनाह चाहिए।
राकेश ने बिना देर किए दरवाज़ा खोल दिया और माँ-बेटे को अंदर बुला लिया। बच्चे को गरम खिचड़ी खिलाई और पूजा को एक कमरा दे दिया।
सुबह जब राकेश उठा तो उसने देखा कि घर बिल्कुल साफ-सुथरा था। पूजा ने धन्यवाद करते हुए कहा—”आपने हमें छत दी, तो मैंने सोचा घर को थोड़ा संवार दूं।” राकेश चुप रह गया, लेकिन उसके दिल में एक पुरानी याद ताज़ा हो गई—जब उसकी पत्नी पहली बार इस घर में आई थी, उसने भी यही कहा था—”गंदगी कहीं भी अच्छी नहीं लगती।”
धीरे-धीरे पूजा ने अपनी दर्दभरी कहानी सुनाई। विवेक से प्रेम-विवाह, परिवार का विरोध, फिर सबका धीरे-धीरे अपनाना, लेकिन अचानक विवेक की बीमारी और मौत। माँ पहले ही गुजर चुकी थी और ससुराल वालों ने भी उसे और लकी को घर से निकाल दिया। पूजा दर-दर भटकती रही। लकी को भूखा सोता देख उसका दिल टूट जाता था। आख़िरकार उसकी राह राकेश के दरवाज़े तक पहुँची।
दिन बीतने लगे। पूजा घर संभालने लगी, राकेश खेत देखता और लकी उनके बीच हंसी और मासूमियत भर देता। लेकिन गाँव में फुसफुसाहट शुरू हो गई—”राकेश ने पराई औरत को घर में रखा है।” बात इतनी बढ़ी कि पंचायत तक पहुँच गई। पंचायत ने राकेश से कहा—”या तो पूजा को घर से निकाल दो या गाँव छोड़ दो।”
उस दिन राकेश ने सबके सामने पूजा से कहा—”अगर तुम चाहो तो आज से यह घर तुम्हारा और लकी का होगा। अगर नहीं, तो मैं गाँव छोड़ दूंगा।”
पूजा ने आँसू भरी आँखों से कहा—”अगर मैं हाँ कह दूँ, तो क्या आप हमें कभी बोझ समझेंगे?”
राकेश ने दृढ़ स्वर में जवाब दिया—”नहीं, यह मेरा सौभाग्य होगा।”
पूजा ने हामी भरी और पूरे गाँव के सामने राकेश ने उसकी मांग में सिंदूर भर दिया। उस पल से यह रिश्ता समाज की न
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