मध्य प्रदेश – नर्मदा: खेत की खुदाई में मिला लकड़ी का संदूक, जिससे पुलिस भी दंग रह गई

.

.

“नर्मदा का गाँव, एक संदूक और पहला शक”

मध्य प्रदेश के एक छोटे गाँव की शांत सुबह अचानक हिल गई, जब खेत में तालाब खोदते समय मिट्टी के बीचूबीच एक पुराना लकड़ी का संदूक उभर आया। उसके जंग लगे कुंडे और हरित काई वाले पाट ने हर दिल में सवाल खड़ा किया — क्या छुपा है अंदर?

जब धूप तेज थी और हवा में हल्की ठंडक थी, उस वक्त रघुनाथ शर्मा ने बेटा महेश के साथ खेत खोदने का निर्णय लिया। लोग कहते थे कि नदी के किनारे खोदे गए तालाब से मछलियां पालने में लाभ मिलता है। महेश ने सुझाव दिया कि मशीन से खोदें — महीनों नहीं लगेंगे।

मशीन की फावड़ा जैसे ही मिट्टी में धंसा, एक अजीब आवाज़ सुनाई दी। धीरे-धीरे मिट्टी हटाई गई — और सामने आया वही संदूक। भीड़ जमा हुई, उत्सुकता और डर दोनों चढ़ रहे थे।

ढक्कन खोलते ही अंदर दिखाई दी मानव हड्डियाँ — बिखरी हुई, टुकड़ों में। खून के निशान वाले कपड़े भी मिले। यह कोई खजाना नहीं, किसी पुरानी हत्या की निशानी थी।

तत्काल पुलिस बुलायी गयी, इंस्पेक्टर विक्रम सिंह जाँच पर आए। फॉरेंसिक टीम ने हड्डियों को कब्जे में लिया और शुरुआत में यह बतलाया कि वे 50–60 साल पुरानी थीं।

महेश ने बुजुर्गों से सवाल शुरू किए। उन्होंने सुना था कि अंग्रेजों के समय में गाँव में विद्रोह हुआ था। एक पुराने दस्तावेज़ पर नाम अंकित मिला — रामकली। वह वही महिला थी जो आज़ादी के समय गायब हुई थी।

जब फॉरेंसिक रिपोर्ट में यह निकला कि हड्डियों पर चोट के निशान थे, और कपड़े चौधरी की फैमिली के वंशजों से संबंध रखते थे, मामला और गंभीर हो गया।

गाँव का प्रधान धनीराम चौधरी दबाव डालने लगा कि संदूक को नदी में बहा दें — “शांति चाहिए,” वह बार-बार कहता रहा। लेकिन विक्रम ने उसे साफ कर दिया कि मामला हत्या का है; इसे दबाया नहीं जा सकता।

पंचायत के दिन गाँव में दो धड़े बन गए — एक जिसने डर के कारण सत्य को दबाने की इच्छा जताई, और दूसरा जो महेश, विक्रम और रामकली की याद में न्याय चाहता था।

चौधरी ने धमकियाँ दीं, गुंडे भेजे, लेकिन चश्मदीद बुजुर्ग पटेल जी खड़े हुए और बोले कि उन्होंने रामकली को पकड़े जाने और चीखते सुनने की बात कही थी।

अदालत में सबूतों और गवाहों ने मिलकर चौधरी को दोषी ठहराया। गाँव ने चेतना उठाई — सच को दबाया नहीं जा सकता।

— अंत में, नदी किनारे उस गाँव में दीप जले, और लोगों ने मिलकर प्रण किया कि वे डर नहीं सच से जीएँगे।

.