महिला अपने तलाकशुदा पति से नौकरी मांगने आई… आखिर क्यो पति ने दिया था पत्नी को तलाक 

उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव में अनिका नाम की एक महिला रहती थी, जिसकी जिंदगी ने अचानक एक ऐसा मोड़ लिया जिसने उसे अंदर तक हिला दिया। अनिका की शादी अरविंद से हुई थी, जो एक समझदार और मेहनती युवक था। शुरुआत के कुछ सालों में दोनों का जीवन खुशियों से भरा था, लेकिन शादी के पांच साल बीत जाने के बाद भी उनके घर में बच्चे की किलकारी नहीं गूंज सकी।

यही बात धीरे-धीरे उनके रिश्तों में जहर घोलने लगी। गाँव और परिवार के लोग ताने मारने लगे। अरविंद की माँ सावित्री देवी समझदारी दिखातीं और कहतीं कि बच्चा भगवान की देन है, समय आने पर सब होगा। लेकिन घर की बड़ी बहू किरण हर मौके पर आग लगाने का काम करती। किरण अरविंद के बड़े भाई राघव की पत्नी थी, जो चालाक और हुक्म चलाने वाली थी।

किरण हमेशा अरविंद को उकसाती, “तुम्हारी पत्नी निसंतान है। ऐसी औरत से घर का वंश कैसे चलेगा? छोड़ो इसे और मेरी बहन मीना से शादी कर लो। बच्चा भी होगा और घर भी संभल जाएगा।” अरविंद पर रिश्तों और समाज का दबाव पड़ता गया और उसका व्यवहार बदलने लगा। वह अनिका से पहले की तरह बातें नहीं करता, उसकी आंखों में प्यार की जगह ठंडापन उतर आया।

अनिका को हर बदलाव महसूस हो रहा था। वह रातों को जाग-जाग कर सोचती, “क्या सचमुच मेरी ही गलती है? क्या मैं ही इस घर की दुश्मन हूं?” उसकी आंखें आंसुओं से भीग जातीं। लेकिन वह उम्मीद नहीं छोड़ती, उसे विश्वास था कि अरविंद उसे समझेगा, उसका साथ देगा।

पर वह दिन भी आया जब किरण की साजिश पूरी हो गई। एक रात घर के बीचोंबीच अरविंद ने सबके सामने ठंडी आवाज में कहा, “अनिका, मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूं। हमारे बीच अब कोई रिश्ता नहीं रहा।” यह सुनकर अनिका के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसकी आंखें स्तब्ध रह गईं, होठ कांपते रहे। वह चाहकर भी कुछ नहीं बोल पाई।

तलाक के बाद अनिका की जिंदगी जैसे रुक सी गई। वह जिस घर में बहू बनकर आई थी, उसी घर से वह अजनबी की तरह निकाली गई। सावित्री देवी ने बहुत कोशिश की कि बहू को कोई सहारा मिल जाए, पर किरण ने साफ कह दिया, “अब इसका इस घर से कोई रिश्ता नहीं है।”

अनिका के पास थोड़े बहुत गहने थे जिन्हें बेचकर उसने किराए का एक कमरा लिया और किसी तरह दिन काटने लगी। लेकिन तलाक के बाद लोग उसे शक की नजर से देखने लगे। मकान मालिक की बीवी ने उसे बार-बार टोका, “अकेली औरत रह रही है, मोहल्ले का माहौल खराब होगा।”

धीरे-धीरे अनिका को एहसास हुआ कि उसके भीतर एक और जिंदगी पल रही है। वह गर्भवती थी। यह खबर उसके लिए नई ताकत बन गई। उसने सोचा, “अब मुझे अपने बच्चे के लिए जीना है।” काम की तलाश में वह इधर-उधर भटकी, लेकिन हर जगह नाकामी मिली। कोई कहता, “तुम गर्भवती हो, तुम्हें काम नहीं देंगे।”

एक दिन अनिका ने हिम्मत जुटाकर शहर के एक बड़े ऑफिस का दरवाजा खटखटाया। वह नौकरी चाहती थी, कोई छोटा-मोटा काम भी कर लेगी। दरवाजा खुला और सामने जो चेहरा था, उसे देखकर वह पत्थर की तरह जम गई – वह अरविंद था, उसका तलाकशुदा पति।

अरविंद भी उसे देखते ही ठिठक गया। उसकी आंखें फैल गईं। कुछ पल के लिए दोनों के बीच समय जैसे थम गया। “अनिका तुम?” अरविंद की आवाज में हैरानी थी। अनिका ने अपनी नजरें झुका लीं। “मैं नौकरी चाहती हूं, कोई छोटा-मोटा काम दे दीजिए।”

अरविंद का चेहरा पढ़ पाना मुश्किल था। वह उसे ऊपर से नीचे तक देख रहा था। फिर उसकी नजर अनिका के पेट पर पड़ी। उसका चेहर
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