महिला इंजीनियर ने 12 साल के बच्चे से कहा, अगर गलती निकली तो मैं इस्तीफा दे दूंगी

पुणे शहर की उमस भरी सुबह थी। आकाश छूती क्रेनें, मजदूरों की आवाज़ें और लोहे-सीमेंट की गंध के बीच एक विशाल निर्माण स्थल पर काम चल रहा था। यही वह जगह थी जहाँ पहली बार 12 साल के दुबले-पतले ईशान और शहर की चर्चित महिला इंजीनियर अनिका राव की मुलाक़ात ने पूरे शहर को हिला कर रख दिया।

अनिका राव – घमंड और आत्मविश्वास की प्रतीक

अनिका राव को इस प्रोजेक्ट की मुख्य इंजीनियर बनाया गया था। करोड़ों की लागत से बन रही यह बहुमंजिला इमारत उसके करियर का पहला बड़ा काम थी। अनिका हमेशा आत्मविश्वास से भरी रहती थी, लेकिन यह आत्मविश्वास अक्सर अहंकार में बदल जाता। मजदूरों को फटकारना, जूनियर इंजीनियरों को नीचा दिखाना और खुद को सबसे बेहतर साबित करना उसकी आदत थी। उसे लगता था कि वह किसी से सीखने की ज़रूरत नहीं रखती।

ईशान – मासूम पर तेज़ दिमाग़ वाला बच्चा

निर्माण स्थल के बाहर फल का छोटा-सा ठेला लगा था। वहाँ ईशान अपने बूढ़ी दादी की मदद करता। उसका पहनावा साधारण और चेहरा धूल-मिट्टी से सना रहता, लेकिन आँखों में हमेशा एक अजीब सी चमक थी। ईशान ने कभी औपचारिक शिक्षा नहीं पाई थी, पर उसे ड्राइंग और गणित से खास लगाव था। उसके पिता रघु निर्माण मजदूर थे, जो ईमानदारी से काम करते-करते एक दिन संदिग्ध हादसे का शिकार हो गए। ईशान के पास बस उनकी यादें और एक पुरानी कॉपी थी, जिसमें वह रोज़-रोज़ साइट देखकर नक्शे और डिज़ाइन खींचा करता।

टकराव की शुरुआत

उस दिन अचानक अलार्म बजा और काम रोकने की घोषणा हुई। मजदूर हैरान थे। तभी भीड़ में खड़ा ईशान आगे आया और हाथ में अपने स्केच को लहराते हुए बोला—“दीदी, इस बीम में गलती है, यह ऐसे बनेगी तो गिर जाएगी।”

अनिका ने ठहाका लगाया। “वाह! अब यह फल बेचने वाला बच्चा हमें इंजीनियरिंग सिखाएगा? अगर यह सही निकला तो मैं अभी इस्तीफा दे दूंगी।” पूरा स्थल हंसी से गूंज उठा।

लेकिन अगले ही पल, वही हुआ जिससे सबके होश उड़ गए। पूर्वी हिस्से की बीम में दरार पड़ गई, कंक्रीट टूटने लगी और मजदूर चीखते-चिल्लाते भागने लगे। अनिका के चेहरे की हंसी उड़ गई। वही जगह टूटी थी, जिसकी ओर ईशान ने इशारा किया था।

सच्चाई का खुलासा

हालात संभलने के बाद अनिका ने ईशान को अपने ऑफिस में बुलाया। “तुम्हें कैसे पता चला?” उसने गंभीर होकर पूछा। ईशान ने अपनी पुरानी कॉपी खोली, जिसमें गणितीय समीकरण और सटीक ड्राइंग भरे थे। उसने कहा—“मेरे पास मूल नक्शे की कॉपी है। आपने इसमें बदलाव किया है। कम कंक्रीट और घटिया सामग्री डालने से बीम कमजोर है।”

अनिका सन्न रह गई। नक्शों में छेड़छाड़ गोपनीय बात थी। यह सब एक मासूम बच्चा कैसे जान सकता था? लेकिन ईशान ने कहा—“मेरे पिता ने भी यही सच देखा था। उन्होंने विरोध किया, और उनकी मौत हो गई।”

साज़िश का पर्दाफाश

धीरे-धीरे अनिका को समझ आया कि यह सिर्फ़ तकनीकी गलती नहीं, बल्कि कंपनी का बड़ा घोटाला है। उसके वरिष्ठ मूर्ति और मालिक विनोद खन्ना कई सालों से निर्माण सामग्री में धांधली कर रहे थे। मजदूरों की मौतें, ढही इमारतें, सब योजनाबद्ध अपराध थे। दस्तावेज़ों में अनिका के नकली हस्ताक्षर डालकर उसे बलि का बकरा बनाया जा रहा था।

ईशान की नोटबुक और उसके पिता रघु की पुरानी शिकायतें सबूत थीं। अब सवाल था—क्या अनिका अपने करियर बचाने के लिए चुप रह जाएगी, या सच बोलकर खुद को खतरे में डालेगी?

अनिका का बदलाव

रात भर अनिका सो नहीं सकी। उसके सामने ईशान की आँखों की चमक और रघु की मौत की सच्चाई तैर रही थी। अगले दिन उसने पत्रकारों और एक प्रोफेसर मेहता से संपर्क किया, जो पहले से इस कंपनी की जाँच कर रहे थे। सबूत जुटाकर उन्होंने तय किया कि सच्चाई सबके सामने लाई जाएगी।

लेकिन कंपनी वाले भी चुप नहीं बैठे। धमकियाँ मिलीं, रिश्वत की पेशकश हुई। मूर्ति ने कहा—“लड़के को दूर करो, वरना तुम्हारा करियर खत्म।” अनिका डर गई, पर अब वह घमंडी इंजीनियर नहीं रही। वह जानती थी कि यह संघर्ष सिर्फ़ उसका नहीं, बल्कि उन मजदूरों का भी है जिनकी आवाज़ कभी नहीं सुनी गई।

सच की जीत

अनिका और ईशान ने मिलकर वीडियो और दस्तावेज़ पब्लिश कर दिए। सोशल मीडिया पर यह खबर आग की तरह फैल गई। मजदूरों ने गवाही दी, पत्रकारों ने रिपोर्टिंग की और अदालत ने पहली बार इस बड़े घोटाले पर सुनवाई शुरू की।

कोर्ट में अनिका ने कहा—“आज तक मैं अहंकार में जीती रही, लेकिन इस छोटे से बच्चे ने मुझे सिखाया कि ईमानदारी और सच्चाई ही असली ताकत है।”

ईशान की गवाही ने सबको झकझोर दिया। उसने कहा—“मेरे पिता मजदूर थे। उन्होंने सच बोला और जान गंवाई। अब मैं चाहता हूँ कि कोई और मजदूर गलतियों की वजह से अपनी जान न गंवाए।”

नई सुबह

अदालत ने कंपनी मालिक और भ्रष्ट इंजीनियरों को कठोर सजा सुनाई। ईशान को “छोटा इंजीनियर” कहकर पूरे देश में सराहा गया। सरकार ने उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने का ऐलान किया और उसे एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग स्कूल में दाख़िला मिला।

कुछ महीनों बाद, जब ईशान नई यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल की पहली कक्षा में गया, तो उसकी दादी की आँखों से आँसू बह निकले। ईशान ने कहा—“दादी, अब पापा का सपना मैं पूरा करूँगा। कोई मजदूर अब गलतियों की वजह से नहीं मरेगा।”

अनिका अब उसी संस्थान में गेस्ट लेक्चरर थी। वह गर्व और विनम्रता के साथ ईशान के पास खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसे समझ आ चुका था कि करियर और शोहरत से ऊपर इंसानियत और ईमानदारी होती है।

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