महिला बैंक में रो रही थी, पास में खड़ा आदमी उसने अचानक सारी उधारी चुकाने का ऐलान कर दिया, फिर जो हुआ
दोस्तों, कभी-कभी जिंदगी ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां आंसू ही आखिरी जवाब लगते हैं। जहां दुनिया के शोर में कोई आवाज नहीं सुनता, सिवाय उस दिल के जो टूट चुका होता है। वह दिन भी कुछ ऐसा ही था जब शहर की एक भीड़ भरी बैंक में एक औरत का रोना सबकी नजरें रोक गया। लोग पास से गुजर रहे थे, लेकिन कोई ठहर कर नहीं पूछ रहा था, “क्या हुआ?”
वह औरत रीमा बैंक के काउंटर पर खड़ी थी। आंखों में आंसू, हाथों में फटी हुई फाइल और अंदर जमा था वह डर, कर्ज चुकाने का डर जो अब उसका जीवन निगलने वाला था। उसकी साड़ी पुरानी थी, बाल बिखरे हुए और चेहरे पर थकान की परतें थीं, जैसे वक्त ने उसे रगड़ कर फीका कर दिया हो।
भाग 2: बैंक का काउंटर
“मैडम, मैंने कहा ना आपके पास बस तीन दिन हैं,” काउंटर के पीछे बैठे बैंक अधिकारी ने ठंडी आवाज में कहा। रीमा के हाथ कांप उठे। “सर, बस थोड़ा वक्त और दे दीजिए। मेरे पति की तबीयत बहुत खराब है। मैं कोशिश कर रही हूं।” लेकिन अधिकारी बिना उसकी तरफ देखे बोला, “हम कोशिश नहीं देखते। बस पैसा देखते हैं।”
रीमा ने सर झुका लिया। भीड़ के बीच एक आदमी चुपचाप यह सब देख रहा था। लगभग 35-36 साल का, सादा कपड़ों में थका हुआ सा चेहरा। पर आंखों में अजीब शांति थी। उसका नाम था अभिषेक वर्मा। वह पास खड़ा था लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। बस देखता रहा, जैसे उस औरत के आंसुओं में उसे अपना अतीत दिख रहा हो।
भाग 3: उम्मीद की किरण
रीमा फिर काउंटर से हटकर एक कोने में बैठ गई। सिर पकड़े हुए। “अब मैं क्या करूं भगवान?” उसकी आवाज टूटी हुई थी। अभिषेक के कदम वहीं रुक गए। वह बैंक छोड़कर बाहर जा सकता था। पर जाने क्यों उसके अंदर कुछ बदलने लगा। वो धीरे-धीरे उसके पास गया। बिना कुछ बोले उसने बस पूछा, “कितना बाकी है आपका कर्ज?”
रीमा ने सिर उठाया, आंसू पोंछते हुए बोली, “₹5 लाख।” अभिषेक ने कुछ पल के लिए उसे देखा और फिर काउंटर की ओर बढ़ गया। सबकी नजरें उस पर टिक गईं जब उसने अधिकारी से कहा, “इनका पूरा लोन क्लियर कर दीजिए, मैं पेमेंट कर रहा हूं।”
भाग 4: चमत्कार
पूरा बैंक कुछ पल के लिए सन्न रह गया। रीमा की सांसे थम गईं और तभी शुरू हुई एक ऐसी कहानी जिसने इंसानियत को फिर जगा दिया। रीमा का दिल तेजी से धड़कने लगा था। वह खड़ी रही जैसे किसी ने उसकी जमी हुई उम्मीदों में जान डाल दी हो। काउंटर के लोग भी हैरान थे। “सर, आप सच में पूरा लोन क्लियर करना चाहते हैं?” अभिषेक ने बस सिर हिलाया। “हां, तुरंत।”
कैशियर ने संकोच से पूछा, “लेकिन सर, यह आपकी फैमिली नहीं लगती।” अभिषेक मुस्कुराया। “रिश्ते बैंक की फाइलों से नहीं बनते। हालात से बनते हैं।” उसके यह शब्द सुनकर पूरा माहौल एक पल को शांत हो गया। वह अपने बैग से चेक बुक निकाला और बिना झिझक ₹3,75,000 का चेक लिखा।
भाग 5: कर्ज का एहसास
रीमा अब भी सन्न थी। “आप कौन हैं?” उसने कांपती आवाज में पूछा। अभिषेक ने उसकी ओर देखा और धीरे से बोला, “कोई ऐसा इंसान जिसने किसी दिन बिल्कुल आपकी तरह हार मानी थी।” रीमा समझ नहीं पाई। वह बोली, “लेकिन आप मेरे लिए ऐसा क्यों कर रहे हैं? मैं आपको जानती भी नहीं।”
अभिषेक ने कहा, “कभी-कभी हम किसी अनजान के लिए वह करते हैं जो हमें किसी अपने ने कभी नहीं किया होता।” काउंटर पर सारी औपचारिकताएं पूरी हो गईं। बैंक मैनेजर खुद आकर बोले, “सर, पेमेंट कंफर्म हो गया है। अब इस महिला पर कोई बकाया नहीं।”
भाग 6: आंसुओं की बारिश
रीमा वहीं घुटनों के बल बैठ गई। आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। “आपने मेरी जिंदगी बदल दी। मैं आपका कर्ज कैसे उतारूंगी?” अभिषेक हल्के से मुस्कुराया। “कर्ज मत कहिए। बस किसी दिन किसी और के आंसू पोंछ दीजिए। वही मेरी पेमेंट होगी।”
रीमा ने कांपते हाथों से उसके पैर छूने चाहे, पर अभिषेक पीछे हट गया। “ऐसा मत कीजिए। मैं कोई भगवान नहीं। बस एक इंसान हूं जिसने देर से इंसानियत समझी है।” बैंक के बाहर निकलते हुए रीमा की निगाहें उसे देखती रही। वह सोच रही थी, “कौन है यह आदमी? क्यों लगा जैसे इसके दिल में कोई गहरी चोट है?”
भाग 7: बीती रात की यादें
उधर अभिषेक का चेहरा भले शांत था पर आंखों में कुछ अनहा दर्द था। जैसे किसी बीती कहानी की गूंज अब भी जिंदा हो। उस रात रीमा ने पहली बार चैन की नींद ली। पर अभिषेक वह देर रात तक जागता रहा। उसके मोबाइल में एक पुराना फोटो खुला था। एक औरत और एक छोटी बच्ची की मुस्कुराती तस्वीर। तस्वीर के नीचे लिखा था, “माफ कर देना। मैं वक्त पर नहीं पहुंच पाया।”
भाग 8: नई सुबह
अगली सुबह रीमा फिर उसी बैंक के पास खड़ी थी। रात भर वह सोचती रही। “कोई इतना क्यों करेगा? बिना पहचान, बिना वजह आखिर क्यों?” दिल बार-बार कह रहा था। “वह कोई आम आदमी नहीं था।” उसने बैंक मैनेजर से पूछा, “सर, वह कल जो व्यक्ति आए थे, उनका नाम क्या था?”
मैनेजर ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “अभिषेक वर्मा।” रीमा ने जल्दी से पूछा, “कहीं पता मिल सकता है?” उन्होंने बस एक विजिटिंग कार्ड छोड़ा था। “वर्मा एंड कंपनी, पुरानी कपड़ा मिल के सामने।”
भाग 9: कृतज्ञता की तलाश
रीमा ने कार्ड कसकर पकड़ा और वहीं से निकल पड़ी। दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। कृतज्ञता भी, जिज्ञासा भी। दूसरी ओर अभिषेक अपने ऑफिस में बैठा था। टेबल पर ढेरों फाइलें थीं। पर उसकी नजरें दीवार पर लगी एक फोटो पर टिक गई थीं। वही तस्वीर जो पिछली रात उसके फोन में थी।
उसकी पत्नी स्नेहा और छोटी बेटी अनवी की मुस्कान अब सिर्फ याद बन चुकी थी। तीन साल पहले एक हादसे ने उसकी दुनिया उजाड़ दी थी। एक सड़क दुर्घटना में वह दोनों चली गईं और अभिषेक उस दिन घर नहीं पहुंच पाया था। वह आज भी अपने आप को माफ नहीं कर पाया।
भाग 10: बीती यादों का बोझ
“अगर मैं उस दिन ऑफिस से थोड़ा पहले निकल जाता तो शायद वह जिंदा होती,” वह अक्सर खुद से कहता। उस हादसे के बाद अभिषेक ने बहुत कुछ खो दिया। नींद, सुकून और जीने की वजह भी। वो बस लोगों की मदद करने लगा। शायद अपने अंदर के खालीपन को भरने के लिए। हर बार किसी की आंखों में खुशी देखता तो लगता जैसे स्नेहा मुस्कुरा रही हो।

भाग 11: एक नई कहानी की शुरुआत
उसी शाम रीमा उसके ऑफिस पहुंची। वह दरवाजे पर रुकी और धीमी आवाज में बोली, “माफ कीजिए, क्या मैं अंदर आ सकती हूं?” अभिषेक ने ऊपर देखा और मुस्कुराया। “हां, मैं कल बैंक में थी। मुझे याद है।” उसने कुर्सी की ओर इशारा किया। “बैठिए।”
रीमा बैठी तो आंखों में आंसू भर आए। “आपने मेरी जिंदगी बचा ली। पर मैं समझना चाहती हूं आपने यह सब क्यों किया।” अभिषेक कुछ देर चुप रहा। फिर खिड़की से बाहर देखते हुए बोला, “कभी किसी अपने को खोया है आपने?”
भाग 12: दर्द की साझेदारी
रीमा की आंखें भर आईं। “पति बीमार हैं और मेरे पास इलाज के पैसे नहीं थे।” अभिषेक ने धीरे से कहा, “मैंने भी किसी को खोया है। बस फर्क इतना है, वो लौट कर कभी नहीं आए।” रीमा चुप रह गई। कमरे में कुछ पल का सन्नाटा छा गया।
फिर अभिषेक बोला, “आपको कुछ नहीं देना है मुझे। बस एक वादा कीजिए। किसी दिन जब किसी और को आपकी मदद की जरूरत हो तो रुक जाना। ठीक वैसे ही जैसे मैं रुका था।” रीमा ने सिर झुका लिया और पहली बार उसकी आंखों में वह सुकून दिखा जो शायद अभिषेक खोज रहा था।
भाग 13: एक नई दिशा
रीमा के जाने के बाद ऑफिस में कुछ देर तक सन्नाटा छाया रहा। अभिषेक ने अपनी फाइलें समेटी लेकिन मन कहीं और था। वह सोच रहा था, “शायद स्नेहा भी यही चाहती कि मैं किसी की मदद करूं। किसी की जिंदगी में वही रोशनी डालूं जो मेरी जिंदगी से चली गई।”
वो खिड़की से बाहर देख रहा था। बारिश की हल्की फुहारें शुरू हो चुकी थीं। हर बूंद मानो पुराने जख्मों को छूकर कह रही थी, “समय सब ठीक कर देता है।” लेकिन कुछ घाव ऐसे होते हैं जो वक्त के साथ नहीं, इंसानियत के एक काम से भरते हैं।
भाग 14: एक नई मुलाकात
तीन दिन बाद ऑफिस में एक अनजान लड़का आया। उसने कहा, “सर, किसी ने कहा था आप मदद करते हैं। मेरी मां बीमार है और हॉस्पिटल में एडमिट है।” अभिषेक ने बिना कुछ पूछे वॉलेट से पैसे निकाले और उसकी ओर बढ़ा दिए। “वो मुस्कुराया। भगवान आपका भला करे, सर।”
अभिषेक ने सिर हिलाया। पर तभी उसकी आंखें लड़के के गले में पड़े पेंडेंट पर अटक गईं। वह पेंडेंट वही था जो कभी स्नेहा पहनती थी। वो सन्न रह गया। “यह लॉकेट तुम्हें कहां से मिला?” उसने कांपती आवाज में पूछा। लड़के ने कहा, “यह मेरी मां का है, सर। उन्होंने कहा था किसी पुराने दोस्त ने दिया था।”
भाग 15: अनजानी सच्चाई
अभिषेक के पैर जमीन पर जम गए। “तुम्हारी मां का नाम क्या है?” “रीमा,” लड़का बोला। अभिषेक के दिल में बिजली सी दौड़ गई। उसे यकीन नहीं हुआ, वही रीमा। लेकिन स्नेहा का लॉकेट उसके पास कैसे? क्या रीमा और स्नेहा किसी तरह जुड़ी थी?
वो उसी शाम सीधे रीमा के घर पहुंचा। दरवाजे पर पहुंचते ही उसकी सांसे भारी हो गईं। घर छोटा था लेकिन दरवाजे के पास वही पीला पर्दा लटका था जो कभी स्नेहा के घर में हुआ करता था। रीमा बाहर आई और उसे देखकर हैरान रह गई। “आप यहां?”
भाग 16: एक नया रिश्ता
अभिषेक ने धीरे से पूछा, “यह लॉकेट तुम्हारे पास कैसे आया?” रीमा की आंखें भर आईं। वो बोली, “यह मेरी बड़ी बहन का है। तीन साल पहले एक्सीडेंट में गुजर गई थी। नाम था स्नेहा शर्मा।” अभिषेक के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। वो लड़खड़ाते हुए पीछे हट गया। “क्या कहा? स्नेहा शर्मा?”
रीमा ने हां में सिर हिलाया। “आप उन्हें जानते थे क्या?” अभिषेक की आंखों से आंसू बह निकले। “वह मेरी पत्नी थी।” रीमा के हाथ से कब गिर गया। घर में कुछ पल के लिए मौत सी खामोशी छा गई। बारिश तेज हो चुकी थी जैसे आसमान भी उस सच पर रो रहा हो।
भाग 17: एक अनकही कहानी
अभिषेक दरवाजे के बाहर खड़ा था, भीगा हुआ, कांपता हुआ। रीमा के आंसू अब किसी कर्ज या गम के नहीं थे। वह एक ऐसे रिश्ते के लिए थे जिसे दोनों ने अनजाने में ही फिर से जोड़ दिया था। बारिश अब भी बरस रही थी। पर उस छोटी सी गली में खड़ा अभिषेक अंदर से सूख चुका था। उसका चेहरा भावनाओं से भरा था। आश्चर्य, पछतावा और एक अजीब सी राहत।
भाग 18: एक नया वादा
रीमा रोते हुए बोली, “आप, आप स्नेहा जी के पति हैं। उन्होंने तो कभी आपके बारे में जिक्र नहीं किया।” अभिषेक ने भारी आवाज में कहा, “क्योंकि वह मुझसे नाराज थीं। मैंने वक्त पर उन्हें नहीं बचाया।” वह दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया। “उस हादसे वाले दिन मैं ट्रैफिक में फंसा था। उनकी आखिरी कॉल आई थी। उन्होंने कहा था जल्दी आना। अनवी को बुखार है लेकिन मैं मीटिंग में उलझा रहा। जब पहुंचा, बहुत देर हो चुकी थी।”
भाग 19: एक नई पहचान
रीमा की रूह कांप उठी। “मतलब वह अनवी जो मेरी बहन की बेटी थी।” अभिषेक ने सिर झुका लिया। “हां, वह मेरी भी थी।” कुछ देर तक दोनों चुप रहे। सिर्फ बारिश और यादें बोल रही थीं। फिर रीमा बोली, “शायद भगवान ने हमें किसी वजह से मिलवाया है।”
अभिषेक ने पूछा, “क्यों?” रीमा ने कहा, “क्योंकि आपने मेरा कर्ज नहीं चुकाया। आपने मेरी बहन की आखिरी अधूरी ख्वाहिश पूरी की है।” अभिषेक चौंक गया। “क्या मतलब?”
भाग 20: अधूरी ख्वाहिश
रीमा मुस्कुराई। आंसू पोंछते हुए बोली, “स्नेहा हमेशा कहती थी कि अगर मेरे साथ कुछ हो गया तो किसी की मदद करना क्योंकि मदद करने वाला इंसान भगवान का रूप होता है और आपने वही किया।” अभिषेक की आंखों में चमक आ गई। “वो बोला, शायद मैंने बहुत देर से सही रास्ता चुना लेकिन अब समझ आया कि कभी भी देर नहीं होती इंसान बनने में।”
रीमा ने उसके हाथ पर हाथ रखा। “अब आपकी बेटी का भी एक घर होगा। मैं उसका ख्याल रखूंगी जैसे मेरी बहन रखती थी।” अभिषेक मुस्कुराया। “नहीं रीमा जी, अब हम दोनों रखेंगे क्योंकि यह रिश्ता खून का नहीं, इंसानियत का है।”
भाग 21: एक नई शुरुआत
बाहर बारिश रुक चुकी थी। पर अंदर दोनों के दिलों में एक नई शुरुआत हो चुकी थी। एक ऐसी शुरुआत जो किसी कर्ज से नहीं बल्कि एक अधूरी मोहब्बत और इंसानियत के वादे से जुड़ी थी। दोस्तों, कभी-कभी हम किसी की मदद नहीं बल्कि अपनी अधूरी कहानी पूरी कर रहे होते हैं। इंसानियत वही है जहां रिश्ते नहीं, दिल बोलता है। पैसे से नहीं, भावनाओं से जुड़ना ही असली दौलत है।
हर कहानी सिर्फ सुनने के लिए नहीं होती। कुछ कहानियां महसूस करने के लिए होती हैं। कभी किसी की चुप्पी में तो कभी किसी की आंखों में छुपी होती है इंसानियत की पहचान। अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो जुड़िए हमारे साथ। जिंदगी की सिख जहां हर कहानी सिखाती है जिंदगी को समझना और इंसानियत को अपनाना। दोस्तों, कमेंट में बताइए आपको यह कहानी कैसी लगी और आप किस शहर से देख रहे हैं?
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