मां बाप को अपने ही बेटे की कंपनी से धक्के देकर बाहर फेंक दिया ! जब बेटे को पता चला ?उसके बाद जो हुआ?

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मां-बाप को अपने ही बेटे की कंपनी से धक्के देकर बाहर फेंक दिया! जब बेटे को पता चला, उसके बाद जो हुआ…

1. दिल्ली का महल और गांव की ममता

दिल्ली के दिल कन्नोट प्लेस में स्थित “द ग्रैंड एंपायर होटल” किसी महल से कम नहीं था। शीशे और सोने की नक्काशी से सजी 50 मंजिल की यह इमारत शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन अर्जुन मल्होत्रा की शान थी। आज होटल की दसवीं वर्षगांठ और अर्जुन का जन्मदिन था। पूरे शहर के रईस, राजनेता और फिल्मी सितारे पार्टी में आने वाले थे।

वहीं सैकड़ों मील दूर उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव रामपुर में, अर्जुन के मां-बाप किशननाथ और गायत्री देवी अपने बेटे के बुलावे पर दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे थे। किशननाथ ने अपनी पुरानी धोती-कुर्ता निकाली, गायत्री देवी रसोई में अर्जुन की पसंदीदा गुड़ की खीर बना रही थी। दोनों ने साफ-सुथरे, मगर साधारण कपड़े पहने। पैरों में हवाई चप्पल, हाथ में कपड़े का थैला जिसमें घर का अचार और खीर थी।

बस में बैठते वक्त उनका दिल धड़क रहा था—खुशी और शहर की चकाचौंध का संकोच। दिल्ली पहुंचकर वे ऑटो से होटल के सामने उतरे। “हे भगवान, क्या इतना बड़ा घर हमारे लल्ला का है?” गायत्री ने कांपती आवाज में पूछा। किशननाथ ने गर्व से कहा, “यह सब उसकी मेहनत है।”

2. होटल का स्वागत और अपमान

जैसे ही वे मुख्य द्वार की ओर बढ़े, दो भारी-भरकम गार्ड्स ने उनका रास्ता रोक लिया। “कहां जा रहे हो?” गार्ड ने कड़क आवाज में पूछा। उनकी नजर किशननाथ की चप्पलों और गायत्री के थैले पर थी। किशननाथ ने जेब से सुनहरा वीआईपी पास निकाला। “बेटा, हम अर्जुन मल्होत्रा की दावत में आए हैं।”

गार्ड ने कार्ड देखा, असली था। मगर दोनों गार्ड हंसे, “लगता है साहब ने आज गरीबों को भी खाना खिलाने का पुण्य काम सोचा है। ठीक है, जाओ अंदर। लेकिन खबरदार, किसी चीज को हाथ मत लगाना।”

अंदर का नजारा स्वर्ग जैसा था—झूमर, चमकदार फर्श। गायत्री को पैर रखने में भी डर लग रहा था। तभी फ्लोर मैनेजर विक्रम अपने सूट-बूट में तना हुआ आया। उसकी नाक सिकोड़ी हुई थी। “आप लोग यहां लॉबी में क्यों खड़े हैं? यह रास्ता एलिट गेस्ट्स के लिए है। सर्वेंट क्वार्टर पीछे है।”

“साहब, हम अर्जुन के मेहमान हैं,” किशननाथ ने हाथ जोड़कर कहा। विक्रम हंसा, “मालिक के मेहमान और तुम जैसे लोग? मजाक मत करो। कार्ड दिखाओ।” कार्ड देखकर भी उसका अहंकार कम नहीं हुआ। “लगता है चैरिटी कोटा से आए हो। देखो, पार्टी हॉल में बहुत बड़े लोग आ रहे हैं। तुम लोग वहां नहीं बैठ सकते। तुम्हारे कपड़े… उफ! पूरा माहौल खराब कर देंगे।”

विक्रम ने वेटर को इशारा किया, “इन दोनों को साइड वाले छोटे वेटिंग रूम में ले जाओ। ध्यान रखना, ये बाहर हॉल में ना भटके।” गायत्री ने धीरे से किशननाथ का हाथ थाम लिया, “जी, ये लोग हमसे ऐसे बात क्यों कर रहे हैं? क्या हम अर्जुन को बता दें?” “नहीं,” किशननाथ बोले, “बेटा काम में व्यस्त होगा। हम उसे परेशान नहीं करेंगे।”

3. स्टोर रूम का दर्द

जिस कमरे में उन्हें बैठाया गया, वह असल में एक पुराना स्टोर रूम था। न एसी, न पंखा ठीक से काम कर रहा था। कमरे में सीलन की बदबू थी। आधा घंटा बीत गया। बाहर हॉल से संगीत और हंसी की आवाजें आ रही थीं, लेकिन यहां सन्नाटा और गर्मी थी। किशननाथ को पसीना आने लगा, अचानक उनकी सांस फूलने लगी—अस्थमा का दौरा।

गायत्री घबरा गई, “इन्हेलर कहां है?” थैला पलटा, इन्हेलर नहीं मिला। “पानी… पानी…” किशननाथ ने मुश्किल से कहा। गायत्री बदहवास होकर बाहर भागी, वेटर से पानी मांगा। “माताजी, क्या नाटक है? अभी पानी लाया था ना। खुली हवा? बाहर वीआईपी गेस्ट्स हैं। अगर तुम लोग अपने फटे कपड़ों में जाकर खांसोगे, तो होटल की बदनामी होगी। चुपचाप अंदर बैठो।”

गायत्री की आंखों में आंसू आ गए, “बेटा, वो मर जाएंगे। हमें अर्जुन से मिलना है। बस एक बार बुला दो।” वेटर हंसा, “अर्जुन सर अभी प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में हैं। वो तुम जैसों से मिलने आएंगे? दिमाग खराब मत करो।”

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4. अपमान की हद

किशननाथ की हालत बिगड़ती जा रही थी। गायत्री ने फिर कोशिश की, इस बार नताशा के पास पहुंची—डिजाइनर गाउन पहने, वाइन का गिलास हाथ में, विदेशी मेहमानों के साथ हंसती। “बेटी, मेरे पति बहुत बीमार हैं। बस थोड़ा पानी और हवादार जगह चाहिए, या अर्जुन को बुला दो। वो मेरा बेटा है।”

नताशा जोर से ठहाका लगाती है, “अर्जुन तुम्हारा बेटा? आजकल के भिखारियों का स्टैंडर्ड भी बढ़ गया है।” “मैं झूठ नहीं बोल रही बेटी,” गायत्री ने उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की। “डोंट टच मी!” नताशा ने झटके से हाथ पीछे खींचा, वाइन गिलास छलक गया, पास खड़े बिजनेसमैन के कोट पर गिरा।

गुस्से में नताशा ने गायत्री के गाल पर जोरदार थप्पड़ मारा। हॉल में सन्नाटा छा गया। गायत्री जमीन पर गिर पड़ी, आंखों से अपमान के आंसू। “तूने मेरी पार्टी खराब कर दी। दो कौड़ी की औरत, तेरी हिम्मत कैसे हुई यहां आने की?”

नताशा ने पास का पानी का जग उठाया, गायत्री के ऊपर उड़ेल दिया। “ले चाहिए था ना तुझे पानी, अब इस फर्श को अपनी साड़ी से पोंछ। अगर दाग रह गया तो पुलिस बुला लूंगी।”

गायत्री अपने बेटे के होटल में फर्श पोंछ रही थी। आत्मा चीख रही थी—”अर्जुन मेरे बेटे, कहां हो तुम?”

5. धक्के और फुटपाथ

कमरे के अंदर से किशननाथ किसी तरह बाहर आए, पत्नी को जमीन पर रेंगते, रोते देखा। “मैम साहब, यह मेरी पत्नी है। हम कोई जानवर नहीं हैं।” नताशा ने हिकारत से देखा, “आ गया दूसरा ड्रामेबाज। गार्ड्स, इन दोनों को अभी के अभी धक्के मारकर बाहर निकालो। ध्यान रहे, दोबारा होटल के गेट के पास भी ना दिखें। सामान भी बाहर फेंक दो।”

गार्ड्स ने किशननाथ और गायत्री को बाजुओं से पकड़ डाला। “मैं अर्जुन का पिता हूं। तुम लोग बहुत बड़ी गलती कर रहे हो।” “चुप कर बुड्ढे!” गार्ड ने धक्का दिया। मेहमान तमाशा देख रहे थे, कुछ वीडियो बना रहे थे। गायत्री को घसीटते हुए ले जाया गया। उनका थैला जिसमें खीर थी, गार्ड ने ठोकर मारकर दूर फेंक दिया। ममता बिखर गई। मुख्य द्वार तक घसीटा, सीढ़ियों से नीचे फुटपाथ पर धक्का दे दिया।

किशननाथ मुंह के बल गिरे, माथे से खून रिसने लगा। गायत्री ने सिर गोद में रख लिया, “उठो जी, हम घर चलते हैं। यह जगह हमारे लिए नहीं है।”

6. बेटे की वापसी

तभी सायरन की आवाज गूंजी। काली Mercedes और BMW का काफिला होटल के पोर्च में रुका। अर्जुन मल्होत्रा उतरा, थ्री पीस सूट में राजकुमार सा। मुस्कान थी, लेकिन गेट पर भीड़ देख रुक गया। गार्ड्स किसी को डांट रहे थे, लोग वीडियो बना रहे थे। “क्या हो रहा है वहां?” अर्जुन ने सेक्रेटरी से पूछा, तेज कदमों से आगे बढ़ा। भीड़ में जानी पहचानी रोने की आवाज सुनाई दी—दिल थम गया।

भीड़ चीरता हुआ आगे बढ़ा, धूल और खून में सने मां-बाप पड़े थे। “मां, बाबूजी!” आवाज कांप उठी। गार्ड सैल्यूट मारने लगा, “सर, ये भिखारी अंदर घुस आए थे…” अर्जुन ने गार्ड की बात पूरी होने से पहले ही एक जोरदार मुक्का उसके जबड़े पर मारा। गार्ड दूर जा गिरा।

अर्जुन घुटनों के बल मां के पास बैठ गया, “मां, ये सब क्या है? तुम्हारी यह हालत?” जैकेट उतारकर मां के कंधों पर डाल दी। गायत्री ने कांपते हाथों से बेटे का चेहरा छुआ, “लल्ला, हम तो बस तुझे देखने आए थे…” फूट-फूट कर रो पड़ी।

अर्जुन ने पिता को सहारा देकर उठाया, आंखों में ज्वालामुखी धधक रहा था। “मेरे साथ अंदर चलिए।” “नहीं बेटा, वे हमें मारेंगे।” “मैं देखता हूं कौन हाथ लगाता है। आज यह होटल हिलेगा।”

7. न्याय का तूफान

अर्जुन अपने माता-पिता को लेकर लॉबी में दाखिल हुआ। उसका रौद्र रूप देखकर सन्नाटा छा गया। नताशा वेटर को फर्श साफ करने का निर्देश दे रही थी। “नताशा!” अर्जुन की आवाज गूंज उठी। “हे बेबी, तुम आ गए। देखो ना इन जाहिलों ने…”

अर्जुन का हाथ हवा में लहराया, नताशा के गाल पर तमाचा पड़ा। नताशा जमीन पर गिर पड़ी, “अर्जुन, तुम मुझे मार रहे हो इन भिखारियों के लिए?” अर्जुन ने कॉलर से पकड़कर खड़ा किया, “ध्यान से देख इन्हें। ये वो भिखारी हैं जिनके खून-पसीने से मैंने यह साम्राज्य खड़ा किया है। ये मेरे भगवान हैं, मेरे माता-पिता हैं।”

हॉल में मौजूद हर शख्स सन्न रह गया। “ये तुम्हारे पेरेंट्स हैं? लेकिन यू सेड द लिव इन विलेज…” “हां, गांव में रहते हैं। लेकिन इनके संस्कार महलों वाले हैं। और तुम महलों में रहकर भी गरीब हो। तुम्हारी सोच गरीब है। जिस औरत ने मुझे जन्म दिया, तुमने उसे फर्श पोंछने पर मजबूर किया।”

अर्जुन ने विक्रम और गार्ड्स की तरफ देखा, “तुम सब ने मेरे पिता को बीमार हालत में बाहर फेंका। आज के बाद तुम में से कोई इस शहर के किसी होटल में नौकरी नहीं करेगा। यू ऑल आर फायरड।”

फिर नताशा की ओर मुड़ा, “जो मेरे मां-बाप की इज्जत नहीं कर सकती, वो मेरी अर्धांगिनी कभी नहीं बन सकती। अभी के अभी होटल से दफा हो जाओ, अंगूठी यहीं उतार कर जाना।”

नताशा गिड़गिड़ाई, “माफ कर दो, मुझे नहीं पता था…” “माफी उनसे मांगो,” अर्जुन ने माता-पिता की ओर इशारा किया। नताशा ने झुककर माफी मांगनी चाही, गायत्री ने मुंह फेर लिया।

8. रिश्तों की जीत

अर्जुन ने माइक हाथ में लिया, “देवियों और सज्जनों, आज की पार्टी कैंसिल है। आज मैं सिर्फ अपने माता-पिता के साथ समय बिताऊंगा, जिन्होंने मुझे चलना सिखाया और जिनकी वजह से आज मैं यहां हूं।”

अर्जुन ने जमीन पर पड़ी टूटी हुई मटकी से थोड़ी सी बची खीर उठाई, माथे से लगाई। पिता को सहारा दिया, मां का हाथ थामकर उन्हें वीआईपी लिफ्ट की ओर ले गया।

हॉल में मौजूद हर शख्स की आंखों में शर्म थी। कुछ ने अपने माता-पिता को फोन किया, कुछ की आंखें नम थीं।

9. कहानी की सीख

अर्जुन ने उस रात अपने माता-पिता के साथ होटल के सबसे आलीशान सुइट में समय बिताया। मां की खीर, पिता की कहानियां, परिवार की हंसी—वह सब कुछ जो असली खुशी है। अगली सुबह अखबारों की हेडलाइन थी—”अर्जुन मल्होत्रा ने मां-बाप के सम्मान के लिए पार्टी कैंसिल की।”

अर्जुन ने होटल के सभी स्टाफ को फिर से ट्रेनिंग दिलवाई—रिश्तों की इज्जत, इंसानियत और संवेदनशीलता की। उसने अपने माता-पिता को होटल का विशेष सम्मानित अतिथि बना दिया।

नताशा और विक्रम जैसे लोग दुनिया के लिए मिसाल बन गए कि पैसे से नहीं, संस्कार और दिल से इंसान बड़ा होता है। अर्जुन ने अपने माता-पिता से माफी मांगी, “मां, बाबूजी, आज जो कुछ भी हूं, आपकी वजह से हूं।”

गायत्री ने बेटे के सिर पर हाथ रखा, “बेटा, जो अपने मां-बाप की इज्जत करता है, वही सच्चा राजा है।”

10. अंत और संदेश

यह कहानी सिखाती है कि असली दौलत रिश्तों में है, संस्कारों में है। पैसा और शोहरत आती-जाती रहती है, लेकिन मां-बाप का प्यार, उनकी इज्जत हमेशा साथ रहती है। अर्जुन ने दुनिया के सामने साबित कर दिया—जो अपने मां-बाप को भूल जाता है, वह सब कुछ खो देता है। जो उन्हें सिर आंखों पर बैठाता है, उसकी दुनिया महल बन जाती है।

समाप्त।

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