मासूम बच्ची ने || ठेले पर समोसे बेचने वाले से कहा आप मेरी मम्मी से शादी कर लो

पटना शहर की भीड़भाड़ वाली गलियों में एक चौराहे पर अमित की छोटी-सी समोसे की दुकान थी, जहाँ सुबह से शाम तक ग्राहकों की चहल-पहल लगी रहती थी और अमित अपनी मेहनत और मुस्कान से सबका दिल जीत लेता था। एक दिन की बात है, जब दुकान पर भीड़ कुछ कम हो गई थी, तभी एक नन्ही बच्ची वहाँ आई और बड़े मासूम चेहरे से बोली, “भैया, एक समोसा दीजिए, मुझे बहुत भूख लगी है।” बच्ची की आँखों में ऐसी मासूमियत और भूख की चमक थी कि अमित का दिल पिघल गया और उसने झटपट उसे एक समोसा पकड़ा दिया। बच्ची ने समोसा लिया और दुकान के पास खड़ी अपनी माँ के पास भागी। माँ ने झिझकते हुए कहा, “बेटा, पैसे तो हैं नहीं, क्यों किसी से यूँ उधार ले आई?” बच्ची ने मासूमियत से उत्तर दिया, “माँ, मैंने तो बस भूख लगने पर मांगा था, अंकल ने दिया, पैसे नहीं माँगे।” यह सब देखकर अमित उनके पास गया और बोला, “बहनजी, आप परेशान मत होइए, बच्ची को भूख लगी थी तो मैंने दे दिया, इसमें कोई उधार या एहसान नहीं है।” माँ ने आँसुओं से भरी आँखों से अमित को देखा और बोली, “भाईसाहब, मैं जानती हूँ आप भला कर रहे हैं, लेकिन मेरी आदत नहीं है बिना चुकाए कुछ लेने की।” बच्ची की माँ का नाम स्नेहा था, जो विधवा थी। उसके पति की मौत सड़क हादसे में हो गई थी और ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया था। वह अपनी छोटी बेटी अनन्या को लेकर सहेली के घर शरण में गई, मगर वहाँ भी हालात खराब हो गए और जब मकान मालिक ने घर खाली करने को कहा तो स्नेहा और अनन्या बेघर हो गईं। कई दिनों तक सड़क पर रहकर भूख-प्यास झेलनी पड़ी।

अमित ने यह सब सुना तो उसका दिल पसीज गया। उसने कहा, “सुनिए बहनजी, आपके पास रहने की कोई जगह नहीं है तो मेरी दुकान के पीछे एक छोटी-सी झोपड़ी है, आप चाहें तो वहाँ रह सकती हैं।” पहले तो स्नेहा को संकोच हुआ, मगर हालात के आगे उसने हामी भर दी और माँ-बेटी उस झोपड़ी में रहने लगीं। धीरे-धीरे अमित ने उन्हें अपनी दुकान में मदद करने का मौका दिया। स्नेहा ने जलेबी बनाना शुरू किया और समोसे-जलेबी की जोड़ी ने दुकान को और मशहूर कर दिया। लोग दूर-दूर से आने लगे और दुकान पर भीड़ बढ़ गई।

इस बीच मोहल्ले में बातें फैलने लगीं। लोग तरह-तरह की फुसफुसाहटें करने लगे कि “अमित और स्नेहा साथ में रहते हैं, ज़रूर कोई रिश्ता होगा।” मगर अमित और स्नेहा ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया, वे दोनों मेहनत और इज्ज़त से अपनी रोज़ी-रोटी कमा रहे थे और अनन्या के भविष्य के लिए सपने देख रहे थे। अनन्या भी अमित से बहुत लगाव करने लगी थी, वह उसे “अंकल” कहती लेकिन उसके मन में अमित के लिए एक अलग जगह बनने लगी।

एक दिन शाम को दुकान बंद होने के बाद सब साथ बैठे थे। अनन्या अचानक बोली, “अंकल, आप मेरी मम्मी से शादी क्यों नहीं कर लेते? तब आप हमेशा मेरे पापा बनकर रहेंगे।” यह सुनकर स्नेहा चौंक गई, उसका चेहरा लाल हो गया और उसने कहा, “बेटा, ये कैसी बातें कर रही हो?” मगर अमित मुस्कुरा दिया और बोला, “बेटी, तुम सच कह रही हो। अगर तुम्हारी माँ को कोई आपत्ति न हो तो मैं सचमुच यह रिश्ता निभाना चाहूँगा।” स्नेहा ने पहले तो संकोच किया, लेकिन अमित की सच्चाई, इंसानियत और अनन्या के मासूम सवाल ने उसका दिल छू लिया। उसने आँसुओं से भरी आँखों से हामी भर दी।

समाज की परवाह किए बिना अमित और स्नेहा ने शादी कर ली। मोहल्ले वालों ने फिर भी बातें बनाई, लेकिन समय के साथ सभी ने उनकी ईमानदारी और संघर्ष को देखकर चुप्पी साध ली। आज उनकी छोटी-सी दुकान पटना में मशहूर है। अमित और स्नेहा मिलकर मेहनत करते हैं, और अनन्या अब गर्व से कहती है कि “मेरे पापा सबसे अच्छे हैं।”

यह कहानी सिर्फ़ समोसे और जलेबी की दुकान की नहीं है, बल्कि यह इंसानियत, संघर्ष और नए रिश्ते की नींव पर खड़ी उस ज़िंदगी की है, जिसने समाज की रूढ़ियों को पीछे छोड़कर प्यार और सम्मान से जीने की राह चुन ली।

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